RE: kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून
शादी सुहागरात और हनीमून--41end
गतान्क से आगे…………………………………..
कमरे के बाहर मुझे नीचे रजनी की मम्मी मिल गयीं. मे समझ गयी कि सोनू ने न सिर्फ़ रजनी को बल्कि उसकी मम्मी को भी पटा लिया है. वो तारीफ के पुल बाँधे जा रही थीं. उन्ही से मुझे पता चला कि सोनू ने ये कहा है कि वो लोग रजनी को 9 वें बाद ही 15-20 दिन के लिए भेज दें, वो डेनो ले लेगी कोचैंग का. वैसे भी सम्मर वोकेशन में करेगी क्या. और सोनू के रहते उन लोगों को कोई परेशानी वहाँ नही होने वाली. वो रहने खाने, हर चीज़ का इताज़ाम कर देगा. फिर मेडिकल का एंट्रेन्स जितनी जल्दी रजनी तैयारी शुरू कर दे. मेने भी उनकी हामी में हमीं भरी और उस कमरे की ओर मूडी जिधर से इन लोगों की आवाज़ें आ रही थीं.
मे कमरे के बाहर एक पल के लिए दरवाजे के पास रुक गयी और देखने लगी,
. अंदर संजय से चिपकी अंजलि, रीमा, सोनू और उस के अगल बगल गुड्डी और रजनी...पासिंग दा पार्सल हो रहा था. अंजलि को नॉनवेज जोक या लिमरिक सुनाने था. वो बोली, जोक तो नही ,
मे एक सच्ची बताती हूँ और बोली कि कल छोटी भाभी ( यानी मे), अपनी सासू जी का पैर छू रहीं थी. पैर छूते हुए उनकी सासू जी की सारी कुछ उपर हट गयी, तो भाभी ने उस ओर देखते हुए हाथ जोड़ लिए. सब लोगों ने पूछा बहू ये किसे प्रणाम कर रही हो तो वो बोली, अपने पति की जन्म भूमि और ससुर की कर्म भूमि को.
सब लोग हँसने लगे. घटना बिल्कुल झूठी थी, लेकिन मे भी मुश्किल से अपनी हँसी दबा पाई. रीमा बोली, अर्रे ये कोई नॉनवेज जोक थोड़े ही हुआ तो संजय बोला चल, मे सुना देता हूँ उस की ओर से. रीमा ने फिर छेड़ा, अर्रे भैया अभी से...भाभी की ओर से. अंजलि ने रीमा को खींचते हुए कहा और तू भी तो अभी से ननद की तरह झगड़ रही है. दोनों को रोक के संजय ने सुनाया,
कॉक-अ-डूडल-डू
आइ’म टेकिंग प्रेमा फॉर ए स्क्रू.
आइ होप शी’स गोयिंग टू डू दा डू
ऑर एल्स आइ’ल्ल हॅव टू वांक दा टू-टू
टिल दा डॅम थिंग ईज़ थ्रू
रीमा बोली, भैया, प्रेमा की जगह अंजलि बोल दो तो सब सही हो जाएगा. सोनू बोला अर्रे मे एक हिन्दी में सुनाता हूँ लेकिन तुम लोग बुरा मत मानना.
सुनाओ ना यहाँ हामी लोग तो हैं. रजनी बोली. गुड्डी की ओर देख के वो धीमी आवाज़ में चालू हो गया,
कोई कहे वो नारी उदासी, कोई कहे वो नारी चुदासि,
लंड प्रचंड की ड्रिल1 पड़ी जब, छा गयी घन घोर घटायें खंभ सा लंड घुसा दियो तो दूज से हो गयी पूरणमासी.
अब सारी लड़कियाँ उसके पीछे, ढपाधप धौल जमाने लगीं हे कैसी गंदी बातें करते हो...लेकिन गुड्डी उसे मार भी रही थी मुस्करा भी रही थी. तब तक मे अंदर कमरे में पहुँच गयी. सब चुप हो गये तो मे सबके साथ बैठ के बोली, हे चालू रहो मे भी खेलूँगी. सब तुरंत मान गये लेकिन खेल कुछ आगे बढ़ता कि रजनी की मम्मी आ गयीं. हे ट्रेन का समय हो गया है लेकिन ड्राइवर नही मिल रहा है. वो बोली और रजनी को चलने के लिए कहा. मम्मी सोनू हैं ना, पिक्चर तो यही ड्राइव कर के ले गये थे. मे भी बोली,
हे सोनू छोड़ आओ ना उन लोगों को.
चलने के पहले मे देख रही थी रजनी ने हल्के से सोनू का हाथ पकड़ के दबा दिया. सोनू ने कान में कहा बस तीन महीने की बात है, मई में तो मिलेंगे ना.
बाहर जब सब लोग उन लोगों को छोड़ने खड़े थे, मेने गुड्डी से कहा हे तू भी बैठ जा और लौटते हुए कुछ समान ही लेती आना मे तुझे लिस्ट दे देती हूँ. वो खुशी खुशी सोनू की बगल में जा के बैठ गयी. पीछे रजनी और उसकी मम्मी बैठीं थीं. जब वो चलने लगे तो मेने फिर रोक लिया और अंजलि से कहा हे तुम रीमा को कोई किताब देने की बात कर रही थी ना... तो वो बोली भाभी वो तो घर पे है और वहाँ तो ताला बंद है, सब लोग तो यहीं हैं. मे बोली, अर्रे यही तो मे कह रही थी, चाभी दे दे. गुड्डी जा रही है. लौटते हुए लेती आएगी उससे चाभी ले के मेने गुड्डी को कार में थमा दिया. वो मेरा मतलब समझ गयी और उसके चेहरे से खुशी छलक रही थी. समझ तो सोनू भी गया था लेकिन वो बड़बड़ा रहा था. गुड्डी से मे कान में बोली,
हे थोड़ी सी पेट पूजा कहीं भी कभी भी.
एक दम वो हँसी.
उनके जाने के बाद वो अपनी साली को आइस क्रीम खिलाने बाजार चले गये और मे कमरे में चल के पॅकिंग में लग गयी. कल दोपहर को ही हनिमून पे जाना था लेकिन पॅकिंग बिल्कुल भी नही हुई थी. उनकी बात को याद कर मे मुस्कराने लगे. मेने जब उनसे पूछा क्या समान उनका पॅक करूँ तो वो मुझे पकड़ के बोले कि बस ये वाला, उसके अलावा कुछ भी नही ले चलोगि तो भी चलेगा. फिर उन्होने अपने 'सीक्रेट कपबोर्ड' की ओर इशारा कर के कहा, मुझे क्या पसंद है वो तो तुम्हे मालूम ही है. सबसे पहले मेने वो खोल के, किताबें, सेक्स पिक्चर्स वालीं, कुछ मस्त राम की कहानियों की,
वीडियो कॅसेट'स, और फिर उनका फोटोग्रफी के समान, फिर कुछ वूलेन्स...सरीया दो तीन ही रखीं.
मे अपने थोड़े वेस्टर्न टाइप ड्रेस ले जाने चाहती थी लेकिन मे वो ले ही नही आई थीं. हां, नाइटी सेक्सी लाइनाये जो भी भाभी ने खरीदवाई थी...मे पॅकिंग कर ही रही थी कि, अंजलि आगाई और पीछे पीछे संजय भी. मेने बाकी का काम उस के हवाले कर दिया और नीचे की ओर चल दी.
दरवाजे के पास रुक के मेने उससे कहा हे, तू काम भी कर और आराम भी...मे दरवाजा बाहर से बंद कर देती हूँ. बाहर से दरवाजा बंद कर मे नीचे चली आई.
कैसे गुड्डे गुड्डी खेलते, गुड्डे गुड़िया से बच्चे, खुद गुड्डे गुड़िया बन जाते हैं और कुछ दिनों में उनके भी गुड्डे गुड़िया हो जाते हैं.
किचन में दीदी मेरी जेठानी, अकेली थीं घर लगभग खाली सा हो गया था. सिर्फ़ अंजलि के घर के लोग थे और गुड्डी...वो लोग भी कल चले जाने वाले थे. गुड्डी तो सोनू के साथ...सोच के ही मे मुस्करा पड़ी. दीदी बोली क्यों मुस्करा रही हो तो मेने बताया कि मे संजय और अंजलि को उपर अपने कमरे में बंद कर आई हूँ. वो भी मुस्करा पड़ीं. लेकिन बेचारी अंजलि...रीमा जल्द ही लौट आई और उसे मेरे कमरे से कुछ समान लेना था इस लिए उस ने जाके दरवाजा खोल दिया.
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