kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून
08-17-2018, 02:51 PM,
RE: kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून
अब तो खाना ही पड़ेगा, तुमने मना क्यों नही किया. रजनी बोली.और जब उसने बोलने के लिए पंखुड़ियों ऐसे गुलाबी होंठ खोले तो सूरज की एक किरण वहाँ छेड़ गयी.

तब तक हल्की सी आवाज़ हुई जिधर वो बैठे थे.

हुआ ये कि गुड्डी कटोरी में हलवा ले के वहाँ देने पहुँची तो रीमा ने एक चम्मच सीधे अपने हाथो से जीजा जी के मुँह में...उन्होने एक बार में पूरा गढ़प कर लिया.

ओह जीजू क्या बहुत गरम था रीमा ने उनका हूँठ सहलाते हुए पूछा.

नही...लेकिन खिलाने वाली ज़्यादा हॉट थी. वो बोले.

नेदीदे...ग़लती तो आप की भी है, एक बार में पूरा घूँट लिया आँख नचा के रीमा बोली.

अरे देख,...तुझे भी एक बार में पूरा ना घोटा तो तेरा जीजू नही. वो हल्के से शरारती अंदाज़ में बोले.

और मे आप की तरह लेकिन चीखूँगी नही... हंस के वो भी धीमे से से 2अर्थी अंदाज़ में उसी तरह बोली.

मेने ध्यान अपने बगल मे किया जहाँ चिक चिक मच रही थी अंजलि और संजय के बीच में, किसके शहेर में ज़्यादा पिक्चर हॉल हैं और कहाँ ज़्यादा अच्छे है. दोनो में से कोई मानने को तैयार नही था. अंजलि ने 'उनसे' कहा कि पिक्चर दिखाए पर वो टाल मटोल करते रहे. संजय और सोनू को और मौका मिल गया अंजलि को चिढ़ाने का. दोनो बोले,

देखा जीजा जी इस लिए नही ले चल रहे हैं कि तुम्हारे यहाँ के पिक्चर हालों का राज खुल जाएगा. अब तो गुड्डी और रजनी भी ज़ोर ज़ोर से कहने लगी लेकिन वो टस से मस नही हुए.

तब तक रीमा भी बोल पड़ी चलिए ना जीजू, आपके साथ पिक्चर देखने में बहुत मज़ा आएगा.

और अब वो तुरंत मान गये.फिर तो सारी मेरी ननदे...बहने कह रहीं थी तो नही और साली ने कहा तो ....झट से, शादी से कितना बदल जाता है,पर मेरी जेठानी अपने देवर की ओर से बोली,

अरे नही ये बात नही है जो काम साली कर सकती है...जो चीज़ साली से मिल सकती है क्या वो ननदो से मिल सकती है. ननदे झेंप गई लेकिन मे बोली,

अरे नही दीदी, मेरी ननदे और नन्दो की तरह थोड़ी हैं जो अपने भैया को तरसाएँ...अरे चाहे उनके भैया हों या मेरे वो कोई भेद भाव नही करती आख़िर अब तक इनका काम चलता कैसे था. गुड्डी ने किसी पिक्चर का नाम लिया तो सोनू बोला,

अरे अभी तो तुम बच्ची हो वो अडल्ट पिक्चर है, तुम्हारे ऐसे छोटे बच्चो के लिए है नही, हां हम लोग जा सकते हैं. कहीं कार्टून वार्टून लगी हो बच्चो के लिए तो बताओ. तब तक अंजलि मुस्करा के बोली,

अरे उस हिसाब से तो भाभी भी नही जा सकती वो भी अभी कहाँ 18 की हुई हैं. लेकिन अडल्ट वाले काम सारे करती हैं तो फिर... अब बेचारे मेरे भाई चुप हो गये.

फिर सवाल हुआ कौन सा शो चला जाय. किसी ने कहा शाम को लेकिन मे बोली,

6से 9नही...लौट के खाने वाना फिर...देर हो जाती है.

किस चीज़ के लिए देर हो जाती है भाभी... अंजलि ने मुस्काराकर छेड़ा.

मे शर्मा गई. तय हुआ कि जल्दी से खाना बना लेते हैं और 3 से 6 चलेंगे.

ब्रेकफास्ट के बाद भी हम लोग बरामदे में बैठे रहे.

जाड़े की गुनेगुनि धूप, गरमाहट भरी गुदगउडती, भाभी की चिकोतियो जैसी...

वो वहीं बरामदे में बैठे अख़बार पढ़ने लगे...लेकिन निगाहे उनकी.

पास ही में मेरी जेठानी मटर और बाकी सब्जियाँ ले आई कि वहीं छिल काट लें, जल्दी हो जाएगी खाने में.

संजय ने अंजलि को कुछ छेड़ा तो वो चिल्लाई भाभी देखिए इस साले को बहुत तंग करता है.

मेरी जेठानी ने अंजलि से कहा हे कैसे बोलती है तो संजय मज़े में बोला, अर्रे दीदी, साले को साला बोलने दीजिए ना , तो अंजलि ने उसको और ज़ुबान चिढ़ा दी और बोली, सही बात है, जिसकी बेहन अंदर, उसका भाई सिकंदर. इसीलिए तुम्हारी हिम्मत बढ़ी है.मे बोली अर्रे सिकंदर अंदर तक घुस गया था, तो अगर ये अंदर तक घुस जाएगा ना, तो फिर...जेठानी जी ने और बात जोड़ी, अर्रे यही तो ये चाहती है.

चुहल बाजियाँ, छेड़खानी, धौल धाप...सब चल रहा था. रजनी रीमा को ले के अपने साथ चली गयी थी. अंजलि और संजय में कुछ स्टैम्प कलेकशन को ले के बहस चल रही थी.संजय कुछ उसे बोल रहा था कि थूक लगा के लिफाफे पे से छुड़ा लेने से कलेक्शन नही हो जाता और वो बोल रही थी कि उसके पास मिंट फ्रेश स्टंप हैं.आख़िर वो संजय को ले के अपने कमरे में चली गयी कलेक्शन दिखाने.

अब तक तो वो छुप छुप के देख रहे थे लेकिन रीमा, रजनी, अंजलि और संजय के जाने के बाद, वो और ...अब जब वो देखते तो मे भी चुपके से उन्हे देख के मुस्करा देती. अच्छा तो मुझे भी लग रहा था पर शरम भी लग रही थी...इस तरह सबके सामने. मटर छिलते हुए जब मे झुकती तो मेरा आँचल धलक उठता तो , सेड से मेरे ब्लाउस से बूब्स के उभार झलक जाते ...उनकी निगाहे गुलेल मार रही थीं कस कस के. एकाध बार मेरी निगाहो ने बराजा भी उन्हे, मे आँचल ठीक कर लेती लेकिन सारी की अभी आदत लगी ही थी मुझे, इस लिए बार बार ढालाक ही जाती. सच कहूँ तो वो निगाहो की जंग मुझे भी अच्छि ही लग रही थी. तभी उन्होने अख़बार के टुकड़े से एक बॉल सी बना के फेंकी लेकिन ऐन मौके पे मे झुक गयी और वो गुड्डी को लगी. वो बेचारी तो कुछ नही बोली, लेकिन मेरी जेठानी ने गुनगुनाया
हे कंकड़िया मार के जगाया कोई मेरे सपनों में आया.

क्रमशः……………………………………
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