RE: kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून
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गतान्क से आगे…………………………………..
मैं तो हवा मे उड़ने लगी. जब सब औरते जाने लगी तो मैं भी कमरे की ओर ओर मूडी. मझली ननद भूनभुना रही थी, और करे 'बच्ची' से शादी, अभी 12 वे का इम्तहान देने जाना है,
फिर ग्रॅजुयेशन करेंगी कब ग्रहस्ती सॅम्हालंगी अरे मैं इतनी अच्छी पढ़ी लिखी लड़की मेने अनसुना कर दिया. मेरी सास मुझसे खुश, जेठानी खुश और मेरे सैया खुश.
सैया तो मेरे इतने बेताब, जैसे मैं कमरे मे घुसी वो पलंग पर पहले से तैयार.
(नई करधन की घुघरुओ की आवाज़ ने उन्हे पहले ही मेरे आने का संकेत दे दिया था) मेने दरवाजा बंद कर के दरवाजे के पास ही खड़े हो अपना आँचल लहरा अपना इरादा जाता दिया. पलंग के पास आ के उन्हे दिखाते हुए मेने साड़ी धीरे धीरे खोली और ड्रेसिंग रूम की ओर मूडी पर उन्होने पलंग पे मुंझे अपने उपर खींच लिया.
"हे चेंज तो कर लेने दो ना अभी आती हू ना, बस दो मिनेट ." मैं बोली.
"उँहू आज ऐसे ही बस आ जाओ ना." उन्होने मनुहार की.
मैं कौन होती थी मना करने वाली और करने से ही कौन छूट जाती. उन्होने अपनी बाँहो मे कस के भींच रखा था. मेने अपने पेटिकोट के उपर से ही, पाजामे को फाड़ते उनके 'खुन्टे' का प्रेशर महसूस किया. उनका तंबू पूरी तरह तन चुका था.
मुझे बहुत अच्छा लगा. मेने उसे हल्के से दबाया और चोली से छलकते हुए जोबन उनके चेहरे पे रगड़ के बोली,
"आज मेरा बालम बहुत बेसबरा हो रहा है"
उन्होने कस के चोली के उपर से ही मेरे दोनो जोबन कस कस के चूम लिए. और बोले आज तुमने बहुत अच्छा गाया. मैं बोली कि अच्छा तो जनाब यहा कमरे मे बैठ के चुप के सुन रहे थे. वो बोले लेकिन साफ साफ सुनाई नही दे रहा था. एक बार फिर से सुनाओ ना. मैं समझ गयी कि वो खुल के मेरे मूह से क्या सुनना चाह रहे थे, लेकिन मैं चिढ़ाते हुए बोली. क्या सुनाऊ भक्ति संगीत, फिल्मी या लोक संगीत मेने तो तीनो सुनाए थे. वो बिचारे , बोले लोक संगीत. मेने फिर पूछा, शादी के गाने या सोहर उनके मूह पे अपनी चोली रगड़ते हुए मैं बोली, अरे साफ साफ क्यो नही कहते अपनी बहनो का हाल सुनने का मन है. उनके उपर लेटे ही लेटे मेने सुनाना शुरू किया पहले,
"छोटी दाने वाला बिछुआ अजब बने वो बिछुआ पहने हमारे सैया की बहने, अंजलि छिनारो,
अरे हमारे सैया से रोज चुदवत बजे, और फिर,
सुनो सारे लोगो हमारे सैया की बड़ाई,
अरे उनकी बहने अरे हमारी ननदी बड़ी हर जाई,
हमारे सैया से वो अंखिया लड़ावे, अंखिया लड़वाई, जोबन मीसववाई,
अरे सुनो सारे लोगो हमारे सैया की बड़ाई,
कचहरी रोड मे दी है गवाही अरे अंजलि साली बड़ी हरजाई,
रजनी छिनारो बड़ी हरजाई,
हमारे सैया से, अरे अपने भैया से खूब चुदवाइ,
चुचि दबावाए और बुर मरवाए अंजलि छिनारो खूब चुदवाये,
पाजामे के अंदर उनका खुन्टा पत्थर का हो गया था. मेने उपर से ही कस के उसे अपनी जघो के बीच रगड़ा. मेरे ब्लाउस के बटन अब तक खुल चुके थे. उस से छलकते उभार मेने उनके उत्तेजित चेहरे पे मले और अगली गाली शुरू कर दी.
अरे नीली सी घोड़ी गज नीम से बंदी चलो देख तो लो
अरे देखने गयी हमारी ननदी छिनार, जिनके दस दस भरतार,
वो तो चढ़ गयी अटूट, उनकी दिख गयी चूत,
चलो देख तो लो अरे देखने गये अरे अंजलि छिनार जिनके मेरे सैया यार ,
जिनके मेरे भैया यार वो तो चढ़ गई खजूर उनकी दिख गयी बुर चलो देख तो लो.
अब तक उनकी हालत खराब हो गयी थी. एक झटके मे उन्होने मेरी ब्रा उतार के फेंक दी और नीचे की ओर सरक के बोले. पहले अब मैं तेरी बुर देखता हू. मेरा पेटिकोट और पैंटी पल भर मे अलग हो गयी. 'वो'भी उनके लंड के धक्का खा खा के गीली हो चुकी थी.
पहले तो उन्होने 'उसे' मुट्ठी मे भर के दबोच लिया और मसल दिया, फिर दो उगलियो के बीच मेरी गुलाबी पुट्तियो को कस के मसल दिया. उनका दूसरा हाथ मेरे चूतड़ के नीचे तकिये रख के उसे अच्छी तरह उभर रहा था. मेरी दोनो जंघे अपने आप फैल गयी थी. उनके चुंबन से अचानक मैं उछल पड़ी, सीधे वही पर और पूरी ताक़त से. उनके होंठ हट गये लेकिन अब उनकी ज़ुबान ने पहले तो हल्के से मेरे भागोश्ठो के बाहर से फिर हल्के से उसे फैला के वो अंदर घुसी, और थोड़ा अंदर तक चाटते हुए.पेलना शुरू किया. मैं मचल रही थी तड़प रही थी . उनकी सिर्फ़ जीभ मेरी देह के सम्पर्क मे थी और वो भी सिर्फ़ टिप मेरे अंदर घुसी, वो भी मेरी तरह,
मेरे अंदर मचल रही थी, तड़प रही थी. एक पल के लिए उन्होने जीभ बाहर निकाली और पूछा बोल कैसा लग रहा है.
उमौंह..उमूहमहममाओह उंह मेरी आवाज़े बता रही थी कि मुझे कैसा लग रहा है.
फिर क्या था, उन्होने ज़ुबान तो बाहर निकाल ली लेकिन अब उपर से कस कस के चापद चपड मेरी चिकनी चूत चटाना शुरू कर दिया. थोड़ी ही देर मे वो क्लिट के ठीक नीचे से शुरू कर के पीछे वाले छेद तक मैं कमर हिला रही थी पटक रही थी. लेकिन ये तो सिर्फ़ शुरू आत थी. कुछ ही देर मे मेरी कसी किशोर बुर , उनके होंठो के बीच थी और जीभ जो मज़ा, पिछली रातो मे उनका लंड ले रहा था, अंदर बाहर अंदर बाहर. पाँच * दस मिनेट मे ही मेरी हालत खराब थी. वो कस कस के मेरी चूत चूस रहे थे और हचा हच उनकी जीभ मेरी चूत चोद रही थी. मेर मन कर रहा था बस वो करें. जब उन्होने जीभ बाहर निकाली तो मुझे लगा कि अब वो शुरू करेंगे पर जीभ की जगह उनकी दो लंबी उंगलियो ने ली, वैसलीन मे अच्छी तरह लिथाडी चुपड़ी. एक बार मे ही उंगलिया जड़ तक अंदर. पहले तो वो खचाखच अंदर बाहर होती रही और फिर गोल गोल चारो ओर मेरी चूत के अंदर घुस के, उसे चौड़ा करती, उसकी दीवालो को रगड़ती वैसलीन लेप रही थी. उनकी जीभ मेरी डॉक्टर भाभी ने तो शादी के पहले ही मेरी क्लिट का घुघाट उघाड़ दिया था अब उत्तेजना के मारे वो खूब गुलाबी कड़ी मस्त. उनकी जीभ ने उसे हल्के से छू भर दिया तो मुझे लगा मेरी देह मे 440 वॉल्ट का करेंट लग गया.
लेकिन जीभ उसे रुक रुक के सहलाती रही, छेड़ती रही. उनके रस लेने मे एक्सपर्ट होंठो ने भी मेरी क्लिट भींच ली और उसे हल्के हल्के चूस रही थी.
"ओह ओह ओह और करो ना अब नही रहा जाता" मैं बेशरम हो के बोल रही थी. उन्होने मेरी क्लिट और कस के चूसना शुरू कर दिया.
"डालो ना ओह प्लीज़ डाल दो बस बस अब अओह्ह " मैं झड़ने के कगार पे थी. अब मूह उठा के उन्होने पूछा,
"बोल ना क्या डाल दू क्या करूँ. बोल ने साफ साफ." और फिर कस के क्लिट चूसने लगे.
"ओह ..ओह ओह्ह डाल दो अपना वो अपना लंड डाल दे..डाल."
"अरे लंड डाल का क्या करू मे री जान कहाँ डालूं" ये बोल के वो फिर से और अब के उन्होने मेरी क्लिट ह्ल्की सी होंठो से दबा भी दी.
मैं चूतड़ पटक रही थी. पूरी देह मे तरंग दौड़ रही थी. कस के उनके बाल पकड़ के भींच के बोली,
"अरे डाल डाल दो अपना लंड मेरी चूत मे ओह्ह चोद दो चोद मुझे ओह्ह."
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