RE: kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून
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गतान्क से आगे…………………………………..
ड्रेसिंग रूम मे उपर जब मैं तैयार होने लगी तो मुझे नीचे जो बाते जेठानी जी ने बताई थी, वो याद आने लगी. मेने शीशे मे अपनी इमेज देखी, और मुझे लगा कि कैसे मेरी ननदो ने अपने मन मे उनकी एक इमेज बनाई और उस इमेज मे उन्हे खुद, जैसे मेले मे कही मेने देखा था हॉल ऑफ मिरर्स चारो ओर शीशे और आप पता नही कर सकते कि आप जो अक्स देख रहे है वो आप के अक्स का अक्स है या आप का अक्स,
और जो आप कर रहे है और शीशे मे जो देख रहे है वो आप का अक्स आप को कॉपी कर रहा है या आप अपने अक्स को कॉपी कर रहे है. और यहाँ तो दूसरे जो आपका अक्स देख रहे थे, और आपको मजूबार कर रह थे, उस अक्स की तरह बुत बने रहने के लिए.. शीशे मे देख के फाउंडेशन लगाते हुए मेने सोचा कोई बात नही, मैं आ गयी हू ना आप को इन शीशो से आज़ाद करने के लिए, भले ही मुझे शीशे तोड़ने क्यो ना पड़े,
भले ही इसमे मैं क्यो ने ज़ख्मी हो ना जाउ. फिर मेरे मन ने टोका कि तुमको भी तो एक शर्मीली दुल्हन के अक्स से बाहर आना पड़ेगा. मेने मुस्करा के खुद से कहा,
आउन्गि. मुझे मालूम है सब मालूम पड़ गया है कि तुम्हे क्या अच्छा लगता है मेरे नादान बलमा अब देखना जितना तुमने सोचा भी ना होगा ना उससे भी ज़्यादा तुम भूल जाओगे 'मस्त राम' को. रच रच के मैं श्रीनगर कर रही थी. लंबे बालो मे रंग बिरंगी चोटी और चेहरे पे मचलती दो लटे, तिरछी घनी भोन्हे, बड़ी बड़ी पलको पे हल्का सा मास्कारा, रतनेरी आँखो मे काजल की रेखा, हाबोन्स को थोड़ा और हाइलाइट कर के गोरे गोरे गालो पे हल्की सी रूज की लाली, और जब लिपस्टिक के बाद मेने नीचे देखा तो मुझे याद आ गया कि मेरी एक सहेली ने जब मेने उसे इनकी बर्थ डेट बताई तो वो बोली, काँसेरियाँ वो तो तेरे उपर लट्टू रहेगा, थे लाइक बस्टी वॉएन (वो हर काम लिंडा गुड मे से पूछ के करती थी) और जो मेने पढ़ा था,एक दम ठीक था.
मुझे मालूम है कि वो जब पकड़ेगा तो छोड़ेगा नही लेकिन अगर अपने शेल मे घुस गया तो बाहर नही निकलेगा. वो लेन कही पढ़ी थी वो मुझे अभी तक याद है,
"आ वोन वो ईज़ एस्पेशली मदर्ली इन बिल्ड अट्रॅक्ट्स देम लाइक मॅजिक, वेदर दिस क्वालिटी ईज़ ड्यू टू हर मदर्ली नेचर ओर पेरसोनेलिटी, ओर बाइ फिज़िकल रेप्रेज़ेंटेशन्स ऑफ मोतेर्लिनएस्स लाइक आ लार्ज बोसो, वाइड हिप्स, ओर प्लंपनेस... यू विल फाइंड कॅन्सर टू बी अफ्फेकटिओनेटे, र्ोआंतिक, सिंपतेटिक, इमगिनेटिवे, आंड क्वाइट सेडक्टिव फॉर दा कॅन्सर मेल, लव आंड सेक्स आर वन आंड दा सेम. हे कॅन बे क्वाइट सेक्षुयली क्रियेटिव थिंग्स कॅन गेट प्रेटी स्टीमी इन तेरे"
मेने एक गुलाबी बनारसी साड़ी पहनी और एक सतरंगी रेशमी चोली कट ब्लाउस. अपने पैरो मे एक चौड़ी चाँदी की खूब घुघरुओ वाली पायल बाँध के जब मैं अपनी पतली सी कमर मे सोने की करधन पहन रही थी, तभी अंजलि आई. पास मे बैठ के कुछ रुक के बोली,
"भाभी, मैं.. ई आम सॉरी."
मेने उसे पकड़ के अपने पास खींच लिया और उसके गाल सहलाती बोली,
"अरी बुद्धू, जो लोग छोटी होते है वो सॉरी नही बोलते, काहे की सॉरी."
"नही भाभी मुझे मालूम है आप जो भी सज़ा देगी मुझे मंजूर है."
मुझे शरारत सूझी. मेने टॉप के उपर से उसके बूब्स हल्के से दबाते बोली,
"सच्ची बोला मैं जो भी कहुगी मंजूर?"
"हाँ भाभी एकदम पूरा मंजूर."
"तो कल जब संजय आएगा ना तेरा यार और मेरा भाई वो जो भी माँगेगा देना पड़ेगा",
मेने छेड़ा.
"एक दम भाभी लेकिन माँगना उसे पड़ेगा. आपका भाई तो लड़कियो से भी ज़्यादा शर्मिला है." बड़ी अदा से वो बोली. उसके निपल्स टॉप के उपर से पिंच करते हुए मैं बोली,
"माँगना तो उसे पड़ेगा, ये तो तेरा हक बनता है. पहले नाक रगड़वाना फिर देना."
"हाँ भाभी नाक तो रगड़वाउंगी ही."
"सिर्फ़ नाक रगड़वाएगी या कुछ और भी." अब उसके शरमाने की बारी थी.
"प्रॉमिस भाभी आप नाराज़ तो नही है ना" कह के उसने हाथ बढ़ाया और मेने हाथ थाम लिया.
"ये बोल आज मैं तुम्हे खुल के चुन चुन के जबरदस्त गालिया सुनाने वाली हू. तू तो नही बुरा मानेगी." मेने पूछा.
"अरे नही भाभी, हाँ अगर आप गाली नही सुनाती तो मैं ज़रूर बुरा मान लेती." वो हंस के बोली.
तब तक गुड्डी मुझे बुलाने आ गयी. अंजलि ने उसके कंधे पे हाथ रख के कहा,
"भाभी ये तो मेरी पक्की सहेली है, इसको भी मत बख़्शिएगा."
"अरे तेरी सहेली है तो मेरी तो ननद ही लगेगी, फिर तो इसको मैं क्यो छोड़ने वाली."
उधर अंजलि बाहर गयी इधर ये अंदर आए. बिना ये सोचे कि अंजलि अभी दरवाजे पे ही है और गुड्डी सामने, मेने इन्हे रिझाते हुए एक चक्कर लगाया और आँचल ठीक करने के बहाने आँचल ढलका के बोली, " बोलो मैं कैसी लगती हू."
"आज किसको घायल करने का इरादा है. " मुस्करा के उन्होने पूछा.
"है कोई प्यारा सा, हॅंडसम सा" मेने झटक के गालो पे लटकती हुई लाटो को एक जुम्बिश दी और अपने नित्म्बो को मटकाती, पायल झन्काति कमरे से बाहर चल दी.
बाहर सब लोग आ गये थे ज़्यादातर औरते ही थी, घर की मुहल्ले की, कुछ काम करने वालिया और एक दो लोग जैसे मेरे ननदोइ अश्विनी. हाँ क्यो कि प्रोग्राम छत पे ही था और मुझे मालूम था कि वो कान लगा बैठे होंगे, इसलिए उन्हे भी सब कुछ साफ साफ सुनाई देने वाला था.
सासू जी ने मुझे पकड़ के बहुत प्यार से अपने पास बैठाया. सबसे पहले और लोगो ने कुछ कुछ गाया. लेकिन दुलारी ने जब , मुझे चिढ़ाते हुए सुनाया,
"तनी धीरे धीरे डाला, बड़ा दुखेला राजौ.
तनिक भरे के कान चैदौलि, तानिको ना दुखयाल,
कँहे धँसावत बता भला बड़ा दुखेला राजौ.
पकड़िके दोनो जुबने रात भर घुसवेला,
तनिक हल्के से धकेला बड़ा दुखेला राजौ."
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