RE: kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून
शादी सुहागरात और हनीमून--23
गतान्क से आगे…………………………………..
जब उसने कस कस के मेरे जोबन को चूमा, मेरे मन सागर के मनोज उरोज खिल उठे.
बस मेरा मन कर रह था अब वो 'करें' और ना तड़पाये उनके हाथो और होंठो का स्पर्श पा के मेरे पैरो की हिम्मत ज़रा ज़्यादा ही बढ़ गयी थी. वो अपने आप ही उनके कंधो के आसान पे सवार हो गये. पहले बिछुए की झनेकार , फिर पायल की झनेक और थोड़ी देर मे मेरी पूरी देह से संगीत झड़ने लगा था. जब उसने मेरी कलाई पकड़ी तो चूड़ियो की चूर मूर और चुम्मा लेना साथ,
झूमर का झनझन, हर के हिलने की आवाज़ भी इसमे शामिल हो गयी. और जब वह मेरी कमर उठा के धक्का देता तो मेरी करधनि की रुन झुन भी इसमे शामिल हो जाती. और सिर्फ़ मेरे बिछुए, पायल, करधन, चूड़िया, झूमर और हर ही नहिजाब वो मेरे नितंबो को पकड़ के कस के, लगभग पूरी तरह बाहर निकाल के धक्का देता, और उसका मोटा सख़्त लिंग मेरी कसी, किशोर, 24 घंटे पहले तक अक्षत योनि मे उसे कस कस के रगड़ते, फैलाते घुसतातो मेरी चीख निकल जाती. कभी चीख कभी सिसकिया, कभी उह कभी आहा मेरी देह का संगीत लगातार. लग रहा था बहुत दिनो से पड़े हुए सितार को किसीने उठा लिया हो और उसे छेड़ दिया हो. आज मैं भी शरमाते हुए ही सही, उसके सुर मे सुर मिलने की कोशिश कर रही थी. वो मुखड़े पे तो मैं अंतरे पे. और वो भी कभी द्रुत तो कभी विलंबित, कभी मेरे रसीले जोबन को पकड़ के दबाते सहलाते,
कुचलते मसलते, कस कस के तेज़ी से धक्के लगाते, मेरी चीखो और सिसकियो की परवाह किए बिना और कभी खूब धीरे, धीरे मेरे योनि के अंदर सहलाते वो घुसता और मज़े से मेरी जान निकल जाती. सच मे इससे बड़ा सुख कोई नही हो सकता सब कुछ भूल के. और आज वो भी कभी मेरी कमर पकड़ के, कभी कलाई थाम के, कभी कस के नितंबो को पकड़ के और कभी कस कस के मेरे मद मस्त रसीले किशोर उभारो का रस लेते. और जब उन्हे लगता कि संगीत अपने शीर्ष पे पहुँच रहा है तो थोड़ी देर कमर को आराम देउनेके होंठ और उंगलिया मोर्चा समहाल लेते. कभी वो मेरे रसीले होंठो, गालो को चूमते, चूसाते और कभी कच कचा के काट लेते. और उनके हाथ जो इस के लिए न जाने कब से भूखे थे, मेरे किशोर जोबन सहलाते, प्यार करते,
उसे कस कस के दबा देते, मसल देते, मेरे कड़े खड़े चूचुक पिंच कर देते. और इतने देर मे ही मैं कभी अपने नितंबो को उचका के, कभी कस के उन्हे अपनी ओर खींच के कभी उनके कंधो मे नाख़ून गढ़ा के इशारा करती और हमारे देह संगीत की सरिता फिर से बहने लगती. बहुत देर तक इसी तरह सुख लेने के बाद कब हम किनारे की ओर पहुँचने वाले थे तो धीरे धीरे बजने वाले सुर तेज हो गये झाला बजने लगा, देर तक और जब हम झाडे भी तो साथ साथ देर तक हर 'बूँद' मैं अपने अंदर महसूस करती रही. मेरी देह इतनी शिथिल पड़ गयी बहुत देर तक हम दोनो एक दूसरी की बाहो मे लिपटे पड़े रहे.
कुछ देर बाद उन्होने मुझे सहारा देके उठाया और बिस्तर के सिरहाने के सहारे अध लेता बैठा दिया. आज मुझे इसकी फिकर नही थी कि मेरी देह रज़ाई से धकि नही है, या मेरी जाँघो के बीच मेरे उनके रस की बूंदे अभी तक बह रही है.
थोड़ी देर तक हम ऐसे ही बैठे रहे फिर अचानक उन्हे कुछ याद आया और उन्होने पलंग की साइड टेबल सेमेरी आँखे उन्होने बंद करा दी थी. जब मेने आँखे खोली तो खुशी से मेरा मन भर आया.. कितने प्यारा कुंदन का सेट, बहुत ही इंट्रिकेट मिनेकारी,
डायम्मड के साथ इमेरल्ड, रूबी और सब मोर की डिजाइन के, हर, टॅप्स, अंगूठी, जाड़ाउ कंगन छितकी चाँदनी मे वो और भी अच्छे लग रहे थे. हर तो उन्होने उसी समय पहने दिया. मारे खुशी के मेने उन्हे अपनी बाहो का हार पहना दिया और कस कस के चूम लिया. कितनी अच्छी पसंद है आपकी, मैं बोल पड़ी.
"तभी तो तुम्हे पसंद किया. "वो हंस के बोले.
|