RE: kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून
मेरी एक ननद ने उन्हे चिढ़ाया, अरे जीजू आप तो इतने सम्हाल के खोल रहे हैं जैसे भाभी की गिफ्ट नही उनका लहंगा खोल रहे है.
सब हंस पड़े. तब तक मेरी जेठानी और एक दो और औरते खाने के लिए बोलने के लिए आ गयी थी.
पॅकेट मे 1 दर्जन कॉंडम के पॅकेट, वैसलीन की एक शीशी, एक लेसी ब्रा और पैंटी तथा एक बच्चे के लिए चूसने के लिए निपल था. सब खूब ज़ोर से हंस पड़े और मैं भी मुस्कराने लगी.
अंजलि ने पूछा, " क्यो भाभी पसंद आया, सब ज़रूरत की चीज़े है ना. "
" देखो, " कॉंडम की ओर इशारा करके मैं बोली, ये तो तुम्हारे भैया के काम की चीज़ है. तुम अपने हाथ से उनके हाथ मे दे के पूच्छ लो. हाँ मैं ये ज़रूर कह सकती हू कि कल सब लोग कह रहे थे ना कि तुम्हे उल्टिया आ रही थी, कुछ गड़बड़ हो गयी है. तो अगली बार इन्हे तुम इस्तेमाल कर सकती हो. मज़े का मज़ा और उल्तियो से भी बचत.
जहाँ तक ब्रा का सवाल है ये मेरी साइज़ से बहुत छोटी है. लगता है, अश्विनी नेंदोई जी को तुम्हारी नाप याद रही होगी. " मेरी जेठानी ने मेरी पीठ ठोकी कि मेने सही जवाब दिया. लेकिन वही मैं ग़लती कर बैठी. मेने ततैया के छत्ते को छेड़ दिया.
अश्विनी नेंदोई जी को छेड़ के, मैं गिफ्ट पॅक मे रखे निपल की ओर इशारा कर के बोली,
" और मुझ ये नही मालूम था कि अभी भी आप" मेरी बात पूरी करते वो मुस्करा के बोले,
" क्या कि मैं अभी भी निपुल चूसता हू यही ना. वास्तव मे मुझे निपल चूसना बहुत अच्छा लगता है तो क्या मेरे साले ने अभी तक आपकी नही. चलिए कोई बात नही,
वो कमी मैं पूरी कर दूँगा. तो बोलिए यही या घर चल के. और ये मैं गारंटी देता हू कि अगर एक बार आपने चुसवा लिया ने तोफिर कभी मना नही करेंगी" कॉरसेट से मेरे छलकते उभारो की ओर घुरते हुए वो मुस्काराकार बोले. और फिर तो सब के ठहाके गूँज गये.
ये रसीले मज़ाक मुझे भी अच्छे लगते थे. लेकिन मैं समझ गई कि मुझे अश्विनी को अपनी टीम मे शामिल करना पड़ेगा अगर ननदो को छकाना है तो. थोड़ी देर मे ये भी आ गये और हम सब खाने के लिए उठ गये.
खाने के समय भी मेरे ननदोयि चालू रहे लेकिन उनका एक हाथ अभी भी रजनी के कंधे पे थे. उसी बीच मेने अपना संधी प्रस्ताव पेश किया और वो तुरंत मान गये. फिर तो हम लोगो ने मिल के अंजलि और बाकी ननदो को.
दस बजते बजते हम लोग घर लौट आए. 'वो'तो तुरंत उपर चले गये कमरे मे और मैं अपनी सास का पैर छूने के लिए रुक गयी. काई लोगो ने उनसे कहा कि रिसेप्षन मे जो लोग भी आए थे, सब उनकी बहू की तारीफ़ कर रहे थे. और एक दो ने तो ये भी बोल दिया कि आज इसे नज़र ज़रूर लगी होगी. मेरी सास का तो सीना फूल के चौड़ा हो गया.
उन्होने तुरंत राई नोन मंगाई नज़र उतारने के लिए. और जब तक मेरी नज़र सासू जी उतार रही थी, दुलारी को मौका मिल गया. उसने मेरे पैरो मे खूब चौड़ा और गाढ़ा महावर रच दिया. 10*15 मिनेट मे मेरी जेठानी जी मुझे पहुँचाने उपर आई. रास्ते मे मेने उनसे पूछा कि कल सुबह कितने बजेतो वो हंस के बोली, जितने बजे तुम चाहो, फिर उन्होने कहा कि साढ़े आठ के आस पास मेरी ननद कोई आ जाएगी मुझे लेने.
उन्होने ये भी कहा कि कल चूल्हा छूने की रसम होगी दिन मे और शाम को गाने गाने की. उन्होने जोड़ा कि शादी मे तुम्हारे यहा मुझे अंदाज लगा कि तुम्हे भी तो 'अच्छे वाले गाने ' अच्छी तरह आते होंगे तो कल ज़रा अपनी ननदो को सुना देना कस के. हाँ दूध, पान सब रख दिया है, सबसे पहले उनको दूध पीला देना, ये कह के वो वो कमरे के बाहर से ही चली गयी. अंदर घुस के मेने तुरंत दरवाजा बंद किया.
कमरा आज भी कल की तरह सज़ा था. फ़र्क सिर्फ़ ये था कि आज गुलाब की जगह चाँदनी और चमेली के फूल थे. उनकी लड़ियो से चारो ओर.. और बिस्तर पे भी चमेली और बेला के फुलो की पंखुड़िया साथ की साइड टेबल पे उसी तरह चाँदी की ग्लास मे दूध, तश्तरी मे चाँदी के बर्क मे पान और दूसरी तश्तरी मे मिठाइया. सिर्फ़ कल की तरह साइड मे ज़मीन पे बिस्तर नही था.
ये पहले से ही चेंज करके कुर्ते पाजामे मे बैठे थे. इन्होने मुझे स्टूल पे बैठने का इशारा किया और बोले कि अपने पैर इसमे डाल दो. गुनेगुने पानी और नेमक के साथ उसमे लगता है, और कुछ पड़ा था. थोड़ी देर मे ही मेरे पैरो की सारी थकान और दर्द ( जो पैर मुड़ने, इतनी देर खड़े रहने और हाइ हील के चक्कर मे हो रहा था. ) गायब हो गया. फिर वो भी मेरे पैरो के पास बैठ के, एडी के उपर से घुटने तक दबाने लगे. बड़े ज़ोर से मना करते हुए मैं बोली,
" हे आप क्या करते है, मुझे कितने पाप पड़ेगा, मेरे पैर छू रहे है आप. " "और मेने पैर खींचने की कोशिश की. और जब मैं तुम्हारा पैर पकड़ के 'उस समय'कंधे पेरखता हू तो उस समय पाप नही लगता. दबाने दो, ये देह अब तेरी नही मेरी है और मेरी जो मर्ज़ी होगी मैं करूँगा. " दबाते हुए, हंस के वो बोले.
उन्हे लगता है मेरी देह के सारे प्रेशर पायंट्स पता थे. क्षॅन भर मे सारा दर्द घुल के निकल गया. अब मुझे दूसरी चिंता सता रह थी, कॉरसेट के खोलने की. पहनेते समय तो गुड्डी थी परवो काम भी उन्ही से करवाया. पूरे समय गुनेगुने पानी मे पैर डाल के बैठी रही. जब मैं चेंज करने ड्रेसिंग रूम मे पहुँची थी तक तक सारा दर्द छू मंतर हो गया था.
|