RE: kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून
आज सारे पतंगे सिर्फ़ तुम दोनो पे गिरेन्गे देख लेना.
मुझे अपनी भाभी की याद आई और मुझे लगा कि अब मैं सच मे भाभी बन गयी हू.
जब हम बाहर कमरे मे आए, तो मेने देखा कि बिस्तर पे मेरी ब्रा, पैंटी खुली हुई वैसलीन की शीशी .और सफेद चादर पे बड़ा सा धब्बा और ये दोनो लड़कियाँ यही बैठी थी. मेने झट से उन्हे हटाया.
रजनी मुस्करा के बोली, "भाभी हम लोगो ने कुछ नही देखा."
तब तक दरवाजा खुला और वो दाखिल हुए. क्रीम कलर की जोधपुरी मे वो बहुत हॅंडसम लग रहे थे. मैने उन्हे मुस्करा के 'न्यू पिंच' किया. रजनी बोली,
भैया भाभी का भी ड्रेस भी न्यू है. बेचारे उन दोनो के सामने क्या बोलते.
उन्होने हम लोगो को बताया कि सब लोग चले गये है और अब बस हम लोगो को पहुँचना है.
कार मे गुड्डी आगे बैठी और रजनी, हम लोगो के साथ पीछे. और इस लिए हम एक दम सॅट के बैठे. रास्ते मे उन्होने ऐसा 'न्यू पिंच' किया कि सारे रिसेप्षन, मेरे दोनो निपल एरेक्ट रहे.
दूसरी रात ...
जब हम लोग रिसेप्षन मे पहुँचे तो सारे लोग पहुँच गये थे. एक बड़े होटेल के लॉन मे रिसेप्षन हो रहा था. मैं सोच रही थी कि कही 'सिंहासन' ऐसे स्टेज पे ना हम लोगो को बैठना हो. पर एक दम अलग ढंग का इंतज़ाम था, इनफॉर्मल. एक एलकोव सा था जहा हम लोगो को खड़ा होना था और वही रिसेप्षन मे आए लोग हम लोगो से मिलते. सामने खाने का इंतज़ाम था और जेठानी जी ने बता दिया था कि 7 बजे से शुरू होके ठीक साढ़े 9 बजे ख़तम हो जाना था और 10 बजे तक घर. पूरा लॉन लगभग भर सा गया था. मेरे एक साइड मे चाट और स्नेक्क्स का इंतज़ाम था, सामने बैठने और खाने का. मेरे एक साइड मे मेरी जेठानी जी थी जो मुझे गेस्टो से इंट्रोड्यूस करा रही थी और उनके साथ अंजलि गिफ्ट कलेक्ट कर रही थी और रख रही थी.
पहले कुछ उनके पाइवरिक मित्र, सोएबोड़ी आए और जेठानी जी ने मुझे उनसे इन्त्रोडयूस कराया. मुझे ये सिस्टम ठीक लगा कि बार बार उठना नही पड़ रहा था.
कुछ देर बाद उनके ढेर सारे मित्र, कुछ उनके साथ के प्रोबेशनर्स, कुछ उनके साथ कॉलेज मे पढ़े, ज़्यादातर कुंवारे. और सबकी प्रशंसा भरी नज़र मेरी बड़ी बड़ी रतनेरी कजरारी आँखो से उतर के मेरे चिकने गुलाबी गालो से होते हुए, गहरे चिबुक तक और जो कुछ ज़्यादा 'बोल्ड' थे उनकी और ज़्यादा फिसल कर, मेरे कॉरसेट से बाहर छलकते उभारो पे रुकते हुए, गहरी घाटी मे. मैं मुस्करा के सबसे मिल रही थी,
बाते कर रही थी, गिफ्ट आक्सेप्ट कर रही थी, पर मुझे अपने आप पता चल रहा था कि कहते है कि जवानी मे लड़की की एडी मे आँख निकल आती है, बस वही बात. और ये तारीफ़ भरी निगाहे, उन्हे भी बहुत अच्छा लग रहा था, ओनर्स प्राइड आंड नेयभौर्स एन्वी वाली बात. और मैं कैसी लग रही थी, उसके लिए मुझे दूसरे की निगाहो की कोई ज़रूरत नही थी. मेरे 'वो' भी, सामने देखते, बात करते भी कैसे चोरी से, उनकी निगाहे मेरी देह पे फिसल जा रही थी. लेकिन तारीफ़ भरी निगाहे सिर्फ़ मुझे मिले ऐसी बात नही थी,
क्रमशः……………………….
शादी सुहागरात और हनीमून--21
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