RE: kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून
शादी सुहागरात और हनीमून--20
गतान्क से आगे…………………………………..
शरम के मारे मुझसे खाया नही जा रहा था हालाँकि भूख कस के लग रही थी और फिर गरम गर्म घी से भरा सूजी का हलवा. मेरी जेठानी ने धमकाया,
"हे खाती है या अपने हाथ से खिलाउ, ज़बरदस्ती."मेरी मौसेरी सास ने भी उनका साथ दिया और बोली, अर्रे बहू अगर तू ऐसी शरमाती रही ना तो भूखी ही रह जाएगी."इस चौतरफ़ा हमले से बचने के लिए मेने धीरे धीरे खाना शुरू कर दिया."वो ननद जो गुड्डी के साथ आई थी उसने चिढ़ाया, क्यो भाभी भैया को बुलाऊ क्या. उनके हाथ से तो खा लीजिएगा."
शैतान का नाम लो वो कमरे मे उस की बात ख़तम भी नही हुई थी कि दाखिल हुए. किसी औरत ने हलके से बोला लो आ गये हलवा खिलाने वाले. लेकिन मेरी ननद कैसे चुप रहती, उसने धीरे से तड़ाका लगाया, "अर्रे हलवा खिलाने वाले या भाभी का हलवा बनाने वाले."
वो हम लोगो को खाते देख के अपनी भाभी से बोले, "अर्रे वाह अकेले, अकेले."
"अर्रे अकेले अकेले कहाँ तुम्हारी दुल्हन भी साथ है."उनकी भाभी बोली "दे दीजिए ना दीदी, इतने प्यार से आपके देवर माँग रहे है,"मैने धीमे से अपनी जेठानी से कहा.
"अच्छा बोली. मेरी बिल्ली और मुझी से मियाऊ, तुझको किस लिए ले आई हू."
तब तक 'वो' अपनी भाभी के पास आके बैठ गये थे और सीधे उंगली से ही उनकी प्लेट से "हे मुझे मालूम है, 'मानुष गंध बल्कि मनुश्ही गंध' लग गयी है तुझे. अपनी दुल्हन से माँग ना"और उठ के वो मेरी दूसरी ओर बैठ गयी. अब वो और हम अगल बगल. जब वो तिरछी निगाहो से देखते तो मुझे शरम भी लगती और अच्छा भी. तब तक और कयि औरतें और उनकी भाभियाँ घुसी और वो हट के सामने बैठ गये. किसी ने छेड़ा,
"और बोलो लाला कैसी रही."
तब तक उनकी गाव की एक भौजाई ने ताना मारा,
"क्यो लाला क्या रात भर दुल्हन के गोद (पैर) छूते रहे,"और 'कुछ देख' के सारी औरते हंस पड़ी.
मेरी कुछ समझ मे नही आया. तो मेरे बगल मे बैठी मेरी एक जेठानी ने उनके माथे की ओर इशारा किया. दोनो ओर मेरे पैर के महावर के गुलाबी निशान थे. अब मुझे समझ मे आया कि रात मे कमरे मे जाने के पहले मुझे रच रच कर फिर से खूब चौड़ा और गाढ़ा महावर क्यो लगाया गया था.
"अर्रे कुछ माँग रहे होंगे, दुल्हन नही दे रही होगी तो"एक और ने जोड़ा. तब तक चमेली भाभी आ गयी थी और फिर तो, वो बोली,
"अर्रे पैर छूना तो ठीक कही दुल्हन ने लात तो नही मार दी"
मुझे भी अब मज़ाक मे खूब मज़ा आ रहा था. वो बिचारे शरमाये,
घबडाये, चुप. तब तक दुलारी आ गयी और वो उनकी ओर से बोली,
"अर्रे दुल्हन की लातो के बीच मे 'कुछ चीज़' ही ऐसी है कि बिचारे उसके लिए लात खाने को भी तैयार हो गये."
और फिर तो सारी उनकी भौजाईयाँ एक साथ, 'वो चीज़' मिली कि नही, दुल्हन ने पैर पे क्यो झुकाया. बेचारे हार कर कमरे से वो बाहर चले गये. वो हमला मेरी ओर भी मूड सकती थी, पर मैं बच गयी. मेरी बड़ी ननद ने आ के कहा कि बाहर मूह दिखाई के लिए बुलाया है.
मेरी जेठानी ने फिर से मेरा घूँघट ठीक किया और मुझे ले के बाहर आई. वहाँ, लिफ़ाफ़ा ले के मैं हर औरत का पैर छूती, और फिर हल्का सा मेरा घूँघट उठा के जेठानी जी मेरा मूह दिखाती.सब की सब मेरे साथ मेरी सास की खूब तारीफ कर रही थी.'बहुत सुंदर बहू लाई."
"एकदम चाँद का टुकड़ा है""कितनी कोयल लगती है"और मेरी जेठानी की भी,' देवर केलिए ए-1 देवरानी ले आई है'. और साथ मे हँसी मज़ाक भी. सास मेरे साथ मे बताती भी जा रही थी कि कौन कौन है. सबसे आख़िर मे जब मैं पैर छूने जा रही थी तो वो हंस के बोली, "बहू इनेका सिर्फ़ पैर ही मत छूना,
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