RE: kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून
हम दोनो की हालत खड़े मे थक के पड़े पहलवानो की तरह थी. पहले वो उठा, और फिर हल्के से एक रुमाल से मेरी जाँघो के बीच और थोड़ा अंदर तक साफ किया (उस समय तो मैं कुछ महसूस करने की हालत मे नही थी. अगले दिन मेने कमरा ठीक करते हुए देखा, कि हमारे उस 'प्रथम मिलन' के सबूत को जनाब ने बहुत सम्हाल के रखा था, और उसमे खून के भी अच्छा हुआ उसने उस समय नही दिखाया या बताया वरना मैं घबडा ही जाती). मेरी हालत उठने की नही थी. कुछ देर बाद उसने सहारा दे के मुझे उठाया और पलंग के हेड स्टेड के सहारे बैठा दिया. उनके हाथ मेरे कंधे पे थे. कुछ देर मे उनकी बातो मे मैं थोड़ी सहज हुई. तब तक मेरी निगाह पलंग के बगल मे टेबल पे पड़ी जहाँ चाँदी की ग्लास मे दूध रखा था. मुझे याद आया कि जेठानी जी ने कहा था कि सबसे पहले दूध पिला देने और मैं भूल गयी थी. जब मैं दूध के ग्लास की ओर बढ़ी तो मेने देखा कि उनका हाथ पलंग के पीछे स्विच की ओर था. मैं तुरंत बोली, नही प्लीज़ लाइट नही. ये बात तो वो मेरी मान गये, लेकिन जैसे ही दूध ले के उनकी ओर मूडी, उन्होने डोर खींच के परदा खोल दिया. बाहर चौदहावी का चाँद चाँदनी की बदिश करता हुआ और जब मेने नीचे देखा तो चादनि मे नहाई मेरी गोलाइयाँ शरमा के मेने जब उन्हे अपने हाथो से छिपाना चाहा तो मेरे हाथ मे दूध का ग्लास. मेने इससे बचने के लिए झट से ग्लास उन्हे देने चाहा पर वो मेरी परेशानी समझ गये थे, इसलीए वो कहाँ हेल्प करते. वो मुस्करा के बोले,
"दूध तो मैं तुम्हारे हाथ से ही पीऊंगा. हाँ 'जिसे' तुम छिपाना चाहती हो, लाओ उसे मैं अपने हाथो से छुपा लेता हू."और उन्होने मुझे अपनी गोद मे खिच लिया, उनके दोनो हाथ सीधे मेरे यौवन कलश पे. कमर तक तो मेने रज़ाई खींच ली थी पर बाकी देह चाँदनी से एक दम नहाई हुई उनकी गोद मे. थोडा दूध पीने के बाद उन्होने मुझे भी पिलाया. लेकिन वो भी मेरे ही हाथ से.
उनका हाथ तो बस मेरी गोलाईयो पे कसमसा रहा था. उनके होंठो पे दूध लगा था, जिसे देख के मैं मुस्काराई. पर शरारत मे तो उनका एक हाथ हटा के उन्होने अपने दूध से लगे होंठ, सीधे मेरे निपल्स पे लगा दिए और बोले,
"मेरा तो सीधे यहाँ से दूध पीने का मन करता है"
"उसके लिए तो आप को अभी कुछ दिन इंतजार करना पड़ेगा"मैं बोली, और फिर अपनी ही बात पे शरमा गयी.
"ठीक है, इंतजार कर लेंगे लेकिन तब तक प्रॅक्टीस कर लेते है.' और वो मेरे निपल को चुभूक चुभूक कर चूसने लगे. दूसरा हाथ क्यो चुप बैठा रहता वो दूसरा कुछ को मसलने लगा और एक बार फिर मेरा मैने थोड़ी ही देर मे मेने महसूस किया कि, मेरे नितंबो के नीचे उनका 'वो खुन्टा' एक बार फिर से खड़ा हो के ठोक रहा था और उन्हे ही क्यो कहु, मेरे तन की ठनक भी कम होके एक बार फिर से कस्क मस्क शुरू हो गयी थी (ये तो मुझे बाद मे पता चला कि उस गाढ़े औटाये दूध मे सिर्फ़ केसर ही नही और भी अनेक अर्ब्स थी जो क्षॅन भर मे थकान तो गायब ही करती थी साथ मे बहुत कामोत्तेजक भी थी). उन्होने हाथ हटा के मुझे चाँद को दिखाते हुए कहा,
"हे तुम इससे शरमा रही थी, पर ये तो गवाह है, हमारे प्रेम का, प्रेम से भरी इस रात का"और मेरे होंठो पे कस के चुंबन ले लिया. और जब मेने गर्दन झुकाई तो मेरी पूरी देह, निर्वासना, मेरे गोल, गुदाज, भरे भरे, किशोर उरोज.. मैं उनकी गोद से छितक के पलंग पे लेट गयी. मेरी निगाह पास पड़ी अपनी गुलाबी चुनर पे गयी. उसी से मेने अपने सीने को ढक लिया, और उसे पीठ के नीचे भी कस के दबा लिया. जब उन्होने उसे हटाने चाहा तो मैं हल्के से मुस्करा के बोली,
"हाथ लगाने की नही होती."
"मंजूर"वो हंस के बोले. और उस चुनर के उपर से ही अपने होंठो से मेरे कचाग्रो को किस करने लगे. वो चुनर भी कितना ढँकती चाँदनी बरस रही थी और उस छितकी जुन्हाई मे मेरी गोरी देह, मेरे गोरे जोबन. उनके होंठ,
मेरे पतले चिकने पेट पे किस करते और फिर गोलाई के बेस पे और छोटे छोटे चुंबनो के पग धरते सीधे मेरे उत्तेजित कचाग्रो पे. उन्हे फ्लिक करते,
किस करते,. होंठो मे हल्के से दबा के काट लेते. जिस चुनर को इतना वो किसी काम की नही थी. चाँदनी मे गुलाबी झीनी चुनर से झाँकते मेरे उभारो को और व्याकुल कर रहे थे.
और मेरी हालत कौन सी अच्छी थी. मैं भी तो मचल रही थी तड़प रही थी, बस बोल नही सकती थी कि राजीव अब मुझे अपनी बाहों मे ले लो. अब उनके होंठ मेरे उरोजो के उपर के भाग पे, जो ढँका नही था वहाँ पहुँच गये और होंठो से ही चुनर को पकड़ के नीचे सरकाने लगे. थोड़ी ही देर मे चुनर मेरी कमर तक सरक गयी और मेरे दोनो चाँदनी मे नहाए, दूधिया यौवन कलश उन्होने मेरी बगलो मे हल्की सी गुद गुदि लगाई और मैं जैसे ही थोड़ी हिली, चुनर सरक के अलग हो गयी.
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