RE: kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून
शादी सुहागरात और हनीमून--15
गतान्क से आगे…………………………………..
जब दुबारा उन्होने चूमा तो उनके होंठ एक पल ठहर गये और आज तक मुझे उस पहले चुंबन का स्वाद याद है. मेरे होंठ, बस उस के बाद से आज तक मेरे नही रहे. उसी दिन मेने जाना कि, कैसे और क्यो, जब मुँह का घूँघट उठा, गुलाब की कली को सूरज की किरण चूमती है तो वो कैसे खिल उठती है,
गर्मी पा कर. मेने सोचा था कि मैं भी उनके चुंबन का जवाब चुंबन से दूँगी लेकिन दो तीन चुंबनो के बाद कही जाके हल्के से लरज के मेरे होंठ अपनी स्वीकारोक्ति दे पाए. अभी मेरे होंठो ने हिम्मत बढ़ाई ही थी कि, उनके होंठो ने मेरी चिबुक के गहरे गढ्ढे मे, जो तिल था उसे चूम लिया. और उसी के साथ उनकी उंगलियाँ मेरी केले के पत्ते ऐसी चिकनी पीठ पे फिसल रही थी.
(मेरी पीठ के बीच मे गहरी नली ऐसी है, जो कहते है कि एक कामुक नारी की निशानी होती है और उनकी उंगलिया वहाँ भी.) उसे छिपाने धकने वाली चुनरी ने कब का साथ छोड़ दिया था. सिर्फ़, चोली को बांधने वाली एक पतली सी स्ट्रिंग थी जो थोड़ी सी रुकावट डाल रही थी. उनकी उंगलियो के स्पर्श और मेरी सारी देह मे तूफान उठ रहा था. तभी अचानक उनके होंठ, मेरे गले से होते होते फिसल के, मेरे उभारो के उपरी भाग पे रुके, और वहाँ उनके स्पर्श होते ही मैं छितक के अलग हो गयी.
"ऊप्स, मेरी ग़लती मैं ही भूल गया था कि मुझे फीस तो देनी चाहिए." और वो अपने कुर्ते की जेबो मे कुछ ढूँढने लगे. मैं भी अपने हथ फूल उतारने लगी. ढूढ़ते ढूढ़ते उन्होने अपने कुर्ता उतार दिया और मैं अपनी मुस्कराहट नही रोक पाई. थी तभी निगाह मेरी अपने उपर पड़ी और उनकी इस उथल पुथल मे रज़ाई खुल गयी थी, और मैं सिर्फ़ लहँगे चोली मे और चोली भी क्या वह छिपा कम रही थी, दिखा ज़्यादा रही थी. मेरे उरोजो के उपरी भाग, और लहंगा भी कमर के बहुत नीचे. और जब मेरी नज़र उन पे पड़ी, तो उन की ढीठ निगाहे एकदम वही चिपकी थी जैसे मन्त्र मुग्ध हो. आँखे मिलते ही वो बोले, 'हे तुम अपनी आँखे बंद करो'. दोनो हाथो मे पीछे कुछ छिपाए से लेकिन बनियान मे उनकी चौड़ी ताक़त वर छाती, बाहों की मसल्स, वो इतने हंडसॉम लग रहे थे बस मन कर रहा था कि देखती ही रहू. लेकिन उनका हुकुम मेने मुस्करा कर आँखे बंद कर ली. मेने महसूस किया कि वो एकदम पास आ गये है. उनकी सांसो की गर्माहट मैं अपने गालो पे महसूस कर रही थी, फिर उनके हाथो की छुअन अपने गले के पीछे और उनके सीने का दबाव अपनी चोली पे. फिर उनका एक हाथ मेरी पीठ पे और दूसरा मेरे उभारो को हल्के से छूते हुए उत्तेजना से मेरी हालत खराब हो रही थी. तभी मेने उनके होंठो की आहट अपनी पॅल्को पे महसूस की और बहुत हल्के से वो बोले, खोलो. जब मेने गरदन झुका के देखा तो मेरी तो हालत खराब हो गई. इतने सुंदर, मैं सोच भी नही स्काती थी एक बहुत ही बड़ा, चमकदार प्रिन्सेस कट डाइमंड,
प्लॅटिनम चैन मे, कम से कम आधे पौन कैरेट का रहा होगा. खुशी से तो मेरी चीख निकलते निकलते बची (अगर मुझेसे कोई पूछे कि महिलाओ के लिए सबसे बड़ा एफ़्रोडिशियक क्या है तो मैं बिना हिछक कहुगी, डाइमंड और मुझे तो खास तौर पे अच्छा लगता था. लेकिन इतने बड़ा और इतने सुंदर मैं सोच भी नही सकती थी,और उसकी सेट्टिंग) मेने कस के उन्हे अपनी बाहों मे भींच लिया. मेरे होंठ लरज के रह गये लेकिन मेरी आँखो की चमक खुशी बार बार कह रही थी, थॅंक्स. पेंडेंट ठीक मेरे चोली के कटाव के बीच,
मेरे क्लीवेज की गहराई मे टिका था. मेरे गोलाई के अर्धकार उभार पे उंगली से सहलाते हुए छूते हुए उन्होने पूछा, 'हे कैसा लग रहा है'. और मैं बोल पड़ी, 'बहुत अच्छा'. मेरी चोली से झाँकती हुई दोनो अर्ध गोलाईयों के बीच,
वो पेंडेंट ऐसा लग रहा था जैसे दो पहाड़ियो के बीच सूरज निकल रहा हो.
मेरे झाँकते हुए उरोज पे हल्के से उंगली से सहला के वो बोले, और मुझे भी.
तब मुझे उनकी उस नटखट मुस्कान का मतलब समझ मे आया कि वो पेंडेंट की बात नही किसी 'और' चीज़ की बात कर रहे थे. मैं और शरमा गयी. तभी मेरा ध्यान पलंग को सहलाती दूधिया नाइट लॅंप की रोशनी पे गयी और मेने उनके कान मे कहा, "प्लीज़ लाइट."
लाइट उन्होने बंद कर दी.
लेकिन अंधेरे मे उनकी हिम्मत और बढ़ गयी.
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