kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून
08-17-2018, 02:38 PM,
#46
RE: kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून
जब दरवाजा खुला तो कमरे को देख के मेरी कल्पना से भी ज़्यादा सुंदर,

खूब बड़ा. एक ओर खूब चौड़ा सा बेड, और उसपर गुलाब के पंखुड़ियो से सजावट, पूरा कमरा ही गुलाबी गुलाब से सज़ा, गुलाब की पंखुड़ियो से रंगोली सी सजी और पनीम भी बेड के तल मे गुलाब की पंखुड़ियो से अल्पने, दो खूब बड़ी खिड़किया जिन पे रेशमी पर्दे पड़े थे, और सामने ज़मीन पे भी,

बिस्तर सा और एक सेड मे सोफा. बेड पे हल्की गुलाबी दूधिया रोशनी और फर्श पे पसरी फुट लाइट्स सी नाइट लॅंप की कयि बड़ी एरॉयेटिक कंडल्स. बेड के बगल मे टेबल पे चाँदी की तश्तरी मे पान, दूसरी प्लेट मे कुछ मिठाइया और चाँदी की ग्लास मे दूध जैसे मैं बेड पे बैठी उन शरारतीयो ने अब मेरी सारी चुनर ठीक करने के बहाने एकदम ढीली कर दी.

मेने सोचा था कि कुछ देर शायद मुझे इंतजार करना होगा.. लेकिन बस मैं सोच रही थी कि बस तब तक दरवाजा खुला और मेरी जेठानी के साथ वो..

कई बार जब लाज से लरजते होंठ नही बोल पाते तो आँखो, उंगलियों, देह के हर अंग मे ज़ुबान उग जाती है.

कुछ लमहे ऐसे होते है जो सोने के तार की तरह खींच जाते है कुछ छनो के अहसास हर दम साथ रहते है पूरे तन मन मे रच बस के "अगर तुम्हारे सामने कोई शेर आ जाए किसी आदमी से पूछा गया तो तुम क्या करोगे. मैं क्या करूँगा, जो करेगा वो शेर ही करेगा." मेरी एक भाभी ने बताया था कि सुहाग रात मे बस यही होता है. जो करेगा, वो शेर ही करेगा.

नही. इसका ये मतलब नही कि मैं बताना नही चाहती या फिर जैसे अक्सर लड़किया अपनी भाभियो और सहेलियो के साथ, 'दिया बुझा और सुबह हो गयी' वाली बात कर के असली बात गोल कर देना चाहती है मेरा वैसा कोई इरादा नही है. मैं तो बस अपने एहसास बता रही थी. तो ठीक है शुरू करती हू बात पहली रात की.

चारो ओर गुलाब की मीठी मीठी सुगंध, फर्श पे पसरी नाइट लॅंप की रोशनी,

और बिस्तर पे दूधिया रोशनी मैं ये एहसास भी भूल गई थी कि मेरे ननदे मुझे छेड़ रही है क्या कह रही है. बस मैं उहापोह मे थी सोच रही थी कि शायद मुझे थोड़ी देर समय मिल जाय और मैं इतने लोगो ने इतनी बातें कही थी. लेकिन तभी 'वो' अपनी भाभी के साथ, डिज़ाइनर कुर्ते पाजामे मे, और जैसे शेर को देख के शिकार को उस के लिए छोड़ के गीदड़ भाग खड़े होते है वैसे ही मेरी सारी ननदो मे सिर्फ़ अंजलि ने हिम्मत जुटा के बेस्ट ऑफ लक कहा. मेरी जेठानी तो सुबह से ही मेरा साथ दे रही थी. उन्होने पास आ के मेरे कान मे कहा, "ये जो दूध का ग्लास रखा है ना ये इसको सबसे पहले पिला देना और तू भी पी लेना. इसी बहाने बात चीत भी शुरू हो जाएगी और हाँ ये पान भी" और फिर कुछ उन्होने 'उनसे' हल्के से मुस्करा के कहा. दरवाजे पे पहुँच के वो रुकी और हम दोनो की ओर देख के मुस्करा के कहा,

"अभी 9 बज रहे है. मैं बाहर से ताला बंद कर दे रही हू और सुबह ठीक 9 बजे खोल दूँगी. तुम लोगो के पास 12 घंटे का समय है, और हाँ मैं छत का रास्ता भी बंद कर दे रही हू जिससे तुम लोगो को कोई डिस्टर्ब ना करे.."

वो निकल गयी और बाहर से ताला बंद होने की आवाज़ मेने सुनी. वो मूड के दरवाजे के पास गये अंदर से भी उन्होने सीत्कनी लगा दी.

मैं सोच रही थी कि 12 घंटे कैसे कटेंगे ये.

फिर वो पास के बैठ गये.

नही उन्होने कोई गाना वाना नही गया.

ना ही वो अपने या मेरे कपड़े उतारने के चक्कर मे पड़े. (मेरी एक सहेली ने मुझे बताया था कि ये मर्द सिर्फ़ एक चक्कर मे होते है इसलीए पहला काम ये कपड़े उतारने का करते है. उसने मुझे सलाह दी थी कि, पहली रात तो बस मैं उन्हे 'इंतजार' करवाऊ.)

जैसे कोई इम्तहान की बहुत तैयारी कर ले, पर एग्ज़ॅम हॉल मे जाके सब कुछ भूल जाए वही हालत मेरी हो रही थी. मैं सब कुछ भूल गयी थी.

और शायद यही हालत 'इनकी' भी थी.

बस मुझे इतना याद है, इन्होने पूछा नींद तो नही आ रही और मेने सर हिला के इशारे से जवाब दिया, 'नही'.

फिर इसके बाद हम लोग बल्कि वो कुछ बाते करने लगे. लेकिन उन्होने क्या कहा मुझे याद नही, सिर्फ़ ये कि उन्होने मुझसे कहा कि, रिलेक्स हो जाओ,

और मैं आराम से टांगे फैला के अध लेटी हो गयी, बेड के हेड बोर्ड के सहारे.

उन्होने मुझे रज़ाई ओढ़ा दी और खुद भी उसी तरह मेरे बगल मे रज़ाई के अंदर, आधा लेते उनका हाथ मेरे कंधे पे और उन्होने मुझे अपनी ओर खींचा.

मेरी चुनरी तो काफ़ी कुछ मेरी ननदो ने ढीली कर दी थी, छेड़ा-छाड़ मे.

उनके खींचने से ही वो सरक कर मेरे माथे और पीठ से हट गई. बस थोड़ी सी पीठ और हल्की सी चोली उनकी उंगलियो का अहसास मेरी पीठ पे हो रहा था, और मैं उनकी बाहों मे जैसे किसी लालची बच्चे को मिठाई मिल जाय जिसकी उसे बहुत दिनो से चाह हो पर वह डर रहा हो झिझक रहा हो. उनकी निगाहे बार फिसल के मेरी चोली के उभार पे चोली से बाहर झाँकते मेरे सीने के उपरी भाग और कसी चोली से दिखते गहरे क्लीवेज मे जा के अट्क जाती थी, लेकिन फिर कुछ सोच के वो सहम जाती थी. उनकी आँखे मेरी आँखो मे झाँक रही थी, जैसे आगे बढ़ने की इजाज़त माँग रही हो.

लेकिन मेरी पलके तो खुद शरम के बोझ से बार बार झुक जाती थी. और उनका पहला चुंबन मेरी पॅल्को ने ही महसूस किया. बस उनके होंठ बहुत हिम्मत कर के उन्होने छू भर दिया, मेरी सप्निली पॅल्को को फिर तुरंत हट गये. लेकिन दो तीन हल्के चुंबनो के बाद उन्होने बड़ी बड़ी से मेरी दोनो पॅल्को को कस के चूम के बंद कर दिया, जैसे उनके होंठ कह रहे हो, मैं इन कजरारे नयनो की सारी लाज हर के, उसमे ढेर सारे सपने भर दे रहा हू.

मेरी आँखे अभी उनके चुंबन के स्वाद की आदि भी नही हो पाई थी, कि उन्होने हल्के से मेरे माँग को जहा सिंदूर की तरह वो बेस था, चूम लिया. और फिर माथे की बिंदी पे मेने अपने को अब उनकी बाहों के हवाले कर दिया था. मेरी मूंदी पलके बस अभी तक स्वाद ले रही थी और मैं उसे खोल के इस सचमुच के ख्वाब को खराब नही करना चाहती थी.

जैसे किसी चोर को एक दो छोटी छोटी चोरिया करने के बाद आदत पड़ जाय और न रोके जाने पे उसकी हिम्मत बढ़ जाए, यही हालत अब इनके होंठो की भी थी.

माथे से वो सीधे मेरे गोरे गुलाबी गालो पे आ के रुके. लेकिन बस छू के हट गये शायद उन्हे लगा कि मैं कुछ.. पर मेरी हालत ऐसी कहाँ थी. और अगली बार फिर कुछ देर तक.. और फिर दूसरे गाल पे. उनकी बाहों मे बँधी फँसी मैं मेरे दिल की धड़कने उनके दिल की धड़कनो की रफ़्तार से चल रही थी. और फिर मेरे होंठो पे पहली बार.. एक अंजान सा.. लेकिन चिर प्रतीक्ष्हित स्वाद नही ऐसा नही कि उन्होने कस के चूम लिया हो.. लेते भी तो मैं कहाँ मना करती..

लेकिन बस वो छूकर हट गये. जैसे कोई भौंरा, किसी पंखुड़ी पे जाके तुरंत हट जाय ये सोचते हुए कि वो कही वो उसका भार बर्दाश्त कर पाएगी कि नही.

क्रमशः……………………….
शादी सुहागरात और हनीमून--14
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