kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून
08-17-2018, 02:38 PM,
#45
RE: kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून
मेरा खाने का मन नही कर रहा था और कुछ मैं शर्मा भी रही थी. मेरी मझली ननद बोली,

"अर्रे अब शरमाना छोड़ो अब आज से शर्म के दिन गये. "तब तक पानी लेके दुलारी,

वहाँ के नाऊ की लड़की आ गयी, समझिए, बसंती की काउंटर पार्ट, बस फ़र्क ये था कि वो लड़की थी इसलिए ननदो का साथ देती थी. वो छेड़ के गाने लगी,

"अर्रे खाई ला भौजी रात भर बंद होई दरवाजा,

भैया कस के बजाई है तोर बाजा,

रात भर कस के धसमहिए उ काँटा"


मेने थोड़ा सा खाया कि चमेली भाभी भी आ गयी. वो गुड्डी, जो मेरे ग्लास मे पानी डाल रही थी, उससे कहने लगी,

"अर्रे पूरा डाल ना, आधा ना तो डालने मे मज़ा और ना डलवाने मे. "उन लोगो की छेड़ चाड मुझे थोड़ी बुरी भी लग रही थी और थोड़ी अच्छी भी.

लेकिन शायद वो छेड़ छाड़ ना होती तो मुझे और खराब लगता.. बस मन मे एक सिहरन सी लग रही थी. डर भी था और इंतजार भी. और जब मेरी जेठानी आई तो उन्होने भी नही छोड़ा, और बोला, अर्रे आज की रात तो तेरी रात है, जलने वाले जला कर्रे. और ननदो से बोला, हे भाभी को उपर ले जा ना मैं राजीव को लाती हू. मैं तो चौंक गयी, मुझे लगा था कि जब सब लोग सो जाएँगे. आधी रात को तब कही मुझे मेरे कमरे मे भेजा जाएगा, लेकिन अभी तो आठ भी नही हुए थे. मम्मी ने कहा था कि सुहाग के कमरे मे जाने से पहले अपनी सास का पैर ज़रूर छू लेना. मेने जेठानी जी के कान मे कहा तो वो हंस के बोली कि हां वो तुम्हारा इंतजार भी कर रही है.

मुझे वो बाहर ले आई. वहाँ मेरी सास, इनकी मामी, चाची, मौसी और घर की और सब औरते, कुछ काम करने वालिया बैठी थी और नकता के गाने और नाच हो रहा था, जैसा हमारे यहाँ शादी के पहले हुआ था.

एक औरत नाचते हुए गा रही थी, 'चोलिया के बंद, सैंया मुहवा से खोले ला'.

मेरी ननद ने मुस्करा के मेरी ओर देखा,

मेने सब का पैर छुआ. मौसी ने मेरा पैर देख लिया और दुलारी को हड़काया,

अर्रे अपनी भौजाई के महावर तो ठीक से लगा दे .उसने फिर जम के खूब चौड़ा और गाढ़ा महावर लगाया. मैं सब के साथ बैठ के गाने सुन रही थी.

मामी ने चमेली से कहा, तू तो सुना, और वो खड़ी हो गई और खूब इशारे कर के नाच के गाने लगी,

हमसे हाथ ना लगाइयो, बलम दुर को रहियो,

पहली जवानी मोरी घूँघटा पे आई, गलन पे दाँत ना लगाइयो, बलम दुर को रहियो.

दूजी जवानी मोरी चोली पे आई, जोबन पे हाथ ना लगाइयो, बलम दुर को रहियो.

तिजि जवानी मोरी लहंगा पे आई, अनमोल चीज़ ना छुईयो,

अर्रे मेरी बुलबुल पे हाथ ना लगाइयो. बलम दुर को रहियो.


""अर्रे, भाभी आप इस चक्कर मे मत रहिएगा. आख़िर दूर रखना था तो इतनी दूर से लिवा के क्यो आए हैं" मेरी ननद ने छेड़ा.

"अर्रे दाँत भी लगेगा, हाथ भी लगेगा और लंबा और मोटा हथियार भी लगेगा.

आज डरने और घबड़ाने से काम नही चलेगा. "दुलारी जो महावर लगा चुकी थी, बोली.

"अर्रे ये बेचारी कहाँ मना कर रही है, ये तो तैयार होके शृंगार करके,

तैयार होके खुद ही बैठी है, तुम्ही लोग नही लिवा जा रही हो. "मौसी जी ने चुटकी ली. तब तक अगला गाना शुरू हो गया था,

मैं तो हो गयी पपिहरा पिया पिया से.

जैसे उरद की डाल चुरत नही, वैसे गौने की रात कटती नही.

जैसे गौने की रात मसाले सी वैसे गौने की रात कसाले सी.

जैसो फुलो फूकना दबत नही वैसे बलम से गोरी नवत नही.

जैसी कच्ची सुपाडि काट काट कटे, तैसे गोरी के गलन पे बलम ललचे.

जैसे छाई बदरिया, रिमिझम बरसे, वैसे ननदी चिनार मोसे झूर झूर लदे.


मैं तो हो गयी पपिहरा पिया पिया से.

सासू जी ने जो औरते गाने गा रही थी, उनसे कहा अर्रे ज़रा सुहाग तो सुना दे, और वो गाने लगी

आज सुहाग की रात, आज चंदा जिन दुबिहो,

अर्रे आज सुहाग की रात..आज सूरज जिन उगीहो.


गाने ख़तम होने के साथ ही मेरी सास ने ननदो से कहा, बहू को इसके कमरे मे ले जा. थोड़ा आराम कर ले, रात भर की जागी है, साढ़े आठ बज गये है. जा बहू जा.

चलने के पहले, किसी ने बोला घबड़ाना मत ज़रा सा भी. मेरी सासू बोली, अर्रे घबड़ाने की क्या बात है. मेरे सर पे हाथ फेरते हुए , मेरे कान मे मुस्करा के बोली, ना घबड़ाना ना शरमाना, और मुझे आशीष दी,

"बेटी तेरा सुहाग अमर रहे, और तेरी हर रात सुहाग रात हो"मेरी ननदे मुझे ले जाने के लिए तैयार खड़ी थी. वो मुझे ले के उपर छत पे चल दी. सीढ़ी पे चढ़ते ही उनकी छेड़ छाड़ एकदम पीक पे पहुँच गयी.

किसी ने गाया, अर्रे मारेंगे नज़र सैया तो दूसरी ने कहा अर्रे साफ साफ बोल ना,

चोदेन्गे बुर सैयाँ, चुदवाने के दिन आ गये. मेरी चुनर ठीक करने के बहाने उन सबने जहाँ जहाँ से वो फ़ंसा के सेट थी, उसे निकाल दिया. उपर छत पे एक बड़ा सा कमरा था. जब हम उसके दरवाजे पे पहुँच गये तो मेरी एक ननद बोली, जानती है भाभी ये कमरा आप के लिए खास तौर पे भैया ने खुद डिज़ाइन कर के बनवाया है. दूसरी बोली, और इस लिए कि इसमे आप को कोई डिस्टर्ब नही कर करेगा, आराम से रात भर. तब तक एक और ननद ने छेड़ा, नही रे, असल मे इससे हम लोग नही डिस्टर्ब होंगे. रात भर आ उहह, बस करो, चीख पुकार,

सिसक़ियो की आवाज़, पायल और बिछुओ की झंकार. ये लोग खुद तो रात भर सोएंगे नही और हम लोगो क भी नही सोने देंगे. एक ने कमरे का दरवाजा खोला, तो मेरी मझली ननद ने कान मे कहा, बस भाभी, अब इंतजार की घड़िया ख़तम, जिस पल का आपको इतने महीनो से इंतजार था और मेरा घूँघट ठीक करते हुए मेरे कान मे बोली,

दुल्हन थोड़ी धीर धरो अर्रे कसी चूत मे लंड होगा कि भाभी थोड़ी धीर धरो.
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