RE: kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून
शादी सुहागरात और हनीमून--13
गतान्क से आगे…………………………………..
बस क्या था. रीमा, रंभा और उसकी बाकी सहेलियो ने उनकी बेल्ट तो उतार ही दी थी, छेड़छाड़ मे ना सिर्फ़ पॅंट के उपर के बटन खोल दिए थे बल्कि जिप भी थोड़ी खोल दी थी. बस भाभी ने पूरी ताक़त से अंजलि का हाथ पकड़ा और 'उनके' पॅंट मे कस के घुसेड दिया और ऐसा लग रह था कि जबरन 'पकड़वा' भी दिया और उनकी पॅंट मे 'टेंट' तन गया.(बाद मे पता चला कि उस बेचारी का तो हाथ भी ठीक से अंदर नही गया था, हां भाभी ने ज़रूर वो भी ब्रीफ़ के उपर से और जो टेंट' ताने था, वो भाभी ने अपने अंगूठे से उनके पॅंट को 'उठा' दिया था.) भाभी ने मुझे भी छेड़ते हुए कहा,
"देख तेरी ननद कैसे खुल के सबके सामने अपने भैया का खुन्टा पकड़ के रगड़ मसल रही है. "मेने घूँघट से ही मुस्काराकार ऐसे सर हिलाया, जैसे मेरी ओर से पूरा 'ग्रीन सिग्नल' हो.
लेकिन इतने से भी संतोष नही था. मेरी मामी और गाव की एक भाभी बोली,
"अर्रे भैया, वो तो तुम्हारा पकड़ के सहला रही है तो ज़रा तुम भी तो कम से कम फैला के दिखाओ तो चिकनी है या घास फूस है. "बस अब क्या था मेरी दो तीन भाभियो ने मिल के, 'उनका' हाथ पकड़ा और (उनका हाथ तो बस दिखाने को था वो तो मेरी सारी भाभियो की पूरी ताक़त थी जो उसकी दोनो जाँघो को फैलाने मे लगी थी), उसका फ्रॉक उठा के जांघे फैला दी उसने झट से फिर टांगे सिकोड ली. और जो दिखा हम सब दंग रह गये) सिवाय उसके भैया के क्यो कि वो तो उनकी गोद मे ही थी.). उसकी 'वो' पैंटी विहीन थी. हां लेकिन ये ज़रूर पता चल गया कि 'घास फूस', भूरी, घूंघराली सी, थी.
(पता ये चला कि, बसंती और मेरे कज़िन्स संजय और सोनू का हाथ था. जब बसंती अंजलि को ले के कुहबार की ओर आ रही थी तो रास्ते मे एक बहुत सांकरा गलियारा पड़ता था, जैसे ही वो लोग उधर मुड़े, लाइट चली गयी. बसंती ने झट से उसके दोनो हाथ सहारा देने के लिए पकड़ लिए. तब तक पीछे से किसी ने उसे पकड़ लिया और सबसे पहले अपने हाथ से उसका मूह कस के बंद कर दिया.
दूसरे हाथ से फ्रॉक के उपर से ही उसके उभार पकड़ लिए और मसलने शुरू कर दिया. तब तक दूसरे ने, एक हाथ से उसकी कमर पकड़ी और दूसरा हाथ उसकी जाँघो के बीच डाल कर पैंटी के उपर से उसकी 'बुलबुल' को दबोच लिया. जल्द ही उसकी फ्रॉक के अंदर उसकी ब्रा भी खुल गई थी. कस के उसके जोबन का मसलन रगड़न चालू हो गया और नीचे उंगलियों भी. 7-8 मिनिट्स तक अंधेरे का फ़ायदा उठा के खूब खुल के चुचियो का मज़ा लिया और मन भर के उंगली अलग की, यहा तक कि उसकी पैंटी भी उतार दी. और जैसे ही बिजली आई,
उसके साथ वो गायब हो गये. बसंती ने बताया कि अंजलि थोड़ी नाराज़ परेशान थी, लेकिन उसने उसे समझाया कि आख़िर चोदा तो है नही खाली उंगली की है,
फिर इतने लड़के शादी के घर मे रहते है. पता नही कौन था.फिर जिन्होने ये हरकत की वो तो किसी से कहेंगे नही, बसंती किसी से बोलेगी नही तो वो अगर ना बोले तो किसी को कहाँ पता चलेगा. बस वो इसको छेड़ छाड़ मान ले. और बसंती ने भी उसका फ़ायदा उठाया. चेक करने के नाम पे जब तक वो समझे उसने "उसकी उसका"ना सिर्फ़ दर्शन कर लिया, बल्कि जाँचने के लिए ना सिर्फ़ उंगली अंदर भी कर दी बल्कि जम के मज़े ले ले के उगलिया भी. उसके शब्दो मे, 'बीबी जी, उसकी बुर एकदम मचमच कर रही थी. जब उंगली मेने अंदर डाली तो पूरा अंदर तक पनिया गयी थी, बुर उसकी.
इसका मतलब साफ था कि तुम्हारी ननद रानी गुस्सा होने का बहाना कर रही थी और बुर मे उंगली का उसको भी खूब मज़ा आया. इसीलिए जब वो कुहबार मे घुसी तो थोड़ा घबड़ाई लग रही थी.) अब मुझे लगा कि वो ज़रूर गुस्सा हो जाएगी और कही 'वो' भी..लेकिन मम्मी और भाभी ने बात संभाल ली.
मम्मी ने अंजलि को खींच के अपनी गोद मे बिठा लिया और सबको डांटा कि तुम सब लोग मिल के मेरी इस सीधी बिटिया को तंग करती हो. फिर समझा के बोला,
(जिसका इशारा, 'इनकी' ओर ज़्यादा था.), "अर्रे कुहबार की बात कुहबार मे ख़तम हो जाती है. इसका मतलब है कि कुहबार मे, कोई शर्म लिहाज नही होती. कुछ जगहो, कामो और रिश्तो मे शर्म लिहाज हट जाती है. हर जगह तो बेचारी लड़किया चुप मूह दबा के बैठी रहती है पर ये सब मौके होते है मन की भडास और अंदर की सब बात जाहिर करने की. और तुम ये समझ लो कि जितना इसका हक तुम्हारे उपर है ना, (मेरी ओर इशारा कर के) उतना ही हक जितना तुम्हारी ये सब सालिया, सलहजे बैठी है ना, उतना ही उन सबका है तुम पर.
(बीच मे किसी ने टोका, और सास का. तो वो मुस्करा के बोली, और क्या मैं कौन सी मैंभी तो अभी जवान हू) और तुम्हारा भी उन सब पे बराबर का हक है.
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