RE: kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून
जायमाला के समय चूड़ीदार और सुनेहरी शेरवानी मे वो बहुत ही हैडसम लग रहे थे ( और उनका कहना था, सुर्ख 24 कली के लहँगे मे मे भी बहुत हसीन लग रही थी. मेरे जोड़े मे जो सोने के तारों का काम था वो उनकी शेरवानी से मैंच कर रहा था). मेरी सहेलियों को सिर्फ़ एक प्राब्लम लग रही थी,और वो थी उनकी छोटी बेहन और मेरी छोटी ननद, अंजलि. वो उनके साथ स्टैम्प टिकिट की तरह चिपकी थी. और वो न तो खुल के अपने जीजा से बात कर पा रही थी ना उन्हे बना पा रही थी.तय हुआ कि गलियों मे सबसे ज़्यादा दूरगत आज उसी की की जाएगी. पर सवाल था, अभी क्या करे हर वार की तरह भाभी ने ही रास्ता निकाला. उन्होने संजय और सोनू को बुलाया और कहा की इत्ता मस्त माल शादी मे आया है और तुम लोग टाइम वेस्ट कर रहे हो. रीमा अंजलि को बुला के एक कोने मे ले आई कि उसे कोई बुला रही है और वहाँ उसे संजय, सोनू और उसके दोस्तों ने घेर लिया और उसके लाख कोशिश करने पे भी घंटे भर घेरे रहे, छेड़ते रहे.
जब शादी के लिए 'वो' आए तो सबसे पहले 'स्वागत' रश्मि और ज्योत्सना ने ही किया, गालियो से,
"बाराती साले आए गये छैल चिकनिया"
"दूल्हा साला उल्लू का पठ्ठा है" तब तक रीमा भी मैदान मे आ गई और जो हमारे यहाँ क़ी 'पारंपरिक' परम्परा थी..
"स्वागत मे गाली सूनाओ अर्रे स्वागत मे, अर्रे दूल्हे के तन पे शर्ट नही है उसको तो चोली अर्रे ब्रा और चोली पहनाओ.
"स्वागत मे गाली सूनाओ अर्रे स्वागत मे, अर्रे दूल्हे के संग मे रंडी नही है अर्रे दूल्हे की बहने अर्रे अंजलि छिनारो को नचाओ." फिर भाभी भी मैदान मे आ गई और फिर तो 'उनकी' तारीफ मे एक से बढ़ के एक " मूँछो वाले समधी का प्यारा बन्ना हरियाला बना, बन्ने के सर पे सेहरा सोहे लोग कहे मलिया का जना,
"मूँछो वाले समधी का प्यारा बन्ना हरियाला बने, अर्रे धोबी की गली होके आया रे बन्ने, अर्रे लोग कहे गदहे का जना."
अंजलि, उसकी बहने कुछ ज़्यादा ही चहक रहे थे, इसलिए की रीमा और उसकी सहेलियों का जूता चुराने का प्रोग्राम फेल हो गया था. अंजलि ने खुद जूते उतारे और अपनी स्कर्ट मे छिपा के, सब लोगों को चिढ़ाते हुए, दिखा के बैठ गयी. अब वहाँ से कौन ले आए. फिर गालियो के बीच अंजलि और उनकी बहनो ने कहा हम लोग भी गाएँगे, और गाना शुरू कर दिया. थोड़ी देर बाद भाभी बोली कि लगता है इन लोगों को मिर्च ज़्यादा पसंद है और वापस ढोलक लेके..गाँव की जो मेरी भाभीया थी उनके साथ
" चिट्ठि आय गयी सहर बानेरस से चिट्ठी आय गई.
अर्रे दूल्हा बहनेचोद चिट्ठी पढ़ाला कि ना चिट्ठी बन्चला कि ना,
तोरी बहने छिनार, अर्रे अंजलि छिनार, चूत मरावे,
चुचि दबवावे अर्रे चिट्ठी पढ़ाला कि ना चिट्ठी बन्चला कि ना,"
"अर्रे छम छम बटुआ, रतन जड़ा केकरे केकरे घर जाय कि ना
ई तो जाए दूल्हे के घर जिनकी बहने, बड़ी गोरी कि ना..
अर्रे गोरी चुदावे, अर्रे अंजलि चुदावे दौड़े दौड़े भैया भातरण की चोरी रे ना."
और फिर उनके घर की सारी औरतों के नाम से किसी को नही छोड़ा गया. बाराती भी खूब मज़े ले रहे थे. एक बार तो उनके मामा का नाम छूट गया तो उनके चाचा ने बताया लेकिन सबसे ज़्यादा गालियाँ अंजलि को ही पड़ी. और बीच मे एक बार पंडित ने मना किया तो बसंती ने उनके नाम से भी लेकिन जूते वाली बात बन नही पा रही थी. भाभी ने संजय को पानी ले के बारातियों के पास भेजा और जब वो अंजलि के पास पहुँचा तो उसके लाख मना करने पे भी उसने पानी थामने की कोशिश नही की.उसी मे पानी गिर गया.वो बेचारी चिहुकी पर रीमा और उसकी सहेलिया पहले से ही तैयार थी.वो तुरंत जूता ले के चंपत हो गई.
शादी के बाद कुहबार की रसम थी. कुहबार के दरवाजा पे भाभीया, मेरी बहने और सहेलिया दरवाजा रोक के खड़ी थी, शर्त थी गाना सुनाने की और 1000 रूपरे, जूते की. 'उनके' साथ, उनके दोस्त भाई, बहनें भाभीया. अंजलि कह रही थी जूता चुराया नही गया फाउल तरीके से लिया गया है इसलिए नेग नही बनता. वो बेचारे खड़े. खैर. मेरे लिए तो संजय एक कुर्सी ले आया और मे आराम से बैठ गयी. एकदम डेडलॉक की स्तिथि थी.
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