RE: kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून
शादी सुहागरात और हनीमून--10
गतान्क से आगे…………………………………..
मट्टी खोदने पे जो कुम्हारिन थी, सब अब उसके ही पीछे पड़ गई और फिर रीमा और उसकी सहेलियों का नाम ले ले के. फिर एक कुँवारी की पटरी की रसम थी, उसमे दुल्हन के उपर से एक पत्तल उतार के जो उसकी कुँवारी बेहन होती है, जिसकी अगली शादी होनी होती है, उसके सर पे रखी जाती है. मुझसे छोटी रीमा ही थी उसके सर पे रखी गई, और भाभी ने बड़े द्विअर्थि अंदाज़ मे मुस्करा के पूछा,
"क्यों चढ़ा" और उसने भी उसी अंदाज़ मे मुस्करा के जवाब दिया हां भाभी.
चढ़ा. भाभी बोली," इसका मतलब कि तुम्हारे उपर जल्दी ही चढ़ेगा, इंतजार नही करना पड़ेगा." गालियाँ और गाने सुन, गा के वो भी मूह फॅट हो गयी थी.
बोली, "भाभी आपके मूह मे घी-शक्कर." खूब गहमा गहमी चहल पहल और रोज रात को गाने.
अगले दिन सुबह मे उठी, तो आँगन मे बुआ, चाची और गाँव की एक दो मेरी भाभीया, बैठ के गा रही थी,
अर्रे भोर भए भिनेसुरव, धरमवा की जूनिया चिरैया बन बोलाई
, मिरिग बन चुगाई अर्रे जाई के जगाओ
मुझे बहुत अच्छा लगा और मेने पूछा तो पता चला कि ये भोर जगाने का गाना है. फिर इसी तरह सांझी हर सांझ को गायी जाती थी. एक रस्म मे पितरों का भी आवाहन किया गया थी मुझे लगा कि जो बात उस दिन चाची कह रही थी की जीवन के उस महत्व पूर्ण संक्रमण कल मे सिर्फ़ सारे सगे संबंधी ही नही, प्रक्रति और मेरे पूर्वज भी साथ साथ साथ है. दो तीन दिन के अंदर ही घर सारे रिश्तेदारों से भर गया था..और हर किसी के आने पे पानी बाद मे पहले गालियाँ और गाने सबसे ज़्यादा तो जब मेरी छोटी मौसी आई तो मेरी सारी चाचियों ने मिल के वो जम के गालियाँ सुनाई. और रात को लेकिन मम्मी के साथ मिल, के सारी मौसीयों ने चाची की सूद ब्याज सहित खबर ली. और इसमे मर्द औरत, उमर, रिश्ते का कोई फरक नही पड़ता था. वो किसी ना किसी का नेंदोई, जीजा, साला, या ननद भाभी लगती ही. जैसे ही गाना शुरू होता -अर्रे आया बेहन चोद आया, अपनी बहने चुदवा आया हम लोग समझ जाते कौन आया है, किसका नाम लगा के गालियाँ दी जा रही है जो कुछ बचा खुचा होता वो रस्मों मे बिना इस ख़याल के कि वहाँ लड़कियाँ, बच्चिया है. अगर घर के लोगो ने छोड़ भी दिया तो काम करने वाली नही छोड़ने वाली थी. और इस से हर रस्म और रसीली हो जाती. (मेरा मन तो बहुत कर रहा है, पर मे जान बूझ के उन रस्मों और गानों का ज़िकरा नही कर रही क्योंकि एक तो मेने अपनी कहानी 'इट हॅपंड' मे और थोड़ा बहुत मेरी पिछली कहानी, 'ननद की ट्रैनिंग मे इनका ज़िकरा किया था, तो दुहराव ही होगा और मे भी फास्ट फॉर्वर्ड कर के मैं बात पे आना चाहती हूँ). गाँव से बहुत लोग आए थे और माहौल मे जैसे पुराने ढंग का माहौल हो और जहा तक लोकचार और रीति रिवाज का सवाल है ज़्यादा कन्सेशन नही था, इसमे लास्ट वर्ड, दादी और घर की और बुज़ुर्ग औरतों का ही था.
और इन सबके साथ. काम भी बहुत बढ़ गया था. बहुत सा काम, डेकोरेशन, फ्लवर अरेंज्मेंट, केटरिंग सब कुछ तो बाहर वालों का था और अंदर भी घर मे नौकरो की पूरी फौज थी लेकिन उनको गाइड करना के लिए भाभी और फिर ख़ास शादी के काम डाल सजाने, और सबसे बढ़कर मेरे काम मेरे नेल कटर से लेके सॅनिटरी नाप्कीन तक सब कुछ सजाने का काम, भाभी के ही ज़िम्मे था. उसके बाद भी जब रात को गाना होता तो मुझे चुन चुन के गालियाँ देने के लिए वो ज़रूर पहुँच जाती.
और उस समय मे उनका और उनकी गालियो का इंतजार करती.
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