RE: kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून
वास्तव मे मुझे अलग सा एहसास होता रहता था. आँखो मे सपने, मन मे मुरादे, बस मन करता रहता था कि वो दिन कितनी जल्दी आ जाए. जब मे उनकी बाहों मे होऊ और वो कस कर, भींच कर..मेरे होंटो पे मेरे शरीर का हर अंग नेये ढंग से महसूस कराता मेरे उभार, मेरी छातियाँ मुझे खुद भारी भारी, पहले से कसी लगती, और हर समय मुझे उनका एहसास होता रहता और अक्सर मे सोच बैठती कि राजीव कैसे मुझे बाहों मे लेंगे कैसे इन्हे कस के दबा देंगे लेकिन मे फिर खुद ही शर्मा जाती. और सारी देह मे एक अलग ढंग का रस्स खुमार, एक हल्की सी नेशीली सी चुभन और अब मेने जाने कि ये दुल्हन बनने का एहसास है.
जब मे उबटन लगवा के नीचे उतरी तो कुछ गाना हो रहा था. अब तो हर दम घर मे तरह तरह के गाने, काम वाली कोई दाल बनाती, चावल छाँटति या चक्की चलाती तो गा गा कर. बहोत प्यारी लेकिन थोड़ी उदास सी, रसोई मे महारजिन गा रही थी, बाबा निमिया के पेड़ जिन छोटियो, निमिया चिरैया के बेसर..
बाबा बिटियाई जानी कोई दुख देई बिटिया चिरैया की ने.
सबेरे चिड़िया उड़ी उड़ी जैहई रही जैहई निमिया अकेली.
सबेरे बिटिया जैहई ससुर रही जैहई मैंया अकेल..
बहोत अच्छा गाना था लेकिन मे अचानक उदास हो गयी. सोचने लगी अब कुछ दिन मे ही, अंगने तो परबत भयो, देहरि भयो बिदेसाए अंगों,
बस अब कब आना होगा कुछ ही दिनों मे और मम्मी ने मेरे उदास चेहरे को देख के खुद ही ताड़ लिया वो महारजिन से बोली, हे बिदाई के गाने मत गाओ देखो मेरी बेटी कितनी उदास हो गयी. गाँव से मेरी चाची और भाभीया आई थी. वो ढोलक ले के बरामदे मे बैठ के बन्ने बन्नी गा रही थी. उन्होने मुझे पास बुलाया कि हे बन्नी इधर आओ तुम्हे खुश कर देने वाले गाने सुनाते है. और उन्होने मुझे छेड़ते हुए बन्नी सुनानी शुरू कर दी,
बन्ने जी तोरी चितवन जादू भरी, बनने जी तोरी चितवन,
आज दिखाओ, बन्ने जी तोरी बिहसन जादू भरी,
बन्ने जी तोरी अधैरान की अरुनेइ, बनने जी तोरी बोली जादू भरी
और मेरे मन मे 'उनके' बारे मे ढेर सारे चित्र उभरने लगे. उनकी निगाहों के और कैसे कैसे बाते करते है मे एकदम भूल जाती हूँ अपने आप को ओर जो बाते बसंती करती है. सोच के बस सिहर सी उठी मे.
लेकिन भाभीया हो और बात सिर्फ़ बन्नी तक रहे ये कैसे हो सकता है. एक ने मुझे पकड़ के नाचने के लिए खड़ा कर दिया अपने साथ और दूसरी भाभी ने ढोलक संभाला और चालू हो गयी,
लगाए जाओ राजा धक्के पे धक्का, लगाए जाओ,
दो दो बटन है कस के दबाओ
(और उन्होने मेरे उभार खुल के पकड़ लिए और मेरी एक टाँग उठा के अपनी कमर मे लपेट धक्के लगाते हुए नाचनेलगी), अर्रे लगाए जाओ राजा, धक्के पे धक्का.
बड़ी मुश्किल से मे छुड़ा के बैठी लेकिन इतने से कहाँ छुटकारा मिलता.
गालियाँ शुरू हो गई,
ननद रानी पक्की छिनार,
एक जाए आगे दूसरा पिछवाड़े बचा नही को नेुआ कहार .
और फिर ननद रानी बड़ी चुद्वासि कोई कस के लेला कोई हंस के लेला,
अर्रे कोई ढाई ढाई जोबना बकैये लेला मे जीतने मूह बनाती वो और कस के ..जब सब लोग जाने लगे तो चाची ने मुझे समझाया.
"देख ये गाने, ये रस्मे छेड़ छाड़ बेहोट ज़रूरी है. अब तुम लड़कपन से निकल के अब तुम्हारा कुँवारा पन ख़तम होनेवाला है तो जो बाते बचपन मे कुंवारे पन मे ग़लत मानी जाती थी,.."
"यहीं बाते अब सही हो जाती है. सबसे ज़रूरी हो जाती है' हंस के मेने बोला.
"एकदम तुम तो समझदार हो गयी हो. तो अब उन्ही चीज़ों का खुल के, जम के मज़ा लेने का समय आ गया है. लड़की की धड़क खुल जाय और समझ जाय कि अब उसे क्या करना है. हर उमर मे अलग अलग मज़ा है तो अब तुम्हारा जवानी का मज़ा लेने का वक़्त आ गया है, समझी." ये कह के उन्होने मुझे गले लगा लिया.
हां एकदम और मुस्कराते हुए दौड़ के मे उपर अपने कमरे मे सोने चली गई.
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