RE: kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून
"अर्रे अगर साली सलहज के रहते हुए भी दामाद भूखा रहे तो सास को ही उसकी भूख मिटानी पड़ेगी. क्यों" उनके गाल सहला के उन्होने पूछा. शरम से उनके गाल लाल हो गये, लेकिन शायद इतना काफ़ी नही था.
"अर्रे ये क्या लौंडिया की तरह शर्मा रहे है." पीछे से कटोरी मे दाल परोसते आवाज़ आई.
वो बसंती थी, मेरी नाहिन की बहू. मुझसे थोड़ी ही बड़ी रही होगी. पाँच-छे महीने पहले ही शादी हुई थी. गोरा गदराया गठा बदन.. मज़ाक के मामले मे एक नंबर की और वो भी गाली गाने के मामले मे तो.. जब वो हम लोगों के पीछे पड़ जाती तो कान मे उंगली डालनी पड़ती. अक्सर काम मे हाथ बटाने के लिए मम्मी उसे बुला लेती.
"मुझे तो कुछ शक लग रहा है, इनके शरमाने से लगता है खोल कर चेक करने पड़ेगा." पानी डालते हुए भी वो चालू रही.
"अर्रे तेरे तो ननदेऊ लगिगे चाहे खोल कर चेक कर या पकड़ कर" भाभी ने और आग लगाई.
बसंती ने कहा बिना गाली के खाना कैसा और हम लोगों के मना करने पर भी वो चालू हो गई. फिर तो उनकी बहने अम्मा किसी को नही छोड़ा उसने, सबको न्योता दे डाला.
और वे बिचारे सर झुकाए गालियाँ सुनते रहे, खाना खाते रहे. और आज मम्मी और मूड मे थी. कह कह कर एक रसगुल्ला और लो अर्रे एक मेरे हाथ से पूरे चार रसगुल्ले खिलाए. जब बसंती किसी काम से अंदर चली गई तो धीरे से मेरे कान मे बोले, ये गाना बड़ा जबरदस्त सुनाती है. रीमा क्यों चुप रहती,
बोली, ये मालिश भी बहोत अच्छी करती है. जैसे ही वो उठे बसंती वापस आ गयी. भाभी ने फिर छेड़ा, क्यों करवानी है मालिश,.और बसंती से कहा,
क्यों कहाँ मालिश करोगी,
"अर्रे कर दूँगी सारी टाँगो पर, सांड़े का तेल लगा के ."बसंती बोली.
अब तो बेचारे चुप चाप उपर अपने कमरे मे भागे. लेकिन भाभी वहाँ भी कहा उन्हे छोड़ने वाली थी. मुझसे कहा कि तुम्हे बुला रहे है. ज़रा चल के बाते कर लो, सुबह चले जाएँगे..फिर तो कब मिलना होगा. मे भाभी के साथ उनके कमरे मे गई और पूछा कि बुलाया था तो वो बोले कि नही. जब तक मे कुछ समझती भाभी दरवाजे पर थी और मुस्करा के बोली,
"आज की रात मेरी ननद आपके हवाले है चाहे बात करनी हो या जो कुछ पूरी छूट है मेरी ओर से और ये दरवाजा अब सुबेह ही खुलेगा."और जब तक मे उन्हे पहुँच के रोकती, वो बाहर और कुण्डी बंद होने की आवाज़ आई. सीढ़ियों पर भाभी के पैरों की आवाज़ बता रही थी, वो नीचे जा रही थी. कुछ देर तो हम चुप बैठे रहे फिर बाते करने लगे. लेकिन कुछ देर बाद मुझे लगा कि उन्हे नींद आ रही है. अब क्या करें, पलंग सिर्फ़ एक . मेने खिड़की खोल के देखा,
सारे घर की लाइट्स बुझी, किसी को बुला भी नही सकती. मेने उनसे कहा कि वो सो जाए, मुझे नींद नही आ रही. तो बोले नही कोई परेशानी की बात नही है, वो सोफे पर सो लेंगे और तकिया लेके वो सोफे पर लेट गये. तब तक हम लोगों के लिए मुक्ति दूत बन कर रीमा आ गयी. कमरा उसी का था और वो कोई किताब लेने आई थी.
सुबह उन्हे जाना था. मम्मी ने उन्हे बताया कि अभी उनके घर से फोन आया था. जन्वरी के शुरू की, जो शादी की तारीख यहाँ के पंडित जी ने सजेस्ट की थी वो वहाँ के पंडित ने भी सही बताई है, और अब वो तारीख पक्की हो गयी है. वो बोले कि मम्मी ज़रा मे, मसूरी से एक बार बात कर लूँ , छुट्टी के बारे मे.
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