RE: kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून
सामने 'वो' बैठे हंस हंस के मम्मी से बाते कर रहे थे. और जैसे उन्होने मेरी ओर देखा बस लगा एक साथ चाँद सूरज खिल गये हो. "बैठो ना"जिस इसरार और अधिकार से उन्होने कहा लेकिन बैठने की जगह सिर्फ़ उनके बगल मे बची थी, शरारत से खाली सोफे पे रीमा धम्म से बैठ गयी थी और एक पे मम्मी.
सिकुड़ते सिमटते मैं बैठी, और जब मेने अपने उपर ध्यान दिया तो मेरी तो सांस ही जैसे रुक गयी.. टाप पुराना होने से छोटा तो था ही टाइट भी बहोत हो गया था और मेरे दोनो उभार एकदम खुल के जैसे छलक रहे थे और बैठने से बरमूडा भी उपर चढ़ गया था, और मेरी गोरी चिकनी जांघे लेकिन अब मैं कर भी क्या सकती थी. और वो भी बाते मम्मी से कर रहे थे लेकिन उनकी शैतान लालची निगाहे, चोरी चोरी चुपके चुपके सीधे वहीं तभी रीमा बोल उठी "दीदी आप को बहोत याद करती थी हमेशा"मेने जब उसे तरेर कर देखा तो वो शांत हुई.
पता ये चला कि, इनकी एक विलेज ट्रैनिंग होती है, 10-12 दिनो की, संयोग से वो पास के गाँव मे ही है. दो तीन दिन पहले शुरू हुई है और वीकेंड मे वो यहाँ आ गये. (बाद मे पता चला कि जनाब ने जान बुझ के अपनी ट्रैनिंग यहाँ लगवाई थी, जुगाड़ कर के). मम्मी ने मुझसे कहा कि मैं उनको उपर ले जाउ, अपने कमरे मे.
जब मैं उपर पहुँची तो साथ मे रीमा भी थी, और भाभी भी. पर कुछ बहाने कर के दोनो लोग कट लिए और फिर बचे हम दोनो. कितनी बाते मैं करने चाहती थी, कितने सवाल. पर सब के सब खिड़की से बाहर उड़ गये लेकिन वो सन्नाटा भी, इतना अच्छा लग रहा था. बस मन कर रहा था हम दोनो ऐसे ही बैठे रहे चुप चाप, देखा करें एक दूसरे को, बिना कुछ बोले. तभी रीमा आई. नीचे पापा आए थे और वो उन्हे बुला रहे थे, मिलने को. अब हम सब नीचे चले आए. मैं एक पल के लिए उन्हे छोड़ना नही चाह रही थी.
थोड़ी देर हाल चाल और इधर उधर की बात करने के बाद, पापा ने उनसे उनके ट्रैनिंग प्रोग्राम और छुट्टियों के बारे मे पूछा. वो बोले कि, डिसेंबर के शुरू मे फाउंडेशन प्रोग्राम ख़तम हो जाएगा, और उसके बाद दो ढाई महीने का भारत दर्शन का प्रोग्राम है और फिर होली के बाद से फेज़ ट्रैनिंग शुरू हो जाएगी. पापा ने कुछ सोचा और फिर पूछा कि ये ट्रैनिंग तो डी.ओ.पी के अंदर होती होगी तो राजीव ने हामी भरी. पापा बोले चलो मैं वर्मा से बात करता हों, आज कल तो वो डी.ओ.पी मे सेक्रेटरी है. वर्मा अंकल को मैं भी अच्छी तरह जानती थी, पापा के साथ यूनीवर्सिटी मे थे और उनके बहोत अच्छे दोस्त थे. अक्सर हम लोग दिल्ली मे उन्ही के यहाँ रुकते थे. पापा ने उन्हे फोन लगाया और बताया कि मेरी शादी तय हो गयी है. वर्मा अंकल बहुत खुश हुए,
लेकिन जब पापा ने उन्हे प्राब्लम बताई तो वो बोले कि कोई बात नही भारत दर्शन के पीरियड मे छुट्टी मिल जाएगी, बाकी बचा भारत दर्शन वो अगले बॅच के साथ, शादी के बाद कर लेगा. उन्होने कहा कि वो पूरी, जो अकॅडमी के डाइरेक्टर थे, उनसे बोल देंगे. फिर उन्होने पापा से पूछा कि ज़रा पूच्छ के बताओ कि उसके कोर्स डाइरेक्टर कौन है. पापा ने राजीव से पूछा तो उन्होने बताया कि सिन्हा सर है. जब पापा ने वर्मा अंकल को ये बात बताई तो वो बोले कि अर्रे उसे तो मैं अच्छी तरह जानता हू, मेरे साथ काम कर चुका है, यू.पी सेंटर का ही है.
वो उनेको भी बोल देंगे. राजीव कल ही सिन्हा जी से फोन पे बात कर ले, और पहुँच के छुट्टी की अप्लिकेशन भी दे दे, कोई प्राब्लम नही होगी. बल्कि उन्होने ये भी कहा कि वो बोल देंगे कि जो उनकी फील्ड ट्रैनिंग हो वो हमारे ही शहर मे लग जाय. फोन रख के पापा ने उनको सब बाते समझा दी और कहा कि कल सुबह ही वो अकॅडमी मे बात कर ले. पापा से कुछ लोग मिलने आए थे और वो बाहर चले गये.
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