RE: kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून
शादी सुहागरात और हनीमून--5
गतान्क से आगे…………………………………..
रात को राजीव हम लोगो को छोड़ने, टॅक्सी से देहरादून तक आए. रात मे 10 बजे हमारी ट्रेन थी, मसूरी एक्सप्रेस. रास्ते मे एक दुकान को दिखा के वो बोले कि ये यहाँ की सबसे अच्छी बेकॅरी है. वहाँ रुक के हम लोगो ने ब्लॅक फोरेस्ट और पायनाअप्पल पेस्ट्री खरीदी. वो आगे बैठे थे और हम तीनो पीछे. भाभी ने एक पाइनअप्पल पेस्ट्री मेरे मूह मे दे दी. जब मेने आधा काट लिया तो उसे मेरे होंटो पे रगड़ के, उनसे इशारा कर के बोली, अर्रे आप भी तो खाइए. वो बेचारे, आगे की सीट पे बैठे, उन्हे क्या मालूम कि पीछे क्या हो रहा है. भाभी ने अपने हाथों से उन्हे मेरी अधखाई पेस्ट्री खिला दी. फिर हम दोनो क्या मम्मी भी अपनी मुस्कान नही रोक पाई.
हम लोगों की बर्थ एक फर्स्ट क्लास के चार बर्थ वाले कॅबिन मे थी. समान रख के वो नीचे उतरे तो मैं और भाभी भी उनके साथ उतरे, उन्हे छोड़ने के लिए.
भाभी ने मेरा हाथ दबा के धीरे से बोला "अर्रे अब तो एक छोटी सी चुम्मि दे दे."
मैं शर्मा के रह गयी. जब गाड़ी ने चलने की सीटी दी तो भाभी अंदर चल दी.
लपक के उन्होने मेरे हाथ मे एक गिफ्ट रॅप्ड पॅकेट पकड़ा दिया. ट्रेन धीरे धीरे रफ़्तार पकड़ रही थी. मेरे गुलाबी होंठ लरज रहे थे. मेने दो उंगलिया होंटो पे लगा के उन्हे फ्लाइयिंग किस दिया, और उन्होने भी ना उसे सिर्फ़ पकड़ लिया बल्कि अपने होंटो से उंगली लगा के जवाबी फ्लाइयिंग किस दिया. जब तक उनका हिलता हुआ हाथ दिखता रहा, मैं वहीं दरवाजे पे खड़ी रही हाथ हिलाते. पॅकेट मे एक खूबसूरत सा हॅंड मिरर था. जब मेने उसमे देखा तो मेरा ध्यान शीशे के नीचे लिखी लाइन पर गया और मैं मुस्करा, शर्मा के रह गयी. उस पे लिखा था, 'यू आर लुकिंग अट दा मोस्ट ब्यूटिफुल गर्ल'. और साथ मे एक लव पोवेम्स की किताब थी, सुनील गंगोपाध्याय की, 'फॉर यू नीरा'.
जब मैं कॅबिन मे आई तो भाभी ने मुस्करा के पूछा, "क्यों लिया कि नही"
मेरी कुछ समझ मे नही आया. मेने पूछा, "क्या"
वो मुस्करा के बोली, "अर्रे ये भी समझाना पड़ेगा, उस के होंटो का स्वाद. अपने होंटो का स्वाद तो उसे पेस्ट्री के बहाने चखा दिया तो उस के होंटो का स्वाद तो चख लेती"
मेने तकिया उठा के उनके उपर फेंका. भाभी भी बिना ये सोचे कि मम्मी वहाँ है. पर मम्मी भी कम नही थी वो भी बैठे बैठे मज़े लेती थी. थी तक टी.टी. टिकेट चेक करने आया और उसने बताया कि चौथी बर्थ खाली है और उसपर कोई नही आएगा. हम लोग कॅबिन अंदर से बंद कर ले. कॅबिन बंद कर के हम लोगों ने नाइटी पहन ली. मम्मी अपनी बर्थ पे लेट के सो गयी और मैं भाभी की बर्थ पे बैठ के बाते करने लगी. भाभी ने बत्ती बंद कर के मुझे भी अपनी रज़ाई के अंदर खींच लिया और धीमे से पूछी,
"अच्छा अब बता. सुन उसने तुझे छुआ था कि नही. कुछ पकड़ा पकड़ाई हुई कि नही"
"नही भाभी.. हां भाभी पकड़ा..तो नही था...हां" मैं भाभी से झूट नही बोल सकती थी. "हम ज़रा सा उनकी उंगली यहाँ लग गयी थी छू गयी थी. ऐसा कुछ खास नही"मेरे मन के सामने फिर वहीं झरने के नीचे का दृश्य आ गया और मेरे उभार सख़्त हो गये भाभी ने कपड़ो के उपर से ही मेरे उभार कस के दबोच लिए और बोली,
"ये क्यों नही कहती बन्नो कि आज खुल के तुमने उसको जोबन का दान दिया. अर्रे वो तो मुझे मालूम ही पड़ गया था कि वो तेरे इन जवानी के फूलों का दीवाना है. लेकिन अब उसका पूरा हक़ है इन्पे. मैं उस के बारे मे नही पूच्छ रही थी. तुम ने उस का हथियार पकड़ा, छुआ कि नही. क्यों कि मेने कस के छुआ, नाप जोख की थी!!!"
भाभी का हाथ अब मेरी नाइटी के बटन खोल के मेरे ब्रा के उपर से, मेरे उत्तेजित पत्थर की तरह सख़्त उरोजो को ब्रा के उपर से सहला रहे थे. भाभी ने ब्रा को ज़रा सा हटा के मेरे एरेक्ट निपल को फ्लिक किया और अपनी बात जारी रखी,
"उसका आवरेज से बड़ा ही लगता है. आवरेज तो 5-6 इंच का होता हे लेकिन उसका उससे और मज़ा भी तो बड़े ही मे आता है. तुम्हारे भैया का भी आवरेज से काफ़ी बड़ा है और अभी तक मुझे याद आता है जब सुहागरात मे पहली बार.. लिया था उन्होने इतने दर्द हुआ था कि आँसू निकल गये थे मेरे"
"क्या भाभी सच मे बहोत दर्द होता है." सिहर कर मेने पूछा.
"अगर मैं कहु नही तो मैं झोट बोलुंदगी. पर अर्रे पगली पर इसी दर्द का तो इंतजार रहता है सब को शादी के पहले डर लगता है और शादी के बाद उस की याद आके इतना अच्छा लगता है और जो मज़ा. मेने तो सब ट्राइ किया है, डिल्डो, विब्रातोर, उंगली जो मज़ा लंड के साथ है ना वो किसी चीज़ मे नही."मेरे निपल भाभी ने उत्तेजित होके कस के दबा दिए और मैं भी सिहर गयी. उसे रगड़ते सहलाते भाभी ने बात जारी रखी,
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