RE: kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून
शादी सुहागरात और हनीमून--3
गतान्क से आगे…………………………………..
जब हम गेट पे पहुँचे तो वो इंतजार कर रहे थे. एल.बी.एस.ए.एन.ए. (लाल बहादुर शास्त्री अकॅडमी ऑफ नीशनल आड्मिनिस्ट्रेशन) का नाम तो मेने पहले भी सुन रखा था. बड़ा सा गेट, एक रास्ता उपर की ओर जाता था जो उन्होने बताया कि कंपनी बाग की ओर जाता है. वो हम लोगो को लाउंज मे लेगये. सारा स्ट्रक्चर वुडन, ( कुछ सालो बाद आग से वो सारा कुछ नष्ट हो गया, उसकी जगह सेमेंट की अच्छी बिल्डिंग बनी पर वो बात नही) इतना अच्छा लगता था और वहाँ खिड़की से बाहर पहाड़ो की चोटिया, नीचे दूर तक तन कर खड़े देवदार के पेड़ और मौसम साफ हो गया था इसलिए कुछ पे हल्की बर्फ बस मन कर रहा था कि देखते ही रहो राजीव बगल मे खड़े थे उनके पास मे होने से ही एक अजब सा अहसास बदन मे सिहरन भी थी और बदन दहक भी रहा था. उन्होने मुझसे कहा कि, "तुम्हे किताबो का शौक है चलो तुम्हे लाइब्ररी दिखा के लाते है". मम्मी और भाभी बोली कि, "तुम लोग देख आओ हम लोग यही बैठते है". लाइब्ररी बेसमेंट मे थी. उतरते हुए मे थोड़ा लड़खड़ाई और राजीव ने कस के पकड़ लिया. मेरे पूरे बदन मे एक सिहरन सी दौड़ गयी.
अंदर चारो ओर किताबे ही किताबे, नॉवेल, आर्ट कविता हर तरह की किताबे . लौट ते हुए मेने देखा कि काउंटर पे एक खूब गोरी पर्वत बाला, गोरे बल्कि दहक्ते गाल. दो तीन प्रोबेशनेर उससे लसे हुए थे.
मेने हंस के कहा, " इस किताब के पढ़ने वाले भी काफ़ी लगते है."
" हाँ काफ़ी लंबी लिस्ट है". हंस के वो बोले.
" कही आप का नंबर तो इस की वेटिंग लिस्ट मे तो नही" मेने छेड़ा.
" यूह्यूम, मेरी किताब मुझे मिल गयी है" हंस के मुझे देख के वो बोले. एक अजब सी शरारत भरी चमक उनकी आँखो मे थी.
मे झट से दौड़ के सीढ़ियो से उपर चढ़ गयी, खिलखिलाती, हँसती, जैसे बादलो को हटा के कच्ची धूप नीचे आँगन मे उतर आई. लाउंज से फिर वो हम लोगो को हॉस्टिल, ऑडिटोरियम हर जगह ले गये. चारो ओर पाइन के पेड़, हरियाली और खरगोश, तैरते बादल के टुकड़े. पूरी पहाड़ी उतर के हम लोग हॉस्टिल तक पहुँचे. वही पर एक बड़ा सा मैदान था जिसमे हॉर्स राइडिंग के लिए लड़के लड़किया जा रहे थे. एक पगडंडी के रास्ते से हम लोग उपर आए. दूर कुछ झोपडे से दिख रहे थे. मेने पूछा और वहाँ क्या मिलता है.
हल्के से वो बोले, " वहाँ तिब्बती छन्ग मिलती है"
" अपने कभी पिया क्या" भाभी ने चिड़ाया.
" कोई मिला नही पिलाने वाला"
" वाला या वाली" भाभी कहाँ चुप रहने वाली थी
" वही समझ लीजिए" भाभी ने मेरे कान मे कहा कि मे उन्हे रात मे रुकने के लिए पटा लू. मे कैसे कहती, अजब पशोपश मे थी. लेकिन जब वो गेट पे हम लोगो को छोड़ रहे थे तो उन्होने बोला कि उनकी कोई ऑफिसर्स क्लब की मीटिंग है जिसके वो सेक्रेटरी है इसलिए वो थोड़ी देर से आएँगे. मे बोल पड़ी कि रात को हम लोगो के साथ रुकिएगा तो हम लोग बाते करेंगे और फिर कल हम लोगो को केमप्टी फाल भी चलना है. वो एक पल तो मुझे देखते रहे और फिर मुस्करा के बोले ठीक है.
भाभी रास्ते भर मुझे चिढ़ाती रही. लेकिन होटेल पहुँचते ही मम्मी पे फिर वही परेशानी का दौरा पड़ गया. पता नही उन्हे मे पसंद आई कि नही, और फिर उसने अपने घर वालो को क्या बताया.
भाभी लाख कहती रही लेकिन वो नही मानी. आख़िर भाभी नीचे होटेल मे गयी उनकी भाभी को फोन करने. तय ये हुआ था कि हम लोगो से मिलने के बाद उनकी भाभी उनसे फोन कर के हम लोगो को बताएगी कि क्या हुआ. मम्मी एक दम साँसे बाँधे इंतजार करती रही.
भाभी लौट के आई तो बस मुस्करा रही थी. उनकी आँखों मे खुशी नाच रही थी. बस उन्होने कस के मुझे बाहों मे भर लिया और लगी चूमने गालों पे, होंठों पे. और फिर कस कस के मेरे उभार दबाती मसल के बोली, अब इनको दबाने रगड़ने का पूरा इंतेजाम हो गया. भाभी इतने पे भी नही रुकी और उन का एक हाथ सीधे मेरी शलवार के उपर से जाँघो के बीच जा के 'वहाँ' भीच लिया और वो हंस के कहने लगी "और इस बुलबुल के चारे का भी."
उन्होने इस बात का ध्यान भी नही किया कि मम्मी बगल मे खड़ी है. "अरे मुझे तो बताओ क्या हुआ क्या कहा", मम्मी बेसबर हो के बोली.
अब भाभी ने मुझे छोड़ के मम्मी को पकड़ लिया और बोली, " बधाई हो, लड़के ने हां कर दी और वो शादी के लिए जल्दी भी कर रहा है. उसे ये पसंद ही नही बल्कि उसकी भाभी तो कह रही थी कि फिदा हो गया है".
मम्मी ने खुश हो के तुरंत मेरी बालाएँ ली. सारे पीर, देव याद किए और खुशी मे मुझे अपनी बाहों मे भर लिया. मेरे माथे, गाल पे कस के चूमने लगी. फिर भाभी से कहा ज़रा पता करो आस पास कोई मंदिर हो तो अभी दर्शन कर आए. हम सब बाहर निकले और मम्मी ने होटेल से ही पापा को, दादी को सबको ये खुश खबरी दी. दादी से तो उन्होने ये भी कहा कि ये ईश्वर की कृपा है कि दादी ने ऐसी बात कही और इतनी जल्दी इतने अच्छा लड़का मिल गया. राजीव की तारीफ करके वो अगा नही रही थी.
मंदिर से लौट के भाभी फिर चालू हो गयी. मम्मी से, वो मुझे चिढ़ाते हुए बोली, " कुंडली कैसी मिली थी और वो शुक्र"
" अरे चौदह गुण मिले थे और शुक्र भी काफ़ी उँचे घर मे था." मम्मी भी मुस्करा रही थी.
" अरे तब तो तेरी अच्छी मुसीबत होगी, रोज कस के रगड़ाई करेगा वो." मेरे गालो पे कस के चिकोटी काट के भाभी ने छेड़ा.
" धत्त" मे शर्मा गयी. मे बार बार दरवाजे की ओर देख रही थी. भाभी ने मेरी चोरी पकड़ ली.
" अरे किस बात का इंतजार हो रहा है उसके आने का या साथ साथ सोने का."
भाभी मुस्करा के बोली " आप ही सोइएगा साथ" मे मूह फूला के बोली.
" अरे सोने के लिए तुमने बुलाया है तो तुम्हे ही साथ सोने होगा. और फिर घबराती क्यो हो कुछ दिनो की ही तो बात है, शादी के बाद तो साथ सोना ही होगा और सोना क्यों वोना भी होगा." भाभी ने जिस तरह से मूह बनाया हम सब को मालूम हो गया कि वो क्या कह रही थी."
मेने शर्मा के सिर नीचे कर लिया. भाभी तो इस से भी ज़्यादा बोलती थी, पर मम्मी के सामने.. इस तरह. भाभी फिर चालू हो गयी, " अरी बिन्नो, मन मन भावे मूड हिलावे मन तो कर रहा होगा कि कितनी जल्दी मिले और गपक कर लू. वैसे एक मिनिट नही छोड़ेगा तुझे. चढ़ा रहेगा.. शरमाती क्यो है शादी तो होती इसीलिए है."
" मम्मी, देखिए भाभी को बहोत तंग कर रही है. " मेने शिकायत लगाई. मम्मी की हँसी दब नही पा रही थी. वो कमरे मे जा रही थी वही दरवाजे पे ठहर के, भाभी का ही साथ लेती, बोली, " अर्रे ठीक तो कह रही है वो, क्या ग़लत कह रही है..और अगर मेरी ननद होती ना तो मे सिर्फ़ बात से थोड़े ही छोड़ती" अब क्या था भाभी को तो और छूट मिल गयी.
वो मेरी ओर बढ़ी और खुल के बोली, " ननद रानी, अभी नखरे दिखा रही हो. सुहाग रात की अगली सुबह पूछूंगी कितनी बार चुदवाया कितनी बार मूसल घोंटा. चलो ज़रा अभी चेक वेक्क कर लू तुम्हारी सोन चिड़िया"
मे बच के थोड़ा दूर हट गयी और तकिया खींच के भाभी को मारा. भाभी तो बगल हट के बच गयी पर तकिया कॅच हो गया. राजीव उसी समय दरवाजे के अंदर से घुसे थे और वो उनके उपर पड़ा. उन्होने झटक से कॅच कर लिया. " कॅच करने मे बड़े एक्सपर्ट हैं आप." मे बात बनाने के लिए बोली.
" और क्या, तभी तो तुम्हे कॅच कर लिया." भाभी कहाँ चुप रहने वाली थी.
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