RE: Kamukta Story बदला
"हां..",चंद्रा साहब का लंड जिस तेज़ी से कामिनी की चूत की दीवारो को
रगड़ रहा था उसी तेज़ी से उनका दिमाग़ भी दौड़ रहा था.
"कामिनी..ज़रूर वो दवा गड़बड़ थी..",झुक के उन्होने उसकी पीठ चूमि & फिर
अपने दाए हाथ से उसकी मोटी चूचिया मसल्ने लगे.कामिनी की चूत का तनाव
बढ़ने से वो उनके लंड पे और कस गयी थी & उनके आंडो मे अब मीठा दर्द होने
लगा था.उनकी रफ़्तार बढ़ गयी थी & कामिनी ने तकिये को बहुत ज़ोर से पकड़
लिया था & उनके साथ-2 झड़ने को तैय्यार हो रही थी.
"मगर किसने की होगी दवा से छेड़ खानी?",चंद्रा साहब अब उसकी पीठ पे सो
गये थे & दोनो की ज़ुबाने आपस मे गुत्थम-गुत्था थी.
"उउंम्म...उऊन्ह....!",कुच्छ देर को कामिनी सब भूल गयी बस ये याद रहा की
उसके जिस्म के रोम-रोम मे बिजली दौड़ रही है & वो बस खुशी की कगार पे है.
"शायद उसकी बिवीयीयियी..आहह...!",कामिनी झाड़ रही थी & उसकी चूत की दिलकश
हर्कतो ने चंद्रा साहब को भी बेकाबू कर दिया.उनकी कमर झटके खा रही थी &
वो कामिनी के दाए कान मे जीभ फिराते हुए उसकी चूत को अपने गाढ़े पानी से
भर रहे थे.
"नही,देविका मुझे ग़लत नही लगती.",कामिनी ने थोड़ी देर बाद करवट ली &
उनके लंड को अपनी चूत से बाहर करते हुए उन्हे लिटा दिया & उनके सीने पे
सर रख उन्हे देखने लगी,"..वरना वो मुझे दवा खरीदने की सही तारीख क्यू
बताती & अगर वो ग़लत है तो दवा की डिबिया तो वाहा होती ही नही.",बड़ी
धीमी आवाज़ मे बोलते हुए वो उनके सीने से उठी & अपने कपड़े ढूँडने लगी.
"बात तो सही है तुम्हारी."पर्दे के कोने से आती रोशनी मे चंद्रा साहब उसे
कपड़े पहनते देख रहे थे,"..और कौन-2 है उस घर मे?",कामिनी ने सबके बारे
मे बताया तो उन्होने उसे फिर से अपने पास खींच लिया.
"ये शिवा कैसा आदमी है?",वो उसकी कमर सहला रहे थे & कामिनी उनका सीना.
"सहाय साहब का बहुत भरोसेमंद था."
"कयि बार भरोसेमंद ही भरोसा तोड़ते हैं.",दोनो 1 दूसरे को चूमने लगे.
"तो मैं उसपे नज़र रखू?",कयि पॅलो के बाद जब दोनो के लब जुदा हुए तो
कामिनी उठ खड़ी हुई.
"हां & ये भी पता करो की इधर कोई नया आदमी तो नही आया है एस्टेट
मे."चंद्रा साहब ने भी अपना पाजामा उठाके उसमे पैर डाले.
"मुझे तुम्हारी बात से ऐसा लगता है,कामिनी,की ये मामला अभी नही तो आगे
जाके उलझ सकता है.तुम उनकी वकील हो इसलिए तुम्हारा सावधान & चौक्कन्ना
रहना बहुत ज़रूरी है.देविका & वीरेन-दोनो मे से किसी को खुद का फयडा
उठाने नही देना & जो भी सलाह देना बहुत सोच-समझ के देना.दवा के साथ
छेड़-खानी का मतलब है की सुरेन सहाय को मारा गया है."
"तो क्या मैं ये बात पोलीस को बता दू?"
"नही.देखो,अगर कोई सहाय परिवार का बुरा चाहना वाला है तो उसने अपने मक़सद
मे कामयाबी तो पा ली है मगर वो बहुत शातिर है & उसने अपने निशान च्छुपाए
हुए हैं.अब अगर उसे ये गुमान हो जाए की उसकी इस हरकत पे किसी को शक़ नही
हुआ है तो बहुत मुमकिन है की वो थोडा लापरवाह हो जाए & तुम्हारी नज़रो मे
आ जाए.",वो अपनी शिष्या के पास आ खड़े हुए तो उसने अपनी बाहे उनके गले मे
डाल दी & उन्हे चूमने लगे.
थोड़ी देर बाद कामिनी फिर से अपने गुरु की बेख़बर बीवी के बगल मे सोई हुई
थी.चंद्रा साहब की बातो ने उसके दिमाग़ मे उथल-पुथल मचा दी थी.उसे 1 बार
फिर से वीरेन के इरादो पे शक़ होने लगा था..क्या वो सचमुच उसकी खूबसूरती
पे मर-मिटा था या फिर कोई और बात थी मगर वो तो एस्टेट मे रहता ही नही था
फिर दवा वो कैसे बदल सकता है?..उसनेकारवत बदली..चलो मान लिया की उसने भाई
को नही मारा मगर उसका & देविका का रिश्ता कुच्छ ठीक नही लगता..दोनो आम
देवर-भाभी की तरह 1 दूसरे से नही पेश आते थे & अगर दोनो की नही बनती थी
तो कही वो उस से नज़दीकी का फयडा देविका से लड़ने मे ना उठाना चाहे..ठीक
कहा था चंद्रा साहब ने उसे बहुत सावधान रहना था.
उसने आँखे बंद की & सारे ख़यालो को दिल से निकाला..जो भी होगा वो उस से
निपट लेगी....इतना भरोसा था उसे खुद पे....दिन भर के काम की थकान &
चंद्रा साहब की चुदाई ने असर दिखाया & वो भी नींद के आगोश मे चली गयी.
"जब मैने ये मनहूस खबर सुनी तो मुझे तो यकीन ही नही हुआ..",शाम लाल जी
सहाय परिवार के बंगल के ड्रॉयिंग रूम मे बैठे देविका से अफ़सोस ज़ाहिर कर
रहे थे.उनके पीछे की दीवार पे वीरेन का बनाया सुरेन सहाय का पोर्ट्रेट था
जिसपे फूलो का हार डाला था,"..मुझे माफ़ कीजिएगा मे'म की मैं पहले नही आ
सका पर मजबूरी थी.दूरी ही इतनी है दोनो जगहो मे."
"प्लीज़,शाम लाल जी.ऐसी बाते करके आप मुझे शर्मिंदा कर रहे हैं."
"मैं तो यहा पहले ही आनेवाला था,आपसे 1 ज़रूरी बात करनी थी मगर अब इस समय
आपसे वो बात करना ठीक नही लगता."
"कैसी बात,शाम लाल जी?"
"जी..वो..आपने प्रसून बेटे के बारे मे कुच्छ कहा था."
"हां-2,उसकी शादी के लिए.बोलिए शाम लाल जी क्या बात करनी थी उस बारे मे
आपको.",देविका ने आतूरता से कहा.लग रहा था जैसे बेटे के आनेवाले कल की
बात ने उसे उसका अभी का गम कुच्छ पल के लिए भुला दिया था.
"1 लड़की मिली तो है."
"अच्छा!कौन है बताइए?..कहा की है?..उसके परिवार मे और कौन-2 हैं?",देविका
ने सवालो की झड़ी लगा दी.
"वो पंचमहल मे रहती है.पढ़ी-लिखी है & इस वक़्त वही 1 कंपनी मे नौकरी
करती है.परिवार के नाम पे बस 1 बड़ा भाई है.लड़की देखने मे भी खूबसूरत है
मगर जिस बात ने मुझे उसे अपने प्रसून बेटे के लायक समझा है वो है दोनो
भाई-बेहन की शराफ़त.."
"मॅ'म,उसके पिता मेरे कॉलेज के दोस्त थे.ज़िंदगी की आपा-धापी मे हम दोनो
का संपर्क टूट गया था.अभी कुच्छ दिन पहले ही मुझे खबर मिली को वो अब नही
रहा.पता चलते ही मैं उसके घर पहुँचा तो वही इस लड़की को देखा & मुझे लगा
की वो आपके परिवार के लिए बिल्कुल सही रहेगी."
"लड़की की मा तो होंगी?"
"नही,उनका इंतेक़ाल तो पहले ही हो गया था."
"तो आपने उसके भाई से कुच्छ बात की है इस बारे मे?"
"जी हां.मैने तो सॉफ-2 बात की है दोनो भाई-बेहन से & खुशी की बात या है
की दोनो तैय्यार हैं."
"क्या?!"
"जी,हां मॅ'म.लड़की का कहना था की उसे दुख नही बल्कि खुशी होगी की वो
प्रसून जैसे इंसान की हमसफर बनेगी."
"प्रसून जैसे..!क्या मतलब?",कामिनी के माथे पे बल पड़ गये थे.
"ठीक यही सवाल मैने भी किया था,मॅ'म ओर उसने कहा की इसका जवाब वो सीधा
आपको ही देगी."
"अच्छा..",देविका सोच मे पड़ गयी..लड़की मे कुच्छ बात तो थी मगर आज के
ज़माने मे इस तरह से इतनी जल्दी कोई प्रसून जैसे मंदबुद्धि से शादी को
तैय्यार हो जाए..बात कुच्छ खटक रही थी..लेकिन अब इस शुबहे को तो उस से
मिल के ही दूर किया जा सकता है..फिर शिवा तो है ही जाँच-पड़ताल करने के
लिए....",..शाम लाल जी.."
"जी,मॅ'म."
"मैं जल्द ही उस लड़की से मिलना चाहूँगी."
"आप जब कहिए मिलवा दूँगा,मॅ'म."
"ठीक है.इस शनिवार को ही ये काम करते हैं."
"ठीक है,मॅ'म.",शाम लाल जी हाथ जोड़ते हुए उठ खड़े हुए.
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क्रमशः...................
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