RE: Hindi Sex Kahaniya काँच की हवेली
शांता ने लाख प्रयास किए कि वह अपने दिमाग़ में आते बिरजू के विचारों को झटक दे. पर बिरजू उसके मस्तिष्क पर हावी होता जा रहा था.
शांता ने अपनी भारी होती पलकों को खोलकर सुंदरी पर निगाह डाली. वो हौले हौले मुस्कुरा रही थी.
"क्या हुआ बहिन, तू एकदम से चुप क्यों हो गयी." सुंदरी शांता के चेहरे पर बदलते भाव को देखती हुई बोली.
"कुच्छ नही भाभी." शांता धीरे से बोली और काँपते पैरों से नदी की ओर बढ़ गयी.
सुंदरी भी उसके बराबर चलती हुई नदी की ओर बढ़ती रही. कुच्छ ही देर में दोनो नदी पहुँच गयी. रास्ते भर सुंदरी शांता से उसी संबंध में बाते करती रही, और उसके सोए अरमान जगाती रही. किंतु नदी तक पहुँचते ही उसे चुप हो जाना पड़ा. क्योंकि नदी में पहले से कुच्छ औरतें मौजूद थी. और वो नही चाहती थी कि उसकी बातें कोई और भी सुने.
सुंदरी तो चुप हो गयी पर शांता के दिल में तूफान जगा गयी. जिस आग को शांता 10 सालों से दबा रखी थी, आज उसे सुंदरी ने हवा दे दी थी. शांता का मन अशांत हो चुका था. वो नहाते वक़्त भी सुंदरी की बातों पर विचार करती रही.
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ठाकुर जगत सिंग अपने कमरे में बैठे दीवान जी की राह देख रहे थे. उन्होने 5 मिनिट पहले मंगलू को उनके निवास पर बुलाने हेतु भेजा था. उनके चेहरे से बेचैनी झलक रही थी पर चिंता नाम मात्र की भी नही थी. वो कुर्सी से उठे और सिगार जलाकर खिड़की के पास खड़े हो गये और बाहर का नज़ारा देखने लगे.
उन्होने अभी सिगार का एक लंबा कस लिया ही था कि दरवाज़े से दीवान जी अंदर परविष्ट हुए. कदमों की आहट से ठाकुर साहब पलटे. दीवान जी पर नज़र पड़ी तो वापस अपनी कुर्सी पर आकर बैठ गये.
दीवान जी अभी भी खड़े थे. ठाकुर साहब के कुर्सी पर बैठते ही दीवान जी उनसे बोले - "कोई चिंता सरकार?"
"नही दीवान जी. ईश्वर की कृपा से जब से रवि आया है तब से सब कुच्छ ठीक होता रहा है. हम एक अच्छे और महत्वपूर्ण विषय पर आपके साथ बात करना चाहते हैं."
दीवान जी खड़े खड़े सवालिया नज़रों से ठाकुर साहब को देखते रहे. उनके समझ में कुच्छ भी ना आया था.
"आप बैठ जाइए." ठाकुर साहब दीवान जी को कुर्सी की ओर इशारा करके बैठने को बोले.
दीवान जी पास पड़ी कुर्सी को अपनी ओर खींचकर बैठ गये. - "आगे बोलिए सरकार. मेरे लायक जो भी सेवा हो आदेश दीजिए."
"आदेश नही दीवान जी हम आपकी राई जान'ना चाहते हैं." ठाकुर साहब सिगार का अंतिम कश लेकर उसे स्ट्रॉ में बुझाते हुए बोले - "आपको रवि कैसा लगता है?"
"रवि." दीवान जी चौंककर बोले - "आप किस संबंध में पुच्छ रहे हैं?"
"निक्की के संबंध में." ठाकुर साहब अपने मन की बात दीवान जी के सामने प्रकट किए - "हमारी निक्की के लिए रवि कैसा रहेगा? हमें उसके घर संपाति से कोई लेना देना नही, वो डॉक्टर है और अच्छे विचार रखता है. हमारे लिए यही काफ़ी है."
"सरकार, आप तो मेरे मन की बात ताड़ गये." दीवान जी खुशी से चहक कर बोले - "मुझे तो रवि उसी दिन भा गया था जब मैं उनसे देल्ही में मिला था. निकी और रवि की जोड़ी तो लाखों में एक रहेगी. बिल्कुल देर ना करें. आज ही इस संबंध में रवि से बात कर लें."
"ठीक है आज शाम को ही रवि और निक्की को बिठाकर दोनो की मर्ज़ी जान लेते हैं." ठाकुर साहब फिर से सिगार की तरफ हाथ बढ़ाते हुए बोले.
"जो आग्या." दीवान जी उठते हुए बोले.
फिर ठाकुर साहब से इज़ाज़त लेकर दरवाज़े बाहर निकले. दरवाज़े से बाहर कदम रखते ही उनकी नज़र निक्की से टकराई. वो दरवाज़े के बाहर खड़ी दीवान जी और ठाकुर साहब की बातें सुन रही थी.
वो किसी काम से ठाकुर साहब के पास आ रही थी जब दरवाज़े के बाहर से अपने और रवि के संबंध में ठाकुर साहब के मूह से कुच्छ कहते सुनकर दरवाज़े के बाहर ठिठक गयी थी. फिर कुच्छ देर उसी अवस्था में रहकर उसने सारी बातें सुन ली थी. अब जब दीवान जी ने उसे खड़े देख लिया था तो वो एकदम से शर्मा गयी और तेज़ी से अपने कमरे की ओर भाग गयी.
दीवान जी को ये समझते देर नही लगी कि निक्की इस रिश्ते के लिए राज़ी है. वो मुस्कुराते हुए अपने रास्ते बढ़ गये.
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निक्की सीधा अपने कमरे में आकर बिस्तर पर गिरी. फिर एक लंबी साँस छोड़ने के बाद अपने पापा और दीवान जी के मूह से सुनी बातें याद करने लगी. वो खुश थी, लेकिन उसे ये समझ में नही आ रहा था कि वो खुश क्यों है? जिस इंसान से वो अपने तिरस्कार का बदला लेना चाहती थी उसी इंसान के साथ अपने विवाह की बात सुनकर उसका मन इतना प्रसन्न क्यो हो रहा है? वह तो रवि को नीचा दिखाना चाहती थी, फिर आज क्यों उसे अपनी माँग में सजाने की सोच रही है? शायद ये रवि की अच्छाई थी जिसने निक्की के मन से सारा मैल निकाल दिया था. निक्की का मन ये जान चुका था कि रवि लाखों में एक है. जो इंसान उसके नग्न शरीर को त्याग दे वो कोई साधारण इंसान हो ही नही सकता. रवि की यही अच्छाई उसकी खुशी का कारण था. वो इस बात से आनंद महसूस कर रही थी कि रवि जैसा सभ्य पुरुष उसका पति होने वाला है.
निक्की अपने ख्यालो में रवि को बसा कर मन ही मन मुस्कुराइ फिर मन में बोली - "अब कहो मिस्टर रवि, अब मुझसे भाग कर कहाँ जाओगे? अब ऐसे बंधन में बाँधने वाली हूँ कि ज़िंदगी भर मेरे साथ रहना पड़ेगा. फिर देखना कैसे बदला लेती हूँ तुमसे. बहुत सताया है तुमने मुझे.....अब मैं सताउन्गि तुम्हे."
अगले ही पल उसके मन में विचार आया क्यों ना वो अभी उसके कमरे में जाकर उसे इस रिश्ते की बात बताए. उसे छेड़ उसे परेशान करें.
वो मुस्कुराती हुई उठी और अपने कमरे से बाहर निकल गयी. फिर अपने कददम रवि के कमरे की तरफ बढ़ाती चली गयी. कुच्छ ही देर में वो रवि के कमरे के बाहर खड़ी थी. अभी वो दरवाज़े पर दस्तक देना ही चाहती थी की उसकी नज़र दरवाज़े की कुण्डी पर गयी जो बाहर से बंद थी.
दरवाज़ा बंद देख निक्की के माथे पर शिकन उभरी. उसने अपनी घड़ी में समय देखा. इस वक़्त 5 बजे थे. वो कुच्छ देर खड़ी सोचती रही फिर सीढ़ियों से उतरती हुई हॉल में आई. उसने एक नौकर से रवि के बारे में पुछा तो पता चला कि वो अपनी बाइक से कहीं गया हुआ है.
निक्की सोच में पड़ गयी. कुच्छ दिनो से वह नोटीस कर रही थी कि रवि शाम को अक्सर हवेली से बाहर जाने लगा है. लेकिन वो कहाँ जाता था क्यों जाता था इस बात को जानने का प्रयास उसने कभी नही किया था. पर जाने क्यूँ आज उसके मन में एक अंजानी सी शंका घर करती जा रही थी.
वह बेचैनी से हॉल में टहलती हुई एक ही बात सोचती जा रही थी - 'कहीं रवि का किसी लड़की के साथ कोई चक्कर तो नही चल रहा है? लेकिन उसे ऐसा करने की ज़रूरत ही क्या है. अगर वो सच में औरत की कमी महसूस करता होता तो वो मेरे पास आता. मैं तो उसके लिए हर घड़ी उपलब्ध थी. मुझे ठुकराकर उसे कहीं और भटकने की ज़रूरत क्या है?
"कुच्छ भी हो सकता है निक्की." उसके मन ने धीरे से सरगोशी की - "मिज़ाज़ और मौसम के बदलते देर नही लगती. तू इस तरह आँख मुन्दे पड़ी रहेगी तो ऐसा ना हो कि पक्षी दाना कहीं और चुग जाए. तुम्हे सच्चाई का पता लगाना ही होगा कि वो शाम को कहाँ जाता है? कहीं ऐसा ना हो कि वो तेरे सामने साधु का ढोंग करता हो और बाहर भँवरा बनकर गाओं के फूलों का रस चूस्ता फिरता हो."
इस विचार के साथ ही निक्की का चेहरा सख़्त हो उठा. वह तेज़ी से हवेली से बाहर निकली. फिर अपनी जीप में बैठ कर जीप को घाटियों की ओर भागती चली गयी.
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