RE: Hindi Sex Kahaniya काँच की हवेली
अपडेट 7
रवि और निक्की, राधा देवी के कमरे से बाहर निकले.
बाहर ठाकुर साहब के साथ साथ सभी लोग छुप छुप कर कमरे के अंदर का द्रिश्य देख रहे थे. ठाकुर साहब तो इतने भावुक हो गये थे कि बड़ी मुश्किल से अपनी रुलाई रोक पाए थे.
रवि के बाहर आते ही ठाकुर साहब बोले - "डॉक्टर रवि, आपको क्या लगता है हमारी राधा ठीक तो हो जाएगी ना?. पिच्छले 20 सालो में ऐसा पहली बार हुआ है जब हमारी राधा ने इतनी देर तक किसी से बात की हो. आपको देखकर मेरी उम्मीदे बढ़ चली है. बताइए डॉक्टर....राधा कब तक ठीक हो पाएगी."
"धीरज रखिए ठाकुर साहब. ईश्वर ने चाहा तो 1 महीने में या ज़्यादा से आयादा 3 महीने, राधा जी बिल्कुल ठीक हो जाएँगी."
"धीरज कैसे रखू डॉक्टर? 20 साल से मैं जिस यातना को झेल रहा हूँ, वो सिर्फ़ मैं जानता हूँ. मेरी पत्नी 20 साल से कमरे के अंदर क़ैदी की तरह बंद है. इतना धन दौलत होने के बावजूद हमारी राधा को कष्ट से जीना पड़ रहा है. ना उसे खाने की सूध है ना पहनने का, उससे अच्छी ज़िंदगी तो हमारे घर के नौकर जी रहे हैं. 20 सालों से वो पागलों की ज़िंदगी जी रही है. मुझसे उसका दुख देखा नही जाता डॉक्टर." ठाकुर साहब अपनी बात पूरी करते करते बच्चों की तरह फफक पड़े.
"संभालिए ठाकुर साहब.....खुद को संभालिए." रवि उनके कंधो को पकड़कर बोला - "मैं आपसे वादा करता हूँ कि मैं उन्हे जब तक पूरी तरह से ठीक नही कर दूँगा. मैं यहाँ से नही जाउन्गा." रवि बिस्वास से भरे शब्दों में कहा.
"मुझे आप पर भरोसा है डॉक्टर. मुझे बिस्वास हो चला है कि आप मेरी राधा को ज़रूर ठीक कर देंगे."
रवि मुस्कुराया. फिर दीवान जी से मुखातिब हुआ - "दीवान जी मैं कुच्छ दवाइयाँ और इंजेक्षन लिख देता हूँ, आप उन्हे शहर से मंगवा दीजिए. और मेरे घर से मेरे कपड़े भी मंगवा दीजिएगा."
"मैं अभी किसी को शहर भेज देता हू डॉक्टर बाबू, 2 दिन में आपके कपड़े और दवाइयाँ आ जाएँगी."
"एक बात और आप सब से कहना चाहूँगा" रवि दीवान जी को टोकते हुए बोला - "आज के बाद आप लोग मुझे सिर्फ़ रवि कहकर बुलाएँगे. डॉक्टर रवि या कुच्छ और कहकर नही."
ठाकुर साहब मुस्कुराए. "ठीक है रवि. हम आपको ऐसे ही बुलाया करेंगे.
कुच्छ देर बाद नौकर सभी के लिए चाय नाश्ता ले आया. कुच्छ देर रवि सबके साथ बैठा बाते करता रहा. फिर ठाकुर साहब से इज़ाज़त लेकर अपने रूम में आ गया.
अपनी मा राधा देवी से मिलने के बाद निक्की के मन में जो कड़वाहट रवि के लिए थी वो अब दूर हो चुकी थी. वह अब उसे आदर भाव से देखने लगी थी.
2 दिन बीत गये. रवि के कपड़े भी शहर से आ गये थे. इन दो दिनो में रवि का अधिकांश समय उसके कमरे में ही गुजरा था. वो सिर्फ़ राधा देवी को देखने के लिए ही अपने रूम से बाहर आता था. उसे दीवान जी के कपड़ों में दूसरों के सामने आने में संकोच होता था. अब जब उसके कपड़े आ गये थे तो उसने रायपुर घूमने का निश्चय किया. 2 दिनो से हवेली के भीतर बंद रहने से उसका मन उब सा गया था.
वह कपड़े पहनकर बाहर निकला. इस वक़्त 5 बजे थे. उसने नौकर से अपनी बाइक सॉफ करने को कहा. रायपुर आने से कुच्छ दिन पहले ही वो अपनी बाइक को ट्रांसपोर्ट के ज़रिए रायपुर भिजवा दिया था. और जब वो रायपुर स्टेशन में उतरा तो मालघर से अपनी बाइक को ले लिया था.
आज उसने बाइक से ही रायपुर की सैर करने का विचार किया. नौकर उसकी बाइक सॉफ कर चुका था. रवि बाइक पर बैठा और हवेली की चार दीवारी से बाहर निकला. हवेली की सीमा से निकलते ही रवि को दो रास्ते दिखाई दिए. उनमे से एक रास्ता स्टेशन की ओर जाता था. तथा दूसरा रास्ता बस्ती. उसने बाइक बस्ती की ओर मोडी. वो रास्ता काफ़ी ढलान लिए हुए था. बस्ती के मुक़ाबले हवेली काफ़ी उँचाई में स्थित थी. हवेली की छत से पूरा रायपुर देखा जा सकता था.
कुच्छ दूर चलने के बाद वो रास्ता भी दो रास्तों में बदल गया था. रवि ने बाइक रोकी और खड़े खड़े अपनी नज़रें दोनो रास्तों पर दौड़ाई. बाईं और का रास्ता बस्ती को जाता था. बस्ती ज़्यादा दूर नही थी. लेकिन काफ़ी बड़ी आबादी लिए हुए थी. बस्ती का अंत जहाँ पर होता था उसके आगे खेत और जंगल का भाग शुरू होता था. दूसरा रास्ता पहड़ियों की ओर जाता था. उस ओर उँचे उँचे पहाड़ और गहरी घटियाँ थी. रवि ने दाई और के रास्ते पर बाइक मोड़ दी.
कुच्छ ही देर में रवि को झरनो से गिरते पानी का संगीत सुनाई देने लगा. कुच्छ दूर और आगे जाने पर उसे एक बहती नदी दिखाई पड़ी. उसमे कुच्छ लड़कियाँ आधे अधूरे कपड़ों में लिपटी नदी में तैरती दिखाई दी. उसने बाइक रोकी और दूर से ही उन रंग बिरंगी तितलियों को देखने लगा. अचानक उसकी आँखें चमकी, उन लड़कियों के साथ उसे वो लड़की भी दिखाई दी जिसने हवेली में उसके कपड़े जलाए थे. लेकिन इतनी दूर से उसे पहचानने में धोका भी हो सकता था. उसने उसे नज़दीक से देखना उचित समझा. वह बाइक से उतरा और पैदल ही नदी की तरफ बढ़ गया.
नदी के किनारे पहुँचकर वह ठितका. उसने खुद को झाड़ियों की औट में छिपाया. यहाँ से वो उन लड़कियों को सॉफ सॉफ देख सकता था. उसने हवेली वाली लड़की को सॉफ पहचान लिया. वो पीले रंग की पेटिकोट में थी. उसकी आधी छाया स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी. उसका पानी से भीगा गोरा बदन सूर्य की रोशनी से चमक रहा था. रवि की नज़रें उस लड़की की सुंदरता में चिपक सी गयी. वो खड़े खड़े उन अर्धनग्न लड़कियों के सौन्दर्य का रस्पान करता रहा.
अचानक किसी की आवाज़ से वह चौंका. रवि आवाज़ की दिशा में पलटा. सामने एक बच्चा हैरानी से उसे देख रहा था. वो बच्चा ही सही पर इस तरह अपनी चोरी पकड़े जाने पर एक पल के लिए रवि काँप सा गया. फिर खुद को संभालते हुए बच्चे से बोला - "क्या नाम है तुम्हारा?"
"चिंटू" बच्चे ने उँची आवाज़ में बोला - "और तुम्हारा क्या नाम है?"
उसकी तेज आवाज़ से रवि बोखलाया. उसने झट से अपना पर्स निकाला और उसमे से 10 का नोट निकालकर चिंटू को पकड़ा दिया. नोट हाथ में आते ही चिंटू हंसा.
"क्या तुम मुझसे और पैसे लेना चाहते हो?" रवि ने घुटनो के बल बैठते हुए कहा.
"हां...!" बच्चे ने सहमति में सर हिलाया.
"तो फिर मैं तुमसे जो कुच्छ भी पुछुन्गा, क्या तुम मुझे सच सच बताओगे?" उसने वापस अपना पर्स निकालते हुए बच्चे से कहा.
चिंटू ने रवि का पर्स देखा और फिर अपने होठों पर जीभ घुमाई. - "हां."
"ठीक है तो फिर उस लड़की को देखो जो पीले रंग की पेटिकोट पहनी हुई है." रवि ने अपनी उंगली का इशारा कंचन की और किया - "क्या तुम उसे जानते हो?"
"हां." बच्चे ने गर्दन हिलाई.
"क्या नाम है उसका?" रवि ने पुछा.
"पहले पैसे दो. फिर बताउन्गा." बच्चा शातिर था. रवि ने 10 का नोट उसकी और बढ़ाया.
"वो मेरी कंचन दीदी है." बच्चा 10 का नोट अपनी जेब में रखता हुआ बोला.
"तुम्हारी कंचन दीदी?" रवि उसके शब्दों को दोहराया.
"हां. लेकिन तुम उनका नाम क्यों पुच्छ रहे थे?" बच्चे ने उल्टा प्रश्न किया.
"बस ऐसे ही, मॅन में आया तो पुच्छ लिया. जैसे तुमने पुछा."
चिंटू ने अजीब सी नज़रों से उसे देखा.
"अच्छा चिंटू, अब एक काम और करोगे?"
"पैसे मिलेंगे?" चिंटू ने वापस अपने होठों पर जीभ घुमाई.
रवि ने वापस 10 का नोट उसे थमाया. - "तुम अपनी दीदी के कपड़े मुझे लाकर दे सकते हो?"
"दीदी के कपड़े, नही.....दीदी मारेगी." चिंटू डरते हुए बोला.
"तो फिर मेरे सारे पैसे वापस करो." रवि ने अपनी आँखें दिखाई.
चिंटू कुच्छ देर अपनी मुट्ठी में बँधे नोट को देखता रहा और सोचता रहा. फिर बोला - "तुम दीदी के कपड़ों का क्या करोगे?"
"कुच्छ नही....बस हाथ में लेकर देखना चाहता हूँ कि तुम्हारी दीदी के कपड़े कैसे हैं."
चिंटू कुच्छ देर खड़ा रहा. उसके मन में एक तरफ रुपयों का लालच था तो दूसरी तरफ दीदी की डाँट का ख्याल. आख़िरकार उसने रुपयों को जेब में रखा और कपड़ों की तरफ बढ़ा. दूसरे मिनिट में वो कंचन के कपड़े लेकर वापस आया. रवि ने उसके हाथ से कपड़े लिए और बोला - "चिंटू महाराज, अब अगर तुम चाहते हो कि तुम्हारी दीदी तुम्हारी पिटाई ना करे, तो फिर यहाँ से खिस्को."
चिंटू सहमा. उसने भय से काँपते हुए रवि को देखा. - "अब तुम दीदी के कपड़े वापस दो."
"मैं ये कपड़े तुम्हारी दीदी के ही हाथों में दूँगा."
"लेकिन दीदी मुझे मारेगी." वह डरते हुए बोला. उसका चेहरा डर से पीला पड़ गया था.
"तुम्हारी दीदी को बताएगा कौन कि तुमने उसके कपड़े मुझे दिए हैं." रवि ने उसका भय दूर किया - "जब तुम यहाँ रहोगे ही नही तो वो तुम्हे मारेगी कैसे?"
"लेकिन तुम दीदी को मत बताना कि मैने उनके कपड़े तुम्हे दिए हैं."
"नही बताउन्गा. प्रॉमिस." रवि अपना गला छू कर बोला.
अगले ही पल चिंटू नौ दो ग्यारह हो गया. रवि कंचन के कपड़े हाथों में लिए पास की झाड़ियों में जा छुपा और कंचन के बाहर आने की प्रतीक्षा करने लगा.
क्रमशः.................
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