Biwi Sex Kahani सारिका कंवल की जवानी
07-25-2018, 10:44 AM,
#47
RE: Biwi Sex Kahani सारिका कंवल की जवानी
कुछ दिनों तक हम ऐसे ही बाते करते रहे। हम दोनों सेक्स के मामले में तो पहले ही खुल चुके थे और रात को ज्यादातर सेक्स की ही बातें करते थे।
फिर एक रात बातें करते हुए वो कुछ ही गर्म हो गए और कहने लगे- मैं तुमसे मिलना चाहता हूँ।
मैंने शुरू में सोचा कि हो सकता है जोश में भावुक होकर वो ऐसा कह रहे हों।
पर उन्होंने मुझे कहा- क्या तुम मुझे कैमरे पर देखना चाहोगी अभी?
मैंने पूछा- यह कैसे संभव है?
उन्होंने मुझे एक आईडी भेजी और कहा कि इसे अपने कंप्यूटर पे खोलो।
मैं शुरू में तो हिचकिचाई कि इतनी रात को कंप्यूटर की लाइट जली देख किसी को भी शक हो सकता है तो मैंने मना किया।
फिर थोड़ी देर बाद मैंने खुद ही कंप्यूटर खोल आईडी खोली और उनको बता दिया।
तुरंत बाद मेरे कंप्यूटर पर एक संदेश आया कि इसे खोलो!
मैंने खोला तो देख कर दंग रह गई।
एक 59 साल का आदमी कच्छे और बनियान में बैठा था।
मैंने उनको पहचान तो लिया था पर फोटो में वो जवान दिख रहे थे और यहाँ बूढ़े।
पहले तो मेरी शंका दूर की उन्होंने कि फोटो भी असली थी और ये भी…
और मैंने भी बात मान ली क्योंकि मुझे कौन सी उनसे शादी करनी थी।
हम फिर वही सेक्स की बातें करने लगे और फिर उन्होंने अपना बनियान और कच्चा निकल दिया।
मैं एकदम से चौंक गई कि ‘हे भगवान्… यह आदमी नंगा हो गया।
वो थोड़ा घुटनों के बल बेड पे उठे तो सामने उनका तनतनाया हुआ लंड था करीब सात इंच लम्बा और तीन इन्च मोटा।
लंड की स्थिति देख समझ में आ गया था कि वो बहुत उत्तेजित है, तभी उन्होंने अपने लंड को पकड़ा और ऊपर की चमड़ी को सरका के पीछे कर दी और उनका सुपाड़ा खुल के सामने आ गया।
इस स्तिथि में वो लंड बहुत ही आकर्षक लग रहा था।
यह नजारा देख पता नहीं मेरी चूत में नमी सी होने लगी थी।
तभी उन्होंने कहा- ‘जब से तुम्हारी फोटो देखी है, तब मैं तुम्हें चोदने के सपने देखता हूँ।
उनका जिस्म और उम्र देख कर तो लगता नहीं था कि वो सम्भोग ज्यादा देर कर सकते हैं पर फिर मुझे अपने फूफाजी की बात याद आई।
उस रात उन्होंने हाथ से हिला के मुझे अपना वीर्य भी दिखाया कितना गाढ़ा और सफ़ेद था।
उसे देख मैं भी उत्तेजित सी हो गई थी।
पर मैं सोने चली गई बस उस लंड को सोचते हुए क्योंकि रात काफी हो गई थी।
इसके बाद तो बाते होती रही और लगभग हर बार मुझे मिलने की बात कहते।
उनकी इन बातों से कभी कभी मेरे मन में भी ऐसे ख्याल आते पर यह सब संभव नहीं था, जानती थी सो ज्यादा धयान भी नहीं देती थी।
हम धीरे धीरे इतने घुलमिल गए कि हर 3-4 दिन में मैं उन्हें हस्तमैथुन करने में मदद करती और देखती उनको कंप्यूटर पे अपना रस निकलते हुए।
वो हमेशा तरह तरह की बातें करते मुझसे मुझे बताते कि किस तरह से वो कल्पना करते हैं मुझे चोदने और मैं भी कभी कभी उनकी कल्पनाओं में खो जाती।
फिर एक दिन वो कहने लगे कि हमें मिलना चाहिए और उनकी यह बात अब जिद सी बन गई।
पर मैं न तो अकेली कहीं जा सकती थी और न किसी से अकेली मिल सकती थी तो मेरे लिए मुमकिन नहीं था।
पर मुझे भी अपने अन्दर की वासना कमजोर बना देती पर किसी तरह मैं खुद को काबू करती थी।
तारा मुझसे हमेशा पूछती थी कि कोई मिला या नहीं? पर मैं उसे हमेशा कहती- हाँ, रोज कोई न कोई मिलता है, बातें कर के समय काट लेती हूँ।
पर उधर मेरा वो दोस्त मुझसे मिलने और सम्भोग के लिए इतना उत्सुक हो चुका था कि वो किसी भी हद तक जाने को तैयार था। मुझे वो रोज परेशान करने लगा तब मैंने यह बात तारा को बताई।
तारा ने मुझे पहले तो पूछा कि वो मुझे पसंद है या नहीं?
तो मैंने उसे हाँ कह दिया तब उसने कहा- अगर पसंद है तो मिल लो।
उसने कहा- अगर मिलना चाहती हो तो तय कर लो, बाकी तेरे घर से निकलने और मिलने का इन्तजाम मैं कर दूँगी।
अब ये सब बातें सुन कर तो मैं हैरान हो गई और दोनों से लगभग दो हफ़्ते बात नहीं की।
पर मेरे अन्दर की वासना से मैं ज्यादा दिन बच न सकी और एक दिन तारा से पूछ लिया कि क्या वो ऐसा कर सकती है कि हम मिल सकें और सब कुछ सुरक्षित तरीके से बिना किसी के शक कहीं मिल सकें?
उसने मुझे फिर समझाया कि अगर मैं तैयार हूँ तो वो मेरे लिए सारा इन्तजाम कर देगी। मुझे तो उस पर पूरा भरोसा था, मैंने उस दोस्त को सन्देश भेज दिया कि मैं मिलना चाहती हूँ।
उसी रात हमने फिर बातें की और उनसे कह दिया कि जब मुझे मौका मिलेगा, मैं उन्हें बुला लूँगी।
इधर तारा को सारी बात मैंने बता दी। उसने कहा कि अगले हफ्ते का दिन तय कर लो, मैं झारखण्ड आऊँगी और सब इंतज़ाम कर दूंगी।
मैंने अपने दोस्त को भी फ़ोन कर के अगले हफ्ते आने को कह दिया।
अगले हफ्ते बुधवार को तारा हमारे गाँव आ गई और शाम को मुझसे मिली। हमने तय किया कि अगले दिन हम शहर जायेंगे।
मेरे घर वाले तारा के साथ कहीं आने जाने से रोकते टोकते नहीं थे तो मुझे कोई चिंता नहीं थी, बस शाम को अँधेरा होने से पहले मुझे घर लौटना था।
अगले दिन हम सुबह 8 बजे घर से निकल गए और करीब नौ बजे शहर पहुँच गए। रास्ते भर मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था यह सोच कर कि क्या होगा ऐसे किसी इंसान के साथ जिससे मैं पहले कभी मिली नहीं।
मुझे अभी तक नहीं पता था कि तारा ने क्या इंतज़ाम कर रखा है।
पहले तो वो मुझे एक होटल में ले गई, पर मुझे बहुत डर लगा, मैंने इन्कार कर दिया।
फिर उसने बताया कि वो इसी होटल में है और हम अलग कमरा लेंगे।
हम वह अन्दर गए और हमने कमरा ले लिया यह कहकर कि तबियत ख़राब है, थोड़ा फ्रेश होने के लिए कुछ देर के लिए चाहिए कमरा।
दो औरत 40 बरस के ऊपर, सोच उनको ज्यादा परेशानी नहीं हुई और हम कमरे में चले गए।
कमरे में जाते ही तारा ने मुझे कहा कि उसको फ़ोन कर बुला लो हमारे कमरे में!
मैंने थोड़ा हिचकते हुए फ़ोन किया और उन्हें हमारे कमरे में आने को कहा।
10 मिनट के बाद दरवाजा खटखटाने की आवाज आई, तारा ने दरवाजा खोला तो सामने एक लम्बा सा 60 साल का मर्द खड़ा था।
उसने अपनी पहचान बताई और तारा ने उसे अन्दर बुला लिया।

वो मुझे देख कर मुस्कुराया और मैं भी दिल के धड़कनों को काबू में करते हुए मुस्कुरा दी।
हम बेड पर बैठ कर बातें करने लगे, मैंने उस दोस्त को बस यही बताया था कि तारा मेरी सबसे अच्छी दोस्त है और उसको बस इतना बताया है कि वो मुझे प्यार करता है और मिलना चाहता था।
बाकी असल बात क्या है मेरे और तारा के बीच थी और उनके और मेरे बीच।
मैंने उनको देखा.. वो चेहरे से कुछ ज्यादा उम्रदराज नहीं लग रहे थे। उनका बदन भी इतना सुडौल था कि कोई भी एक नजर में कह सकता था कि ये फ़ौज के बड़े अफसर होंगे।
मैंने गौर किया कि उनके चेहरे और आँखों में एक रौनक थी.. ऐसा जैसा कि वो मुझे देख कर कितने खुश हैं।
हम तीनों आपस में बात करने लगे.. पहले तो कुछ देर जान-पहचान हुई।
फिर तारा ने ज्यादा समय नहीं लिया और उनसे उनके कमरे की चाभी मांग कर हमें बोली- आप लोग आपस में बातें करो.. मैं कवाब में हड्डी नहीं बनना चाहती।
वो मुस्कुराते हुए वहाँ से चली गई।
मैं थोड़ी शरमाई सी थी.. पर घबराहट ज्यादा थी.. क्योंकि मैं उनसे पहली बार मिल रही थी और सब कुछ करने की हामी भी भर दी थी।
उन्होंने बातचीत शुरू की.. मैंने भी उनके सवालों के जवाब देने शुरू किए। पहले तो हम अपने घर-परिवार और बच्चों की बातें करने लगे।
फिर धीरे-धीरे एक-दूसरे के बारे में और फिर पसंद-नापसंद और फिर पता ही नहीं चला.. कि कब हम ऐसे घुल-मिल गए.. जैसे हम पहली बार नहीं मिल रहे हों।
अजीब सा जादू था उनके बात करने के अंदाज में..
हमें बातें करते हुए एक घंटा हो चुका था और मेरे दिमाग और दिल से अब अनजानेपन की बात भी निकल चुकी थी। 
फिर मैंने उनसे कहा- मैं बाथरूम होकर आती हूँ।
मैं बाथरूम गई और पेशाब कर वापस आकर उनके बगल में दुबारा बैठ गई।
मेरे आने के कुछ देर बाद उन्हें भी पेशाब करने की सूझी.. तो वो भी कर आए और आकर मेरे बिल्कुल करीब बैठ गए।
मुझे उनका हल्का सा स्पर्श हुआ और मेरा दिल जोर से ‘धक्क’ किया..। नाभि के पास एक अजीब सी गुदगुदाहट शुरू हुई और ऐसा लगा जैसे मेरी चूत में जाकर खत्म हो गई।
उन्होंने फिर मुझसे कहा- कितने समय रुकोगी यहाँ?
ये कहते हुए उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया।
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