RE: Hindi Porn Kahani वो कौन थी ???
दोस्तो मेरे साथ फिर दूसरा हादसा हुआ उसकी कहानी कुछ इस तरह है उसे भी आप सुनो
-------------------
बस मैं
-------------------
साइन्स ग्रॅजुयेशन कर ने के बाद मैं ने एक लॅडीस का फॅन्सी स्टोर्स खोल लिया था जिसका समान लाने के लिए मुझे कभी हैदराबाद तो कभी बॉम्बे तो कभी मद्रास जाना पड़ता था. लॅडीस का फॅन्सी स्टोर होने की वजह से मेरे दुकान पे आछे शरीफ घर की लड़कियो से ले के प्रॉस्टिट्यूट्स तक सब आते थे. जिन से बात करते करते मुझे लॅडीस के सोचने के ढंग का पता चल गया था. मैं उनसे बात करके उनकी तबीयत के बारे मे समझ जाता था और मुझे अछी तरह से पता चल जाता था के लॅडीस के दिल मे क्या होता है और वो क्या चाहती हैं. कौनसी लड़की प्राउडी है तो कौनसी लड़की अपनी तारीफ सुन के खुश होती है और किस लड़की को अपने चुचियाँ दिखाने का शौक होता है वाघहैरा वाघहैरा यही साइकॉलजी मेरे काम आई.
उन्न दिनो मैं हैदराबाद से मेरे शहेर को जाने वाली बस रात 10:30 बजे को निकलती थी जो अर्ली मॉर्निंग मेरे शहेर को पहुँचती थी. मैं परचेसिंग ख़तम हो जानेके बाद यूष्यूयली इसी बस से निकलता था ता के सुबह सुबह वापस आ जाऊं और अपनी दुकान को अटेंड कर सकूँ.
यह घटना एक ऐसे ही सफ़र की है. मैं अपना काम ख़तम कर के रात 10:30 बजे वाली बस मे बैठ गया लैकिन वो तकरीबन एक घंटा लेट निकली 11:30 को बस स्टॅंड से निकली और शहेर क्रॉस करने करने तक ऑलमोस्ट रात के 12 बज गये थे. मोस्ट्ली पॅसेंजर्स तो बस स्टॅंड पे ही टिकेट खरीद चुके थे तो कंडक्टर सिर्फ़ रुटीन चेक कर के अपनी सीट पे बैठ गया और शहेर से बाहर बस निकलते ही बस की लाइट्स बंद कर दी गई. बाहर तो बोहोत ही अंधेरा था. शाएद चंद्रमा आज आसमान से नाराज़ थे इसी लिए नही पधारे थे. बाहर का मौसम बोहोत अछा था हल्की सी ठंडी हवा चल रही थी. बस के ऑलमोस्ट सारे ग्लास विंडोस बंद थे. किसी किसी पॅसेंजर ने थोड़ी थोड़ी विंडो खोली हुई थी तो उससी से ठंडी हवा आ रही थी.
लग्षुरी और एक्सप्रेस बस मे जनरली एक रो मे 2 और 2 सीट्स एक एक तरफ से होती है टोटल 4 सीट्स होती हैं और मैं जनरली बस मे विंडो सीट को प्रिफर नही करता आइल ( विंडो वाली नही बलके पॅसेज वाली सीट ) वाली सीट को प्रिफर करता हू ता के पैर लंबे कर के आराम से सफ़र कर सकु. मुझे ऐसे ही सीट बस के तकरीबन पीछे वाले हिस्से मे मिल गई थी और मैं सारा दिन काम कर के थक चुक्का था और जल्दी ही सो गया.
पता नही रात का क्या टाइम हुआ था मेरी आँख खुली तो देखा के बस किसी स्टॉप पे रुकी है और पॅसेंजर्स बस मे चढ़ रहे हैं खिड़की से बाहर देखा तो
पता चला पॅसेंजर्स और उनके लगेज को देखा तो ऐसे लगा जैसे शाएद कोई मॅरेज पार्टी वाले इस बस मे चढ़ रहे हैं और फिर एक ही मिनिट मे फिर से सो गया.
बस फिर से चलने लगी तो जो पॅसेंजर्स उस स्टॉप से चढ़े थे वो अपनी अपनी जगह बना रहे थे और अपना अपना लगेज बस के अंदर ही अड्जस्ट कर रहे थे. यूँ तो वो बस नाम की ही एक्सप्रेस थी कंडक्टर और ड्राइवर्स एक्सट्रा पैसे बना ने के चक्कर मे बस को जहा कोई पॅसेंजर किसी भी छोटे से स्टॉप पे खड़ा दिखाई देता उसको पिक कर लेते और बस ओवरफ्लो होने तक भरते ही रहते.
बस खचा खच भर चुकी थी. मेरे बाज़ू वाली सीट पे कोई मोटा पॅसेंजर ऑलरेडी बैठा हुआ था जिस से मेरी सीट मुझे छोटी पड़ रही थी. उस बस स्टॅंड पे कौन उतरा और कौन चढ़ा मुझे नही मालूम. देखा तो पता चला के मेरी सीट और दूसरी वाली डबल सीट के बीच मे एक लोहे का ट्रंक रखा हुआ है. मैं अपना पैर उस ट्रंक के ऊपेर रख दिया और अपनी सीट से थोड़ा और ट्रंक के तरफ हट गया ता के जो मेरी सीट मेरे मोटे को-पॅसेंजर ने ले ली है थोड़ा सा हॅट के ठीक से बैठ जाउ. ट्रंक बड़ा था और ऑलमोस्ट सीट की ही हाइट का था तो पैर रखने मे आराम मिल रहा था. उस ट्रंक पे कोई दूसरी तरफ मूह कर के बैठा था. अब पोज़िशन ऐसे थी के मैं आराम से ऑलमोस्ट हाफ ट्रंक पे और हाफ अपने छोटी सी सीट पे था. ऐसे बैठने से पॅसेज के दूसरी तरफ का बैठा हुआ पॅसेंजर मेरे करीब हो गया था जैसे ऑलमोस्ट साथ साथ ही बैठा हो. मैं बोहोत देर से सो रहा था और इसी अड्जस्टमेंट मे मेरी नींद चली गई और मैं जाग गया. देखा तो अंदाज़ा हुआ के दूसरी तरफ बैठी हुई कोई फीमेल है अब पता नही के औरत है या लड़की खैर कोई फीमेल बाज़ू मे बैठी हो और राजशर्मा खामोशी से देखता रहे और उसका लंड ना अकड़ जाए ऐसे तो मुमकिन नही है ना तो बस लंड मे मीठी मीठी सरसराहट महसूस होने लगी.
|