RE: Hot Sex Kahani अनु की मस्ती मेरे साथ
"साले मुझे लेकर उस वीरान पड़े पार्क मे ले आए. आस पास कोई नही
था मेरी असमात को लूटने से बचाने वाला. उन्हों ने मुझे नंगी हालत
मे वॅन से खींच कर निकाला. मैने एक उम्मीद से अपने चारों ओर देखा
लेकिन दूर दूर तक किसी मानव की छाया तक नही दिखी. वो चारों
मुझे खींचते हुए पार्क मे उगी झाड़ियों के पीछे लेकर आए.
कुत्ता कुच्छ सुन्घ्ता हुआ उनके सामने सामने चल रहा था. उन झाड़ियों
के पीछे ले जाकर उन्हों ने मुझे ज़मीन पर पटक दिया. मेरे हाथो
को जोड़ कर एक कपड़े के टुकड़े से बाँध दिया. मेरे मुँह मे एक गंदा सा
कपड़ा ठूंस दिया जिससे मैं चीख ना सकूँ. फिर एक के बाद दोसरा
दूसरे के बाद तीसरा, कभी दो एक साथ कभी मुँह मे कभी गुदा मे
मुझे ना जाने कितनी बार कितने तरीके से उन्हों ने रगड़ा. मेरी खाल
जगह जगह से छिल गयी थी. जानवरों की तरह मेरे स्तनो पर और
जांघों के बीच उन्हों ने काट डाला. मैं दर्द से चीखी जा रही थी
मगर मुँह से "गूओ....गूऊ" के अलावा कोई आवाज़ नही निकल रही थी.
मेरे दोनो आँखों से आँसू झाड़ रहे थे मगर किसे परवाह थी मेरे
आनसूँ की. उनके मोटे मोटे लंड मेरी चूत को रगड़ रगड़ कर उसकी खाल
उधेड़ रहे थे. मैं छट-पता रही थी मगर इस हालत मे सिर्फ़ आँखों
से झरने वाले पानी के अलावा कुच्छ भी नही कर पा रही थी. साले
हरमजदों ने मुझे जी भर कर चोदने के बाद वहाँ एक बेंच पर
हाथों का सहारा लेकर घुटनो के बल झुकाया और उसके बाद जो
हुआ......उफफफ्फ़. ......... क्यों बचा कर लाए तुम मुझे? बोलो मुझ से
क्या दुश्मनी थी तुम्हारी...."
"चलो बीती बातें भूल जाओ"
"नही कैसे भूल सकती हूँ. कैसे भूल सकती हूँ उन हरमजदों
को. सालों का जब जी भर गया मुझसे तब मुझे झुका कर अपने कुत्ते
को चढ़ा दिया मेरे उपर. उसके लिंग को मेरी योनि मे डाल दिया. मैं उस
गंदे संभोग की कल्पना करके ही कांप जाती हूँ."
"चलो ड्रेसिंग हो चुकी है अब तुम उठ कर कपड़े पहन लो." मैं
वहाँ से मूड कर जाने लगा तो उसने अपने हाथ से मेरे हाथ को पकड़
लिया.
वो उसी अवस्था मे उठ कर बिस्तर पर बैठ गयी. और मेरे हाथ को
पकड़ कर अपनी ओर खींचा जब मैं अपनी जगह से नही हिला तो
खींचाव के कारण वो उठ कर मेरे सीने से लग गयी. और मेरे चेहरे
को अपने हाथो से थाम कर मेरे होंठों को चूम लिया.
"ये ये तुम क्या कर रही हो?" मैं हड़बड़ा गया.
" तुम...." कहकर अपनी जीभ को काट लिया " आप बहुत अच्छे हैं."
कहकर उसने अपनी नज़रें झुका डी.
" अनु तुम अभी होश मे नही हो. अपने साथ हुए उस हादसे की वजह से
तुम्हारा दिमाग़ काम नही कर रहा है. तुम अभी भूखी हो पहले
हम दोनो के खाने का कुच्छ इंतेज़ाम करें."
" तुम अकेले कैसे रह लेते हो. मुझे तो सारा घर काटने दौड़ता है.
तुम्हे कभी औरत की ज़रूरत महसूस नही होती."
" अनुराधा" मैने बात को ख़त्म करना चाहा.
" इसमे शर्म की क्या बात है. ये तो जिस्मानी ज़रूरत है किसी को भी
महसूस हो सकती है. मैं तो सॉफ कह सकती हूँ कि मुझे तो ज़रूरत
महसूस होती है किसी मर्द की. लेकिन ऐसे नही...." उसने कुच्छ सोचते
हुए कहा " ऐसा मर्द जो मुझे ढेर सारा प्यार दे. और कुच्छ नही
चाहिए मुझे."
"चलो उठो अब तुम बहकने लगी हो." मैने हाथ पकड़ कर उसे उठाया
तो वो मेरे बदन से सॅट गयी. उसके बदन की गर्मी से मेरे पूरे
बदन मे एक झुरजुरी सी दौड़ गयी. हम एक दूसरे की आँखों मे
आँखें डाल कर समय को भूल गये. कुच्छ देर बाद वो अपनी नज़रें
झुका कर किचन मे चली गयी. मैं उसके पीछे पीछे जाने लगा
तो उसने मुझे रोक दिया.
|