RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
सावन के नजारे हैं
अब तक
मैं चन्दा का सेलेक्ट किया टॉप पहनने जा रही थी की तभी याद आया , जो जादू की शीशियां कामिनी भाभी ने दी थी , गारंटी मीलों दूर का शिकार खुद अपने आप खुद पैरों के बीच आ गिरेगा।
उरोज कल्प जो तेल दिया था उन्होंने हल्का सा दो बून्द हथेली पर लेकर रगड़ कर दोनों उभारों पर , और फिर एक एक बूँद सीधे निपल पर।
असली जगह तो अभी बाकी थी , उनकी दी हुयी क्रीम अगवाड़े पिछवाड़े थोड़ी सी लगा लिया , एक उंगली से एकदम अंदर तक।
कामिनी भाभी की बात याद करके मैं मुस्करा दी , इत्ता टाइट हो जाएगा तेरा की बड़े से बड़े चुदक्कडों का पसीना छूट जाएगा ,अंदर घुसेड़ने में।
आ जाओ सुनील राजा देखतीं हूँ तेरे खूंटे को , मेरी सबसे प्यारी सहेली को हड़का रहे थे न।
तब तक वो मेरी प्यारी सहेली मुझे गरियाती हुयी अंदर घुसी और मेरा हाथ पकड़ के बाहर खींच के ले आई , मुश्किल से निकलते निकलते मैंने टॉप पहना।
और आंगन में मेरे इस नए रूप को देखकर सबकी हालत खराब थी , चंपा भाभी ,मेरी भाभी ,बसंती।
लेकिन सबसे ज्यादा असर पड़ा था भाभी की माँ के ऊपर , चन्दा को हड़काते वो बोलीं ,
" अरे भूखी पियासी मेरी चिरैया को ले जा रही हो , जल्दी ले आना , दोपहर के पहले। "
चन्दा ने बड़ी जोर से आँख मारी और बोली ," चिंता मत करिये आपकी सोन चिरैया को दाना चुगा दूंगी , भर जाएगा पेट। "
और उसका साथ बसंती ने दिया , हँसते हुए भाभी की माँ से बोली , " अरे सही तो कह रही है , चन्दा। जब गांड मारी जायेगी आपकी इस बिटिया की न तो जाएगा तो पेट में ही , अरे ऊपर वाले मुंह से न सही , नीचे वाले मुंह से। "
मेरी भाभी और चंपा भाभी खिलखिला के हंसीं।
लेकिन चन्दा ने बोला , " बस दोपहर के पहले , दो ढाई घंटे में ,... "
और बसंती फिर बोली अबकी चन्दा के पीछे पड़के ( आखिर गाँव के रिश्ते से वो भी उसकी ननद थी न ) ,
" सुन , लौटा के लाओगी न तो मैं खुद चेक करुँगी तेरी सहेली को , आगे पीछे दोनों ओर से टपटप सड़का टपकना चाहिये नहीं तो इसी आँगन में निहुरा के तेरी गांड मार लूंगी। "
लेकिन चन्दा हँसते खिलखिलाते मेरा हाथ पकड़ के बाहर।
पीछे से भाभी की मां की आवाज सुनाई पड़ी ,
" दोपहर के पहले आ जाना। आज इसी आँगन में तुझे अपने हाथ से खिलाऊंगी , पिलाऊँगी। "
" एकदम माँ। " बाहर से ही मैंने जवाब दिया और चन्दा के पीछे पीछे निकल पड़ी तेजी से।
आखिर सुनील से मिलने की जल्दी मुझे भी तो थी।
आगे
क्या मौसम था , आसमान में सफ़ेद खरगोशों ऐसे बादल जो किरनो से लुका छिपी खेल रहे थे उसकी परछाईं धरती पर पड़ रही थी।
पास के गाँव में हलकी हलकी बरसात लगता है अभी हुयी थी , हवा में नमी के साथ मिटटी पर बारिश की बूंदे पड़ने से जो एक खास महक निकलती है वो मिली हुयी थी।
पास ही किसी अमराई में झूला पड़ा था और नयी उम्र की किशोरियों की कजरी गाने की आवाज सुनाई दे रही थी
[attachment=1]rain G N 3.gif[/attachment]दूर दूर तक हरी चूनर की तरह धान के खेत फैले थे। और पास ही में मेड पर एक मोर नाच नाच के किसी मोरनी को रिझाने की कोशिश कर रहा था।
कभी कच्चे रास्ते से तो कभी पगडण्डी तो कभी खेतों के बीच से धंस के चन्द मुझे खींचे ले जा रही थी ,
मेरे कानो में कभी रेडियो पर सुने एक पुराने गाने की आवाज गूँज रही थी,
सावन के नज़ारे हैं , सावन के नजारे हैं
कलियों की आँखों में मस्ताने इशारे हैं
जोबन है फ़िज़ाओं पर , जोबन है फिजाओं पर
उस देश चलो सजनी , उस देश चलो सजनी ,
फूलों के यौवन पर भँवरे आ मरें , फूलों के यौवन पर भँवरे आ मरे
अब गाँव के रास्तों पगडंडियों ,अमराइयों और गन्नों के खेतों का मुझे अंदाजा हो गया था।
पास में ही गन्ने का एक खेत दिखा जहां पहली बार सुनील ने मुझे , ...मैंने चन्दा से इशारा किया की क्या यहीं पर , पर उसने आँखों से मना कर दिया और एक बगल की बँसवाड़ी से दूसरी ओर खींच ले गयी।
और क्या मस्ती की हम दोनों ने ,
हवाओं में मस्ती ,
फिजाओं में मस्ती ,
नयी नयी आई जवानी की मस्ती
और ऊपर से नए नए आये जोबन का जोश , हम दोनों दोनों होश खो बैठे थे।
ऊपर से गाँव का खुलापन , न कोई डर न कोई भय ,.... फिर कामिनी भाभी की ट्रेनिंग , लौंडे फंसाने की ,जवानी के जलवे दिखाने की।
न जाने कितनों के दिल में आग लगाई , कितनों के मन में आस जगाई। था तो सावन लेकिन मुझे स्कूल में पढ़ी एक कविता याद आ रही थी 'बसंती हवा ' बस बिलकुल उसी शैतान हवा की तरह
चढ़ी पेड़ महुआ,
थपाथप मचाया;
गिरी धम्म से फिर,
चढ़ी आम ऊपर,
उसे भी झकोरा,
किया कान में 'कू',
उतरकर भगी मैं,
हरे खेत पहुँची -
वहाँ, गेंहुँओं में
लहर खूब मारी।
सुनो बात मेरी -
अनोखी हवा हूँ।
बड़ी बावली हूँ,
बड़ी मस्तमौला।
नहीं कुछ फिकर है,
बड़ी ही निडर हूँ।
जिधर चाहती हूँ,
उधर घूमती हूँ,
बस एक दम उसी तरह।
एक लड़के की तो बस , कच्ची उमर का था , मुझसे भी एक दो महीने छोटा , लेकिन खूंटा खड़ा था। मुझे देख के कुछ बोला अपने तने औजार पे हाथ रख के इशारा किया , बस मैं रुक गयी ,और उलटे जबरदस्त आँख मार के बोली ,
" हे नयी उमर की नयी फसल , ज़रा जाके अपनी छुटकी बहन से मुट्ठ मरवा के देखो , कुछ निकलता विकलता भी है की नहीं। अगर कुछ सफ़ेद सफ़ेद निकले न आ जाना तुझे हफ रेट पे चाइल्ड कनसेसन दे दूंगी।"
चन्दा हंस के बोली यार तूने बिचारे को मना कर दिया तो मैंने बताया,
" देख मैंने मना नहीं किया सिर्फ उसको बोला है टेस्ट कर ले मशीन चलती वलती है की नहीं , ,... "
" एकदम वर्ना नया चुदवैया ,चूत की बरबादी। " हँसते हुए बसंती ने मेरी बात की हामी भरी।
रास्ते में कितने गाँव के लौंडे मिले मैंने गिने नहीं।
पता ठिकाना नोट करने का काम मेरी सहेली चन्दा रानी का था।
हाँ मैंने मना किसी को नहीं किया लेकिन हाँ भी नहीं, किसीको झुक के कसे लो कट टॉप से जोबन की गहराई दिखाई तो किसी को हलके से निहूर के गोलकुंडा की गोरी गोरी गोलाइयों के दर्शन कराये।
और मेरे सोलहवें सावन के जुबना के उभार , कटाव तो उस झलकउवा टॉप से वैसे भी साफ़ साफ दिख रहे थे। कमेंट एक से एक खुले , लेकिन अब मैं न सिर्फ उसकी आदी हो गयी थी बल्कि जवाब भी देना सीख गयी थी ,कुछ बोल के ,कुछ जोबन उभार के तो कुछ नैनों के बाण चला के ,
कामिनी भाभी की एक बात मैंने गाँठ बाँध ली थी ,इग्नोर किसी लड़के को मत करना।
और डार्क स्कारलेट रेड लिपस्टिक वाले रसीले होंठों से फ़्लाइंग किस तो मैंने सबको दी।
चन्दा बोली भी , आज तो तूने गाँव के लौंडो की बुरी हालत कर दी ,लेकिन ये सब छोड़ेंगे नहीं तुझे बिना तेरे ऊपर चढ़े।
" तो चढ़ जाए न , मैंने इनकी बुरी हालत को तो बहुत हुआ तो ये मेरी बुर की बुरी हालत कर देंगे , तो कर दें। पांच छ दिन बाद तो मुझे चले ही जाना है। " ठसके से मैं बोली
तबतक वो जगह आ गयी थी जहां हम दोनों को पहुंचना था।
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