Long Sex Kahani सोलहवां सावन
07-06-2018, 02:34 PM,
RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
हलवा गरमागरम 



अब तक 



कुछ देर में नीरू की जगह मैं थी और मेरे ऊपर बसंती 


चंपा भाभी , चमेली भाभी , मेरी भाभी की माँ सब बसंती को ललकार रही थी , पिला दे , पिला दे ,


कुछ देर बाद बसंती ने सुनहला शरबत ,.... 

मैंने आँखे बंद कर ली पर सपने में आँखे बंद करने से क्या होता है ,

हाँ कुछ देर में सपना जरूर बदल गया। 

बसंती और गुलबिया दोनों मेरे बगल में थी ,

मेरी गोरी चिकनी जाँघे फैली थीं , मैं देख नहीं पा रही थी ,लेकिन कुछ देर में मैंने वहां एक जीभ महसूस की , 

पहले हलके हलके फिर जोर से मेरी चूत चाट रहा था।

अपने आप जैसे मैं पिघल रही थी , मेरी जाँघे खुद ब खुद खुल रही थी , फ़ैल रही थी। 

मैं एकदम आपे में नहीं थी। बस मन कर रहा था की ,

और वो जीभ भी , पहले ऊपर से नीचे तक जोर जोर से लिक करने के बाद , उसने जैसे ऊँगली की तरह मेरी गुलाबी पंखुड़ियों को फैलाया और ,सीधे अंदर। 

फिर गोल गोल अंदर घूमने लगी। 

' नहीं रॉकी नहीं , अभी नहीं , तुम बहुत शैतान हो गए हो , लालची छोड़ बस कर , बाद में बाद में, ... "

मैं नींद में बोल रही थी ,अपने हाथ से हटाने की कोशिश कर रही थी , लेकिन उसकी जीभ का असर , मस्ती से मेरी गीली हो गयी। 

तबतक झिंझोड़ के मैं जगाई गयी। 

" बहुत चुदवासी हो रही हो छिनार , अरे बिना रॉकी से चुदवाए तुझे जाने नहीं दूंगी लेकिन अभी तो उठो। "

मैंने मुश्किल से आँखे खोली। चम्पा भाभी थीं। 

और जिसे मैं सपने में रॉकी की जीभ समझी थी , वो चम्पा भाभी की हथेली और उंगलियां थी। उन्होंने छोटी सी स्कर्ट को उलट दिया था और जो मुझे जगाने का उनका तरीका था , अपनी गदोरी से मेरी चूत को हलके हलके रगड़ मसल रही थीं ,और जब मैंने मस्त होकर खुद अपनी जाँघे फैला दी तो ऊँगली का एक पोर बल्कि उसकी भी टिप सिर्फ , खुले फैले निचले गुलाबी होंठों के बीच 


मैं एकदम पनिया गयी थी , मन कर रहा था बस कोई हचक के ,...लेकिन मैं भी जानती थी कल सुबह तक उपवास है ,भूखी ही रहना होगा। "

" आ गयी है न चल आज से रॉकी तेरे हवाले फिर से। तुझे बहुत भूख लग रही होगी न ,बसंती हलवा बना रही है तेरा फेवरिट। "













आगे 







[attachment=1]cleavage 8.jpg[/attachment]

" आ गयी है न चल आज से रॉकी तेरे हवाले फिर से। तुझे बहुत भूख लग रही होगी न ,बसंती हलवा बना रही है तेरा फेवरिट। "


लेकिन मेरे दिमाग में तो कामिनी भाभी की बाते याद आ रही थी जब वो गुलबिया को उकसा रही थी , मुझे 'खिलाने पिलाने ' के लिए , .... कहीं बसंती भी कुछ , और मैं कुछ कर भी तो नहीं सकती थी। घर में सिर्फ बसंती और चंपा भाभी ही तो थीं ,

और चंपा भाभी कौन कामिनी भाभी से कम थीं। 

गनीमत थी कमरे से बाहर आँगन में आते ही रसोई से मीठी मीठी सोंधी सोंधी बेसन के भूने जाने की महक आ रही थी।

सच में मेरा फेवरिट , ... बेसन का हलवा। 

मौसम भी बदल गया था। साँझ ढलने लगी थी , धूप अब नीम के पेड़ की पुनगियों पर अटकी थी और रही सही उसकी गरमी , आवारा बादल कम कर रहे थे जो झुण्ड बना के किरणों से लुका छिपी खेल रहे थे। 

हवा में भी मस्ती और नमी थी , लगता था आस पास के गाँव में कही ताजा पानी बरसा है।
………..
मौसम के साथ साथ चंपा भाभी का मूड भी अब मस्ती भरा हो रहा था। उन्होंने मजे से मुझे प्यार से धक्का देकर चटाई पर गिरा दिया , और खुद मेरे बगल में आके लेट गईं। उनकी शरारते जो मुझे जगाने के साथ जो शुरू हुयी थीं दुगुनी ताकत से चालू हो गईं। 
एक बार फिर से स्कर्ट उठा के उन्होंने मेरी कमर तक कर दिया और बोलीं ,

" अरे ज़रा इसको भी तो हवा खाने दो , कहें अपनी बुलबुल को हरदम पिजड़े में रखती हो। "

लेकिन मैं क्यों छोड़ती उन्हें आखिर थी तो मैं भी उनकी ननद , मैंने ऊपर की मंजिल पे हमला किया और ब्लाउज के ऊपर से ही गदराए जोबन अब मेरी मुट्ठी में थे , और चटपट चटपट उनकी दो चार चुटपुटिया बटनों ने साथ छोड़ दिया और कबूतर पिंजड़े से बहार झांकने लगे। 

उन्हें भी मालुम था की प्रेम गली के अंदर आज आना जाना बंद था , लेकिन गली के बाहर भी तो जादू की बटन थी। बस दोनों भरी भरी रसीली मोटी मोटी चूत की पुत्तियों के किनारे किनारे चंपा भौजी की रस भरी उँगलियाँ , और कभी कभी एक झटके में हथेली से रगड़ देतीं और मेरी सिसकियाँ निकल जाती। 

तभी ढेर सारे घी की महक और बेसन के हलवे में दूध डालने की झनाक की आवाज आई ,और मेरा ध्यान उधर चला गया। 

चंपा भाभी का दूसरा हाथ मेरे टॉप के अंदर , आखिर ऊपरी मंजिल में तो कोई रोक टोक थी भी नहीं , और जोर से उन्होंने टॉप के अंदर ही मेरा निपल पल कर दिया। 

जवाब में मेरा हाथ भी उनके ब्लाउज के अंदर घुस गया और यही तो वो चाहती थीं एक कमिसन किशोरी के हाथ जोबन मर्दन , मसलना रगड़ना। 

और वो मैंने शुरू कर दिया . उनकी उँगलियों ने मेरे ऊपर और नीचे दोनों हमला कर दिया ,


तबतक रसोई से बंसती की आवाज आई , हलवा बन गया है ,निकाल के ले आऊं या ,... 

उनकी बात पूरी भी नहीं हुयी थी की चम्पा भाभी ने जवाब दे दिया। 

" अरे इस छिनार को सीधे कड़ाही से गरम गरम हलवा खिलाओ तभी तो , ... " और अबकी बात बसंती ने काटी ,बोलीं 

" हलवा खिलाऊंगी भी और हलवा बनाउंगी भी। " बसंती ने रसोई से ही जवाब दिया , और कुछ देर में सच में सीधे वो रसोई से कड़ाही ही लेकर बाहर निकली। 

बेसन के हलवे की सोंधी सोंधी मीठी मीठी महक मेरे नथुने में भर गयी। मेरा सारा ध्यान उधर ही था ,लेकिन बंसती का ध्यान मेरी खुली जाँघों और चंपा भाभी की वहां खोज बीन करती उँगलियों पर। 

" अरे अकेले अकेले इस कच्ची कली का मजा लूट रही हो " उसने चंपा भाभी से शिकायत की। 

" एकदम नहीं ,आओ न मिल बाँट के खाएंगे इसको। " हँसते हुए चंपा भाभी बोलीं। 

लेकिन मेरी निगाहें हलवे पर थीं , इतना गरम गरम हलवा , देसी घी तो तैर रहा था , लेकिन खाऊंगी कैसे , चम्मच वमम्च तो कुछ था नहीं। 

चंपा भाभी और बसंती दोनों ही मेरे तन और मन दोनों की जरूरतें मुझसे ज्यादा समझती थीं और वो भी बिना बोले ,और इस बार फिर यही हुआ। 

" अरे ननद रानी ,दो दो भौजाइयों के होते हुए तू काहे आपन हाथ इस्तेमाल करोगी , हम दोनों के हाथ हैं न तुम्हारे लिए। "

और एक बार फिर चंपा भाभी और बसंती ने मुझे मिल के बाँट लिया। 

एक बार चम्पा भाभी खिलाती तो अगली बार बसंती और कभी हाथ से तो कभी अपने मुंह से सीधे। 

मेरे दोनों हाथ भी बिजी थे , एक हाथ तो पहले ही चंपा भाभी के ब्लाउज में घुसा था , दूसरे ने बसंती के ब्लाउज में सेंध लगा दी। 

मेरे लिए तो दोनों भौजाइयां थी।


बंसती की बदमाशी या मेरी लापरवाही , ज़रा सा हलवा मेरे टॉप पे गिर गया और फिर एक झटके में ,

" अरे इतना महंगा ,खराब हो जाएगा ,उतार दो इसको " बसंती बोली और वो और चंपा भाभी मिलके ,

मेरा टॉप अगले पल चटाई के दूसरी ओर पड़ा था। 
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RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन - by sexstories - 07-06-2018, 02:34 PM

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