RE: Long Sex Kahani सोलहवां सावन
भरौटी के लौंडे
एक खूब ऊँची मेड , और अब गन्ने के खेत साइड में और दूसरी ओर एकदम खुला मैदान , थोड़ी दूर पर एक छोटा सा पोखर ,जिसके किनारे कुछ औरतें कपडे धो रही थीं , थोड़ी दूर पर दस पन्दरह घर सारे कच्चे , कुछ पर झोपड़ी टाइप छत थी और कुछ पर खपड़ैल की. एक कच्चा कुंआ किनारे एक घर के सामने , नीम महुआ के थोड़े से पेड़ ,
हम दोनों मेड पे चल रहे थे।
और तभी वो दिखा , [attachment=1]male thong 2.jpg[/attachment]
………………………
एकदम मस्त माल , १० में १०।
( आप लोग क्या सोचते हैं सिर्फ हम लड़कियां ही माल हो सकती हैं। कतई नहीं। लड़कों को देख के हम लड़कियां भी आपस में बोलती यही हैं , मस्त माल )
लौंडा भरोटी का था इसमें कोई शक सुबहां की गुंजाइश थी ही नहीं।
कद काठी में अब तक गाँव के जिन लड़कों से मिली थी २१ ही रहा होगा , लेकिन सबसे बढ़कर ताकत गजब की लग रही थी उसमें। गुलबिया ने गन्ने के खेत में अभी जो कुछ बताया था , अब साफ़ लग रहा था की उसमें कुछ बढ़ा चढ़ा कर एकदम नहीं था।
कामिनी भाभी ने कल रात जो गुर सिखाये थे उसका हलका सा इस्तेमाल मैंने कर दिया। नज़रों के तीर और जोबन का जादू, बस हलके से तिरछी नजर से उसे देखा और जोबन के उभार की ( टॉप वैसे भी इतना टाइट था की साइड से पूरा उभार ,उसका कड़ापन सब कुछ झलकता था ) हलकी सी झलक दिखला दी ,
बस वही तो गजब हो गया।
वैसे भी मेरे जोबन का जादू गाँव के चाहे लौंडे हाँ या मर्द सब के सर पे चढ़ के बोलता था , लेकिन सिर्फ झलक दिखाने का ये असर ,
उसका खूंटा सीधे 90 डिग्री का होगया। क्या लम्बा ,क्या मोटा ,... देख के मेरी चुनमुनिया चुनचुनाने लगी।
मैं सोच रही थी की गुलबिया ने नहीं देखा लेकिन तब तक एक लड़का , और वो पहले वाले से भी ज्यादा ( अगर बसंती की बोलीं में तो कहूं तो जबरदस्त चोदू ) लग रहा था।
और उसने अपनी मर्जी साफ़ साफ़ जाहिर कर दी , कपडे के ऊपर से ही जोर जोर से वो अपने खूंटे को मसल रहा था। मुझे तो लग रहा था की कहीं ये दोनों ,यहीं निहुरा के ,
गनीमत थी की गुलबिया ने मुड़ के देख लिया और उसको देख के एक ने पूछ लिया ,
" ए भौजी ,इतना मस्त सहरी माल ले के , तानी हम लोगन की भी ,... "
कुछ इशारे से , कुछ बोल के गुलबिया ने बोल समझा दिया की मिलेगी लेकिन आज नहीं।
और मेरे दिल की धड़कने कुछ नारमल हुईं ,चलो आज का खतरा टला।
लेकिन तबतक एक और ,
मैंने भी जब ये समझ लिया की आज मेरी बच गयी। कामिनी भाभी ने जो अगवाड़ा पिछवाड़ा सील किया है और गुलबिया को चेताया है , तो अभी तो कुछ ,... और मैंने खुल के अपने तीर चलाने शुरू किये ,कभी झुक के जो लौंडे आगे थे उन्होंने सिर्फ उभारों की गहराई नहीं , बल्कि कड़ी कड़ी अपने कबूतरों की चोंचें भी दिखा देती।
और पीछे वालों को पिछवाड़े की झलक मिल रही थी।
कुछ देर में पांच छ लड़के , और सबके खूंटे खड़े सब खुल के उसे मसल रहे थे ,मुठिया रहे थे।
" अरे जहाँ गुड होगा चींटे आएंगे ही ," कह के गुलबिया ने जोर से मेरे गुलाबी गालों पे चिकोटी काटी, एक बार उन लड़को की ओर देखा ,मुस्कराई बोली ,
" सामने घर है मेरा , बस अभी गयी अभी आई। तोहरे भैया के लिए खरमिटाव लाने जा रही हूँ। "
वो घर जिसपर खपड़ैल वाली छत थी और सामने एक कच्चा कुंआ था , अब हम लोगों की पगडण्डी के ठीक बगल में आ गया था , मुश्किल से २०० कदम रहा होगा , और गुलबिया उसी घर की ओर मुड़ गयी।
और वो लौंडे अब मेरे एकदम पास आ गए।
साथ में एकदम खुल के , ...एक बोला ,
" अरे गांड तो खूब मारने लायक है। "
" अरे चूंची तोदेख साली की , निहुरा क दोनों चूंची पकड़ के हचक हचक के मारेंगे इसकी। " दूसरे ने कमेंट मारा।
एक के बाद एक कमेंट ,सबके औजार तने। कुछ देर के बाद
' बोल चुदवायेगी। " जो उन सबका लीडर लग रहा था उसने खुल के पूछ लिया ,
लेकिन जवाब गुलबिया ने दिया जो बस लौटी ही थी ,
" अरे चुदवायेगी भी , गांड भी मरवायेगी और लौंडा भी चूसेगी तुम सबका ,बस एक दो दिन में। ये केहू को मना नहीं करती , काहें हमारी प्यारी ननद रानी। "
जवाब मैंने गुलबिया को नहीं उन भरोटी के लौंडो को दिया , ज्जा ज्जा के इशारे से , थोड़ा पलकों को उठा गिरा के ,जुबना की झलक दिखा के ,
और तेजी से गुलबिया के साथ गन्ने के खेत के बगल की पगडण्डी पर मुड़ पड़ी।
…………………..
वो सब पीछे रह गए , और कुछ देर चलने के बाद मुझे कुछ याद आया ,
' यही तो वो पगडण्डी है ,जिसके पास चन्दा ने मुझे छोड़ा था और मुड़ के भरोटी की ओर गयी थी। '
पगडण्डी खत्म होते ही बस मुड़ते ही घर दिखाई दे रहा था।
गुलबिया को भी जल्दी थी , मुझे भी।
गुलबिया को अपने मर्द को खरमिटाव देने की जल्दी थी और मुझे घर पहुंचने की।
दुपहरी ढल रही थी।
बाहर से ही उसने सांकल खटकाई और बसंती निकली ,
उसने जल्द जल्द बंसती को कुछ समझाया।
मैंने सुनने को कोशिश नहीं की क्योंकि मुझे मालूम था की गुलबिया क्या बोल रही होगी। वही जो कामिनी भाभी ने बार बार चेताया था ,कल सुबह तक अगवाड़े पिछवाड़े नो एंट्री।
बसंती ने दरवाजा अंदर से बंद किया और आंगन में ही मुझे जोर से अंकवार में भर के भींच लिया , जैसे मैं न जाने कब की बिछुड़ी हूँ।
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