Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
07-01-2018, 12:06 PM,
#8
RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --8

गतान्क से आगे........................

"मुझे समझ नही आता के जब जै रंगे हाथ पकड़ा ही गया है तो इस सब की क्या ज़रूरत है?" पुरुषोत्तम ने पुछा

"मैं सिर्फ़ अपनी तसल्ली करना चाहता हूँ ठाकुर साहब" ख़ान ने कहा "आइ जस्ट वाना मेक शुवर दट दा पर्सन हू किल्ड युवर फादर ईज़ इनडीड गेटिंग पनिश्ड फॉर इट आंड नोट रोमिंग अराउंड फ्री"

"आइ अप्रीशियेट इट" पुरुषोत्तम ने कहा "यू हॅव अवर फुल को-ऑपरेशन"

"तो फिर मैं चाहूँगा के मैं हवेली के हर मेंबर से एक बार बात करूँ. यू माइट फाइंड इट अफेन्सिव बट आइ अश्यूर इट इट्स जस्ट आ फॉरमॅलिटी, जस्ट फॉर पेपर वर्क" ख़ान ने कहा

"मैं सबसे कह दूँगा के आपके हर सवाल का जवाब आपको दिया जाए" पुरुषोत्तम ने कहा

"थॅंक्स आ लॉट" ख़ान ने कहा "आइ विल टेक यौर लीव नाउ"

कहकर ख़ान हवेली से निकल ही रहा था के पिछे से पुरुषोत्तम की आवाज़ आई

"क्या अब हम कमरे में चीज़ें बदल सकते हैं? यू सी आइ आम रियली नोट कंफर्टबल विथ लीविंग माइ फादर'स ब्लड ऑन दट रग"

"जी ज़ुरूर" ख़ान ने कहा "आप वो कालीन अब हटा सकते हैं"

हवेली से बाहर जाते ख़ान की नज़र ड्रॉयिंग रूम में बैठी लड़की पर पड़ी. वो बेहद खूबसूरत थी और इसी वजह से ख़ान की नज़र जैसे उसपर अटक कर रह गयी. ख़ान जानता था के वो ठाकुर की बेटी कामिनी है. दिल ही दिल में खूबसूरती की तारीफ़ करता ख़ान हवेली से बाहर आ गया.

............................

उस दिन के बाद अगले कुच्छ वीक्स तक रूपाली अजीब उलझन से गुज़री. दिन में बार बार उसके शरीर में अजीब सी फीलिंग होती जिसके बाद वो फ़ौरन कहीं अकेले में जाती और अपनी टांगी के बीच हाथ लगाती. एक अजीब सा नशा और मज़ा जिस्म में दौड़ जाता, फिर बढ़ता जाता और अचानक उसकी टाँगो के बीच सब गीला हो जाता.

जहाँ रूपाली को ये करने में बहुत मज़ा आता था वहीं मज़ा ख़तम होने के बाद फिर से वही गिल्ट फीलिंग दिमाग़ पर सवार हो जाती. उसको लगता के वो कितनी गंदी हो गयी है के ऐसे गंदे गंदे काम कर रही है. अगर किसी को पता चल गया तो? इसी डर से वो उस दिन के बाद ना तो फिर से अपने माँ बाप को देखने की हिम्मत जुटा पाई और ना ही शंभू काका और कल्लो को देखने की.

कुच्छ हफ़्तो बाद एक दिन उसके भाई की तबीयत काफ़ी खराब हो गयी. तेज़ बुखार था और मम्मी कुच्छ दिन से उसको अपने पास ही सुला रही थी. उस रात रूपाली भी अपने मम्मी पापा के कमरे में ही बैठी थी. उसका भाई सो चुका था और वो मम्मी पापा के साथ बैठी एक मूवी देख रही थी. मूवी देखते देखते वो वहीं बिस्तर पर लेट गयी और पता ही ना चला के कब आँख लग गयी.

उसको किसी ने हिलाया तो रूपाली की नींद टूटी. पापा उसको बिस्तर के बीच से उठाकर एक तरफ लिटा रहे थे.

"पापा" उसने नींद में कहा

"सो जाओ बेटा" पापा ने कहा और उसको थोड़ा साइड करके लिटा दिया.

आँखें बंद करने से पहले रूपाली ने देखा के बिस्तर के एक तरफ उसके भाई लेटा था, फिर वो और उसके साइड में पापा खुद लेटे हुए थे. उसने फिर से आँख बंद कर ली और सो गयी.

किसी के बात करने की आवाज़ सुनकर उसकी कच्ची नींद फिर से खुल गयी. उसने आँखें खोल कर देखा तो वो अब भी मम्मी पापा के कमरे में ही सो रही थी. कमरे में नाइट बल्ब जल रहा था और लाल रंग की हल्की सी रोशनी फेली हुई थी. मम्मी पापा कुच्छ बात कर रहे थे. रूपाली ने फिर आँख बंद करके सोने की कोशिश की पर अपने माँ बाप की बातें उसके कानो में पड़ने लगी.

"रूपाली को उसके कमरे में ही सुला आते ना" मम्मी कह रही थी

"नींद खराब हो जाती उसकी. सोने दो यहीं" पापा ने कहा

"तो आज रात ना करो फिर. जवान बेटी बगल में सो रही है कुच्छ तो शरम करो" मम्मी ने हल्के से हस्ते हुए कहा.

"अर्रे तो मैं कौन सा सब कुच्छ करने को कह रहा हो. बस ज़रा मुझे ठंडा कर दो वरना नींद नही आ रही" पापा की आवाज़ आई

"खुद तो आप ठंडे हो लोगे" मम्मी ने कहा "और मैं?"

"अर्रे तुम खुद ही तो कह रही हो के तुम्हारा महीना चल रहा है" पापा बोले तो रूपाली समझ गयी के वो किस बारे में बात कर रहे हैं.

जब उसके पीरियड्स शुरू हुए थे तो मम्मी ने समझाया था के ये हर औरत को हर महीने होता है. रूपाली ने बच्पने में पुछ लिया था के क्या उन्हें भी होता है और मम्मी ने हस्ते हुए कहा था के हां उन्हें भी हर महीने ऐसा ही होता है. पर मम्मी के पीरियड्स से पापा को क्या मतलब?

"वैसे अगर तुम चाहो तो कर तो मैं अब भी कर सकता हूँ" पापा बोले "थोड़े बहुत खून से ना तो मुझे कभी घबराहट हुई और ना ही डर लगा"

"छियैयियी" मम्मी ने कहा "बिल्कुल भी नही"

रूपाली फ़ौरन समझ गयी के पापा क्या करने की बात कर रहे थे. वो खेल जो उसने कुच्छ टाइम पहले देखा था आज रात फिर वही होना था.

रूपाली के दिमाग़ ने चिल्ला कर कहा के वो फ़ौरन अपने माँ बाप को बता दे के वो जाग रही है ताकि वो रुक जाएँ. उसने अपनी आँखें बंद कर रखी थी पर जानती थी पापा उसके बिल्कुल बगल में लेटे हुए थे और जो कुच्छ भी होता वो सब देखने वाली थी. वो इसके लिए अभी तैइय्यार नही थी. उसने अब तक अपने आपको उस दिन मम्मी पापा के कमरे में झाँकने के लिए माफ़ नही किया था और अब फिर से? नही ये नही हो सकता. वो ऐसा नही कर सकती.

सोचते हुए रूपाली ने अपनी आँखें खोली. कमरे में बस नाम बराबर की रोशनी थी इसलिए अगर उसकी आँखें खुली भी होती तो उसके माँ बाप को पता ना चलता. रूपाली ने कुच्छ कहने के लिए मुँह खोला ही था के सामने नज़र पड़ते ही उसकी ज़ुबान अटक गयी.

पापा अब भी बिस्तर पर उसके साइड में लेती हुए थे और मम्मी सामने शीसे के सामने खड़ी अपने बॉल बाँध रही थी. उनकी पीठ रूपाली की तरफ थी और हल्की सी रोशनी में रूपाली को पता चल गया के उन्होने सिर्फ़ एक पेटिकट पहेन रखा था. ना तो जिस्म पर सारी थी और ना ही ब्लाउस.

रूपाली समझ गयी के काफ़ी देर हो चुकी थी. उसको समझ नही आया के अब जबकि उसकी माँ कमरे में आधी नंगी खड़ी है तो वो कैसे ये एलान करे के वो जाग रही है.

तभी उसकी माँ पलटी और रूपाली के दिमाग़ ने जैसे काम करना बंद कर दिया.

उसकी माँ उपेर से पूरी नंगी थी. नाभि से थोड़ा सा नीचे पेटिकट बँधा हुआ था और उसके उपेर कुच्छ नही. रोशनी बहुत कम थी इसलिए रूपाली को सॉफ कुच्छ भी नही दिख रहा था पर उस हल्की सी रोशनी में उसकी नज़र अपनी माँ की चूचियो पर अटक गयी.

उसकी माँ की चूचियाँ काफ़ी बड़ी बड़ी थी और अपने ही वज़न से हल्की सी ढालाक कर नीचे को हो रखी थी. रूपाली को इससे पहला को वो दिन याद आया जब उसने अपनी माँ को नंगी देखा था. उस दिन मम्मी दीवार से सटी खड़ी थी इसलिए वो उन बड़ी बड़ी चूचियो को बस साइड से ही देख पाई थी पर आज सामने से देख रही थी. कमरे में अंधेरा होने की वजह से बस चूचियो की जैसे आउटलाइन ही नज़र आ रही थी.

रूपाली को एक पल के लिए अंधेरे का अफ़सोस हुआ और उसको लगा के काश रोशनी होती तो वो अच्छे से अपनी माँ को देख पाती.

और अगले ही पल वो शरम से पानी पानी हो गयी. उसके दिमाग़ ने उसको धिक्कारा के अपनी माँ के बारे में ऐसा सोच रही है.

मम्मी धीरे धीरे चलती बेड के नज़दीक आई. वो बेड के पास पापा के पैरों की तरफ आकर खड़ी हो गयी और धीरे से अपने हाथ उठाकर अपनी दोनो चूचिया अपने हाथ में पकड़ ली.

और धीरे धीरे दोनो चूचियाँ दबाने लगी.

रूपाली को ये बड़ा अजीब और अच्छा भी लगा. वो गौर से अपनी माँ को देखने लगी.

"अर्रे वहाँ क्या खड़ी हो. जल्दी यहाँ आओ ना" पापा की आवाज़ आई तो

रूपाली को एहसास हुआ के पापा उसके बिल्कुल बगल में लेटे हुए हैं. वो और पापा दोनो ही सीधे अपनी कमर पर आस पास लेटे हुए थे. रूपाली ने बिना अपनी गर्दन हिलाए अपनी नज़र घुमाई और पापा की तरफ देखा.

पापा भी कमर के उपेर बिल्कुल नंगे थे और उन्होने नीचे सिर्फ़ पाजामा पहेन रखा था. रूपाली ने देखा के उनके अपनी लड़कों वाली चीज़ को धीरे धीरे पाजामे के उपेर से रगड़ रहे थे और पाजामा वहाँ से उपेर को उठा हुआ था. वो जानती थी के ऐसा क्यूँ है. उस दिन भी उसने देखा था के पापा का एकदम टाइट हो रखा था और अब भी शायद पाजामे के अंदर ऐसे ही टाइट है जिसकी वजह से पाजामा उपेर है.

"क्या हमेशा लड़कों का ऐसा ही रहता है?" उसने सोचा "अगर हां तो आज से पहले पापा के पाजामे में ऐसा उठा हुआ क्यूँ नही दिखा?"

अगले ही पल रूपाली को उसके दिल ने फिर धिक्कारा के अपने पापा के बारे में ऐसा सोच रही है.

"रूपाली सो गयी ना?" उसकी माँ ने कहा तो पापा और मम्मी दोनो ने एक साथ रूपाली की तरफ देखा.

रूपाली ने फ़ौरन अपनी आँखें बंद कर ली.

"हां सो गयी वो" पापा बोले "अब उसको छ्चोड़ो और मेरे छ्होटे भाई को सुलाओ ताकि उसके बाद मैं भी आराम से सो सकूँ"

"छ्होटा भाई" रूपाली ने आँखें बंद किए हुए सोचा.

थोड़ी देर तक वो ऐसे ही चुप चाप आँखें बंद किए लेटी रही. आवाज़ और बेड के हिलने से उसको अंदाज़ा हो गया के मम्मी भी बेड पर आ चुकी हैं. थोड़ी देर तक बेड पर यूँ ही कभी किसी के हिलने की और कभी कपड़ो की आवाज़ होती रही.

"क्या आज भी पापा ऐसे ही मम्मी के पिछे से कर रहे हैं?" रूपाली ने सोचा

थोड़ी देर बाद आवाज़ आनी बंद हो गयी और सब खामोश सा हो गया.

"आअहह मेरी जान" पापा की आवाज़ आई.

रूपाली ने हिम्मत करके आँखें फिर खोली और कुच्छ पल के लिए समझने की कोशिश करने लगी के कमरे में हो क्या रहा है.

उसके पापा अब भी वैसे ही उसके बगल में लेटे हुए थे. मम्मी उनके पैरों के बीच बैठी हुई थी और आगे को झुकी हुई थी. उनके बॉल उनके चेहरे पर बिखर कर पापा के पेट पर गिरे हुए थे.

पापा के पेट पर नज़र पड़ते ही रूपाली समझ गयी के पापा ने पाजामा सरकाकर घुटनो तक कर रखा है.

उसकी माँ का सर उपेर नीचे हो रहा था और रूपाली समझ नही पा रही थी के माँ कर क्या रही है.

"ये बाल काट लो यहाँ से" कहते हुए उसकी माँ ने अपना सर उठाया.

अंधेरे में रूपाली ने देखा के उन्होने हाथ में एक डंडे जैसी चीज़ पकड़ रखी थी जो रूपाली अच्छी तरह जानती थी के क्या है. मम्मी उसको हाथ में पकड़ कर उपेर नीचे कर रही थी.

"क्यूँ तुम्हें मेरे बालों से क्या तकलीफ़ है?" पापा ने कहा

"अर्रे मैं मुँह में नही ले पाती ढंग से" मम्मी बोली "बाल मुँह में आते हैं तो अजीब सा लगता है"

क्रमशः........................................
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