RE: Hindi Chudai Kahani मैं और मेरी स्नेहल चाची
दूसरे दिन ऑफ़िस से मैं वापस आया तो लता आंटी पहले ही आ गयी थीं. वहीं सोफ़े पर लैपटॉप लेकर बैठी थीं. मुस्कराकर बोलीं "आज मैं लंच के बाद ही आ गयी, ऑफ़िस में कह दिया मुझे सेल पर कॉन्टेक्ट करें. तुमको बुलाने वाली थी पर फ़िर सोचा कि यह ठीक नहीं, कहते हैं ना कि गन्ना अच्छा लगे तो ऐसे जड़ से उखाड़ कर नहीं खाते, दूसरी बार के लिये बचा कर रखते हैं. विमलाबाई अभी गयी हैं, अच्छा पुलाव बना कर रखा है"
मैं उनके पास गया तो उन्होंने बड़े प्यार से अपना चेहरा मेरी तरफ़ कर दिया, किस एक्सपेक्टेड था. मैंने एक गहरा लंबा चुंबन लिया उनके उन मोहक होंठों का. लगता है वे कभी कभी स्मोक करती थीं, उनके मुंह से महंगी सिगरेट की हल्की खुशबू आ रही थी, पर उनके होंठों से मुझे वह भी एक्साइटिंग लगी. आज उन्होंने कॉटन की एक सादी नाइटी पहनी थी. कल शायद स्पेशल रिझाने वाली लिंगरी पहनी थी, आज उसकी जरूर नहीं थी, एक ही रात में उन्होंने मुझे वश में कर किया था.
मैं भी वहीं सोफ़े पर उनके पास बैठ गया. यह भी मन में आया कि आज वे शाम से नाइटी पहनकर बैठी हैं याने आज भी उनका कहीं जाने का इरादा नहीं है, सीसीडी भी नहीं, याने शायद प्रेमालाप जल्दी ही शुरू करने का प्लान है मैडम का. मन में मादकता की एक लहर दौड़ गयी, कल पहली बार थी इसलिये हम दोनों ने जरा जल्दबाजी की चुदाई की थी जैसे कोई बहुत भूखा हो तो स्वादिष्ट व्यंजन भी बिना चबाये बकाबक निगल जाता है, बिना उनका पूरा स्वाद लिये. आज की रात वो स्वाद लेने का समय मिल जाये, ऐसा मैं मन ही मन मना रहा था.
वे सामने के टीपॉय पर पैर फैलाकर बैठी थीं आज उन्होंने एकदम व्हाइट बिलकुल पतले सोल की और नूडल जैसे पतले स्ट्रैप्स की फ़्लिप फ़्लॉप स्लीपर पहनी थी. मेरा ध्यान बार बार उसपर जाने लगा, मुझे लगा कि अब शायद जरूर मेरा दिमाग घूम गया है, जो सुन्दर पैरों में लटकी उनकी सुन्दर स्लीपरों में जाकर इस तरह से अटक गया है.
लता आंटी ने मेरी नजर देखी तो बोलीं "अच्छी हैं ना ये फ़्लिप फ़्लॉप? मैं पेरिस गयी थीं, तब काल्विन क्लीन के यहां से लाई थी, एकदम सेक्सी लगीं मुझे भी"
"हां आंटी, बहुत प्यारी है खास कर आपके इन गोरे नाजुक पैरों में बहुत जचती हैं"
वे मुस्करायीं और काम करती रहीं. बीच बीच में मेरी ओर देखती थीं. मेरा ध्यान बस बार बार उनके टीपॉय पर रखे पांवों पर ही जा रहा था. थोड़ी देर से वे सोफ़े में घूम कर उसके आर्मरेस्ट से टिक कर बैठ गयीं और लैपटॉप गोद में लेकर पैर उठाकर सोफ़े पर रख लिये. मैं उठने लगा कि से आराम से बैठ सकें, उनको पैर पूरे सीधे करने की जगह मिले तो उन्होंने मुझे इशारा किया कि बैठा रहूं. फ़िर अपने पैर सीधे करके मेरी जांघों पर रख दिये और फ़िर से लैपटॉप पर काम करने लगीं.
उनके पांव मेरी क्रॉच पर थे. कुछ देर तो वे वैसी ही शांत पैर रखे काम करती रहीं, फ़िर उनके पैरों ने धीरे धीरे मेरे लंड को पैंट के ऊपर से ही दबाना शुरू कर दिया. पहले मुझे समझ में नहीं आया, लगा अनजाने में हो गया होगा पर फ़िर जब लगातार उनका एक पैर ऊपर नीचे होने लगा तो समझ में आया कि मुझसे मस्ती वाला खिलवाड़ हो रहा है. चाची हाथ से करती थीं, आंटी पैर से कर रही हैं. मेरा लंड भी सिर उठाने लगा. जल्दी ही वह तन कर खड़ा हो गया.
"तेरे शौक वाले बहुत लोग हैं इन्टरनेट पर. क्या क्या करते हैं देख स्लीपरों और सैंडलों के साथ" कहकर उन्होंने अपना लैपटॉप मेरी ओर बढ़ा दिया. मैं लेने लगा तो बोलीं "ऐसे नहीं, ज़िप खोल, अपने यार को बाहर निकाल और फ़िर देख. तब मजा आयेगा"
मैंने चुपचाप उनका आदेश माना, अपने तन्नाये लंड को ज़िप से बाहर निकाला. आंटी ने उसे तुरंत अपने पैरों के बीच ले लिया और पैरों से सहलाने लगीं. मैं लैपटॉप लेकर देखने लगा. एक्सहैमस्टर पर एक वीडियो चल रहा था. देख कर मेरे कान गर्म हो गये, लगा कि यार मैं भी क्या ऐसा ही पागल दीवाना हो गया हूं. पर मेरे साले लंड को शायद वो वीडियो अच्छा लगा क्योंकि वह और उचकने लगा, शायद उसे भी वह वीडियो देखना था.
वीडियो में बस एक मर्द का लंड और हाथ दिख रहे थे. वह लंड से एक सुंदर सुनहरी लेडीज़ हाई हील सैंडल को चोद रहा था. सैंडल को पकड़कर पंजे की तरफ़ से सोल और पट्टों के बीच घुसा घुसा कर मुठ मार रहा था. दो मिनिट का वीडियो था, एक मिनिट में ही उसका वीर्य उस सैंडल के सोल पर बहने लगा था. दूसरे मिनट में उसके हाथ में एक रबर की स्लीपर थी और उसके सोल पर लंड को घिस रहा था. आखिर में वही, उस स्लीपर के पट्टे और सोल पर स्खलन!
अचानक मैंने महसूस किया कि आंटी के पैर ने मेरे लंड को तलवे और स्लीपर की सोल के बीच पकड़ लिया था और ऊपर नीचे पांव करके वे मेरे लंड को अपनी स्लीपर और तलवे के बीच पिलवा रही थीं. याने उस वीडियो से भी एक कदम आगे जाकर मेरे लंड को उनके पांव और स्लीपर को चोदने का मौका दे रही थीं. उधर वह वीडियो खतम होकर फ़िर चालू हो जाता था.
मैं इतना एक्साइट हुआ कि हद नहीं. यह लता आंटी भी क्या चीज थीं, मेरा ये नया नया शौक, जो मुझे भी ठीक से अब तक समझ में नहीं आया था, उन्होंने एक दिन में भांप लिया था. मेरी सांस जोर से चलने लगी तो हंसकर आंटी ने अपना पैर हटा लिया और लैपटॉप भी ले लिया "बाप रे, कितना आशिक है रे तू इनका, चल अब रहने दे नहीं तो तेरी पिस्टल की एक गोली अभी चल जायेगी, बिना किसी का कत्ल किये"
मैंने लंड को किसी तरह ज़िप में डाला और बैठ गया. लता आंटी की ओर देखा भी नहीं जा रहा था, शरम भी लग रही थी और दिल भी धड़क रहा था.
उन्होंने मेरा प्यार से चुंबन लिया, बोलीं "चल ऊपर चलते हैं, वह वाइन अभी बची है थोड़ी. ये ग्लास ले चल, मैं वाइन लेकर आती हूं"
मैं ऊपर गया. आंटी फ़्रिज से वाइन की बॉटल लेकर आयीं. दोनों ग्लासों में वाइन निकाली और बॉटल आइस बकेट में रखी. फ़िर ग्लास उठाकर चीयर्स बोलीं. वाइन सिप करते करते वे बोलीं. "शर्माने की जरूरत नहीं है विनय डार्लिंग. तेरा शौक कोई क्राइम थोड़े ही है! प्रेमिका की पैरों के प्रति आकर्षण तो मेजॉरिटी को होता है, वे बस उसे दबाये रखते हैं. वैसे मैं सोच रही थी तुम्हारे इस शौक के बारे में, बड़ा प्यारा फ़ेतिश है, लेडीज़ के स्लिपर्स और सैंडल्स का. रंगीन रसिक तबियत का यह प्रमाण है. तुमको मालूम है कि वाइन और इसका भी पुराना नाता है?"
"कैसा नाता आंटी?"
"पुराने जमाने में वेस्टर्न कंट्रीज़ में लोग अपनी प्रेमिका के शू में से वाइन या शेम्पेन पीते थे, उससे प्यार का इजहार करने" मेरी ओर देखते हुए आंटी बोलीं.
मैंने इमेजिन किया कि मैं आंटी के एक सैंडल में से वाइन पी रहा हूं. वैसे उबकाई वाला काम है पर आंटी के उन खूबसूरत पैरों के बारे में सोचा तो फ़ैंटसी काफ़ी एक्साइटिंग थी. मेरा लंड थोड़ा और तन गया. आंटी हंसने लगीं. "इसे देखो कितना अच्छा लगा आइडिया. पर मेरे पास बंद ड्रेस शूज़ नहीं हैं अभी, बस सैंडल हैं और स्लीपर हैं." अपना पैर आगे बढ़ाकर वे बोलीं
पास से मैंने उनकी नाजुक गोरी उंगलियों से लटकती सफ़ेद स्लीपर को देखा तो साला बदमाश लंड और तन्ना गया. मैंने आंटी की तरफ़ देखा तो वे हंस रही थीं. उनकी आंखों में भी चैलेंज था. उनकी आंखें मानों कह रही थीं कि तेरे मन को तू पिन्जरे से निकाल सकता है? उसकी हर बात मान सकता है? मैंने अचानक फैसला कर लिया कि इस गेम में उनसे मैं हार नहीं मानूंगा, अब जो मन मांगेगा वो बिना शर्म के करूंगा. आंटी की तरफ़ देख कर मैंने कहा "इनमें से उन पुराने विक्टोरियन लवर्स जैसा पी तो नहीं सकता आंटी पर चाट जरूर सकता हूं" उनके स्लीपर की ओर इशारा करते हुए मैंने कहा.
आंटी ने बिलकुल सीरियस होकर अपनी स्लीपर उतारी. उसपर अपनी ग्लास से थोड़ी सी वाइन उड़ेली और स्लीपर मेरे मुंह के पास ले आयीं. मैं चाटने लगा. बहुत अजीब सा लग रहा था पर जो भी लग रहा था वह बहुत मादक और चुदासी भरा था. अलग तरह का कोई हरामीपन कर रहा हूं यह एहसास और वो भी ऐसा कि जिससे आंटी का गुलाम बनते जाने की मेरी ख्वाहिश प्रूव होती हो.
आंटी मेरी आंखों में देखती हुई अपने हाथ में अपनी स्लीपर लेकर मुझसे वाइन चटवाती रहीं. खतम होने पर उन्होंने और थोड़ी से उसके पंजे पर डाली और फ़िर मेरे मुंह के पास ले आयीं. मैं फ़िर चाटने लगा. एक मिनिट के बाद उन्होंने वह स्लीपर मेरे ही हाथ में पकड़ा दी "अब तू ही पकड़ अपनी डिश, मुझे भी वाइन टेस्ट करने का एक आइडिया सूझा है. तुझे मालूम है - मुझे भी कभी कभी वाइन चाटने में मजा आता है? याने किसी डेलिकेसी पर जैसे फ़्रेन्च टोस्ट या मालपुआ, उसपर वाइन लेकर चाटने में काफ़ी मजा आता है. अब मैं भी अभी ऐसे ही वाइन टेस्ट करूंगी, तेरे इस ज्यूसी बनाना पर. चल आ, लेट इधर"
उन्होंने अपने ग्लास से थोड़ी सी वाइन मेरे लंड पर डाल दी, फ़िर उसे चाटने लगीं. कुछ वाइन नीचे पेट पर बह आयी थी, उसे भी उन्होंने चाट लिया.
एक दो बार इसे रिपीट करने के बाद उन्होंने मेरे हाथ से अपनी स्लीपर ले ली और कहा ’मुंह खोल" मुझे समझ में नहीं आया कि ये अब क्या करने वाली हैं, वाइन तो खतम हो गयी, मैंने चाट ली, पर उनके स्वर में वासना भरा एक आदेश था जिसे न मानना मेरे बस में नहीं था. मैंने मुंह खोला तो लता आंटी ने अपनी स्लीपर का पंजा मेरे मुंह में ठूंस दिया. कोई एक्स्प्लेनेशन नहीं, बस यह गुमान कि मैं जो करूं, उसे चुपचाप करवा ले. तब तक मेरा लंड एकदम टनटना गया था. बिना कुछ बोले वे मेरे ऊपर चढ़ीं और चोदने लगीं.
यह बड़ी डिलिशस क्विकी थी. उनकी उस स्लीपर को मुंह में लेकर मेरा लंड ऐसा तना था जैसे रोटी बेलने का बेलन. आंटी ने भी मन भर कर चोदा मुझे और जब तक खुद नहीं झड़ गयीं, वह स्लीपर मेरे मुंह में ही रहने दी. शायद अपने गुलाम का मुंह बंद करके उसे चोदने का यह एक तरीका था.
उसके बाद उस रात भी हमने बहुत कुछ किया जो डीटेल में बताने की जरूरत नहीं है, ये दो तीन घटनायें इसकी परिचायक हैं कि लता आंटी का दिमाग किस कदर सेक्सी और थोड़े हट कर - परवर्टेड - भी कह सकते हैं, मार्गों पर चलता था. तब तक मैं इनको बड़ी लाइटली ले रहा था, मजेदार हरामीपन भरे हुए करम ही थे तो ये, और कुछ नहीं. मुझे यह अंदाजा नहीं था कि ये सब मतवाले खेल बस खेल खेल में कभी करने के लिये हैं या आगे ये बढ़ते जायेंगे? दूसरे दिन नीलिमा का फोन आने के बाद और एक दो चीजें देखने के बाद इस बारे में मेरे मन में सैकड़ों प्रश्न खड़े हो गये.
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