RE: Hindi Chudai Kahani मैं और मेरी स्नेहल चाची
एयरपोर्ट आने के दस मिनिट पहले चाची ने अपना काम बंद कर दिया कि मुझे संभलने का मौका मिले नहीं तो तंबू लेकर सबसे सामने उतरना पड़ता. एयरपोर्ट पर चेक इन होने के बाद चाची और नीलिमा वहां दर्शक दीर्घा के पास आयीं जहां मैं इंतजार कर रहा था. नीलिमा पास के शॉप में घुस गयी, काजू के पैकेट लेने, जो वह साथ लेना भूल गयी थी. अकेले में चाची ने धीरे से मुझे कहा "विनय बेटे, तूने मुझे इन दो महनों में बहुत सुख दिया है, इतना सुख कि उतना शायद अरुण ने भी न दिया हो. तू था तो अरुण की यादें भुलाना मेरे लिय जरा आसान हो गया"
मैं उनकी ओर देखने लगा. चाची क्या नीलिमा के नहले पर दहला मार रही थीं! वे मुस्करायीं "सच कहती हूं, तूने इतनी सेवा की है मेरी कि उतनी तो शायद अरुण ने भी नहीं की. नीलिमा इस बारे में जरा भोली है, उसे अरुण के साथ मेरे संबंध के बारे में मालूम नहीं है, याने हम मां बेटे में कितने करीब का नाता है, इसका उसे जरा भी अंदाज नहीं है. मैंने भी नहीं बताया, सोचा जब तक अरुण यहां हमारे साथ नहीं है, ऐसा ही चलने दो. वैसे नीलिमा थोड़ी चतुर होती, तो उसको जरूर संदेह हुआ होता पर अब तक तो वो कुछ बोली नहीं. अब तीनों वहां रहने पर शायद अपने आप ही राज खुल जायेगा, पर अब जब मेरी बहू ही मेरे इतने पास आ चुकी है, अब गुस्सा वगैरह आने का सवाल ही नहीं है"
मेरे चेहरे के भाव देखकर फिर चाची बोलीं "वापस आने के बाद पूरी कहानी प्यार से बताऊंगी तेरे को, बहुत मतवाली कहानी है हम मां बेटे की. अब तू ही देख, जब तेरे माधव चाचा आस्ट्रेलिया गये, तब मैं थी छत्तीस साल की और अरुण अठारह साल का, एकदम नयी जवानी थी उसकी. दोनों का नेचर इतना .... अब क्या कहूं, तू जानता है मेरा स्वभाव, मेरी पसंद .... अब अकेले रहने पर यह होना ही था. अरुण की वजह से मेरे वे दिन बहुत सुख आनन्द में गये. उसने भी मुझपर बहुत प्यार किया, वो तो शादी भी नहीं कर रहा था, इसीलिये तो इतनी लेट मैरिज की. फ़िर मैंने समझाया, नीलिमा को देखकर मुझे उसकी छुपी कामुकता का अंदाजा हो गया, मैंने ठान ली कि इसीसे अरुण की शादी करूंगी और अरुण ने भी मेरी बात मानी, अब देखो कैसी मस्ती में रहेंगे वे दोनों वहां अमेरिका में"
मैंने चाची का हाथ थपथपाकर संकेत दिया कि मैंने उनके मन की बात समझ ली है.
"तुझे मैंने काफ़ी सताया है, वैसे तेरे साथ और बहुत कुछ करने का, बहुत तरीके से तुझपर प्यार करने का मन था मेरा पर उसके लिये समय चाहिये, जो अब मेरे वापस आने के बाद जरूर मिलेगा. तेरे भी मन में बहुत सी इच्छायें होंगी अपनी इस चाची के प्रति, अब जब मैं वापस आऊं तब करेंगे, ठीक है ना? तब तक लता का खयाल रख, वो तेरा खयाल रखेगी"
नीलिमा काजू लेकर आयी और फ़िर फ़ाइनल बाइ कहकर चाची और नीलिमा अंदर चले गये. मैंने हाथ हिला कर बिदाई दी, जाते जाते नीलिमा ने जब मुड़ कर देखा तो उसको एक बड़ी स्माइल दी, करीब करेब उसी अंदाज में जिसमें कभी कभी भाभी मेरी टांग खींचती थी. उस स्माइल के हाव भाव देखकर उसने भोंहें चढ़ा कर इशारे से पूछा कि क्या बात है पर मैं कुछ नहीं बोला. मन ही मन कहा कि भाभी, तुम सेर हो तो तुम्हारी सास सवा सेर है, तेरे को जल्दी ही पता चल जायेगा.
फ़्लाइट जाने तक मैं रुका, फ़्लाइट आधा घंटा लेट थी इसलिये बीच रास्ते में खाना खाकर घर आते आते साढ़े नौ बज गये. चाची ने जताया था, उसके अनुसार मैं एक अच्छी महंगी वाली वाइन भी लेता आया.
घर आकर बेल बजाई. थोड़ी देर से लता आंटी ने दरवाजा खोला, मैं उनकी ओर देखता ही रह गया. वे शायद अभी अभी नहा कर आयी थीं, बाल थोड़े गीले थे और उन्होंने वैसे ही खुले छोड़ दिये थे. एक आसमानी कलर की नाइटी पहनी थी, बहुत महंगी वाली लग रही थी, और थी भी बड़ी आकर्षक, पर पारदर्शक नहीं थी इसलिये अंदर क्या पहना था, यह नहीं दिख रहा था. कमर पर सिल्क का बेल्ट बंधा था और उससे उनका अवर-ग्लास फ़िगर एकदम उठ कर दिख रहा था. मेरे अंदर आने के बाद जब दरवाजा लगाकर वे मुड़ीं तो उनके गोरी गोरी डार्क ब्राउन नेल पेंट लगी उंगलियां और संगमरमर जैसे पांव दिखे, पैरों में वे एक लाल रंग की थोड़ी हाई हील वाली रबर की स्लीपर पहने थीं.
"लेट हो गये विनय? लगता है फ़्लाइट लेट थी. मुझे लगा ही. पहले सोचा था कि तू आने के बाद पास वाले सीसीडी में जाकर कॉफ़ी पियेंगे पर अब रहने दे. मुझे गरमी भी हो रही थी, दोपहर को ही नहायी थी फ़िर भी यहां आकर फ़िर से नहाने का मन हो लिया"
"आंटी ... वो मैं ये वाइन लाया था ... याने आप को चलेगा ना ..?" मैंने थोड़ा झिझकते हुए कहा.
"बहुत अच्छा किया, मैं आइस पर रख देती हूं"
"बस आंटी मैं भी नहा कर आता हूं" कहकर मैं ऊपर चला गया. जाते जाते लता आंटी ने नीचे से आवाज दी "अरे विनय, मेरा सब सामान बुरी तरह बिखरा पड़ा है स्नेहल के कमरे में. इसलिये नहाने को फ़िर तेरे कमरे के बाथरूम में चली गयी. तुझे चलेगा ना?"
यह क्या पूछने की बात थी, इतनी सुंदर नारी मेरे बाथरूम में नहाये और फ़िर मुझे पूछे कि चलेगा ना. मैं बोला "आप भी आंटी ... यह कोई पूछने की बात है" आगे बोलने वाला था कि मेरा बाथरूम क्या, मैं पूरा खुद आपका हूं आंती पर चुप रहा कि उन्हें न लगे कि लड़का ओवरस्मार्ट है.
ऊपर आकर कुतूहल से मैं पहले चाची के कमरे में गया. लता आंटी के सब सूटकेस खुले पड़े थे, कपड़े आधे अंदर और आधे बिस्तर पर थे, बाकी चीजें भी इधर उधर बिखरी हुई थीं. तीन चार चप्पल और सैंडल के जोड़े जमीन पर इधर उधर पड़े थे. एक खुले सूटकेस में उनकी और सैंडलें और चप्पलें भरी हुई थीं. एक से एक पेयर्स थे, अच्छी क्वालिटी के और खूबसूरत. चार पांच जोड़ तो रबर की स्लीपरें ही थीं, अलग अलग कलर की, शायद नाइटी से मैच करके पहनती होंगी. सैंडल हर किस्म के थे, हाइल हील, पीप टो, प्लेटफ़ॉर्म. वैसे भी सुंदर स्त्रियों के पास अक्सर जूते चप्पल के जरूरत से ज्यादा जोड़ होते ही हैं, और यहां तो वे बड़ी ऑफ़िसर भी थीं.
मेरा बहुत मन आया कि उनको जरा ठीक से देखूं, आज कल ऐसी खूबसूरत चप्पलें और सैंडलें देख कर मेरा मन बहुत बहकता था. मैं कभी कभी सोचता था कि आखिर ऐसा क्यों हो गया! तीन चार महने पहले तक तो ऐसा नहीं था, याने खूबसूरत पांव और आकर्षक सैंडल तो सभी मर्दों को लुभाते हैं, पर यह सादा आकर्षण ऑब्सेशन में कब तब्दील हो गया? शायद चाची के प्रति वासना जागने के बाद, जब उनपर निगाहें जाने लगीं तो उनके साड़ी से ढके बदन में देखने लायक गिने चुने अंग ही थे, उनमें से उनके पांव जरा ज्यादा खूबसूरत निकल आये इसलिये मेरे मन ने खूबसूरत पैरों, चप्पलों और सेक्स को आपस में जोड़ लिया. यह मेरी खुद की अमेचर साइकोएनालिसिस थी, और मुझे उसपर हंसी भी आ गयी.
खैर, उनके सैंडलों पर समय बिताने का खयाल मैंने छोड़ दिया. अभी अगर आंटी बाइ चांस ऊपर आ गयीं और मुझे अपनी सैंडलों से खेलते देख लिया तो? फ़िर लगा कि हो सकता है वे कुछ नहीं कहेंगी, बल्कि मुस्कराकर मुझे मेरे रंगीन मिजाज पर शाबासी देंगीं.
चाची के कमरे से मैं अपने कमरे में आया. आंटी का कुछ सामान वहां भी था. ड्रेसिंग टेबल पर उनके क्रीम, लोशन, सेंट, डीओ इत्यादि इत्यादि पड़े थे. नीचे उनके दोपहर को पहने वाले सफ़ेद हाई हील सैंडल उलटे सुलटे पड़े थे. मेरा कुरता पायजामा मेरे बिस्तर पर रखा था. याने आंटी ने बड़े प्यार से अधिकार जमाते हुए मेरे बेडरूम पर भी कब्जा कर लिया था.
मैंने उनके सैंडल उठाये और ठीक से रख दिये, उनके सोल के मुलायम स्पर्ष से रोम रोम में एक सिहरन दौड़ गयी. मैंने नाक के पास ले जाकर उन्हें सूंघा. महंगे लेदर के साथ साथ आंटी के पांवों की खुशबू भी थी उनमें. अचानक मन में आया कि उन्हें किस कर लूं. बड़ी मुश्किल से अपने आप को मैंने रोका. एक बार शुरू हुआ तो मेरा रहा सहा कंट्रोल जाता रहेगा, ये मुझे मालूम था.
कपड़े उतार कर मैं बाथरूम में गया. वहां रॉड पर उनकी काली ब्रा और पैंटी लटकी हुई थी. एकदम नाजुक लेस की बनी वह लिंगरी देखकर मेरे लंड ने तुरंत खड़े होकर उन्हें सलामी दी. मैंने उन्हें हाथ में लिया और फ़िर नाक के पास ले गया. सेंट के साथ साथ आंटी के बदन के पसीने की खुशबू थी उनमें. ब्रा एकदम सूखी थी पर पैंटी की क्रॉच थोड़ी गीली थी. पहले मुझे लगा कि पानी लग गया होगा पर फ़िर जब सूंघा तो नारी योनि की तेज गंध उसमें से आयी. याने आंटी की चूत का रस उसमें टपक गया था. अब आंटी इतनी मस्त क्यों हो गयी होंगी अकेले में कि उनकी पैंटी गीली हो जाये, यह सवाल मेरे मन में आया. फ़िर एक मीठी सी आवाज आयी, यार विनय तेरे बारे में सोच कर तो नहीं! याने तेरे साथ क्या प्लान बन रहे होंगे आंटी के मन में. फ़िर अपने आप को संभाला कि विनय राजा, ऐसा न उचक, हो सकता है कि दीपिका की याद आ रही होगी उन्हें.
चाची को मैंने मन ही मन नमस्कार किया कि वे मेरा इस तरह से इंतजाम करके गयीं. मैं नहाने लगा. साला लंड ऐसा खड़ा था कि बैठ ही नहीं रहा था. उसको वैसे ही तन्नाया लिये हुए मैं बदन पोछते नंगा ही बाहर आया तो ठिठक गया. लता आंटी वहीं मेरे कमरे में दीवार से टिक कर मेरा इंतजार कर रही थीं.
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