RE: Hindi Chudai Kahani मैं और मेरी स्नेहल चाची
उस दोपहर वाली मस्ती के बारे में मैंने नीलिमा भाभी को कुछ न बताने का फ़ैसला किया, उस दिन हुए रंगीन अजीब संभोग के बारे में बताना मुझे थोड़ा खल रहा थ, वह चाची और मेरे बीच की बात थी, नहीं तो चाची ने मेरे साथ अकेले में वह न किया होता. नीलिमा के साथ फ़िर से अकेले में गप्पें लड़ाने का मौका मुझे तीन चार दिन बाद मिला. उस दिन बड़ा सुहाना मौसम था, मैं जल्दी ट्रेनिंग से वापस आ गया था, नीलिमा ने रिज़ाइन कर दिया था इसलिये अब वह घर पर ही रहती थी. मैं, नीलिमा और चाची बाहर बगीचे में गार्डन चेयर्स पर बैठे थे. उतने में बाजू के बंगले की बूढ़ी महिला किसी काम से आयीं तो वो उठ कर उनके साथ अंदर चली गयीं.
चाची अपनी शांत धीमी चाल से, जिसे ’गजगामिनी’ कहा गया है, जब अंदर जा रही थीं तो पीछे से उनके उन हौले हौले डोलते हुए विशाल नितंबों को देखकर नीलिमा धीरे से मुझे बोली "क्या मस्त गांड है ना ममी की, एकदम मोटी ताजी! अरुण का अब तक इनपर ध्यान नहीं गया, यह बड़े अचरज की बात है, वो तो दीवाना है इस चीज का."
नीलिमा ने मेरी दुखती रग पर मानों उंगली रख दी थी. चाची की गांड के बारे में मुझे बताने की जरूरत नहीं थी, मैं वैसे ही दूर से चातक जैसा उसे देख देख कर आहें भरा करता था. पर अभी अपना दुखड़ा रोने का कोई मतलब नहीं था, इसलिये मैंने कहा "क्या बात करती हो भाभी! अरे वो मां हैं अरुण भैया की, ऐसा विचार भी अरुण के मन में नहीं आयेगा"
"तो क्या हुआ. ऐसा मतवाला पिछवाड़ा देखा है कभी और किसी का? अब ये बड़े बड़े कलाकंद के गोले तो गोले ही हैं, किसी के भी हों, स्वाद तो वही है ना?" नीलिमा बड़ी शैतानी के अंदाज में बोली "चलो जाने दो, तेरे को यह कल्पना सहन नहीं होती तो भूल जा, पर तुझे मालूम है ना कि अरुण उनका गोद लिया हुआ लड़का है? वैसे जो यह मैं कह रही हूं वह तब भी सच होती अगर उनका सगा बेटा होता"
मैंने मुंडी डुलाकर समर्थन किया. नीलिमा ने अपनी कुरसी मेरे और समीप सरकायी और धीरे से बोली "और उन महाशय की नजर जाती है ममी की तरफ़, ये मुझे पक्का मालूम है. पिछली बार वह ऑफ़िस के काम से चार दिन को आया था, तब तक मेरा और ममी का यह लफ़ड़ा भी शुरू हो चुका था. मैंने उसे बताया तो नहीं था पर काफ़ी हिंट देती थी, एक रात अरुण मेरी गांड मार रहा था और मेरे मम्मे दबा रहा था, मेरी खुशामद भी कर रहा था, बोला कि नीलिमा डार्लिंग, क्या कसे हुए मम्मे हैं तेरे, रबर की गेंद जैसे और ये चूतड़ याने स्पंज भरे हुए मुलायम तकिये तो मेरे मुंह से निकल गया कि मेरे राजा, ये तो कुछ भी नहीं ममीजी के सामने. मेरे मम्मे गेंद तो उनके वॉलीबॉल, मेरी गांड मुलायम तकिये तो उनकी डनलोपिलो के गद्दे. सुनकर अरुण बोला तो कुछ नहीं पर अचानक कस कस के मेरी मारने लगा. फ़िर बाद में बोला कि रानी, जरा ज्यादा ही हरामी सी हो गयी है तू, कुछ भी बोलती है, किस वक्त किस का नाम लेना यह भी तेरे ध्यान में नहीं रहता. मैंने उसे जरा सताया, बोली कि अरे ममी का नाम लिया तो तेरे धक्के क्यों तेज हो गये तो कुछ बोला नहीं, बस मुंह छिपा कर शरमा सा गया."
नीलिमा ने फिर मुड़ कर देखा कि स्नेहल चाची तो आस पास नहीं हैं. फ़िर बोली "दूसरे दिन मैंने फ़िर सताया उसको. धोने के कपड़ों की बास्केट में ममी की ब्रा पैंटी देखकर अरुण को बोली कि देख, तू ही देख, ममी की ब्रा और पैंटी की साइज़ क्या है. तो पहले थोड़ा शर्माया, फ़िर चिढ़ कर मेरे कान पकड़े. बाद में जब मैं किचन से आ रही थी कि अब कपड़े मशीन में डाल दूं तो देखा कि जनाब उस ब्रा और पैंटी को उठाकर सच में साइज़ देख रहे थे, फ़िर हाथ में लेकर अपनी नाक के पास ले जाने लगे. मेरी आहट सुनी तो उनको वैसे ही बास्केट में डाला और खिसक लिये.
थोड़ी देर नीलिमा चुप रही, फ़िर बोली "अब पता चला ना तेरे को? अरुण को हन्ड्रेड परसेंट अपनी मां में इंटरेस्ट है. अब देखो, वहां अमेरिका में मैं कैसे फंसाती हूं इन दोनों को! ऐसा जाल डालूंगी कि ... देखना विनय, वहां जाने के दो हफ़्ते के अंदर ना मैंने बेटे को मां पर चढ़ाया तो ..."
"भाभी, अब इतनी क्या पड़ी है तुमको ये सब करने की, तुम तो आम खाने से मतलब रखो, तुम्हारे पास तो तुम्हारे दोनों प्रियजन रहेंगे ही ना वहां? एक दोपहर में एक रात को सही, उन दोनों को जीने दो अपने तरीके से"
"मुझे दोनों साथ चाहिये. तेरे और ममी के साथ तिरंगी बाजियां खेलने की आदत पड़ गयी है मेरे को" नीलिमा मुझे आंख मार कर बोली. दो तीन मिनिट वह चुप रही, कुछ सोच रही थी. फ़िर बोली "यार विनय, मुझे कभी कभी संदेह होता है कि मैं फालतू उचक रही हूं, अरुण और ममी में पहले से ही कुछ तो चलता है!"
मैं चौंक गया. याने अब स्नेहल चाची और नीलिमा को इतने पास से जानकर, उनके दिल की गहराई में छुपी वासना का अंदाज होने पर भी इस बारे में मुझे ऐसा नहीं लगता था. आखिर बचपन से अरुण को उन्होंने गोद में खिलाया था. "कुछ भी कहती हो आप नीलिमा भाभी, ऐसा हो ही नहीं सकता"
"क्यों नहीं हो सकता? वो अरुण इतना ... एक नंबर का चोदू ... गांड मारू ..." नीलिमा अपने ही पति को प्यार में गाली देते हुए बोली "और ममी, इतनी सेक्सी, दिल में तरह तरह की चाहत लिये हुए ... और वे दोनों इतने साल अकेले रहते थे गोआ में ससुरजी के आस्ट्रेलिया जाने के बाद ... फ़िर उनको रोकने वाला कौन था?"
"अरे भाभी, पर हैं तो वे आखिर मां बेटे, अब माधव चाचा यहां नहीं थे तो वे अकेले ही रहेंगे ना, उसमें उनकी क्या गलती है!" मैंने कहा जरूर पर मेरे मन में भी एक गुदगुदी भरा शक पैदा होने लगा. "चलो भाभी, मान लिया पर फ़िर शादी होने पर ये सब एकदम बंद तो नहीं हो जाता? अरुण अगर चाची का सच में दीवाना होता तो तुमको जरूर पता चलता, आखिर वह उनसे बिलकुल अलग कैसे रहता, कभी ना कभी तो पकड़ा जाता!"
"अरे शादी होने के दस दिन बाद तो वह चला गया नाइजीरिया. फ़िर मैं वहां गयी. तब तो ममी थी ही नहीं हमारे साथ. जब से मैं वापस आयी हूं, वो बस तीन चार बार आया है वो भी चार पांच दिन को" नीलिमा बोली "वैसे जो तू कह रहा है वो भी सच है और एक बार शायद पकड़ा जाने वाला था वो ..."
मैंने नीलिमा की ओर देखा. उसने मेरी ओर देखकर कहा "एक दिन मैं अपनी सहेली के यहां गई थी, चार पांच घंटे के लिये, बहुत दिन बाद वह गोआ आई थी. अरुण दूसरे दिन वापस जाने वाला था और सामान वगैरह पैक कर रहा था. मैंने बताया था उसके जरा पहले वापस आ गयी थी. आकर बेल बजाई तो बहुत देर दरवाजा नहीं खुला. फ़िर से बेल बजाई तब आकर अरुण ने दरवाजा खोला. हांफ़ रहा था और पसीना पसीना था. बोला कि म्यूज़िक लगाकर व्यायाम कर रहा था इसलिये सुनाई नहीं दिया. अब शाम को कोई व्यायाम करता है क्या, और इसके पहले तो मैंने कभी उसे म्यूज़िक लगाकर उठक बैठक करते नहीं देखा. फ़िर अंदर आयी तो ममी नहाने को चली गयी थीं. अब शाम को नहाने का क्या तुक है? बाहर आकर बोलीं कि वे भी दो घंटे को बाहर गयी थीं, और पसीना पसीना हो गयी थीं इसलिये नहा लिया. तेरे को क्या लगता है? मुझे तो बहाना लगा. मेरा तो पक्का विश्वास है कि मां बेटे में कुश्ती चल रही थी"
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