Hindi Chudai Kahani मैं और मेरी स्नेहल चाची
06-21-2018, 12:02 PM,
#24
RE: Hindi Chudai Kahani मैं और मेरी स्नेहल चाची
मैं लेट उठा. ग्यारा बज गये थे. सीधा नहा धो कर ही नीचे आया. चाची अपने महिला मंडल को जा चुकी थीं. भाभी ने चाय बना दी. मैंने चाय ली, अखबार पढ़ा और फ़िर किचन में जाकर बैठ गया. रविवार को हम ब्रन्च करते थे. नीलिमा भाभी पराठे बना रही थी. आज उसने साड़ी पहनी थी जबकि घर में वह गाउन में ही रहती थी.

"ये क्या भाभी, आज अपना रोमांस का दिन है और आप बाहर जा रही हैं" मैंने शिकायत की.

"नहीं मेरे राजा, जरा अर्जेंटली जाना पड़ा, वो बाजू के बंगले की दादी आयी थीं, बोली कि नीलिमा, आज मंदिर जाना है, और कोई नहीं है, तू ले चल तो क्या करती. मुझे मालूम है आज अपना स्पेशल अपॉइन्टमेंट रहता है. अब आप बताइये आप के क्या हाल हैं मिस्टर विनय? कल रात तो जरा ज्यादा ही मूड में थे आप, कहां कहां हाथ लगा रहे थे, उंगली डाल रहे थे" भाभी आज खिलवाड़ के मूड में थीं.

"कहां कहां नहीं भाभी, खास जगह. मुझे तो कब से हाथ लगाना था, हाथ क्या और कुछ भी लगाना था, मौका ही नहीं मिल रहा था. मुझे ये भी पता नहीं कि ऐसे आप के पिछवाड़े खेलना आप को अच्छा लगता है या नहीं"

"याने जनाब को भी शौक है इसका, वही मैं सोच रही थी कि जो सब मर्द करने को मरे जाते हैं, वह आप ने अभी कैसे नहीं किया" भाभी मुझे चिढ़ाते हुए बोलीं. मेरी तरफ़ पीठ करके वो पराठे बेल रही थी, उसने साड़ी जरा कस के बांधी थी इसलिये उसके उन विशाल चूतड़ों का आकार साड़ी में से भी दिख रहा था.

मेरा माथा भनक गया. मैं सीधा जाकर नीलिमा के पीछे जमीन पर घुटने टेक कर बैठ गया. उसके चौड़े कूल्हों को बाहों में भरके मैंने उसके नितंबों पर अपना सिर दबा दिया. ऐसा लग रहा था जैसे दो मुलायम बड़े डनलोपिलो के तकियों के बीच मैंने चेहरा छुपा दिया है. बदन से भी भीनी भीनी खुशबू आ रही थी. मैंने अपना चेहरा उसके पार्श्वभाग पर रगड़ा और फ़िर मुंह खोल कर साड़ी के ऊपर से ही उसके नितंब को हल्के से काट लिया. नीलिमा ने ठिठोली के स्वर में कहा "मेरी साड़ी इतनी अच्छी लगी कि उसको खा जाने का इरादा है?"

"भाभी, आप की साड़ी ही क्या, आप की हर चीज मुझे अच्छी लगती है. वैसे एक बात बताऊं, बचपन में जब कोई मुझे चॉकलेट देता था तो मैं उसके रैपर से ही खेलने लगता था. उस मीठे खजाने को खाने के पहले उसपर लिपटे उस रैपर से खेलना मुझे बहुत अच्छा लगता था, आज भी ऐसा ही कुछ हो रहा है मुझे" कहकर मैंने फ़िर से एक बड़ा भाग मुंह में लिया और इस बार कस के दांतों के बीच चबाया.

"उई मां ऽ ऽ ... कितने जोर से काट खाया रे? साड़ी नहीं होती तो तूने तो एक टुकड़ा ही तोड़ लिया था मेरे चूतड़ का" दर्द से बिलबिला कर नीलिमा भाभी चिल्लाई.

मैंने सॉरी कहा. "क्या करूं भाभी, इन बड़े बड़े तरबूजों को देख कर यही मन होता है कि चबा चबा कर खा जाऊं"

नीलिमा बोली "चल उठ ... जा अब ... मुझे अपना काम करने दे, अभी टाइम है अपनी कुश्ती में" पर उसने अपने आप को मेरी बाहों की गिरफ़्त से छुड़ाने का कोई प्रयत्न नहीं किया. उलटे खेल खेल में अपनी कमर हिला कर मेरे सिर को अपने नितंबों से एक धक्का दिया. मैंने एक हाथ उसकी साड़ी के नीचे से डाला और उसके नितंबों को सहलाने लगा. मेरा हाथ सीधे उसकी चिकनी त्वचा पर ही पड़ा, उसने पैंटी ही नहीं पहनी थी. अब उसने पहले ही नहीं पहनी थी और वैसे ही बाहर भी हो आयी थी, या बाहर से आने के बाद निकाल दी थी इसका कोई जवाब मेरे पास नहीं था. हो सकता है कि मैं लेट उठा इसलिये गरमी चढ़ने पर पैंटी निकाल कर एकाध बार उसने हस्तमैथुन कर लिया हो, ऐसी गरम मिजाज की नारी कब क्या करेगी, यह कहना मुश्किल है.

मैंने फ़िर से उसके नितंबों को हथेली में लेकर दबाया और उनके बीच की लकीर में उंगली ऊपर से नीचे तक घुमाने लगा. नीलिमा कुछ नहीं बोली, पराठे बनाती रही. मेरे इस कृत्य को उसकी मूक सम्मति थी, यह मैंने समझ लिया. याने कल का खेल आगे शुरू करने में कोई हर्ज नहीं था.

थोड़ा भटक कर मेरे हाथ उसकी जांघों पर उतर आये. रोज उसकी मदमत्त जांघों के विशाल विस्तार पर मैं इतना खेलता था फ़िर भी मन नहीं भरा था, अपने आप को रोक नहीं पाया. एक बार मन में आया कि इस पोज़ में उसकी बुर चूस लूं क्योंकि अब पास से चूत रस की खुशबू आ रही थी, मेरे लिये भाभी की चासनी तैयार थी. लगता है उसकी भट्टी अब पूरी गरम हो गयी थी. पर जब हाथ बढ़ाकर मैंने उसकी चूत को पकड़ना चाहा तब उसने कस के अपनी टांगें भींच कर मुझे रोक दिया. ये मुझे वार्निंग थी कि इसके आगे न जाऊं. याने उसके नितंबों से खेलने की मंजूरी थी मुझे पर और कहीं हाथ लगाना वर्ज्य था. उसकी चूत तक कैसे पहुंचा जाये यह सोचता मैं उसकी जांघों के बीच हाथ फंसाये दो मिनिट बैठा रहा.

"अब उठो भी ना! ऐसे क्या बैठे हो?" नीलिमा बोली. उसके स्वर में रूखापन तो नहीं पर हां प्यार की कमी थी. लगता है किसी बात पर वह थोड़ा अपसेट हो गयी थी. पर हाथ आया यह मौका छोड़ने का मेरा कोई इरादा नहीं था. मैंने चुपचाप अपना हाथ उसकी जांघों के बीच से निकाला और उसकी साड़ी और पेटीकोट ऊपर कर दिये. उसका मोटा गोरा गोरा पार्श्वभाग अब मेरे सामने था. इतनी बार मैंने देखा था पर फ़िर भी किचन में दिन के उजाले में दिखती वो भारी भरकम गांड याने जैसे मेरे लिये छप्पन भोग के समान थे. दो बड़े बड़े मैदे के सफ़ेद गोले, नरम और चिकने और एकदम कसे हुए और उनके बीच की गहरी दरार ! सिर्फ़ चुंबन से काम नहीं चलने वाला था, ये तो खा जाने वाला माल था

मैंने उनको प्यार से सहलाया, फ़िर चुंबन लिया. एक दो चुंबनों के बाद मैं जगह जगह उनको चूमने लगा, फ़िर जीभ निकाल कर चाटना शुरू कर दिया कि कुछ टेस्ट भी आये उन खोये के परवतों का.

"जिस तरह से तू स्वाद ले रहा है, तेरी पसंद की मिठाई लगती है विनय" नीलिमा ने कहा.

"हां भाभी. कल ज्यादा टेस्ट नहीं कर पाया, और आज ये जो स्वाद लग रहा है, उससे भूख और बढ़ गयी है, प्योर खोये के ये पहाड़ देखकर इनको खा जाने का खयाल किसके दिल में नहीं आयेगा!"

"तो खा डाल ना, तेरे को किसने रोका है" अपने चूतड़ों को थोड़ा हिला कर नीलिमा बोली. उसकी आवाज में अब फ़िर मिठास आ गयी थी. याने मैडम को ऐसा उनके नितंबों की पूजा करना बहुत अच्छा लग रहा था, तभी दो मिनिट पहले जब मैंने गांड छोड़ कर चूत को टटोलना शुरू कर दिया था, वो फ़्रस्ट्रेट होकर चिढ़ गयी थी. याने अच्छा मुहूरत था, नीलिमा को भी आज गांड पूजा करवाने का ही मूड था.
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