RE: Hindi Chudai Kahani मैं और मेरी स्नेहल चाची
"ले नीलिमा ... तेरे लिये रुमाल ले आयी और रुमाल में रस निकालने वाले को भी ले आयी"
"सरप्राइज़ !!! ... आओ विनय ... वेलकम ... कितने प्यारे लग रहे हो, ये क्या ममी, आप तो इसे ऐसे खींच कर लाई हैं जैसे जैसे सईस लगाम पकड़कर घोड़े को ले जाता है." नीलिमा ने कहा और हंसने लगी. फ़िर मेरे पास आयी और मुझे पास लेकर मेरा प्यार भरा चुंबन ले लिया "अरे मजाक कर रही थी, भाभी हूं, मजाक तो कर सकती हूं, बुरा मत मान" उसके जवान भरे भरे स्तन मेरी छाती पर गड़ रहे थे.
"मैं क्यों बुरा मानूंगा भाभी. आप जैसी अप्सरायें कुछ भी करें तो भी कौन ऐसा मूर्ख होगा कि माइंड करे" मैंने कहा. मेरा मन अब अपार सुख के सागर में गोते लगा रहा था. विश्वास ही नहीं हो रहा था कि मैं इस स्वर्ग में हूं.
"सच में घोड़ा है यह" चाची ने बड़े गर्व से कहा "मस्त स्टेमिना है इसका. पहली बार है पर इतना कंट्रोल करता है बेचारा कि हद नहीं. और विनय, तुझे क्या लगा कि रात को मैं तेरे को ऐसे ही अकेला तड़पने को छोड़ दूंगी?"
नीलिमा ने मुझे बिस्तर पर धकेल दिया और मेरा लंड हाथ में लेकर खेलने लगी "अरे ममी ने तो मुझे आते ही बता दिया था सब. आज ऑफ़िस का काम भी मेरा तीन बजे तक हो गया था पर फ़िर एक सहेली के यहां चली गयी मैं कि ममी को तेरे साथ अकेले में टाइम मिले. मैं तो कह रही थी कि रहने दो ममी, क्यों नाटक करके बेचारे को टेन्शन देती हो, सीधे एक साथ विनय को गोआ में वेल्कम करेंगे. पर ममी बोलीं कि मुझे देखना है उसका स्वभाव कैसा है, ओवरस्मार्ट लड़कों जैसा अपनी अपनी चलाता है या शांत और थोड़ा नरम स्वभाव का है जिससे हमारी पट सके. फ़िर ममी ने अभी शाम को बताया कि आज दोपहर को क्या हुआ."
मैंने चाची की ओर देखा तो वे मुस्करायीं. नीलिमा आगे बोली "अरे विनय राजा, तेरी चाची और मुझमें कुछ छुपा नहीं है, हम अपने दिल की बात खुल कर एक दूसरे को कहते हैं. फ़िर अभी सोचा कि थोड़ा तेरे से मजाक किया जाये. तू कहां सोने वाला था, ममी ने बताया भी मुझे कि दरवाजे के पास बैठा होगा." नीलिमा मेरे लंड को अब ऐसे पकड़े थी जैसे छोड़ना ही न चाहती हो.
"और यह सच में बैठा था दरवाजे के पास लंबी लंबी सांसें भरते" चाची बोलीं. फ़िर मुझे बिस्तर पर धकेलते हुए बोलीं "चल, अब टाइम वेस्ट मत कर. सीधा लेट जा"
मैं चुपचाप लेट गया पर मेरा झंडा ऊंचा था. "अब ऐसा ही पड़ा रह, हमें जो करना है वो करने दे. और हम जो कहें वो करना. ठीक है?" मैंने मुंडी से हां कहा.
नीलिमा अब तक मेरे लंड को चूमने में व्यस्त हो गयी थी. "ममी ... एकदम मस्त है ...आपकी भी पसंद की दाद देनी पड़ेगी ... एकदम फ़ीस्ट है फ़ीस्ट"
"मैंने कहा था ना तुझसे कि सब्र करना सीख, उसका फल हमेशा मीठा होता है. अब ये क्या कर रही है? इतने दिन बाद मिला है तो जरा ठीक से सलीके से उसका उपयोग कर" चाची ने नीलिमा का मुंह मेरे लंड से हटाते हुए बोलीं. नीलिमा अब भूखे की तरह मेरा लंड निगलने में लगी हुई थी.
"चूसने दीजिये ना ममी, इतने दिन हो गये मेरे को" नीलिमा ने मिन्नत की.
"अरे विनय कहीं भागा जा रहा है? बाद में कर लेना, चल उठ, जरा ठीक से मजा ले"
"फ़िर मैं ही करूंगी पहले ममीजी, आप ने तो दोपहर में खूब मस्ती कर ली होगी" नीलिमा को और सबर करना मुश्किल हो रहा था.
"कर लेना बेटी पर पहले विनय की तो सोच, वो ऐसा ही भूखा प्यासा बैठा है, उसको तो कुछ मीठा चखा पहले"
नीलिमा मेरी ओर मुड़ कर शैतानी से बोली "सॉरी विनय, मुझे याद ही नहीं रहा. तेरे लिये काफ़ी कुछ है मेरे पास चखाने को" फ़िर उसने अपनी उंगलियों से अपनी चूत खोल कर मुझे दिखाई "यहीं चखेगा कि बैठूं कुरसी में - ममी के फ़ेवरेट पोज़ में?" उसकी गुलाबी बुर पास से एकदम गीली चिपचिपी दिख रही थी.
"अब उसे क्यों उठाती है, अभी तो लिटाया है उसे. तू ही चखा दे ना तेरे फ़ेवरेट पोज़ में" स्नेहल चाची ने उलटा ताना मारा.
नीलिमा झट से आकर मेरे सिर के दोनों ओर घुटने टेक कर बैठ गयी. उसकी चूत का खुला मुंह भी एकदम रसीला लग रहा था. मैंने जीभ लगायी और नीलिमा नीचे बैठ कर मेरे होंठों पर अपनी बुर रगड़ने लगी. वह बहुत उत्तेजित थी, उत्तेजना से उसकी बुर के भगोष्ठ थरथरा से रहे थे और वह निचला मुंह बार बार खुल और बंद हो रहा था. आंखें बंद कर लो तो ऐसा ही लग रहा था कि कोई मुंह खोल कर होंठों के चुंबन ले रहा है, मैं उस चासनी को चखने में जुट गया.
चाची हमारे पास बैठकर आराम से अपने बहू के करतब देख रही थीं. नीलिमा के पास सरककर उन्होंने नीलिमा की चूंचियां हथेली में ले लीं और उन्हें दबाने और मसलने लगीं. उनकी उंगलियां बीच बीच में नीलिमा के निपलों को पकड़कर पिन्च करने लगतीं. यह तो अच्छा हुआ कि मेरे लंड को उन्होंने नहीं पकड़ा नहीं तो उसका बचना मुश्किल था.
जल्दी ही नीलिमा ने अपना एक दो चम्मच शहद मुझे पिला ही दिया. पर वह अब भी मस्ती में थी, उसका सारा ध्यान मेरे लंड पर लगा हुआ था. "ये तो और तन गया है ममी"
"तू ही देख ले, ऐसे दूर से देख कर आह भरती रहेगी तो गाड़ी छूट जायेगी तेरी" चाची ने उसकी प्यार भरी चुटकी ली. नीलिमा उठ कर मेरे शरीर के दोनों ओर पैर रखकर बैठ गयी और मेरा लंड धीरे धीरे पर बिना रुके एक बार में अपनी चूत में घुसेड़ लिया. फ़िर आनंद की सिसकारी छोड़ कर बोली "एकदम कड़ा है ममीजी, गन्ने जैसा, कैसा उछल रहा है मेरे अंदर"
"ठीक से कर, ज्यादा उछल कूद मत कर, आराम से मजा ले, विनय बहुत दिन रहने वाला है यहां" नीलिमा ऊपर नीचे होकर मेरे लंड से चुदवाने लगी. उसकी गीली तपती बुर में से ’सप’ ’सप’ ’सप’ की आवाजें आ रही थीं. "ओह मां ऽ ऽ ... कितने दिनों बाद चुदवा रही हूं आज ... लंड से चुदवाना क्या होता है मैं तो भूल ही चली थी"
चाची नीलिमा के पास बैठी बैठी उसकी पीठ पर हाथ फेर रही थीं. उनकी जांघें मेरे चेहरे के पास थीं. मैंने अपना सिर मोड़ कर उनकी मोटी जांघ पर होंठ रख दिये. उधर नीलिमा की सांसें अब तेज हो चली थीं. जिस तरह से उसकी आंखें पथरा सी गयी थीं, वह अपने चरम बिन्दु के करीब पहुंच गयी थी. चाची ने उसकी बुर अपनी हथेली में ली और नीलिमा के बदन के साथ ही उनका हाथ ऊपर नीचे होने लगा. मैंने ध्यान से देखा तो उनकी उंगली नीलिमा के क्लिट पर चल रही थी. नीलिमा ’ओह ऽ .. ममी ... ममी ... उई मां ऽ .." करने लगी तो चाची ने झट उसे बाहों में लेकर उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिये. नीलिमा दो मिनिट में अपने बंद मुंह से ’अं .. अं ... अं’ करती स्खलित हो गयी.
चाची थोड़ा सरकीं तो अब उनका पांव मेरे चेहरे के सामने आ गया. पास से पहली बार देख रहा था. दूर से वे पैर जितने क्यूट लगते थे, पास से और भी ज्यादा थे. एकदम साफ़ सुथरे गुलाबी तलवे, गोरी नाजुक उंगलियां और उनपर पर्ल कलर का नेल पेंट, मांसल चिकनी ऐड़ी .... मैंने धीरे से अपने मन की कर ही ली, उनके पांव का चुम्मा ले लिया. मुझे लगा कि चाची शायद बिचक जायें पर उन्होंने ऐसा दर्शाया कि कुछ हुआ ही नहीं. धीरे से अपना पांव सरकाकर मेरे चेहरे पर टिका दिया कि मैं एक दो चुम्मे और ले सकूं.
नीलिमा उठ बैठी. उसकी सांस चल रही थी, चेहरे पर एकदम तृप्ति के भाव थे. चाची बोलीं "बस हो गया? मुझे तो लगा था कि आज रात भर तू इसे नहीं छोड़ेगी.
"इतनी सेल्फ़िश नहीं हूं ममीजी, अब आप करो"
"मैं भी करूंगी, तेरा हो जाने के बाद. और कर ले नहीं तो कहेगी कि ममी ने जल्दबाजी मचा दी. ऐसा कर तू अब कि ठीक से नीचे लेट और विनय को मेहनत करने दे, बहुत देर से बस आराम कर रहा है. क्यों विनय, अभी दम है और? या तेरा ये सोंटा ..." लंड को पकड़कर बोलीं "हार मानने को आ गया है?"
"चाची .... मैं ....
"अरे बोल बेटे, अब भी घबरा रहा है क्या मुझसे?" चाची बड़े स्नेह से बोलीं.
"चाची, मुझे नहीं लगता कि मैं अब पांच मिनिट से ज्यादा टिकूंगा. मुझको तो ऐसा लग रहा है कि स्वर्ग पहुंच गया हूं और खुद रंभा और उर्वशी मुझसे सेवा करवा रही हैं. पर इतना विश्वास है कि अभी झड़ भी गया तो भी बस थोड़ी देर में आप दोनों की सेवा करने के काबिल हो जाऊंगा, अब क्या बताऊं आप को, पिहले हफ़्ते में तो आप को चोरी छुपे देखकर और आपके बारे में सोच कर मैंने दिन में चार चार बार ... याने ..." फ़िर मैं चुप हो गया. मुझे खुद सुखद आश्चर्य हुआ, इतना बड़ा वाक्य मैं उनसे पहली बार बोला था.
नीलिमा ने ताली बजाई "वाह ... क्या स्पीच दी है! कहां से ढूंढ कर ले आयीं आप इस हीरे को ममी, ये तो सच में ’काम’ का लड़का है"
"अरे वैसे ये मेरी नजर में तीन चार साल से था. उसके पहले तो बहुत छोटा था, पर था बड़ा क्यूट. फ़िर तीन साल पहले ये जिस तरह से मेरी ओर देख रहा था .... याद है विनय वो शादी वाले दिन जब मैं साड़ी बदल रही थी?"
"हां चाची ... " मैं शर्मा कर बोला.
"हां तुझे तो याद होगा ही ...बदमाश कहीं का! तो तब से मुझे लगा कि यह जरा छुपे रुस्तम जैसा है. अब इस बार जब इसने मेरी छाती की ओर देखा, याने जब मैं चश्मा उठा रही थी ... इसकी आंखों के भाव देखने लायक थे"
"चाची ... याने आपने तभी पहचान लिया कि मेरे मन में क्या चल रहा है" मैंने आश्चर्य से पूछा.
"तो क्या मैं इतनी मूर्ख लगी तुझे? पर नीलिमा बेटी, तभी मैंने इसकी नस पहचान ली, और फ़िर इसे जरा धीरे धीरे और दिखाना शुरू किया, वैसे इसकी नजर हमेशा मेरी छाती पर ज्यादा रहती थी"
"आप की छाती ... या छतियां कहूं ममीजी ... ग्रेट ही हैं, कोई भी इनकी ओर देखेगा" नीलिमा मुंह पर हाथ रखकर हंसने लगी.
"चलो गप्पें बहुत हो गयीं, तो विनय, तू कहता है ना कि तेरा इतना दम है, चल देखते हैं" चाची ने मुझे हाथ पकड़कर उठाते हुए कहा.
उस रात यह रति दो घंटे और चली. अब डीटेल में क्या बताऊं, इतना सब हो रहा था पर संक्षिप्त में यह कह सकता हूं कि दोनों ने मिलकर मेरा लंड चूसा और बड़े स्वाद के साथ मेरी मलाई का भोग लगाया. उसके अलावा दोनों को मैंने एक एक बार चोदा, और बड़े गर्व से कह सकता हूं कि बड़े जोश से चोदा. आखिर जब मैं अपने कमरे में वापस आने को उठा तो चाची बोलीं "नींद आयेगी ना तेरे को? या गोली दूं? आखिर कल तुझे जॉइन करना है" मैंने कहा कि जरूरत नहीं है. मेरी नस नस इतनी झनझना गयी थी कि बिस्तर पर लेटते ही नींद आ गयी. गोटियां भी दुख रही थीं पर इसकी मुझे आदत थी, आखिर बार बार मुठ्ठ मारकर भी वे दुखती ही हैं.
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