RE: Hindi Chudai Kahani मैं और मेरी स्नेहल चाची
मैं नीचे उतरा तो उन्होंने मुझे बाहों में भींच लिया. ब्रा में कसे उनके मम्मे मेरे सीने पर बंपर जैसे दब गये. "लगता है काफ़ी अकल है तुझमें विनय. अब तक जैसा मैं चाहती हूं वैसा ही बिहेव कर रहा है तू. वैसे इतना भी मत घबरा. सजा मिलेगी तो मिलेगी, काम ही ऐसा किया है तूने पर मुझसे घबराने की कोई बात नहीं है. जो कुछ करूंगी वो तेरे भले के लिये ही करूंगी, आखिर तू बहक कर बिगड़ ना जाये, ये जिम्मेदारी तो मेरी ही है ना जब तक तू गोआ में है! अब जरा यह बता कि ऐसा हुआ ही कैसे? अब तक तो मुझे यह भी ठीक से नहीं पता कि आखिर क्यों तेरा मन मुझपर आ गया? क्या सच में मैं अच्छी लगी तेरे को? बोल, मैं नहीं डांटूंगी"
"हां चाची" मुझे उनकी इस बात से थोड़ा हौसला मिला. "अचानक उस दिन जब आप झुकी थीं और आपके ... याने ये - ब्रेस्ट - दिख गये थे मेरे को ... तब से पागल सा हो गया हूं आपके लिये" मैंने थोड़ा हिचकते हुए उनके कंधे को चूमा और फ़िर जब वे कुछ नहीं बोलीं तो उनके स्तन को ब्रा कप के ऊपर से ही हथेली में भर लिया. चाची मुड़ीं और ड्रेसिंग टेबल के आइने के सामने खड़ी हो गयीं. मैं उनके पीछे खड़ा होकर आइने में उनकी छाती देखने लगा. क्या लग रही थीं चाची उस ब्रा में! उन कोनिकल कपों में कसे होने से उनके उरोज और तन कर उभरे हुए थे. मैं धीरे धीरे दबाने लगा, पहले थोड़ा डर कर कि वे डांटें ना, फ़िर थोड़ा और जोर से. मेरा लंड तन कर उनके पेटीकोट के ऊपर कमर पर दबा हुआ था.
उन्होंने अपने पेटीकोट का नाड़ा खोला और वो नीचे गिर गया. अब स्नेहल चाची सिर्फ़ ब्रा और पैंटी में थीं. मुझे उनकी टांगों की साइज़ का अंदाज तो हो ही गया था पर अब वे मोटी ताजी भरी हुई और सही मायने में केले के पेड़ के तने जैसी चिकनी जांघें, जिन्हें संस्कृत के कवियों ने कदली स्तंभ कहा है, मेरी आंखों के सामने थीं. पिंडली पर थोड़े से काले रेशमी बाल थे, छोटे रुएं जैसे. चाची की पैंटी ने उनकी योनि को ढका हुआ था पर उनकी फ़ूली फ़ूली योनि पैंटी की क्रॉच में से ऐसी लग रही थी जैसे अंदर कोई मुलायम पाव रोटी रखी हो. मेरी तरफ़ उनकी पीठ थी और इसलिये मैंने जब थोड़ा पीछे हटकर उनको देखा तो उनके विशाल नितंब मुझे दिखे जो आधे से ज्यादा पैंटी में छुपे थे पर फ़िर भी उनकी गोलाई के कारण निचला कुछ भाग पैंटी के बाहर आ गया था.
मुझे उनका यह अर्धनग्न रूप देख कर जो उत्तेजना हुई, उसका आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते. चाची ने अपने नीचे गिरे कपड़ों की ओर देखा और फ़िर मेरी आंखों में आंखें डालीं. मैंने चुपचाप उनकी साड़ी ब्लाउज़ और पेटीकोट उठाया और ठीक से फ़ोल्ड करके बाजू में रख दिये. उनकी हर तरह की सेवा मुझे करनी होगी, इसका अंदाजा मुझे हो गया था. चाची प्यार से मुस्करा दीं, उन्हें अपना गुलाम मिल गया था.
चाची अपने हाथ पीछे करके अपनी ब्रा के बकल टटोलने लगीं. "विनय बेटे, जरा ये ब्रा के हुक खोल दे. इतनी टाइट है कि न तो मैं खुद उसे पहन सकती हूं ना निकाल सकती हूं. बकल पर हाथ तो पहुंचते हैं, पर फ़िर भी वे खुलते नहीं. अब नीलिमा लगा कर तो गयी, ये भूल गयी कि निकालेगा कौन. मैं तो ये ब्रा पहनती भी नहीं कभी इसी कारण से. पर नीलिमा ने ही आज जिद की कि ममी यही वाली ब्रा पहनना, इस ब्लाउज़ के साथ अच्छी लगती है"
नीलिमा भाभी ने स्नेहलता चाची के - बहू ने अपनी सास की ब्रा के - हुक लगा दिये थे यह बात सुनकर मेरे लंड ने एक किलकारी सी मारी. मेरी नजर आइने में ब्रा में कसे उन मांसल गोलों की ओर लगी थी. "लगता है ब्रा बहुत अच्छी लगी विनय तेरे को जो तब से घूर रहा है"
मैंने हिम्मत करके कहा "हां चाची ... ब्रा बहुत ... सेक्सी है और उसके अंदर जो है वह तो और भी ... आप पर तो बहुत ज्यादा सेक्सी लग रही है"
"अच्छा ये बात है? थोड़ा बहुत बोलना भी आता है तेरे को. इतना सीधा नहीं है जैसा दिखता है. चल अब हुक खोल जल्दी, ये टाइट ब्रा ज्यादा देर नहीं पहनी जाती मेरे से बेटे, चुभने लगती है बदन में"
मैंने हुक खोला और कहा "पर आप बहुत अच्छी लगती हैं चाची ऐसे ब्रा और पैंटी में."
"अच्छा! चलो कोई बात नहीं, अभी तो निकाले देती हूं, अगर मेरे मन मुताबिक ठीक से रहा यहां तो बाद में तेरे को और भी ब्रा पहन कर दिखा दूंगी ठीक है ना - पर अच्छे आज्ञाकारी लड़के जैसा रहना पड़ेगा मेरे यहां. नहीं रहा तो ...." कहते हुए चाची अपने बाल ठीक करते हुए थोड़ी पीछे हुईं और मुझसे टकरा गयीं. उनका बदन मेरे बदन से सट गयीं और मेरा लंड उनकी पीठ पर दब गया.
मैंने हुक निकाले, हुक निकालते ही ब्रा ढीली हो गयी और उसकी गिरफ़्त से छूटते ही वे मांसल स्तन लटकने लगे. अच्छे बड़े थे चाची के स्तन, इतने बड़े नहीं कि उन इन्टरनेट वाली औरतों जैसे नकली लगें पर छोटे भरे पपीतों जैसे तो थे. मेरे लिये उन लटकते झूलते पपीतों का सौंदर्य किसी युवती के तने जवान उरोजों से भी ज्यादा था. उत्तेजना में मैंने उन स्तनों को पकड़ा और दबाने लगा जैसे रस निकाल रहा होऊं. उनके नंगे मांसल कंधों को मैं पटापट चूमते हुए उनकी चूंचियां मसलता रहा. मैं वैसे बहुत जोर से नहीं दबा रहा था, जबकि मन तो हो रहा था कि उनको मसल कुचल डालूं. चाची के मुंह से एक लंबी सांस और सिसकारी सी निकली और अचानक मुझे लगा कि कहीं मस्ती में मैंने ज्यादा जोर से तो नहीं उनका स्तनमर्दन कर दिया.
पर स्नेहल चाची कुछ नहीं बोलीं, मेरे हाथ अपने स्तनों पर से हटा कर वे मेरी ओर मुड़ीं. आंखों के आगे वे लटकते गोरे स्तन देखकर मुझे नहीं रहा गया, मैं झुक कर पटापट उनको चूमने लगा. उनके निपल एकदम भूरे थे, किसमिस के रंग के और मनुक्कों जैसे बड़े बड़े थे. उनके आजू बाजू जो भूरे रंग के गोले - ऐरोला - थे वो भी अच्छे खासे व्यास के थे, मारी बिस्किटों जैसे. इन्टरेनेट पर ऐसे स्तन मैंने देखे थे पर स्नेहल चाची के ऐसे होंगे ऐसा कभी मन में नहीं आया था. मैंने एक निपल मुंह में लिया और चूसने लगा. मेरा लंड अब उनके पेट पर रगड़ रहा था.
चाची बड़े स्नेह से मुझे बाहों में लिये रहीं. मैं बारी बारी से उनके दोनों निपल चूसे जा रहा था. मेरे बालों में हाथ चलाते उन्होंने दो तीन मिनिट मेरे मन जैसा करने दिया, फिर मेरा सिर अलग किया और मुड़ कर फ़िर से मेरी ओर पीठ करके खड़ी हो गयीं. फ़िर मेरे हाथ पकड़कर उन्होंने खुद ही अपने स्तनों पर रखे और दबा दिये. उनकी इच्छा एकदम साफ़ थी. अपनी चूंचियां उनको दबवानी मसलवानी थीं. अपने मैदे के गोलों को गुंधवाना था. मैं उन मुलायम गोलों को मसलता हुआ उनके कंधों को चूमता उनसे चिपक गया. चाची ने तृप्ति की सांस छोड़ी और फ़िर अपनी गर्दन घुमा कर मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिये. फ़िर मेरी आंखों में देखते हुए मेरे होंठ चूसने लगीं. क्या भावनायें उमड़ आयी थीं उनकी काली काली आंखों में. अथाह वासना, अपने बेटे से छोटे एक लड़के के प्रति लगने वाली ममता और कामना, एक तरह का एरोगेंस - अहंकार, ऐसी भावना जैसे यह सब करके असल में वे मुझपर बड़ा उपकार कर रही हों (वैसे यह सच ही था! उनका यह उपकार ही था!) - एकदम एग्ज़ोटिक मिश्रण था. उनका चुंबन गहरा था, बहुत देर चला, फ़िर जल्दी ही चाची की मचलती जीभ ने मेरे होंठ अलग किये और मेरे मुंह में घुस गयी. मैं उस मीठी चमचम को चूसने में लग गया.
मेरा लंड अब उनकी पैंटी के ऊपर से ही उनके नितंबों के बीच की गहरी लकीर की लंबाई में सट कर समा गया था. मैं धीरे धीरे उसमें अपने लंड को दबा कर मजा ले रहा था. चाची ने मुड़ कर मुझे बाहों में ले लिया "धीरे धीरे बेटे, ऐसे उतावले ना हो, मैं कहीं भागी जा रही हूं क्या, अभी बहुत समय है हमारे पास. मैंने कहा था ना कि सबर रखना, पर ... वैसे तू भी जवान है, कितनी राह देखेगा, है ना? चल आ जा"
वे मुझे पकड़कर फ़िर टेबल के पास ले गयीं. वहां की कुर्सी सीधी करके वे उसपर बैठ गयीं. मेरी ओर देखकर थोड़ा मुस्करायीं और फ़िर अपनी पैंटी उतार दी. मैं सांस बंद करके उनकी जांघों के बीच की गोरी चिकनी फूली डबल रोटी देखने लगा. एकदम साफ़ थी, एक भी बाल नहीं था. खाना खाते वक्त उनकी शेव की हुई कांख देखकर मन में जो सवाल आया था, उसका जवाब मुझे मिल गया था.
चाची ने मुझे पास बुलाया " अब दूर से क्या देख रहा है बेटे? जल्दी आ जा और बैठ मेरे सामने" अपनी टांगें फैलाती हुई वे बोलीं.
मैं धीमे से उनके सामने जमीन पर बैठ गया. सामने चाची की मोटी मोटी गोरी जांघें और उनके बीच स्वादिष्ट डबल रोटी. उन्हें शायद इस बात का आभास होगा कि एकदम से कुछ करने की मेरी हिम्मत नहीं होगी इसलिये उन्होंने खुद मेरा सिर पकड़ा और अपनी टांगों के बीच दबा लिया. "ले, यही चाहिये था ना तुझे?"
इंटरनेट पर चूत का क्लोज़-अप बहुत देखा था पर प्रत्यक्ष में पहली बार देख रहा था. फ़ूली बुर की बीच की गहरी लकीर में से बड़ी मादक सुगंध आ रही थी. मैंने चूत की खुशबू के बारे में इतना सोचा था पर ये बिलकुल अलग थी. सेंट जैसी सुगंधित नहीं थी, अलग ही सुगंध थी, बस इतना ही समझ में आता था कि लंड को पसंद है. मैंने चाची की जांघ का चुंबन लिया, मन तो हो रहा था कि उस सफ़ेद मांस में दांत गड़ा दूं. चाची ने मेरा सिर पकड़कर मेरा चेहरा अपनी बुर पर दबा लिया "चल शुरू कर, अब टाइम वेस्ट मत कर"
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