Hindi Chudai Kahani मैं और मेरी स्नेहल चाची
06-21-2018, 12:01 PM,
#14
RE: Hindi Chudai Kahani मैं और मेरी स्नेहल चाची
मुझे वहीं दरवाजे में खड़ा देखकर चाची बोलीं. "वहां खड़ा मत रह ऐसे. चल अंदर आ और दरवाजा लगा ले"

वे अर्धनग्न अवस्था में आइने के सामने खड़ी थीं. बदन में सिर्फ़ ब्रा और पेटीकोट थे. ब्लाउज़ और साड़ी नीचे फ़र्श पर पड़े थी. मैंने बराबर गेस किया था, आज सादी कॉटन की सफ़ेद ब्रा नहीं थी, जो इस उमर की औरतें अधिकतर पहनती हैं. क्रीम कलर की लेसदार ब्रा थी, पतले स्ट्रैप वाली, और उनके गोरे मुलायम बदन पर एकदम फब रही थी. ब्रा के कोनिकल कप गर्व से एकदम तने हुए थे. उनका वह रूप मुझपर क्या बिजली गिरा गया मैं बता भी नहीं सकता. पहली बार कोई महिला मेरे सामने अर्धनग्न अवस्था में थी; अब तक जब जब मैंने इसके बारे में फ़ेंटसी की थी, यही की थी कि तब मेरे साथ कोई सुंदर जवान युवती होगी. पर अब पचास के आस पास की उमर की, नाटे कद और खाये पिये बदन की, बालों में कुछ सफ़ेद लटें लिये हुए, और रिश्ते में मेरी चाची - स्नेहल चाची मुझे किसी भी युवती से ज्यादा मादक लग रही थीं. उनका वह मुलायम पके अमरूद जैसा बदन और मन में अब भी मुझे उन्होंने कल दिये सुख का आभास, इसने मुझपर जादू सा कर दिया था. इसलिये मैं बस बुत बना टुकुर टुकुर देख रहा था.

चाची शायद मेरे चेहरे पर के हाव भाव से समझ गयी होंगी कि मुझ पर क्या बीत रही है क्योंकि क्षण भर को उनके होंठों पर एक ममता भरी मुस्कान आ गयी, पर फ़िर तुरंत चेहरे पर गंभीरता लाते हुए उन्होंने मेरे तंबू पर नजर दौडाई, जो अब कम होने के बजाय और बड़ा हो गया था. वे कठोर स्वर में बोलीं "इधर आ"

मैं उनके पास गया. कुरते के ऊपर से उन्होंने मेरा लंड पकड़ा और हिला कर बोलीं "अब भी तू बाज नहीं आया ना अपनी हरकतों से? क्या सोच रहा था? बोल?"

मैं चुप रहा. वे फ़िर बोलीं "कोई गंदी किताब देख रहा था? तेरे सामान की तलाशी लेना पड़ेगी"

अब मुझे कुछ कहना जरूरी था, आखिर मुझे लंड खड़ा करने के लिये गंदी किताबों का सहारा लेना पड़े ये मेरी तौहीन थी "नहीं चाची, सच में, आप देख लीजिये अभी मेरे कमरे में चल कर"

"फ़िर मन ही मन किसके बारे में सोच रहा था? ये ..." मेरे लंड को और जोर से पकड़कर वे बोलीं. "... ऐसा कैसे हो गया? दिन रात ऐसा ही रहता है क्या?"

मैं कहना चाहता था कि हां चाची, जब से आपके मम्मे देखे हैं, ऐसा ही रहता है. उधर चाची ने देखा कि मैं कुछ नहीं बोल रहा हूं तो मेरे गाल पर चूंटी काटी. गाल को सहलाते हुए मैं बोला "चाची प्लीज़ ... आप इतनी सुंदर ... मस्त ... लग रही हैं इसलिये अब ... मैं जानबूझकर नहीं करता ... हो जाता है"

"तेरा मतलब है कि मुझे ऐसे ब्रा में देखकर तेरा यह हाल हुआ है? ब्रा में कभी किसी को देखा नहीं? बचपन में तो देखा होगा ना? अपनी इतनी बड़ी चाची को बस एक ब्रा में देख लिया और ऐसा सांड जैसा हो गया?"

"हां चाची" मैं बोला. चाची ने जिस तरह से मेरा लंड पकड़ा था, वह लगातार और तन्ना रहा था.

"झूठ मत बोल, ये तो तूने मुझे अभी देखा है मेरे कमरे में आने के बाद. पर तू ऐसा ही आया था तंबू तान कर. वो तो कपड़े बदलते बदलते मुझे खयाल आया कि अभी तक तुझे ठीक से डांटा भी नहीं इसलिये जरा नसीहत देने बुला लिया" अब मैं चुप हो गया. कुछ भी कहूं चाची को देना है वो सजा वे देंगी हीं.

"बोल क्या सोच रहा था?"

"आप ही के बारे में सोच रहा था चाची. मन पर कंट्रोल नहीं होता"

"तो अब क्या सजा दूं तेरे को? बोल? ऐसे घर की बड़ी औरतों के बारे में गंदा सोचते हैं? बोल?" वे बोलीं.

मैं चुप रहा. कैसे कहता कि नहीं सोचते! मेरे तो मन में था कि कह दूं कि हां चाची, सोचते हैं, सोचना चाहिये हर जवान लड़के को, जो सोचते हैं उन्हें बहुत मजा आता है, मेरे को देखिये कितना मजा आया आपके नाम से हफ़्ते भर मुठ्ठ मारकर. और कल आपने जो सुख दिया मेरे को बस में, वैसा कभी मेरे नसीब में था अगर मैं आपके बारे में गंदा ना सोचता? कमाल की मस्ती का अनुभव करा दिया आपने चाची !!!

चाची बोलीं "ऐसे तू नहीं मानने वाला. चल कपड़े निकाल, तुझे ठीक से सबक सिखाना पड़ेगा."

मैंने कपड़े निकाले. बस ब्रीफ़ बच गयी, वह भी लंड के खड़े होने से सामने ये तनी हुई थी.

"पूरे कपड़े, सब निकाल. जल्दी" चाची मेरा कान पकड़कर बोलीं.

मैंने ब्रीफ़ निकाली. चाची ने उसे मुठ्ठी में ले लिया. "चल, जरा देखें ये इतनी बदमाशी पर क्यों उतर आया है. अभी अभी उमर में आये लड़कों का तो मैं समझ सकती हूं, उनको समझ भी नहीं होती ज्यादा पर तू तो बाईस का हो गया है ना? अब नौकरी करने वाला है. और इस मुस्टंडे को देखो, कैसा थरथरा रहा है"

फ़िर नीचे मेरे लंड की ओर देखा और बोलीं "अच्छा खासा है, बहुत प्यारा है. काफ़ी दम लगता है. कैसा एकदम तैयार खड़ा है बदमाश. लगता है कम से कम तूने मेरी वो बात तो मानी है कि कोई शैतानी ना करना, सो जाना. कुछ कर बैठता तो ये ऐसा नहीं थरथराता होता. अब आ और इधर बैठ. तेरा यह ..." मेरे लंड को पकड़कर वे बोलीं " ... देख मेरी ओर कैसे तन कर देख रहा है. अब मुझे थोड़ा अच्छा लगा इसका यह मतलब नहीं है कि सजा से तू बच जायेगा"

मेरे दिल को थोड़ी तसल्ली हुई. चाची मुझे रैग कर रही थीं, बस. आखिर डांट डपट का कुछ तो शिष्टाचार निभाना था ना! पर मन ही मन मुझे यकीन हो गया कि चाची को भी मेरी जवानी भा गयी है और अब आगे मेरी चांदी ही है. पर मैं चुप रहा, जो शिष्टाचार चल रहा था, वह पूरा तो करना ही था.

लंड से पकड़कर वे मुझे वहां रखे एक टेबल पर ले गयीं. टेबल पर की किताबें उठायीं और मुझे कहा "चल बैठ इसपर. और चुपचाप बैठा रह"

मैं टेबल पर बैठ गया. चाची ने एक कुरसी खींची और मेरे सामने बैठ गयीं. उनका सिर अब मेरी गोद से थोड़ा सा ही ऊपर था. मुझे वे कुछ नहीं बोलीं, बस लंड को पास से देखने लगीं. फ़िर उठ कर चश्मा लेकर आयीं और चश्मा लगाकर देखने लगीं. देखते देखते वे लंड को इधर उधर करके हल्के हल्के दबाती भी जा रही थीं. "इसे कह कि जरा सबर रखे. समझा? नहीं तो कहना कि चाची नाराज हो जायेगी. ऐसा हरदम सांड जैसा घूमना अच्छे घर के लड़कों को शोभा देता है क्या? जब तक तू यहां है विनय, तुझे खुद पर पूरा कंट्रोल रखना होगा, मैं जब तक ना कहूं तब तक अपने आप को रोकना होगा. ठीक है? ये सब तेरी सजा का हिस्सा है" उनकी आवाज में प्यार और वासना के साथ साथ एक कठोर आदेश भी था.

मैंने मुंडी हिलाई. चाची बोलीं "वैसे अच्छा रसीला है, एकदम ज्यूसी" और झुक कर मेरे सुपाड़े को चूमा और उसे जीभ से चखने लगीं. उनकी जीभ पूरे सुपाड़े पर घूम रही थी, कभी ऊपर के सूजे टोप पर, कभी नीचे की मांसल भाग पर और कभी टिप पर. मेरे शरीर में होते कंपन को तो उन्होंने ऐसे नजरंदाज कर दिया था जैसे उसका कोई मतलब ही ना हो. थोड़ी देर इस तरह से मुझे मीठी मार से तड़पा तड़पा कर उन्होंने पूरा सुपाड़ा मुंह में लिया और मन लगा कर चूसने लगीं.

वे पांच मिनिट मैंने कैसे निकाले, वो मैं ही जानता हूं. पर आखिर में मेरी सहनशक्ति जवाब देने लगी. स्नेहल चाची ने न जाने कैसे जान लिया कि अब और चूसा तो रस निकल आयेगा. मुझे लगा था कि वे चूस कर ही मानेंगी पर शायद उनके दिमाग में और ही कुछ था.

मेरा लंड मुंह से निकाल कर वे उठ बैठीं. फ़िर खड़ी हो गयीं. मेरे सिर को उन्होंने अपने हाथों में लिया और मेरे गाल, आंखें, माथा चूमने लगीं. बोलीं "बहुत स्वीट है तू विनय. फ़िर ऐसा बदमाश कैसे हो गया? खैर चल उठ, अभी इस स्वीट डिश को चखने का टाइम नहीं है मेरे पास." फ़िर मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिये और मेरा चुंबन ले लिया.

पहली बार मैंने आखिर उनके बिना कुछ कहे अपने मन से कुछ किया. याने उनके चुंबन का जवाब दिया और फ़िर उनके मोटे मांसल होंठों को चूसने लगा. उन्होंने मुझे अपना मुखरस चूसने दिया और साथ ही धीरे से मुझे पकड़कर मुझे टेबल से नीचे उतरने का इशारा किया.
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