RE: Hindi Chudai Kahani मैं और मेरी स्नेहल चाची
रात के करीब दस बजे थे. बस छूटकर काफ़ी समय हो गया था. बीच में बस एक होटल पर खाने पीने के लिये रुकी थी. वहां से छूटने के बाद सब सोने की तैयारी करने लगे थे. बस के लाइट बंद कर दिये गये थे और अधिकतर लोग सो भी गये थे. स्नेहल चाची बोलीं "अरे विनय बेटे, जरा वो शाल निकाल ले ना बैग में से, थोड़े ठंडक सी है"
मैंने ऊपर से बैग उतारा और शाल निकाल ली और उनको दी. उन्होंने उसे पूरा खोल कर अपने बदन पर लिया और मुझे भी ओढ़ा दी. मैं बोला "चाची ... रहने दीजिये ना ... आप ले लीजिये ... मुझे इतनी ठंड नहीं लग रही"
"अरे वाह ... सर्दी हो जायेगी तो? ... चुपचाप ओढ़ ले, तुझे चार पांच दिन में ऑफ़िस जॉइन करना है, अब सर्दी वर्दी की झंझट मत मोल ले" उन्होंने कहा. मैंने भी शाल ओढ़ ली. सीटों के बीच का आर्मरेस्ट चाची ने ऊपर कर दिया था और एक शाल के नीचे अब हम दोनों के कंधे करीब करीब आपस में चिपक गये थे. चाची ने आज कोई सेंट लगाया था, उसकी हल्की भीनी खुशबू मुझे आ रही थी. वे सेंट कभी कभार ही लगाती थीं, जैसे शादी के मौकों पर. मैंने सोचा आज बस से जाना है तो फ़्रेश रहने के लिये लगा लिया होगा.
अब उनके साथ कंधे से कंधा भिड़ा कर बैठने के बाद एक एक करके मेरे सारे सुविचार ध्वस्त हो गये, इतना सोचा था कि अब चाची के बारे में उलटा सीधा नहीं सोचूंगा, मन पर काबू रखूंगा आदि आदि. पर अब बार बार दिमाग में कौंधते वही सीन जो मुझे विचलित कर देते थे, उनकी पिंडलियां, उनके पांव और तलवे, झुकने पर दिखे उनके स्तन, उनकी पीठ के ब्लाउज़ में से दिखती ब्रा की पट्टी ....! जो नहीं होने देना था वही हुआ, धीरे धीरे मेरा बदमाश लंड सिर उठाने लगा. मैं डेस्परेटली उसे बिठाने के लिये इधर उधर की सोचने लगा, कहीं चाची के सामने पर्दा फाश हो गया तो अनर्थ हो जायेगा.
शाल ओढ़ने के करीब दस मिनिट बाद अचानक मुझे महसूस हुआ कि चाची का हाथ मेरी जांघ पर आधा आ गया था, आधा नीचे सीट पर था. मैंने बिचक कर सिर घुमा कर उनकी ओर देखा वो वे आंखें बंद करके शांत बैठी हुई थीं. मैं जरा सीधा होकर बैठ गया. लगा कि आधी नींद में उनका हाथ सरक गया होगा. एक मिनिट बाद चाची ने हाथ हटाकर सीट पर रख दिया पर अब भी वो मेरी जांघ से सटा हुआ था. दो मिनिट बाद उन्होंने फिर हाथ उठाया और मेरी जांघ पर रख दिया. मैं चुप बैठा रहा, लगा अनजाने में स्नेह से रख दिया होगा, मुझे दिलासा देने के लिये.
पांच मिनिट बाद बस एक पॉटहोल पर से गयी और जरा धक्का सा लगा. उस धक्के से चाची का हाथ ऊपर होकर फ़िर नीचे हुआ और इस बार सीधे मेरी ज़िप पर ही पड़ा. पर उन्होंने हटाया नहीं; मुझे लगा कि उन्हें नींद आ गयी थी इसलिये नहीं हटाया. पर अब हाथ का वजन सीधा मेरे लंड पर पड़ रहा था. बस के चलने के साथ हाथ थोड़ा ऊपर नीचे होकर मेरे लंड पर दब रहा था. एक पल मैंने सोचा कि हाथ उठाकर बाजू में कर दूं, फ़िर लगा कि ऐसा किया तो वे न जाने क्या समझें कि जरा सा हाथ लग गया तो ये लड़का ऐसे बिचकता है ... बुरा न मान जायें.
मैंने हाथ वैसे ही रहने दिया. उसका वजन और स्पर्ष मुझे बड़ा मादक लग रहा था. अब टेन्शन यह था कि मेरे लंड ने अपना कमाल दिखाना शुरू कर दिया तो चाची को जरूर पता चल जायेगा और फ़िर ... सब स्वाहा! क्या करूं समझ में नहीं आ रहा था. किसी तरह अपने होंठ दांत तले दबाकर भजन वजन याद करता हुआ मैं अपना दिमाग उस मीठे स्पर्ष से हटाने की कोशिश करने लगा.
कुछ देर के बाद चाची ने एक दो बार मेरी पैंट को ऊपर से दबाया और फ़िर उसपर हाथ फिराने लगीं. अब शक की गुंजाइश ही नहीं थी, चाची ये सब जान बूझकर पूरे होश में कर रही थीं, सीधे कहा जाये तो मुझे ’ग्रोप’ कर रही थीं.
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