RE: Hindi Chudai Kahani मैं और मेरी स्नेहल चाची
चाची के हमेशा साड़ी पहनने का एक फायदा था कि उनके ब्लाउज़ और साड़ी के बीच में की सीनरी हमेशा खुली होती थी और आसानी से दिखती थी. कमर के बाजू में मांस के हल्के से टायर से बन गये थे. सामने से उनका मुलायम गोरा पेट दिखता था. मांसल चिकनी पीठ थी. साड़ी के घेर से इतना पता चलता था कि कमर की नीचे का भाग अच्छा खासा चौड़ा था. इससे अंदाजा लगा सकते थे कि अच्छे चौड़े कूल्हे हैं और उतने ही बड़े तरबूज जैसे नितंब होंगे. बार बार मन में यही आता था कि क्या माल है.
इन दिनों कई बार मुझे उनके उन लुभावने उरोजों की झलक दिखी, आखिर एक घर में रहते हुए यह सब तो होगा ही. पूरे स्तन नहीं दिखे, वो तो सिर्फ़ उनकी नग्नावस्था में दिख हो सकते थे, पर जब वे कभी झुकती थीं, तो ब्लाउज़ के ऊपर से स्तनों के ऊपरी भाग की एक झलक मिल ही जाती थी; कभी आंचल ठीक करते वक्त दो सेकंड के लिये उनका पल्लू हटता था और सिर्फ़ ब्लाउज़ में ढकी उनकी छाती मेरे सामने आ जाती थी. जब जब ऐसा होता था, ब्लाउज़ में बने हुए उन दो उभारों को देखकर मेरे मन में भूचाल आ जाता था, लंड सिर उठाने लगता था, किसी तरह रोक कर रखता था और फ़िर मौका मिलते ही अकेले में हस्तमैथुन कर लेता था, उसके बिना दिल की आग नहीं शांत नहीं होती थी.
अब यह सब देखते वक्त मैं कितनी भी सावधानी बरतूं, एकाध बार चाची की समझ में आना ही था कि मैं उनको घूर रहा हूं. वैसे वे कुछ बोली नहीं, एकाध बार मुझे अपनी ओर तकता देख कर मुस्करा दीं. बड़ी मीठी आत्मीयता से भरी मुसकान थी. मुझे थोड़ी गिल्ट फ़ीलिंग भी हुई पर अब मैं इस सबके पार जा चुका था, चाची पर मर मिटा था. यह भी मन बना लिया था कि गोआ वाली नौकरी ही चुनूंगा और गोआ की ट्रेनिंग चाची के घर रहकर ही लूंगा. और कुछ हो न हो, चाची के साथ तो रहने का मौका मिलेगा. कंपनी को ईमेल से अपना कन्फ़र्मेशन भी भेज दिया था.
जब मैंने मां को और चाची को बताया तो दोनों बहुत खुश हुईं. मां की खुशी का कारण तो समझ में आता था कि उसके मन को आसरा मिल गया था कि बेटा अब पहली बार गोआ जा रहा है तो आराम से रहेगा. स्नेहल चाची शायद इसलिये खुश हुई होंगी कि ... मैंने उनकी बात मानी? ... मां से उनको लगाव था? ... हमारे परिवार से संबंध को वे बहुत महत्व देती थीं? ... या मैं उनको सच में एक अच्छे सच्चे आदर्श पुत्र जैसा लगता था जिसे वे बहुत चाहती थीं? ...... या और कुछ!!!
मुझे वे बोलीं "चलो, आखिर अब तो तुम आओगे गोआ और रहोगे हमारे यहां. नहीं तो अब तक बहाना बनाते रहते थे"
मैंने कहा "कहां चाची .... अब तक तो मौका ही नहीं आया?"
"ऐसे कैसे नहीं आया? दो साल पहले तुम्हारे कालेज के लड़के गोआ नहीं आये थे पिकनिक पर? तुम भी थे ना?"
पता नहीं चाची को कैसे पता चला. मैं झेंप कर रह गया. बोला "चाची, वो बस दो दिन थे हम लोग ..."
"घर आकर हेलो करने में बस आधा घंटा लगता है" स्नेहल चाची बोलीं. वे इस समय मां के साथ नीचे जमीन पर बैठकर मटर छील रही थीं. आंचल तो उन्होंने एकदम ठीक से अपने इर्द गिर्द लपेट रखा था, याने फ़िर से स्तनों का कोई दर्शन होने का प्रश्न ही नहीं था. हां एक पैर उन्होंने नीचे फ़र्श पर सुला रखा था और दूसरा घुटना मोड़ कर सीधा ऊपर कर लिया था. इससे उनकी साड़ी उनकी पिंडली के ऊपर सरक गयी थी. पहली बार मुझे उनका आधा पैर दिखा. याने घुटने के नीचे का भाग. एकदम गोरा चिकना था, मोटा मजबूत भी था, मस्त भरी हुई मांसल पिंडलियां थीं, जिनपर जरा से छोटे छोटे काले रेशमी बाल थे.
नजर झुका कर मैंने कहा "वो दोस्त साथ में थे ना चाची ..."
चाची बोलीं. "अरे ठीक है विनय बेटा, मैं तुझसे जवाब तलब थोड़े ही कर रही हूं. मैं बस इतना कह रही हूं कि अब तो तू आ रहा है और खुद अपने मन से आ रहा है, ये मुझे बहुत अच्छा लगा. नीलिमा भी बहुत खुश होगी"
मां ने पूछा "चाची, नीलिमा कैसी है? बेचारी बोर होती होगी ना, अरुण के बिना?"
"हां पर अब अमेरिका का वीसा होने ही वाला है. वैसे वो सर्विस करने लगी है, दिन में चार पांच घंटे जाना पड़ता है, उतना ही दिल बहला रहता है उसका"
चाची की गोरी पिंडली को एक बार और झट से नजर बचाकर मैंने देखा और वहां से खिसक लिया. रात तक किसी तरह मन मारा और फ़िर रात को मस्त मुठ्ठ मारी.
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