RE: Hindi Chudai Kahani मैं और मेरी स्नेहल चाची
जब वे आयीं तो स्नेहल चाची में मुझे कोई चेंज नहीं दिखा, तीन चार साल पहले देखा था वैसी ही थीं. वैसे मुझे जहां तक याद है, मैं बचपन से जब से उन्हें देख रहा हूं, वे वैसी ही दिखती हैं, थोड़ा स्थूल नाटा बदन, दिखने में वैसे ही जैसे सब उमर में बड़ी चाचियां मामियां बुआएं होती हैं. गोरा रंग, जूड़े में बंधे बाल, हमेशा साड़ी यह पहनावा, मंगलसूत्र, हाथ में कंगन या चूड़ियां वगैरह वगैरह. असल में उनमें बदलाव जरूर आया होगा, पंधरा साल में याने जब से मुझे उनके बारे में याद है, रूप रंग काफ़ी बदल जाता है. हां हमें यह बदलाव सिर्फ़ बच्चों और विनय युवक युवतियों में ही महसूस होता है, क्योंकि वे अचनाक बड़े हो जाते हैं, बाकी सब बड़े तो बड़े ही रहते हैं. एक बात यह भी है कि देखने का नजरिया कैसा है, किसी में बहुत इंटरेस्ट हो तो उसके रंग रूप की ओर बड़ा ध्यान जाता है, नहीं तो कोई फरक नहीं पड़ता. यह साइकलाजी अधिकतर टीन एजर्स की होती है.
इस बार जब स्नेहल चाची हमारे यहां आईं तब मैंने नौकरी की तलाश शुरू कर दी थी. पिताजी की इच्छा थी कि आगे पढ़ूं पर मैं बोर हो गया था और एक दो जगह से अपॉइन्टमेन्ट लेटर आने की भी उम्मीद थी, क्योंकि इन्टरव्यू अच्छा हुआ था. संयोग की बात यह कि जब इस बार वे हमारे यहां आयीं, तब मेरा भी गोआ जाने का प्लान बन रहा था. उनके आने के दो दिन पहले ही मुझे एक ऑफ़र आया था. नौकरी अच्छी थी. पोस्टिंग नासिक में थी पर तीन महने की ट्रेनिंग थी गोआ में. वहां कंपनी का गेस्ट हाउस था और वहां मेरे रहने की व्यवस्था कंपनी ने कर दी थी.
स्नेहल चाची के आने के दूसरे दिन जब हमारी गपशप चल रही थी तब इस बारे में बातें निकलीं. वैसे हर बार चाची मुझसे बड़े स्नेह से बोलतीं थीं. बाकी लोगों का उनके प्रति कुछ भी विचार हो, मुझे तो बचपन से बड़ी गंभीर रिस्पेक्टेबल महिला लगती थीं. बैठकर उनसे बातें करते वक्त मैंने उनकी ओर जरा और गौर से देखा. इस बार वे करीब चार साल बाद मिली थीं. जैसा मैंने पहले कहा, मुझे उनमें ज्यादा फरक नहीं लगा. हां बदन थोड़ा और भर गया था और बालों में एक दो सफ़ेद लटें दिखने लगी थीं. मुझसे इस बार उनकी काफ़ी जम गयी थी, कई बार गपशप होती थी.
उस दिन जब मेरी नौकरी के बाते में बातें निकलीं, तब हम सब बैठकर बातें कर रहे थे. मां और चाची गोआ में बसे कुछ दूर के रिश्तेदारों के बारे में बातें कर रही थीं. मैंने कुछ नाम भी सुने, लता - मां की कोई बहुत दूर की कज़न, गिरीश - मां की एक पुरानी फ़्रेंड का भाई जो शायद गोआ में बस गया था, सरस्वती बुआ - ऐसी ही कोई दूर की बुआजी आदि आदि. मैंने उसमें ज्यादा इंटरेस्ट नहीं लिया. चाची ने भी सिर्फ़ लता के बारे में डीटेल में बताया कि वह अब गोआ में एक बड़ी कंपनी में ऊंचे ओहदे पर है. बाकी लोगों से शायद वे ज्यादा संपर्क में नहीं थीं.
मेरे कॉलेज के बारे में चाची ने पूछा, आगे और पढ़ने का इरादा नहीं है क्या, कहां कहां घूम आये हो, गोआ अभी तक क्यों नहीं आये, वगैरह वगैरह. मैंने तब तक उनको इस नये ऑफ़र के बारे में नहीं बताया था. आखिर मां ने ही बात छेड़ी कि विनय को नासिक में नौकरी मिली है, गोआ में ट्रेनिंग है.
स्नेहल चाची मेरी ओर देखकर जरा शिकायत के स्वर में बोलीं. "विनय, तूने बताया नहीं अब तक, दो दिन हो गये, मैं पूछ भी रही थी कि आगे क्या प्लान है. और यहां तेरे को गोआ में, हमारी जगह में नौकरी मिल रही है और तू छुपा रहा है"
मैंने झेंप कर कहा "चाची ... सच में आप से नहीं छुपा रहा था ... वो पक्का नहीं है अब तक कि जॉइन करूंगा या नहीं ... कभी लगता है कि अच्छा ऑफ़र है और कभी ... वैसे पोस्टिंग गोआ में नहीं है, सिर्फ़ तीन महने की ट्रेनिंग वहां है"
"अरे ... गोआ जैसी जगह में ट्रेनिंग है और तू नखरे कर रहा है. चल, उनको चिठ्ठी भेज दे कल ही, वहां रहने की भी परेशानी नहीं है" चाची ने जोर देकर कहा.
मैंने सकुचाते हुए कहा "हां स्नेहल चाची ... उन्होंने अपने गेस्ट हाउस में इंतजाम किया है ..."
"गोआ आकर गेस्ट हाउस में रहने का क्या मतलब है? अपना घर है ना वहां?"
मैंने सफ़ाई दी "चाची, गेस्ट हाउस भी पणजी में है, और ट्रेनिंग भी वहीं बस स्टेशन के पास के ऑफ़िस में है, इसलिये ..."
"तो अपना घर कौन सा कोसों दूर है? पोरवोरिम में तो है, चार किलोमीटर आगे. और खूब बसें मिलती हैं" फ़िर मां की ओर मुड़कर बोलीं "वो कुछ नहीं आशा, ये हमारे यहां ही रहेगा. वहां हमारा घर होते हुए विनय और कहीं रहे ये शरम की बात है"
"पर चाची ... वो ..." मैं समझ नहीं पा रहा था कि उनसे क्या कहूं. असल में उनके यहां रहने में संकोच हो रहा था. सगी मौसी या मामा के यहां, जिनसे घनिष्ट संबंध होते हैं, रहना बात अलग है और रिश्ते की जरा दूर की चाची के यहां की बात और ...... मन में ये भी इच्छा थी कि पहली बार अकेला रहने को मिल रहा है, तो गेस्ट हाउस में रहकर ज्यादा मजा आयेगा, गोआ में थोड़ी ऐश भी हो जायेगी, किसी का बंधन नहीं रहेगा. होस्टल में तो मैं रहा नहीं था, होस्टल में रहते दोस्तों से जलन होती थी, सोचा इसी बहाने होस्टल का भी एक्सपीरियेंस हो जायेगा.
"अरे इतना बड़ा बंगला है. बीस साल पहले लिया था सस्ते में, आस पास बगीचा है एक एकड़ का. और बस मैं और नीलिमा ही रहते हैं वहां. अरुण तो कई सालों से नहीं है. तू आयेगा तो हमें भी कंपनी मिलेगी, जरा अच्छा लगेगा." चाची ने फ़िर आग्रह किया.
मैंने मां की ओर देखा, उसकी तो पहले ही स्नेहल चाची से अच्छी पटती थी. उसने मेरे मन की जान ली, बोली कि हां चाची, आप ठीक कह रही हैं. मैं अड़ने वाला था कि गेस्ट हाउस में ही रहूंगा पर मां के तेवर देखकर चुप रहा. उसने मुझे इशारा किया कि फालतू तू तू मैं मैं मत कर, बाद में देखेंगे.
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