RE: Antarvasnasex बैंक की कार्यवाही
मैं ऐसे ही लेटा रहा, छत की तरफ टकटकी लगाये, विचार "ाून्य, न चेहरे पर कोई भाव, न मन में कोई विचार, बस छत पर बने एक बिल्कुल ही छोटे से हल्के काले धब्बे को देखता रहा। कुछ सुध नहीं थी अपने आसपास की। अचानक ही मेरे दिल की धड़कने बढ़ गई और मैं बैचेन हो उठा। छत पर अपूर्वा का उदास चेहरा दिखाई दिया, उसके गालों पर सूखे हुए आंसुओं के निशान दिखाई दिये। मैं एकदम बैठ गया। बैठते ही चेहरा आंखों के सामने से गायब हो गया। मैंने गर्दन उठाकर उपर छत की तरफ देखा, परन्तु वहां पर कुछ नहीं था। मैं ऐसे ही गर्दन उठाये छत की तरफ देखता रहा, दोबारा उस चेहरे को देखने के लिए, परन्तु कुछ नहंी दिखा। गर्दन दर्द करने लगी तो मैंने नीचे कर ली।
मैं उठा, उठते ही एकदम से आंखों के सामने हल्का सा अंधेरा छाया। मैंने बेड पर हाथ रखकर सहारा लिया। जब अंधेरा छंट गया और साफ दिखाई देने लगा तो मैं बाथरूम की तरफ चल दिया। बाथरूम करके मुंह धोकर फ्रेश हुआ। 7 बजने वाले थे। पानी पीकर मैं बाहर आ गया और चेयर पर बैठ गया। ठण्डी ठण्डी हवा चल रही थी। कुछ दिन पहले तक ये मौसम कितना रोमांटिक लगता था, परन्तु आज यही मौसम दर्द को और बढ़ा रहा था।
हाय, मैं आवाज सुनते ही एकदम चौंक गया और आवाज की दिशा में देखा, पूनम खड़ी-खड़ी मुस्करा रही थी।
ओहहह, हाय। मैंने आश्चर्य से उसकी तरफ देखा, मानो उसके यहां होने का विश्वास ही नहीं हो रहा हो। ‘कहां गायब हो गई थी’, मैंने एक खाली चेयर को उसकी तरफ करते हुए पूछा।
मम्मी के साथ मामा के चली गई थी, नानी की तबीयत सीरियस थी, पूनम ने बैठते हुए कहा।
मुझे उसके चेहरे पर थोड़ी झिझक महसूस हो रही थी। पूनम का आना एक ऐसा वाकया हो गया कि उस पल मैं कुछ देर के लिए ये भी भूल गया था कि अभी कुछ देर पहले क्या हुआ था। दिमाग पूरी तरह से उसकी तरफ डायवर्ट हो गया था। कारण मुझे मालूम नहीं, पर शायद वो इतने दिनों से नहीं दिखी थी और उसके पिछे इतनी सारी घटनायें हो गई थी तो उसे भूल सा गया था और आज वो एकदम अचानक से दिखी तो दिमाग डायवर्ट हो गया होगा।
और कैसा चल रहा है सब कुछ, जब कुछ देर तक मैं नहीं बोला तो पूनम ने पूछा।
ओह, एकदम बढ़िया, तुम सुनाओ, अब नानी की तबीयत कैसी है, मैंने हड़बड़ाते हुए कहा।
अब ठीक हैं, घर आ गई हैं हॉस्पिटल से, पूनम ने कहा।
पायल, अंकल-आंटी, सब ठीक हैं, मैंने कहा।
सब मजे में हैं, पूनम ने कहा।
तुम्हारी तबीयत तो ठीक है, पूनम ने चैक करने के लिए मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा।
बिल्कुल, मेरी तबीयत को क्या होगा, मैंने मुस्कराने की कोशिश करते हुए कहा और कुछ हद तक इसमें सफल भी रहा।
मुझे लगा कि तुम कुछ उदास से हो, इसलिए पूछ रही थी, पूनम ने वापिस चेयर पर सही तरह से बैठते हुए कहा।
कुछ देर तक हम बातें करते रहे, तभी सोनल उपर आई और पूनम को देखकर एकदम से चौंक गई परन्तु अगले ही पल उसने आगे बढ़कर उसे गले लगाया और फिर वहीं पर बैठ गई।
कुछ देर तक बातें होती रही, फिर पूनम चली गई। उसके जाने के बाद सोनल चेयर को मेरे करीब करके बैठ गई।
दीदी आपसे बात करना चाहती है, सोनल ने धीरे से कहा।
ऊउउउउउं, किसलिए, मैंने कहा।
मैंने उन्हें हमारे बारे में बता दिया है, सोनल कहकर मेरी आंखों में देखने लगी।
मैं एकदम से शॉक्ड हो गया और हक्काबक्का उसकी तरफ देखने लगा।
दीदी मान ही रही रही थी, मैंने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की कि मैं तुम्हारी देखभाल कर लूंगी, पर वो मानी ही नहीं, तो मुझे मजबूरी में बताना पड़ा, सोनल ने अपनी गलती मानने वाले लहजे में कहा।
तो उसने क्या कहा, मैंने कुछ देर बाद पूछा।
वो आपसे बात करना चाहती हैं, अभी तो मैंने मना कर दिया, तो वो सुबह बात करेंगी, सोनल ने कहा।
ओह, कोई बात नहीं, मैंने नोर्मल दिखते हुए कहा। पर वास्तव में मैं नोर्मल नहीं था, पता नहीं अब क्या होने वाला था, इतना सब कुछ तो हो चुका था। मैं सोनल को किसी मुसीबत में नहीं देख सकता था और प्रीत का स्वभाव देखते हुए लग रहा था कि मुझे बहुत कुछ सुनने को मिलेगा, शायद एक लम्बा-चौड़ा भाषण भी।
वो दीदी ने अभी खाने के लिए बुलाया है, सोनल ने मेरे हाथ पर हाथ रखते हुए कहा।
भूख तो है ही नहीं, मैंने कहा और मुस्करा दिया।
ये भी कोई बात हुई, चलो, जैसी भूख हो वैसा खा लेना, सोनल मेरा हाथ पकड़कर उठ गई और मुझे भी उठाने लगी।
ओके, कहते हुए मैं उठ गया और दरवाजे को बंद करके हम नीचे आ गये।
अरे बेटा, नाराज हो क्या मुझसे, सामने सोफे पर बैठी आंटी ने मुझसे पूछा।
नहीं तो आंटी, आपको ऐसा कैसे लगा।
दो दिन हो गये मुझे वापिस आये हुए, मिलने ही नहीं आये तुम, आंटी ने ताना देते हुए कहा।
नहीं वो तबीयत थोड़ी ठीक नहीं थी तो, इसलिए, कहते हुए मैं आंटी के पास ही सोफे पर बैठ गया।
अब कैसी है तबीयत----
अब तो एकदम चंगी है , मैंने मुस्कराते हुए कहा। मैं नोर्मल दिखने की पूरी कोशिश कर रहा था, और कुछ हद तक इसमें सफल भी हो रहा था, क्योंकि आंटी ने इस बारे में ज्यादा कुछ नहीं पूछा। बस दिवाली पर घर जा रहा हूं या नहीं और घर पर सब कैसे हैं, इस बारे में ही बातें होती रही।
खाना खाकर प्रीत, सोनल और मैं उपर आ गये। प्रीत टहलने लगी। सोनल मेरे साथ अंदर आ गई। साढ़े नौ बज चुके थे। कुछ देर हम बैठे हुए बातें करते रहे। प्रीत भी अंदर ही आ गई थी और मेरे घर वालों के बारे में थोड़ा बहुत पूछा उसने, परन्तु सोनल और मेरे रिलेशन के बारे में कोई बात नहीं की। मुझे तो शक हो रहा था कि कहीं सोनल मेरे मजे तो नहीं ले रही है, उसने प्रीत को कुछ बताया ही नहीं हो। क्योंकि प्रीत एकदम से नोर्मल लग रही थी, ऐसा कुछ भी नहीं लगा जिससे मैं ये अंदाजा लगा सकूं कि वो हमारी रिलेशन के बारे में कुछ सोच रही हो।
‘बात को ज्यादा घुमा-फिरा कर कहने की मेरी आदत नहीं है, इसलिए मैं सीधे ही प्वॉइंट पर आती हूं’। सुबह मैं तैयार होकर ऑफिस जाने के लिए निकल ही रहा था कि प्रीत उपर आ गई थी। उसने मुझसे बात करने के लिए कहा तो हम अंदर आकर बैठ गये थे। ‘अब सोनल तुमसे प्यार करती है, और मुझे लगता है कि तुम भी उसे प्यार करते होगे। वो तुमसे कितना प्यार करती है, ये तो तुम देख ही चुके होगे, और मैं भी देख चुकी हूं जब कल तुम बेहोश हुए थे तो तुम्हारे होश में आने तक तुम्हारा सिर उसी की गोद में था’। प्रीत कहकर चुप हो गई और लगातार मेरी तरफ देखने लग गई। ‘तो अब ये तो तुम्हें भी क्लीयर है और मुझे भी कि सोनल तुमसे हद से ज्यादा प्यार करती है, अब तुम उसके बारे में क्या सोचते हो, मुझे इस बारे में बात करनी है’ जब मैं कुछ नहीं बोला तो प्रीत ने आगे कहा।
मुझे उसकी बात को कोई ज्यादा आश्चर्य नहीं हुआ, क्योंकि सोनल का प्यार तो उसकी हर एक बात में झलकता था, बस मुझे ये गुमान नहीं था कि वो मेरे साथ जिंदगी के हसीन सपने भी सजा रही है।
मैं अभी इस स्थिति में नहीं हूं कि किसी भी बात पर कोई फैसला ले सकूं। और पहले मुझे सोनल से भी बात करनी है इस बारे में, उसके बाद ही मैं कुछ कह पाउंगा, मैंने मोबाइल पर आई कॉल के नम्बर को देखते हुए कहा। कॉल सोनल की थी।
‘वैसे तो मैं अभी जानना चाहती हूं कि तुम अभी क्या सोचते हो उसके बारे में, कहकर प्रीत ने मेरे मोबाइल की तरफ देखा और फिर वापिस मेरी तरफ देखने लगी। ‘सोनल अभी तो कहीं गई है, सुबह जल्दी उसे निकलना पड़ गया था, कल शाम तक ही वो वापिस आयेगी, तो इस बारे में आज शाम को बात करते हैं, और फिर कल सोनल के आने के बाद तुम उससे बात करके बाकी सोच लेना, कहते हुए प्रीत उठ गई।
ठीक है, मैंने कहा और उठकर प्रीत के साथ साथ बाहर आ गया। कॉल कट चुकी थी। रूम को लॉक करके मैंने सोनल को कॉल की और नीचे उतरने लगा।
हाय, सोनल की आवाज आई।
हाय, सीढ़ियों उतरते हुए मैंने कहा।
सॉरी, वो सुबह जल्दी से निकलना पड़ा, मामा जी आ गये थे लेने के लिए, बता भी नहीं पाई आपको, सोनल ने कहा।
पहुंच गई तुम----
हां--- बस अभी दस मिनट पहले ही पहुंची हूं, माम जी को बाहर जाना है दो दिन के लिए वो कल शाम को वापिस आयेंगे, उनके आने के बाद मैं वापिस आ जाउंगी।
मुझे भी तुमसे बात करनी है, जल्दी वापिस आओ, मैंने कहा।
क्या हुआ----
प्रीत आई थी सुबह, उसने कुछ पूछा है तो उस बारे में तुमसे बात करनी है, मैंने कहां।
तो फोन पर ही बता दो ना, सोनल ने कहा।
नहीं तुम्हारे आने के बाद ही बात करते हैं, अच्छा मैं अब ऑफिस के लिए निकल रहा हूं, ऑफिस पहुंचकर फोन करता हूं, मैंने कहा।
खाना खा लिया या नहीं, कहीं कल की तरह भूखे ही भाग जाओ, सोनल ने कहा।
अब तो मैं नीचे आ गया हूं, बाहर ही खा लूंगा----
अरे खाना खाने में कितना टाइम लगता है, मैं दीदी को फोन करती हूं, आप खाना खाकर जाना, सोनल ने कहा।
रहने दो, अब तो मैं निकल लिया हूं, बाहर ही खा लूंगा।
ओके, बाये,
ओके बाये, कहकर मैंने कॉल डिस्कनेक्ट की और ऑफिस के लिए निकल गया।
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