RE: Antarvasnasex बैंक की कार्यवाही
बैंक की कार्यवाही मजे लेकर आई--24
गतांक से आगे ...........
पूनम: मर गई आज तो, मम्मी उठ गई होंगी, और सबसे पहले मुझे ही उठाने आती हैं, और मैं रूम में मिलूंगी नहीं, तो आज तो मेरी बैंड बज जायेगी।
मैं: कुछ नहीं होगा, कह देना उपर टहलने चली गई थी।
दोनों ने जल्दी जल्दी अपने कपड़े पहने और बाहर की तरफ भाग ली।
सोनल ने जैसे ही बेड से नीचे पैर रखा वो लड़खड़ा कर वापिस बेड पर बैठ गई।
आहहहहहहहह------------ कमीने,,,,, क्या हालत कर दी, चला भी नहीं जा रहा। सोनल की आंखों में आंसू आ गये थे।
सोनल की दर्द भरी आह सुनकर पूनम ने पीछे मुड़कर देखा और उसकी आंखों में आंसू देखकर वापिस हमारे पास आई।
मैं उठ कर बैठ गया और सोनल के गालों को सहलाने लगा।
मैं: ओह बेबी, बस कुछ देर होगा, फिर ठीक हो जायेगा। तुम आराम आराम से नीचे जाओ, ताकि आंटी को शक ना हो, मैं जाकर पेन किलर लेकर आता हूं।
मैंने अपने कपड़े पहने और मैंने सहारा देकर सोनल को उठाया।
तान्या ने आंखों के इशारे से मुझसे पूछा कि क्या हुआ, तो मैंने बात में बताने के लिए कहा।
दूसरी साइड से पूनम ने सोनल को पकड़ लिया और हम बाहर आ गये।
हर रोज की तरह आज भी छतों पर कोई नहीं था, गली में इक्के-दुक्के अंकल आंटी पार्क में टहलने के लिए जा रहे थे। हमने थोडी देर सोनल को छूत पर घुमाया, जब वो चलने में थोडी आसानी महसूस करने लगी तो मैंने उसके नीचे जाने के लिए कहा। पर जैसे ही वो सीढ़ियों में उतरने के लिए पैर नीचे किया, उसके शरीर में दर्द की लहर उठी और वो वहीं पर बैठने लगी। मैंने उसे पकड़ा और गोद में उठाकर वापिस बेड पर लाकर लेटा दिया।
मैं अभी आया, कहकर मैं बाहर निकल गया, और जल्दी से जाकर पेन किलर लेकर आया। आंटी शायद अभी नहीं उठी थी।
उपर आकर मैंने सोनल को पैन किलर दी। पूनम वहां पर नहीं थी।
पेन किलर देकर मैंने सोनल को आराम करने को कहा, और खुद बाहर आकर आंटी पर नजर रखने लगा, कि जैसे ही आंटी जागेगी, सोनल को बाहर बुला लूंगा, ताकि आंटी को लगे कि सोनल जल्दी उठकर छत पर टहलने चली गई होगी।
थोडी देर में पूनम भी छत पर आ गई और मुझे छत पर खड़ा देखकर मेरे पास आ गई।
पूनम: क्या हुआ, वो चल क्यों नहीं पा रही है?
मैं (हंसकर उसकी आंखों में देखा): क्यों तुम्हें दर्द नहीं हो रहा?
पूनम: हो तो रहा है, पर इतना ज्यादा तो नहीं हो रहा, बस थेाडा थोडा हो रहा है। और मेरा तो पहली बार था, पर वो तो हर रोज करती है तुम्हारे साथ, फिर भी।
मैं मुस्कराया और उसकी तरफ आंख मारकर बोला।
मैं: आज उसका पिछे का उदघाटन हुआ है?
मेरी बात सुनकर पूनम के चेहरे पर मुस्कान तैर गई और उसने चारों तरफ देखा और मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिये और एक जोरदार किस करके, बायें बोलते हुए वापिस अपनी छत पर चली गई।
नीचे से दरवाजा खुलने की आवाज आई, मतलब आंटी उठ गई थी। मैं अंदर गया और एक चेयर बाहर लाकर रख दी और फिर सोनल को सहारा देकर बाहर ले आया और चेयर पर बैठा दिया।
सोनल चेयर पर बैठ गई। पूनम की आवाज सुनकर उसने पिछे देखा।
पूनम (हंसते हुए): आज तो पूरे मजे ले लिए जानी ने।
सोनल: हंस ले, हंस ले, तेरा नम्बर आयेगा तब देखूंगी हंसती है या रोती है।
पूनम: मैं उलटे-सीधे काम नहीं करती, बस मतलब की चीजों से मतलब रखती हूं।
सोनल: हां, देखती जा, सब पता चल जायेगा।
तभी नीचे से आंटी की आवाज आई, सोनल बेटा।
सोनल उठकर मुंडेर के पास गई।
सोनल: मम्मी मैं, उपर हूं।
आंटी: बेटा, मैं पार्क में जा रही हूं, थोड़ा धयान रखना।
सोनल (मुस्कराते हुए): ठीक है मम्मी, आप जाओ, मैं देख लूंगी।
आंटी पार्क के लिए निकल गई।
सोनल वापिस मुडी और मेरे गले में अपनी बांहें डाल दी।
सोनल: अब मुझे गोद में उठाओं और अंदर ले चलो।
जो हुकुम मेरे आका कहकर मैंने सोनल को गोद में उठाया और अंदर ले आया, और बेड पर लेटा दिया। पूनम नीचे चली गई थी।
मैं भी बेड पर बैठ गया और सोनल की तरफ देखकर मुस्कराने लगा।
सोनल ने मेरे कंधे पर एक मुक्का मारा।
सोनल: हंस क्या रहे हो, कभी तुम्हारे पिछे डालूंगी डिल्डो, तब पता चलेगा।
मैं: अच्छा तो तुम्हारे पास डिल्डो भी है।
सोनल: ओर नहीं तो क्या आपके ही लंड है।
मैं: कहां से लाई?
सोनल: दीदी लेकर आई थी, जब इंडिया आई थी।
मैं: ओह, तो ये बात है, हसीनाओं को डिल्डो का चस्का लगा हुआ है, अरे यार डिल्डो को ही यूज करोगी तो हमारे लंड तो बेचारी ऐसे ही सूख जायेंगे।
सोनल: तो सूखने दो, जिनको हमारी थोड़ी सी भी परवाह नहीं, उनकी यही सजा है, चलने लायक भी नहीं छोड़ा।
मैंने सोनल के माथे पर किस की और किचन में आ गया, चाय बनाने के लिए।
चाय बनाकर मैंने दो कप में डाली और एक सोनल को दी और एक खुद पीने लगा। पेन किलर ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया था, उसका दर्द कम हो रहा था।
चाय पीकर सोनल नीचे चली गई। 6 बज गये थे तो मैं ऑफिस के लिए तैयारी करने लगा। मैं नाश्ता तैयार करके नहाकर तैयार हो गया। जब तक मैंने नाश्ता किया तो साढ़े आठ बज चुके थे।
मैं मुंडरे के पास आकर खड़ा हो गया। मैंने देखा कि सोनल तैयार होकर स्कूटी पर कहीं जा रही है, शायद कॉलेज के लिए निकली होगी।
मैं भी नीचे आया और बाईक स्टार्ट करने लगा। पर बाईक नहीं हुई। मैंने तीन-चार कोशिश की पर नहीं स्टार्ट हुई। फिर मैंने तेल चैक किया तो टंकी तो खाली थी।
ओह शिट यार, ये भी अभी खत्म होना था। मैंने बाइक को वहीं खड़ा किया और बस पकड़ने के लिए निकल पड़ा।
सत्कार पर आकर मैं सिटी बस का वेट करने लगा, करीब दस मिनट बाद बस आई। मैं बस में चढ़ गया। सुबह का टाइम था तो बस में बहुत ही ज्यादा भीड़ थी। मैं भी घुसते घुसते बीच में जाकर खड़ा हो गया।
मेरे आगे एक लड़की खड़ी थी, बस में भीड़ बहुत ज्यादा था इसलिए मेरे और उसके बीच में बिल्कुल गैप नहीं था, मैं बिल्कुल उससे सटकर खड़ा था। उस लड़की ने पजामी (वो टाइट वाली नहीं, ढीली वाली, जो कुल्हों पर तो एकदम टाइम होती है और पूरी शेप दिखाती है पर कुल्हों से नीचे ढीली होती है) और कुर्ती पहन रखी थी। मेरा लिंग उसके कुल्हों की दरार के बीच में सैट हो गया था। उसकी शरीर की गर्मी पाकर मेरे लिंग ने अंगडाई लेनी शुरू कर दी। मैं परेशान हो गया। क्योंकि हम बिल्कुल सटकर खड़े थे और मेरे पप्पू के खड़े हो जाने पर उसे पता चलना ही था। पर अब हो भी क्या सकता था। मैंने अपना हाथ नीचे लेजाकर अपने लिंग को एडजस्ट करने की कोशिश की पर इतनी भीड़ में कहां, और उपर से इस बात की भी डर की कहीं मेरा हाथ उसके कुल्हों से टच न हो जाये।
मेरे हाथ लगाने से पप्पू और भी ज्यादा हुडदंग मचाने लगा और एकदम तन गया। अब मेरा लिंग बिल्कुल उसके कुल्हों के बीच में सैट हो गया।
तभी बस के ब्रेक लगे और वो लड़की थोउ़ी आगे होकर फिर से पिछे को आई तो मेरा लिंग उसके कुल्हों के बीच में जाकर सैट हो गया। शायद उसे महसूस हो गया था।
उसने मेरी तरफ घूर कर देखा। मैंने उसकी तरफ देखा, बहुत ही खूबसूरत आंखे थी। चेहरे पर तो उसने कपड़ा बांधा हुआ था, केवल आंखें ही देख पाया।
मैं: सॉरी, बहुत ज्यादा भीड़ है, माफ कीजियेगा।
वो लड़की मुस्कराई और ‘इट्स ओके’ कहा।
मैं थोड़ा सा पिछे हो गया, पर पिछे वाले ने थोड़ा सा मुझे आगे की तरफ धक्का दे दिया और मेरा लिंग फिर से उसके कुल्हों के बीच में जाकर सैट हो गया।
तभी मुझे महसूस हुआ कि वो लड़की अपने कुल्हों को मेरे लिंग पर रगड़ रही है। मैंने उसके चेहरे की तरफ देखा, पर कुछ एक्सप्रेशन तो जब दिखें ना तब चेहरा दिखे।
मैं आराम से खड़ा हो गया, और अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया। मुझे उसके कुल्हें साफ महसूस हो रहे थे। उसकी पजामी का कपड़ा काफी पतला था।
मैंने भी उसके कुल्हों पर अपना लिंग रगड़ना शुरू कर दिया। अब मैं उसके कुल्हों पर हल्के हल्के धक्के लगा रहा था। वो भी पूरा साथ दे रही थी और बार बार अपने कुल्हों को आगे करके फिर से पिछे ला रही थी। मैं पहली बार सिटी बस में सफर कर रहा था तो मुझे इन सबका कोई एक्सपीरियंस नहीं था। इतना मजा आ रहा था कि मेरे मन में हर रोज ही बस से आने जाने का ख्याल आने लगा।
तभी बस ने ब्रेक लगाये और ओ-टी-सी- पर बस में से काफी सवारी उतर गई। हमारे सामने वाली सीट पर जो आंटी बैठी थी वो भी उतर गई, पर वो लड़की बैठी नहीं और वैसे ही खड़ी रही। उस खाली सीट पर एक दूसरी लड़की बैठ गई। जितनी सवारी उतरी थी उससे आधी बस में और चढ गई। अब बस में ज्यादा भीड तो नहीं थी, पर फिर भी चिपक कर खड़ा होने पर कोई कुछ कह नहीं सकता था, इतनी भीड़ तो थी ही।
उसके ना बैठने से मैं समझ गया कि ये पूरे मजे ले रही है और जैसे ही बस चली मैंने अपने हाथ नीचे लेजाकर उसके कुल्हों को मसलना शुरू कर दिया। मैंने अपनी ठोडी उसके कंधे पर रख दी।
मैं: मुझे तो पता नहीं था कि बस में इतने मजे आते हैं, नहीं तो डेली बस से ही सफर करता।
उसने मेरी तरफ चेहरा करने की कोशिश की तो मेरे होंठ कपडे के उपर से उसके गालों से टकरा गये। उसने अपने चेहरे को वैसे ही रखा और अपने कुल्हों को मेरे लिंग पर रगड़ने लगी। हमारे सामने जो लड़की बैठी थी वो हमें घूर घूर कर देख रही थी, उसने भी अपने चेहरे पर कपड़ा बांधा हुआ था (जिसने भी ये चेहरे पर कपड़ा बांधने का चलन चलाया, उसपर बहुत गुस्सा आता है)। मैंने उस लड़की को आंख मार दी। उसने मेरी तरफ आंखें निकाली और फिर दूसरी तरफ देखने लगी। मैं अपना एक हाथ आगे की तरफ ले गया और उसकी जांघों को भिंचने लगा। वो अपने गालों को मेरे हाेंठों पर रगड़ने लगी। तभी कंडेक्टर ने बापू नगर की आवाज लगाई और मैं उस लड़की को बायें बोलकर नीचे उतर आया। मेरी हैरानी का ठिकाना न रहा जब मैंने देखा कि वो भी मेरे पीछे पीछे नीचे उतर गई। मैंने उसकी तरफ देखा, वो मुझे ही घूर घूर कर देख रही थी और मुझे ऐसा लग रहा था कि वो मुस्करा रही थी।
मैं मुडकर चलने लगा तो उसने मुझे पिछे से आवाज लगाई, ‘समीर’।
मैं अपना नाम सुनकर चौंक गया और उसकी तरफ देखा। इसको मेरा नाम कैसे पता चला।
वो मेरे पास आई, और मेरी तरफ अपना हाथ बढ़ा दिया और हाय कहा।
मैंने उससे हाय कहा।
मैं: सॉरी, पर आपको मेरा नाम कैसे पता चला।
लड़की: तुमने मुझे पहचाना नहीं?
मैं: अब मुंह पर तो ऐसे कपड़ा बांध रखा है जैसे पता नहीं कहां मुंह काला करवाकर आई हो और कपड़ा बांधकर छिपाने की कोशिश कर ही हो, तो पहचानूंगा कैसे।
वो मेरी बात सुनकर थोडा सा नाराज हो गई और उसने कपड़ा खोल दिया।
उसे देखकर मेरा मुंह खुला का खुला रह गया।
तुम, तभी तो मैं सोचूं कि ये लड़की इतनी बेशर्म कैसे है, जो किसी अनजान के साथ ऐसे मजे ले रही है, मैंने उसे देखते हुए कहा।
वो खड़ी खड़ी मुस्करा रही थी।
मैं: तुम्हारे पास तो स्कूटी पर, फिर बस में।
निशा: वो मम्मी को कहीं जाना था तो, इसलिए स्कूटी नहीं लाई।
मैं: इधर क्या काम है?
निशा (मुस्कराते हुए): कुछ भी नहीं, मैं तो कॉलेज जा रही थी, आप उतरे तो सोचा आपको थोडा सरप्राइज दे दूं।
तभी दूसरी बस आ गई। निशा ने मेरे गालों पर एक पप्पी दी और बायें कहते हुए बस में बैठ गई।
मैं बॉस के घर पर आकर ऑफिस में आ गया।
मैं अभी ऑफिस में घुस ही रहा था कि अपूर्वा अंदर आती हुई दिखाई दी। मैं बाहर ही खड़ा हो गया। अपूर्वा ने अपनी स्कूटी खड़ी की और इधर-उधर नजर दौडाई और ऑफिस की तरफ चल दी।
मैं: हाय! आज तो लगता है किसी की जान ही लेकर रहोगी।
अपूर्वा: क्यों, ऐसे क्यों कह रहे हो?
मैं: बस, तुम लग ही इतनी ब्यूटीफुल रही हो कि किसी को तो हर्ट अटैक आयेगा ही आज।
अपूर्वा ने सफेद चुडीदार सलवार और हल्के गुलाबी रंग की कुर्ती पहनी हुई थी। कुर्ती उसकी जांघों से थोड़ी सी नीचे तक थी और उसकी जांघों से चिपकी हुई थी और उसकी मांसल जांघें की शेप उजागर हो रही थी।
हाय, अपूर्वा ने अपना हाथ मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा।
क्रमशः.....................
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