College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
11-26-2017, 01:07 PM,
#57
RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
अब शरद का लंड उसके चूतदों के बीच फँसा हुआ था और शरद उसकी बाँह के नीचे से सिर निकाल कर उसकी चूची को चाट रहा था.. लड़की पागल सी हो चुकी थी... रह रह कर उसके मुँह से कामुक सिसकी निकल जाती.. मज़ा बढ़ने के साथ ही वा अपने चूतदों को नीचे ढकने की कोशिश करने लगी... अपनी चूत पर उसके लंड को ज़्यादा से ज़्यादा महसूस करने के लिए... शरद का हाथ उसके पेट से होता हुआ उसकी पनटी के अंदर उसकी चूत के दाने को कुरेदने लगा... हद से ज़्यादा उत्तेजित हो चुकी लड़की हाए हाए करने लगी... अपनी एक खाली छाती को अपने ही हाथ से दबाने लगी.. आँख बंद करके... कसमसने लगी... शरद ने उसको अपने घुटनो के बीच नीचे बिता लिया और उसको तगड़े मोटे लंड का दीदार करा कर उसका काम समझाया.. लड़की तो आज प्यार का हर पाठ सीख लेना चाहती थी.. बेझिझक, बेहिचक... उसने लंड को अपने होंटो से रगड़ा.. होन्ट अपने आप खुलते चले गये..'हॉट आइस्क्रीम' खाने को.... कुछ देर सूपड़ा मुँह में रखने के बाद शरद ने उसको नीचे से चटकार उपर आने को कहा.. अपनी गोलियों से सूपदे तक.. "तुम्हारा नाम ही भूल गया.. क्या बताया था?" शरद ने उसके होंटो को अपने लंड से सटा तेहुए पूछा... "प्रिया!" "हां प्रिया! ये होन्ट क्यूँ रग़ाद रही है.. अपनी जीभ बाहर करके चाट इसको..... ..".... हााआअँ आआहह.. ऐसेयययययययी... और दूसरी का क्या नाम है.. उफफफफफफफफफ्फ़.." "स्नेहा!" कहकर उसने फिर से सूपदे पर जीब घुमा दी...... "आआआआः मार दियाआ तूने तो ... मेरी जाअन... और ले.. नीचे से उपर तक..." शरद अपने बचे खुचे होश भी खो बैठा... प्रिया को भी खूब आनद आ रहा था.. अपनी जिंदगी की पहली नोन-वेज कुलफी को चूस्ते... चाट-ते... उसकी स्पीड लगातार बढ़ रही थी.. पर कुलफी पिघलने की बजाय सख़्त होती जा रही थी.. "ले अब मुँह में डाल ले... पूरा लेने की कोशिश करना.." ज्यूँ ही प्रिया ने अपना मुँह खोल कर... उसके सूपदे को मुँह में लिया.. शरद ने उपर से अपने हाथो का दबाव डाल दिया... प्रिया खाँसती हुई पीछे जा गिरी... उसकी आँखों में पानी आ गया... "कोई बात नही जान धीरे धीरे सब सीख जाएगी..." शरद ने उसकी पनटी पकड़ कर जांघों से नीचे खींच दी... क्या खूबसूरत फ़िज़ा थी.. उसकी जांघों के बीच.. लाल हो चुकी, गीली हो चुकी, फूल चुकी और तपाक रही चूत... शरद ने खुद उठाने की जहमत ना की.. उसके घुटने सोफे पर टिकवाए और थोड़ा सा नीचे सरक कर उसकी चूत से मुँह लगा दिया.. प्रिया ने आनंद सहन ना कर पाने की वजह से पिछे हटने की कोशिश की पर शरद ने उसकी गांद के दोनो उभारों को कसकर पकड़ लिया और अपनी जीभ से उसकी चूत में हुलचल मचा दी... "आआआआअ ईईईईईईई एयेए माआआ रीइ... ज़ाराआ आआराआामा से... प्लीज़ ज्जज्ज!" पर इसी सिसकारी को सुन'ने का तो मज़ा लेना था... शरद ना माना बुल्की जीभ उसकी चूत की फांको में घुस कर उसके छेद को कुरेदने लगी... "आआह आआह आअह आआह... मर गयी... शरद्द्दद्ड.. प्लीज़ सस्स्स्सहन नही हो रहा.. आआह"


शरद उसकी गांद के छेद को अपनी उंगली से सहला रहा था.. वह चूत के रस में उसको गीला करता और जब तक सूख ना जाती उसकी गांद के छेद पर घूमता रहता... प्रिया का आनंद काई गुना बढ़ गया... वह बरस पड़ी... अपनी चूत में से... झार झार रस का दरिया बहने लगा.. प्रिया ने शरद के सिर को ज़ोर से वहाँ पर ही दबा लिया.. और शरद ने अपने होंटो से बाँध बना दिया.. उसकी चूत के मुहाने पर...... रस का एक भी कतरा बाहर ना जाने दिया.. सब पी गया.. शरद को कुँवारा रस अमृत से भी प्रिय था... शरद ने उसको छोड़ा तो वह धदाम से सोफे पर गिर पड़ी... जैसे उसका सब कुछ निकल गया हो.. "ऐसे नही मेरी जान! अभी तो शुरुआत है... सारी रात बाकी है.. ऐसे गिर पड़ोगी तो काम कैसे चलेगा... प्रिया की वासना का नशा उतर चुका था.. पर शराब का नशा अभी बाकी था... शरद ने उसको प्यार से उठाया और फार्स पर घुटने टिकवा कर सोफे पर उल्टा कर दिया... प्रिया ने कोई विरोध ना किया.. शरद ने उसकी गांद को हाथों से फैलाकर देखा.. चूत अभी भी चिकनी थी.. सही टाइम था... शरद को पता था एक बार ये ज़रूर कूदेगी... चूत का बंद छेद इसकी पुस्ती कर रहा था.... वा पूरी तरह से प्रिया के उपर आ गया.. उसकी कमर को अपनी कमर से दबा लिया और उसके हाथो को ज़ोर से पकड़ लिया.. लंड सही जगह टीका हुआ था.. शरद ने दबाव डालना शुरू किया... प्रिया चिहुनकि पर हिल ना सकी.. वा भयभीत हो गयी.. अपने को फट-ता देख.. उसने गांद को इधर उधर किया.. पर लंड को रास्ता दिख चुका था.. वह चूत के मुँह पर चिपका हुआ ही इधर उधर होता रहा.. ज्यों ज्यों दबाव बढ़ता गया.. प्रिया की चीख तेज होती गयी.. पर 10000 वॉट के म्यूज़िक सिस्टम के आगे उसकी चीख कौन सुनता... "बस.. थोड़ा सा और... बस थोडा सा और.. करते करते शरद ने सूपड़ा ज़बरदस्ती अंदर फिट कर दिया.. लग रहा था जैसे पहले लंड डालकर फिर उसका साइज़ बढ़ाया है.. इतनी पतली चूत में इतना मोटा लंड घुस कैसे सकता है.. खुद शरद को हैरत थी.. पर अब उसने और घुसाना छोड़ कर प्रिया की कमर को चाटना शुरू कर दिया था.. ुआकी चूचियों को सहलाना और धीरे धीरे मसलना शुरू कर दिया था... प्रिया की चेखें कम होने लगी.. धीरे धीरे उसकी चीत्कार सिसकियों में बदलने लगी.. शरद ने उसके गालों पर चुंबन दिया तो वा भी उसको काट खाने को लालायित हो गयी.. अब चूत में आराम था.. उसने अपनी टाँगों को थोड़ा चौड़ा कर लिया ताकि दर्द में और आराम आ सके... पर टाँगों का चौड़ा होना प्रिया के लिए आराम देह भले ही साबित ना हुआ हो.. शरद के लिए आसान ज़रूर हो गया.. उसके और अंदर घुस जाना.. एक बार फिर प्रिया रो उठी.. एक बार फिर सिसकियाँ चीत्कार में बदल गयी.. पर इश्स बार पूरा काम हो गया.. और चीत्कार भी कम हो गयी.. प्रिया ने सुना था की पहली बार तो दर्द होता ही है.. लेकिन ये भी सुना था की बाद में मज़े भी आते हैं... दर्द को भूल चुकी प्रिया अब मज़े लेने के इंतज़ार में थी.. करीब 2 मिनिट बाद उसकी ये तमन्ना भी पूरी हो गयी... जैसे ही शरद ने अंदर बाहर करना शुरू किया.. प्रिया पागल हो उठी... ये चूत तो मज़े की ख़ान है.. उसने पहले क्यूँ नही लिए... वह बदहवासी और नशे की हालत में कुछ का कुछ बके जा रही थी..," सोचा था... आ... मेरा.. हुस्स्स्बंद.. चोदेगा... पर .. क्या..... आआह .. क्या पता था की... यहाँ.. ये मज़े मिलेंगे... पैसों के बदले... आअह... शरद... ... जब चाहे बुला लेना... पर... मेरी.. ज़रूरत ... पूरी .. कर देना..... मुझे... बहुत ... पैसों की.. ज़रूरत... है... अपने भाई को.... कोचैंग दिलानी है... प्लीज़... उसके .... पैसे/.. देते रहना.... उसमें... बहुत... आआएकमाआ... टॅलेंट ... हाईईईईईईईईय्ाआआआआआईयईईईई इमाआआआआ मररर्र्रर्ड गाइिईई... बुसस्स्स बुसस्स निकाल लो... मर गयी.... जलन हो रही है.... शरद ने बाहर लंड निकाल कर उसको पलटा और मुँह खोलने को कहा... ना चाहते हुए भी प्रिया ने अपना मुँह खोल दियाअ... और 2-4 बार हाथ आगे पीछे करने पर शरद अकड़ गया.. उसने लंड पूरा मुँह खोले बैठी.. प्रिया के मुँह में लंड थूस कर अपनी सारी मेहनत का फल अंदर निकाल दिया.. और लंड बाहर निकाल लिया... प्रिया ने नीचे मुँह करके होन्ट खोल दिए.. सारा रस ज़मीन पर गिर पड़ा...



शरद उठा और बेडरूम के दरवाजे के पास जाकर ज़ोर से बोला," अरे भाई बदलनी है क्या..?" "नहिी.. यही ठीक है... मुझे.. पतली पसंद नही.." टफ की आवाज़ आई.. "अरे थोड़ा साँस भी लेने दे... उसको.. बाहर आजा एक एक पैग पीते हैं.. टफ दरवाजा खोलकर अपनी पॅंट की जीप बंद करते हुए बाहर आया..... "कैसी लगी..?" विकी ने पूछा..... "एकद्ूम मस्त आइटम है यार... पहली बार था पर क्या चुदाई करवाई है..." टफ ने पैग बनाते हुए कहा.. "चल तू तब तक पैग बना और इससे मुलाक़ात कर.. मैं 20 मिनिट में आया, स्नेहा से मिलकर.." टफ ने उसका हाथ पकड़ लिया..," रहने दे यार... अभी चोद कर हटा हूँ... कुछ तो दया कर.." "क्या बात है.. क्या बात है.. लगता है तुझे तो प्यार हो गया है उससे..." शरद ने मज़ाक किया.... प्यार शब्द सुनते ही टफ की आँखों के सामने सीमा का चेहरा घूम गया... वह खुद पर ही शर्मिंदा हो गया और नज़रें धरती में गाड़ ली... "ठीक है दोस्त.. मैं एक बार और इसको लपेट लूँ... फिर आराम से नींद आ जाएगी....." शरद ने टफ से कहा... टफ उठा और बेडरूम में जाकर दरवाजा बंद कर लिया... शरद ने प्रिया को उठाया और उसको फिर से तैयार करने लगा.... टफ अंदर जाते ही बिना स्नेहा से बात किए... सीमा की यादों में खोया खोया.. आँखों में आँसू लिए सो गया..... स्नेहा टफ की और देखती रही... उसकी आँखों में नींद नही थी... सुबह टफ उठा तो स्नेहा वहाँ नही थी, अपनी अड़खुली आँखों को मालता हुआ वह बाहर आया; देखा शरद अभी भी सो रहा है.. उसने हाथ मारकर उसको उठाया," उठ जा भाई!" शरद ने एक ज़ोर की अंगड़ाई ली..," ओवाआआ! साली सुबह सुबह भाग गयी... एक बात और लेनी थी यार... स्नेहा को तो मैं चोद ही नही पाया.. कैसी थी?" टफ ने वॉश बेसिन के सामने अपनी आँखों पर छीते मारे... आँखें शायद शराब के कारण लाल हो चुकी थी...," ठीक थी.. कुछ खास कोपरेशन नही किया..." "अगली बार मैं सिख़ावँगा उसको साथ देना..." शरद सोफे से ही उठते ह बोला... "यार तू उनको यहाँ लाया कैसे?.. दिखती तो दोनो शरीफ ही थी.." "सबको ये चाहिए होता है बेटे!" शरद ने अपने अंगूठे को अपनी उंगली पर चलाया...," यहीं पढ़ती हैं यूनिवर्सिटी में.. घर से पूरा खर्च मिलता नही.. तो अयाशी और मौज मस्ती के लिए ऐसे ही रातों को आती जाती रहती हैं.. हम जैसे ज़रूरतमंदों के पास..." "यार! इतनी पढ़ी लिखी होकर भी... कैसे कर लेती हैं ये सब...." टफ सीमा को याद करके बेचैन हो गया... उसको यहाँ नही आना चाहिए था.. ये सोचकर वो रह रह कर परेशन हो रहा था... "आबे साले! तू अंबिया चूस कर गुठली गिन'ने में लग गया... चल आ चाय पी ले...!" नौकर अभी अभी टेबल पर चाय रखकर गया था... 


करीब सुबह 9 बजे टफ यूनिवर्सिटी के गेट नंबर. 2 पर खड़ा था.. सीमा को सर्प्राइज़ देने के लिए... ऑटो से उतारकर प्रिया को अपनी और आते देख टफ भौचक्का रह गया.. वह दूसरी तरफ घूम गया ताकि अगर प्रिया ने उसको ना देखा हो तो वो उस'से बच सके.. पर प्रिया तो उसको देखकर ही उतरी थी.. वरना तो उसको अगले गेट पर जाना था..," हे फ्रेंड! कैसे हो?" प्रिया उसके आगे आकर खड़ी हो गयी.. टफ ने अब और तब में उसमें बहुत फ़र्क देखा.. तब वह पैसों की खातिर बिकने वाली एक वेश्या लग रही थी और अब अपने करियर के लिए यूनिवर्सिटी आने वाली एक सभ्या लड़की...," ठीक हूँ... जाओ यहाँ से...!" "हां हां! जा रही हूँ.. एक रिक्वेस्ट करनी थी.." प्रिया ने टफ की तरफ प्यासी निगाहों से देखा.. "जल्दी बोलो.. मुझे यहाँ पर ज़रूरी काम है.." टफ ने अपनी बेचैनी दर्शाई... "वो... सर आप बड़े लोग हैं... आपके लिए पैसा कोई मायने नही रखता होगा... मेरे जैसी घरों की लड़कियों को पैसे की बहुत ज़रूरत होती है.... अपने और परिवार के सपनो को जिंदा रखने के लिए... उम्मीद है आप समझ रहे होंगे... बदले में हमारा शरीर ही होता है.. आप बड़े लोगों का दिल बहलाने के लिए......" "अपनी चौन्च बंद करो और भागो यहाँ से..!" टफ गुस्से से दाँत पीस रहा था... सीमा के आने का टाइम हो चुका था... "सॉरी टू डिस्टर्ब... बट कभी आप अपनी सेवा का मौका दे सकें तो... प्लीज़ आप अपना नंबर. दे दीजिए......." तभी मानो टफ पर आसमान टूट पड़ा...," अरे प्रिया! तुम इनको कैसे जानती हो? ... और आप यहाँ कैसे..?" सीमा की आवाज़ सुनकर टफ पलटा... उसकी आँखों के आगे अंधेरा छा गया... "मैं तो बाद में बतावुँगी.. पहले तुम बताओ.. तुम इनको कैसे जानती हो?" प्रिया ने सीमा के गले मिलते हुए कहा... "बस यूँही... आप यहाँ कब आए... बताया भी नही... अच्छा मैं अभी आती हूँ.. 1 घंटे में... मुझे ज़रूरी एषाइनमेंट्स जमा करना हैं... मिलेंगे ना..! मैं जल्द से जल्द अवँगी..." अपने सपनो के राजकुमार को देखकर उसने लाइब्ररी जाने का प्लान कॅन्सल कर दिया था... "सीमा.. एक मिनिट! सुनो तो सही...!" टफ का गला भर आया.. "मैं बस अभी आई.." कहती हुई सीमा प्रिया का हाथ पकड़ कर खींचती हुई ले गयी.. टफ अपने माथे पर हाथ लगा वहीं घुटनों के बाल बैठ गया... सीमा और प्रिया के गले मिलने को देखते हुए ये अंदाज़ा लगाना बिल्कुल आसान था की दोनो पक्की सहेलियाँ थी.... सीमा ने अंजलि से पूछा," तूने बताया नही.. अजीत को कैसे जान'ती है..?" प्रिया ने टालने की कोशिश की," यार.. बस ऐसे ही एक फ्रेंड के दोस्त के पास मुलाक़ात हो गयी थी..." "चल छोड़! ये बता.. कैसा लगा तुझे ये.." सीमा ने अपनी पसंद पर मोहर लगवानी चाही... "रॉकिंग मॅन! कुछ भी तो कमी नही है... पर तू ये बता तू ऐसा क्यूँ पूच रही है..?" प्रिया ने शंकित निगाहों से सीमा की और देखा... "बस ऐसे ही.. चल छोड़.. जल्दी चल.. लेट हो रहे हैं!" अब की बार सीमा ने टालने की कोशिश करी.... "नहिी ! तुम्हे बताना पड़ेगा... मेरी कसम!" प्रिया को दाल में कुछ काला सा लगा.. "वो.. ये.. अजीत मुझसे प्यार करता है..." "Wहाआआआआत?" प्रिया ने ऐसे रिक्ट किया मानो 'प्यार' शब्द प्यार ना होकर कोई बहुत बड़ी गाली हो... "क्या हुआ?" प्रिया का रिएक्शन देखकर सीमा की धड़कन बढ़ गयी.... "तू बहुत ग़लत कर रही है सीमा! तू एक बहुत अच्छी लड़की है.. और ये प्यार व्यार तेरे लिए नही बना." प्रिया ने लुंबी साँस लेते हुए कहा.... "अच्छी हूँ तो इसका ये मतलब तो नही की मैं शादी के सपने भी ना देख सकूँ!..." सीमा ने प्रिया से सवाल किया... "तो तू ये समझती है की ये लड़का तुझसे शादी करेगा... है ना?" प्रिया उसको इशारों में समझना चाहती थी... टफ जैसों की तासीर. "तू पहेलियाँ क्यूँ बुझा रही है... खुल कर बता ना.. क्या बात है?" प्रिया बताती भी तो क्या बताती.. वो सीमा के पड़ोस में रहती थी.. उनकी भी कॉलोनी में उतनी ही इज़्ज़त थी.. जितनी सीमा और उसकी मा की.. पर वो सीमा को इश्स दलदल में नही जाने देना चाहती थी... और सीमा पर भरोसा भी कर सकती थी.. उसका काला 'सच' छुपा कर रखने के लिए...," तू एषाइनमेंट दे आ सीमा.. मैं तुझे सब बताती हूँ..." "ओ.के... मैं अभी आई" सीमा ने बेचैन निगाहों से प्रिया को देखते हुए कहा.. उसका दिल बैठा जा रहा था.. जाने.. प्रिया उसको क्या बताएगी.... सीमा जितनी जल्दी हो सका; वापस आ गयी.. प्रिया के पास.. उसके कॉमेंट ने सीमा के दिल की धड़कन बढ़ा दी थी..," हाँ प्रिया.. जल्दी बता दे.. तू कहना क्या चाहती है..?" प्रिया उसका हाथ पकड़ कर रोज़ पार्क में ले गयी... "देख सीमा! मैं तुझको जो बताने जा रही हूँ.. वो बताने लायक नही है.. हम दोस्त हैं.. इसीलिए मैं तुझे इश्स प्यार के गटर में ढकेले जाने से बचना चाहती हूँ.. और जो कुछ मैं बतावुँगी.. सुनकर तुझे एक नही दो झटके लगेंगे... प्लीज़ मुझे माफ़ कर देना.. और मेरी मजबूरी समझने की कोशिश करना.." "यार तू डरा मत प्लीज़.. मेरी जान निकली जा रही है..." सीमा सुन'ने से पहले ही कुछ कुछ समझने लगी थी.. "मुझे पता है.. पर तुझे सुन ही लेना चाहिए...!.. तरुण पढ़ाई में बहुत अच्छा है.. तुझे पता है.. पर कॉंपिटेशन के जमाने में सिर्फ़ इंटेलिजेन्सी से काम नही चलता... उसकी कोचैंग के लिए 50000 रुपए चाहियें... घर वालों ने उसको बी.एस सी. करने को कहकर अपने हाथ उठा लिए हैं..." "तू सीधी सीधी असली बात पर क्यूँ नही आती?" सीमा ना चाहकर भी वो सुन'ने के लिए बेचैन थी... क्या पता उसका अंदाज़ा ग़लत ही निकल जाए... प्रिया ने थूक गटकते हुए अपनी बात जारी रखी," बता तो रही हूँ... मेरा भाई डॉक्टर बन'ना चाहता है.. और मैं जान'ती हूँ वो बनेगा..." प्रिया का गला भर आया... आँखों में आँसू आ गये," और मैने फ़ैसला किया की उसको डॉक्टर बना'ने के लिए मैं अपना जिस्म बेच दूँगी!" कह कर वो फुट फुट कर रोने लगी.. सीमा की छाती पर सिर रखकर वो झार झार बरसने लगी... "ये क्या कह रही है तू प्रिया" सीमा ने कसकर उसको अपने सीने से भींच लिया... पर उसको पता था ये बेहन का प्यार है... कुछ भी कर गुजरेगा.. अपने भाई के सपने को पूरा करने की खातिर... करीब पाँच मिनिट तक दोनो में चुप्पी छाई रही.. सीमा की हिम्मत ना हुई; प्रिया के बलिदान की आँच पर अपनी जिगयसा की रोटियाँ सेकने की... प्रिया ने खुद ही अपने आपको संभाला और आगे बोलना शुरू किया..," मैने एक डील करी... 5 रातों के बदले 50000... ... और कल में पहली रात बिता कर आ चुकी हूँ..." "क्या? ... किसके साथ..?" "तुम्हारे इश्स अजीत के साथ.... सीमा सुनते ही सब कुछ भूल गयी... बस याद रहा तो टफ का वो खत जिसने उसको सपना दिखाया था.. जिसने उसको जीना सिखाया था.. सपने के साथ.. सीमा को लगा जैसे पार्क में खिले गुलाब उसकी हँसी उड़ा रहे हैं.. उसको सब कुछ घूमता सा लगा... सपनें पिघल कर लुढ़क आए... उसके गालों पर.. प्रिया उसको एकटक देखे जा रही थी... सीमा को अब भी विस्वास सा नही हुआ.. क्या आदमी की जात इतनी घटिया भी हो सकती है..," क्या सच में इसने तुम्हारे साथ...." "नही.. इसने नही.. पर ये भी था किसी दूसरी के साथ.. नाम बताना नही चाहती... खुद पर लांछन लगा कर तुमको रास्ता दिखाने से मुझे कोई हर्ज़ नही.. पर हुमने एक दूसरी को वादा किया है.. नाम ना बताने का.. सॉरी..!" प्रिया ने अपने आँसू पोछते हुए कहा... सीमा के पास अब जैस उसका कहने को कुछ बचा ही ना था... वह प्रिया का धन्यवाद करना भी भूल गयी... उसको इस गर्त में गिरने से बचाने के लिए...... उसके मनमोहक चेहरे पर चाँदी सी नफ़रत तैरने लगी.. वह उठी और टफ के पास जाने लगी... पीछे पीछे उसकी सहेली प्रिया चल दी... हर बात के सबूत के तौर पर...... टफ अपनी गाड़ी से कमर लगाए खड़ा था... सीमा की सूरत देखकर ही वो समझ गया... सीमा ने पास आते ही भर्रय हुई आवाज़ में उसको जाने क्या का कहना शुरू कर दिया," तुमको तो जीना आ गया है ना.. तुम तो मुझे देखकर ही पागल हो गये थे.. तुमने.... कहा था ना... कहा था ना तुमने की... मेरे बिना जी नही पाओगे... ये जीना है तुम्हारा.." टफ कुछ बोल नही पा रहा था.. और ना ही कुछ सुन पा रहा था.. बस जैसे सब कुछ लूट चुका हो.. और वो चुपचाप खड़ा अपनी बर्बादी के जनाज़े में शामिल हो.. सीमा की बड'दुआयं जारी थी," तुम बड़े लोग.. लड़की को समझते क्या हो.. सिर्फ़ सेक्स पूर्ति का साधन.. मुझमें तुम्हे कौनसी बात लगी की मुझे भी खिलौना समझ बैठे... क्यूँ दिखाए मुझे सपने.. क्यूँ रुला मुझे... बोलते क्यूँ नही..!" आँखों में आँसू लिए सीमा ने टफ के कंधे को पकड़ कर हिलाया और सिसकती हुई नीचे बैठ गयी... उसमें खड़ा रहने की हिम्मत ही ना बची थी... टफ ने बड़ी कोशिश के बाद अपने मुँह से शब्द टुकड़ो के रूप में निकले..," सी..मा ( गला सॉफ करके)... उससे एक बार पूछ तो लो.. सीमा!" प्रिया पास खड़ी सब सुन रही थी... "क्या पूछ लूँ... की कैसे तुमने उस्स बेचारी की मजबूरी का फयडा उठाया होगा.. की कैसे तुमने उसको रौंदा होगा... क्या पूछ लू हां.... सीमा खड़ी हुई और अपनी बहती आँखों से एक बार देख कर पलट कर जाने लगी.. प्रिया का हाथ पकड़ कर.. धीरे धीरे! टफ का रोम रोम काँप उठा... उस्स'से ये क्या हो गया... अपने ही अरमानो के तले उस्स'ने अपने सपनो का गला घोंट दिया... वह गाड़ी में बैठ गया.. और अपने मर्दाना आँसू निकालने लगा.. जी भर कर... प्रिया को टफ की एक बात बार बार कौंध रही थी.. " उस्स'से एक बार पूछ तो लो.. सीमा!" "सीमा! मैं अगर तुम्हे उस्स लड़की से मिलवा दू तो तुम उसकी बात को राज रख सकती हो ना?" "क्या करना है अब मिलकर..? बचा ही क्या है मिलने को.." "नही प्लीज़.. एक बार.. मैं उसको फोन लगती हूँ.. प्रिया ने अपना फोन निकाला और स्नेहा का नंबर. डाइयल कर दिया... लाउडस्पिकर ऑन करके.. "हेलो!" "स्नेहा?" "हां प्रिया बोलो....." स्नेहा शायद घर पर ही थी.... "यार कल रात से रिलेटेड एक बात पूछनी थी..." "मैं तुम्हे दो मिनिट में फोन करती हूँ..." स्नेहा ने कहकर फोन काट दिया... प्रिया और सीमा एक दूसरी को देखने लगी.. मानो उम्मीद की कोई किरण नज़र आ ही जाए.. 2 मिनिट से कम समय में ही स्नेहा का फोन आ गया," हां प्रिया! बोलो.." "यार वो जो कल दूसरा लड़का नही था.. शरद के साथ.. वो आज रात के लिए बुला रहा है.. क्या करूँ?.. जाऊं क्या?" प्रिया ने सही तरीका अपनाया था बात शुरू करने का... सीमा साँस रोके सब सुन रही थी..... "कौन? अजीत जी!" स्नेहा ने प्रिया से पूछा.. "हां हां.. ज़्यादा तंग तो नही करता ना?" प्रिया ने उसको उकसाया.. "तुम अब 4 दिन बाद एप्रिल फूल बना रही हो क्या.. या मुझे जला रही हो!" स्नेहा ने स्टीक उत्तर दिया.. "क्या मतलब?" प्रिया ने चौंकते हुए से पूछा.. "मतलब क्या? उनके जैसा देवता इंसान तो मैने आज तक देखा ही नही... वो किसी की मजबूरी का फयडा उठाने वालों में से नही है... जाने कैसे वो शरद के साथ आ गया.." सीमा की आँखें चमक उठी.. 

दिल फिर से धड़क उठा.. अपने अजीत के लिए..... "तुम थोड़ा खुलकर नही बता सकती क्या?" प्रिया सबकुछ जान'ना चाहती थी... "यार उस्स आदमी से तो मुझे प्यार सा हो गया है.. अगर कहीं मिल गया तो... पर यार मैं अब इश्स लायक कहाँ हूँ... खैर.. तुम्हे याद होगा जब शरद ने उसको कहा था.... "यार! तुम्हारा मूड खराब लग रहा है.. कोई इचा भी है या दोनो को मैं ही संभालू" ऐसा करके कुछ!" "हां हां! याद है.." प्रिया ने याद करते हुए बताया... "तो वो मुझे उठाकर बेडरूम में ले गया था.. क्यूंकी शरद ने कहा था की उसको तुम पसंद हो.." "हां हां.." "अंदर जाते ही उसने मुझे चादर औधा दी थी.. और सॉरी बोला था.. और ये भी कहा था की मुझे वहाँ ना लाता तो तुम भी बर्बाद हो जाती..... उसने सारी रात मेरी और देखा तक नही.. छूना तो दूर की बात है यार... सच ऐसे आदमी भी होते हैं दुनिया में..." सीमा का हर शक़ दूर हो गया था.. पर प्रिया के मॅन में संशय बाकी था," पर यार मैने देखा था.. जब वो बाहर आया था तो उसने अपनी ज़िप बंद करी थी.." प्रिया ने सीमा से शरमाते हुए से ये बात कही.. "हो सकता है.. इसका मुझे नही पता.. हां शायद उसने मुझको कहा था की अगर शरद पूछे तो उसको ये नही बताना है की मैने कुछ नही किया... वरना वो मुझको बाहर ले जाएगा... शायद शरद को दिखाने के लिए ऐसा कहा हो... उसने तो यार अपना नंबर. भी नही दिया... भगवान बस एक बार उससे मिलवा दे..." "ठीक है स्नेहा! मैं तो एप्रिल फूल ही बना रही थी.. पर मुझे क्या पता था.. एनीवेस थॅंक्स...." स्नेहा हँसने लगी.. और फोन कट गया......
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