RE: Holi sex stories-होली की सेक्सी कहानियाँ
मेरी भी हालत खराब थी। पूरा लंड हलक तक मेरे अंदर था। मेरे गाल फूले हुए थे ,आँखे बाहर निकल रही थीं। लेकिन मैं रुकी नहीं और पूरे जोर के साथ चूसती रही , चाटती रही. उनका लिंग फड़क रहा था और जब मैंने अपने जुबान पे प्री कम की कुछ बूंदो का स्वाद महसूस किया तभी मैं रुकी।
मैंने धीमे धीमे उनका लिंग बाहर निकाला , आलमोस्ट सुपाड़े तक , लेकिन सुपाड़ा अभी भी मेरे मुंह के अंदर था।
कुछ देर रुक के मैंने उसे फिर चुभलाना चूसना शुरू कर दिया।
और अबकी मेरी शरारती उंगलियां और नटखट हो गयीं। कभी वो राजीव के बॉल्स को सहलाती , कभी हलके से तो कभी जोर दबा देतीं और फिर वो पिछवाड़े के छेद पे पहुँच। उंगली का टिप हलके हलके गोल गोल चक्कर कट रहा था कभी गुदा द्वार को दबा रहा था , नाख़ून से स्क्रैच कर रहा था।
राजीव उचक रहे थे , चूतड़ उठा रहे थे , लेकिन अब बिना रुके मैं जोर जोर से लंड चूस रही थी। मेरी जीभ लंड को नीचे से चाट रही थी , सहला रही थी। दोनों होंठ चर्मदण्ड से रगड़ रहे थे और गाल वैक्यूम क्लीनर से भी तेज चूस रहे थे। राजीव झड़ने के कगार पे थे।
लेकिन अबकी मैं नहीं रुकी और चूसने, की रफ्तार बढ़ा दी और साथ ही मेरी उंगली का जो टिप उनके पिछवाड़े , दबा रहा था , सहला रहा था , मैंने पूरे जोर के साथ टिप अंदर घुसा दी।
जिस तेजी से उन्होंने झड़ना शुरू किया मैं बता नहीं सकती। लेकिन मैं पिछवाड़े घुसी ऊँगली के टिप को गोल गोल घुमाती रही। हमेशा , मैं उनकी गाढ़ी थक्केदार मलायी घोंट लेती थी , लेकिन इस बार मैंने उनके लिंग कि सारी मलायी एक कुल्हड़ में गिरा दी। लेकिन मैं इतने पे ही नहीं रुकी। मैंने लंड के बेस को फिर से दबाया , बॉल्स को भींचा , और एक बार फिर लंड से गाढ़ी मलायी की पिचकारी फूट पड़ी। वो निकलता ही रहा , निकलता ही रहा और पूरा बड़ा सा कुल्हड़ भर गया।
और अब जब मैं उनके पास गयी उन्होंने मुझे कस के अपने चौड़े सीने पे भींच लिया।
उनकी प्यार भरी उंगलियां मेरी पान सी चिकनी पीठ सहला रही थीं।
और कुछ ही देर में उनके भूखे नदीदे होंठो ने मेरे मस्ती से पागल कड़े निपल्स को गपुच कर लिया और जोर जोर से चूसने लगे। उनके होंठो का दबाव मैं अपने उभारों पे महसूस कर रही थी , और दांतों की चुभन भी। उनके दांतो के निशान के हार मेरे निपल्स के चारों ओर पड गए।
और साथ ही उनकी जीभ , कभी मेरे कड़े तने निपल्स को सहलाती , लिक करती नीचे से ऊपर तक। जोबन का रस लेना किसी को सीखना हो तो राजीव से सीखे। मस्ती से मेरी आँखे मुंदी पड रही थीं।
मेरे हाथ अब राजीव के हिप्स को सहलाने लगे , दबोचने लगे। और मेरी प्रेम गली अब उनके कामदण्ड को दबा रही थी।
थोड़ी देर में उनका लिंग फिर तन्ना के उठ खड़ा हुआ।
अब राजीव से भी नहीं रहा गया और उन्होें मेरी गोरी गुलाबी केले के तने ऐसी चिकनी जांघो को पूरी तरह फैला दिया और वो मेरे ऊपर आ गए। चौदहवीं के चाँद की चांदनी पूरे कमरे में बिखरी पड़ रही थी। बाहर से फाग और कबीर गाने की आवाजें आ रही थी
अरे नकबेसर कागा लै भागा मोरा सैयां अभागा ना जागा।
लेकिन मेरा सैयां जग गया था , और उसका काम दंड भी। उ
न्होंने अपने खूब तन्नाये , बौराये लिंग को मेरे क्लिट पे रगड़ना शुरू कर दिया और उनका एक हाथ अब निपल्स को कभी फ्लिक करता तो कभी पुल करता। एक हाथ निपल्स और जोबन पे और दूसरा मेरे क्लिट पे , मैं पागल हो रही थी चूतड़ पटक रही थी। लेकिन वो तो यही चाहते थे।
थोड़ी देर बाद उन्होंने मेरे दोनों निचले होंठो को फैला के अपना सुपाड़ा , उसमे सेट कर दिया और साथ में दो उँगलियों से क्लिट को रोटेट करने लगे।
मैं बावरी हो गयी , नीचे से चूतड़ उठा उठा के कोशिश करने लगी कि वो लंड अंदर पेल दें। लेकिन वो मुझे तड़पा रहे थे , आखिर हार के मैं बोल ही पड़ी
" चोद दो मेरी चूत , डाल दो अपना मोटा लंड मेरे राजा , पेलो न प्लीज , चोदो न ,"
और राजीव यही तो सुनना चाह रहे थे। और अब पागलों की तरह उन्होंने मेरी चुदाई शुरू कर दी। एक झटके में ही बित्ते भर का लंड मेरी कसी चूत के अंदर था। जैसे कोई धुनिया रुई धुनें बस उसी तरह , और मैं भी चूतड़ उठा उठा के जवाब दे रही थी।
लेकिन राजीव का मन इतनी आसानी से भरने वाला कहाँ था। थोड़ी देर में उन्होंने मुझे कुतिया बना दिया , उनका फेवरिट आसन , और अब तो धक्को की ताकत और बढ़ गयी। उनके बॉल्स सीधे मेरे चूतड़ो से टकराते। और साथ में ही उनके हाथ पूरी ताकत से मेरे बूब्स निचोड़ रहे थे।
कुछ देर में फिर उन्होंने पोज बदला और अब हम आमने सामने थे। चुदाई की रफ्तार थोड़ी मन्द पड़ गयी , लेकिन वो बिना रुके चोदते रहे।
मैं थक कर चूर हो गयी , पसीने से नहा गयी लेकिन राजीव का लंड पिस्टन की तरह अंदर बाहर होता रहा। और फिर वो झड़े तो , झड़ते ही रहे , झड़ते ही रहे। साथ मैं मैं भी।
मैंने अपनी टांग उनके ऊपर कर ली। उनका लिंग मेरे अंदर ही था। और हम दोनों कब सो गए पता नहीं चला।
सोते समय उनके दोनों हाथ मेरे उभार पे थे , मेरी टांग उनके ऊपर और लिंग मेरी बुर में।
भोर के पहले पता नहीं कब हम दोनों की नींद खुली और कब चुदाई फिर से चालु हो गयी पता नहीं।
मैंने हलके हलके पहले कमर हिलायी , फिर चूत में उनके लंड को निचोड़ना शुरू कर दिया। उन्होंने धक्को कि रफ्तार बढ़ायी , और अबकी जबी वो झड़ने वाले थे तो मैंने उनका लंड निकाल के सीधे कुल्हड़ के ऊपर किया और सारी मलायी कुल्हड़ में।
" ये क्या कर रही हो " मुस्करा के उन्होंने पुछा।
" एक स्पेशल रेसिपी के लिए " मैं भी मुस्करा के बोली।
सोने के पहले मैंने उन्हें एक ग्लास दूध दिया , रोज की तरह। लेकिन एक फर्क ये था की आज उसमें एक सिडेटिव था। और कुछ ही देर में उनकी अाँख लग गयी। तीन बार झड़ने के बाद वो थोड़े थक भी गए थे।
और जब मैं श्योर हो गयी की वो गाढ़े नींद में सो गए हैं , तो मैं हलके से उठी और बेड शीट को भी सरका दिया। और उनके कपड़ो के साथ ही उसे भी हटा दिया। अब वहाँ कुछ भी नहीं था जिससे अपने को वो ढक सकते। मैंने अपनी ब्रा और पैंटी उनके पास रख दी और साथ में मेरी लिपस्टिक से लिखा एक नोट भी रख दिया ,
" होली के लिए आपकी ख़ास ड्रेस "
दरवाजा मैंने बाहर से बंद कर दिया। .
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