RE: XXX CHUDAI नौकरी के रंग माँ बेटी के संग
‘अरे मेरी जान… चुदाई का मज़ा तब ही है जब हम खुलकर इन सब बातों को बोलते हुए चोदा-चोदी करें… यकीन मानिए बहुत मज़ा आएगा… एक बार कोशिश तो कीजिये।’ मैंने उनकी चूचियों को दबाते हुए उनके गालों पे चुम्बन लिया और अपने हाथों से उनका हाथ पकड़कर उनकी चूत को फ़ैलाने के लिए इशारा किया।
रेणुका जी की चूत को मेरी जीभ का चस्का लग चुका था इसलिए अब वो भी खुलकर इस खेल का मज़ा लेना चाह रही थी।
उन्होंने शरमाते हुए अपने हाथों से अपनी चूत को थोड़ा सा फैला दिया और लज्जावश अपने शरीर को पीछे की दीवार पर टिका दिया ताकि मैं उनसे नज़रें न मिला सकूँ।
मैंने अब उनकी जांघों को थोड़ा और फैला दिया ताकि उन्हें भी अपनी चूत फाड़कर चटवाने का पूरा मज़ा मिल सके और उनकी चूचियों को थाम कर चूत के अन्दर अपनी पूरी जीभ डालकर चाटना शुरू कर दिया।
‘ओहह… समीर… उफफ्फ्फ्फ़… मेरे प्रियतम… यह क्या कर दिया तुमने… ऐसा तो कभी सोचा भी न था कि कोई मेरी… कोई मेरी…!’ रेणुका इतना बोलकर चुप हो गई…
शायद शर्म और नारी सुलभ लज्जा ने उनके होंठ बंद कर दिए थे।
‘कोई मेरी क्या भाभी…? बोलो न… प्लीज बोलो न…!’ मैंने चूत चाटने बंद करके उनसे बोलने का आग्रह किया।
‘कोई मेरी… कोई मेरी… चू चू चूत भी चाटेगा… उफ्फ्फ्फ़…’ रेणुका ने काम्पते और लजाते शब्दों में आखिर चूत का नाम ले ही लिया।
उनके मुख से चूत सुनते ही मेरा जोश दोगुना हो गया और मैंने जोर जोर से उनकी चूत को चाट चाट कर चूसना चालू कर दिया।
‘हाँ… उफ्फ्फ़… बस ऐसे ही… उम्म्म्म… हाय…’ रेणुका की सिसकारियाँ बढ़ गईं।
उसका बदन अकड़ने लगा और उसने मेरे सर के बालों को खींचना शुरू कर दिया।
मैं समझ गया कि अब वो झड़ने वाली है… मैंने और भी तेज़ी से चाटना शुरू किया और बस कुछ ही पल में उकी चूत ने ढेर सारा माल मेरे मुँह में उड़ेल दिया… पता नहीं कितने सालों से जमा कर रखा था इसको।
झड़ते ही उन्होंने अपना बदन एकदम ढीला छोड़ दिया और बिल्कुल निढाल सी हो गई… मैं उनसे थोड़ा अलग होकर उन्हें देखने लगा…
क्या मस्त नजारा था… वो दीवार पर अपना बदन टिकाये अपनी जाँघों को फैलाये अपने हाथों से अपनी चूत को मसल रही थी।
ये नज़ारा देखने लायक था।
अब इतनी देर से मेरे लण्ड ने जो आफत मचा रखी थी उसने भी सिग्नल दे दिया कि अब अगर चूत में नहीं गया तो बाहर ही अपना सारा लावा उगल देगा।
मुझसे रहा नहीं गया और मैंने झट से अपना तौलिया खोला और अपने लंड को अपने हाथों से सहलाते हुए हुए रेणुका जी के करीब आ गया।
उनकी बहती हुई चूत मेरे लंड को निर्विरोध आमंत्रण दे रही थी।
रेणुका जी अब भी अपनी आँखें बंद किये चूत के झड़ने का मज़ा ले रही थीं।
मैं धीरे से आगे बढ़ा और अपने लंड के सुपारे को चमड़ी से बाहर निकालकर उनकी गीली बहती चूत पर रगड़ने लगा।
जैसे ही मैंने लण्ड का सुपारा उनकी चूत के मुँह पे रखा उनकी आँखे खुल गईं और उन्होंने अपना हाथ आगे बढ़ा कर देखने की कोशिश की।
उनका हाथ मेरे गर्म तन्नाये लंड से टकरा गया और उन्होंने चौंक कर नीचे देखा।
एक अच्छे खासे डील डौल वाले तगड़े लंड को देख कर एक बार तो उनकी आँखें चौड़ी हो गईं… लेकिन चूत की चुसाई और इतने देर से चल रहे खेल ने अब उन्हें बेशर्म बना दिया था और उन्होंने अब आगे बढ़ कर मेरे लौड़े को अपने हाथों में थाम लिया।
‘हाय राम… कितना गर्म और कितना कड़क है तुम्हारा ये…’ रेणुका फिर कुछ बोलते बोलते रुक गई।
‘मेरा क्या रेणुका जी…? बोल भी दीजिये!’ मैंने अपने लंड को उनके हाथों में रगड़ते हुए कहा।
‘तुम्हारा… तुम्हारा लंड…’ और इतना कह कर शरमा कर आँखें तो बाद कर लीं लेकिन लौड़े को वैसे ही पकड़े रही।
फिर जब मैंने धीरे धीरे चूत के मुँह पर लंड को रगड़ना शुरू किया तो उन्होंने अपने हाथों से लण्ड को अपनी चूत पर तेज़ी से रगड़ देनी शुरू कर दी।
‘उफ्फ… समीर… बस ऐसे ही रगड़ दो अपने लंड को इस चूत पर… साली मुझे चैन से जीने नहीं देती… चोद डालो इस कुतिया को… ठेल दो अपना मूसल!’
यह क्या… रेणुका जी तो एकदम जोश में आकर गालियाँ देने लगी।
चलो उनकी यह अदा भी हमें घायल कर गई और मैं ख़ुशी से झूम उठा…
ख़ुशी के मारे मैंने जोश में एक तगड़ा झटका मारा और मेरा आधा लंड उनकी चूत में…
‘आआआआआ… हे भगवन… इतने बेरहम तो न बनो मेरे सैयाँ… तुम तो सच में फाड़ डालोगे मेरी कमसिन चूत को… उफ्फ्फ्फ़!’ रेणुका की चीख निकल गई।
उनकी चूत ने यह एहसास करवाया कि शायद कई दिनों से या यूँ कहें कि मुद्दतों बाद कोई लंड उस चूत में घुसा हो… शायद अरविन्द जी की बढ़ती उम्र की वजह से उनकी चूत बिना चुदे ही रह जाती है.. शायद इसीलिए उनकी चूत के दर्शन करने में मुझे ज्यादा वक़्त भी नहीं लगा था। शायद इतने दिनों की प्यास और उनकी उनके गदराये बदन की गर्मी ने उन्हें मेरे लंड की तरफ खींच लिया था।
खैर जो भी बात हो, इस वक़्त तो मुझे ऐसा महसूस हो रहा था मानो मेरी कई जन्मों की प्यास बुझ रही हो।
तीन महीनों से अपने लंड को भूखा रखा था मैंने इसलिए आज जी भरके चूत को खाना चाहता था मेरा लंड…
मैंने उसी हालत में अपने आधे लंड को उनकी चूत के अन्दर बाहर करना शुरू किया और थोड़ा इंतज़ार किया ताकि उनकी चूत मेरे मूसल के लिए जगह बन सके और मैं अपने पूरे लंड को उनकी चूत की गहराईयों में उतार सकूँ।
मैंने अपना सर झुका कर उनकी एक चूची को अपने मुँह में भरा और उसके दाने को अपने होंठों और अपनी जीभ से चुभलाते हुए अपने लंड का प्रहार जारी रखा।
चूत में लंड डालते हुए चूचियों की चुसाई औरत को बिल्कुल मस्त कर देती हैं और इस हालत में औरत गधे का लंड भी आसानी से अपनी चूत में पेलवा लेती हैं।
ऐसा मैंने पहले भी देखा और किया था।
इस बार भी वैसा ही हुआ और रेणुका जी की चूचियों को चूसते ही उनकी चूत ने एक बार और पानी छोड़ा और मेरा लंड गीला होकर थोड़ा और अन्दर सरक गया।
अब बारी थी आखिरी प्रहार की… मैंने उनकी चूचियों को मुँह से निकला और अपने होंठों को उनके होंठों पर रख कर उनकी कमर को अपने दोनों हाथों से थाम लिया फिर एक लम्बी सांस लेकर जोरदार झटका मारा।
‘गुऊंन्न्न… ऊउन्ह्ह्ह… ‘ रेणुका जी के मुँह से बस इतना ही निकल सका क्योंकि उनका मुँह मेरे मुँह से बंद पड़ा था।
उनकी इस आवाज़ ने यह इशारा किया की लंड पूरी ताक़त के साथ चूत के अंतिम छोर तक पहुँच चुका था।
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