RE: अन्तर्वासना सेक्स कहानियाँ नीतू भाभी का कामशास्त्र
भाभी हंसते हुए बोली, "अच्छा?!! …… लगता है कि पार्टी में तुमको खूब मज़ा आया ……. खूब गरम हो गये ……… क्यूँ?" वो अपनी चुचि को थोरा उठाकर मेरे मुँह में दे रही थी, और मैं धीरे धीरे, प्यार से चूस रहा था. मैं सर
उठाकर उनके छाती और गर्दन और कंधों पर चूमने लगा, और अपने हाथों में उनकी चुचियों को दबाता रहा. भाभी भी आहें भरने लगी, पर मैं तो उनके सुरहिदार गर्दन को हर जगह चूमता रहा, चाटते रहा. उनके बदन की अपनी खुसबू, और उसके उपर चंदन की खूबसूरत इत्र की खुसबू से मैं मस्ती मे आ रहा था. मैं ने उनकी तरफ देखा और फिर चूमने लगा, इस बार उनके कान को. भाभी खिलखिलती हुई बोली, " ह्म ……. वाहह ……. बहुत अच्छी तरह से चूम रहे हो …… … लगता है वाक़ई तुम बहुत गरम हो गये……. क्यूँ?!" भाभी
की आँखों में फिर वोही शरारत वाली मुस्कुराहट.
मैं ने उनको कंधो से पकड़े हुए उनको बिस्तर पर लिटा दिया. उनके पैर नीचे फर्श को छ्छू रहे थे. उन्होने ने अपने पैर फैलाए रखे, और मुस्कुराती रही. मैने उनपने अंडरवेर उतारा, और उनके पेटिकोट को उपर खींचकर कमर के पास
लपेट कर छ्चोड़ दिया. मेरा लौदा खड़ा हो रहा था, पर अभी उसकी सख्ती बहुत बढ़ने वाली थी. उनके टाँगों के बीच मैं घुटनों पर बैठ गया. अब भाभी नेअपने घुटनों को उपर उठाकर अपनी चूत को खोल दिया. मैं ने गर्दन झुका कर अपना
मुँह उनकी चूत पर रख दिया, उंगलियों से उनकी चूत को प्यार से खोला, और मुँह में कुच्छ थूक बनाते हुए, उनकी चूत के पंखुरे को उपर से नीचे चाता, अच्छी तरह से थूक लगाते हुए, फिर नीचे से उपर, दोनो पंखुरीओं को, और उनके दाने तक जाकर रुका.
भाभी का बदन मस्ती से थोड़ा सिहर उठा, और वो बोली, "तो आज तुम इधर उधर की बातों में बिल्कुल वक़्त नही बर्बाद करना चाहते हो….. क्या? …… बिल्कुल पॉइंट पर आ गये ….. हनन्न?" मैं उसी तरह उनकी चूत को चट रहा था, आहिस्ते से, थूक को
जीभ से ही चारो तरफ मलते हुए. चूत के चारो तरफ जीभ को घुमाता रहा, एक बार चूत के कुच्छ अंदर, फिर चूत के उपर, धीरे धीरे चूत का स्वाद लेता रहा. भाभी अपनी "आहह", "एम्म्म", "ऊऊहह" से बता रही थी मेरे चाटने का उनपर
असर हो रहा था.
पता नही कैसे, पर शायद मेरी भूखी नज़रें और मेरे चाटने और चूसने से नीतू भाभी बहुत जल्दी गरम हो गयी. मैं ने सर उठाकर देखा तो उनकी खूबसूरत चूत झांतों के बीच फूल गयी थी, थूक और अपने रस से चमकती हुई, अपने
फूली हुए पत्तियों को आधी खिली हुई फूल के तरह. कुच्छ ही देर के चूसने के बाद उनका दाना बाहर निकल चुका था, फूलकर तैयार. भाभी अपने आपको बिल्कुल ढीली छ्चोड़कर, घुटनों को उसी तरह उठाए हुए, मुझे देख रही थी. मैं ने अब
अपनी जीभ को काफ़ी बाहर निकालकर, उंगलियों से उनके चूत को फैलाए हुए, उनके दाने पर जीभ के नोक को घुमाने लगा, चाटने लगा. वो धीरे से, पर पूरी मज़े लेती हुई बोली, "आहह!", और अपने दाँतों को कासके बंद कर लिया. उन्होने
देखा कि मेरी नज़र उनके चेहरे पर है. उनकी पलकें अब बंद हो गयी, उनकी गर्दन तन गयी, अपनी जांघों को उन्होने और भी फैला दिया, उनकी चूत और भी खुल गयी थी, और मेरे अपने कंधों और गर्दन पर भाभी के जकड़ते जांघों से मैं सॉफ महसूस कर था कि भाभी के में कितनी गर्मी आ गयी है. मैं ने अब उनके दाने को चाटना छ्चोड़कर, उनके चूत के चारो तरफ उसी तरह से जीभ को नोकिला बनाकर घूमता रहा. उपर से नीचे नही, खुली हुई, फूली हुई चूत के बाहरी पट्टी के
चारो तरफ, फिर उसी तरह से चूत के अंदर की पत्तियॉं के चारो तरफ, चारो तरफ जीभ के नोक से थूक मालता रहा, चारो तरफ पर दाने को नही!. इसी तरह कुच्छ देर तक जीभ घुमाने के बाद, मैं ने देखा कि भाभी उतावली हो रही हैं अपनी चूत के दाने को चटवाने के लिए. वो अपने चूतड़ को उठाने की कोशिश कर रही थी कि दाना मेरी जीभ से रगड़ा खाए, पर मई भी उनको इतनी जल्दी छ्चोड़नेवाला नही था! चारो तरफ घूम आकर, छत कर, पर अब मई ने फिर एक बार दाने को जीभ के नोक से चटा, धीरे धीरे, और फिर दाने के चारो तरफ उसी तह से घूमने लगा.
भाभी को कुच्छ राहत मिली. बॉई, "अहह ……..वाअहह!"
अब मैने भाभी की चूत पर अपना मुँह ठीक से डाल दिया. और उनके दाने को उसी तरह से चूसने लगा जैसे कि चुचि के घुंडी चूस्ते हैं. अ पने होंठों को गीला करके उनको भाभी के फूले हुए दाने के उपर डालकर दाने को अंदर ले लेता, फिर जीभ से चट कर उसके बाहर आ जाता. भाभी की जंघें अब मेरे कंधों पर कड़क होने लगी. भाभी ने कुच्छ अस्चर्य से "ओह्ह्ह?!!" किया, और उन्होने अपने सर को ढीला छ्चोड़कर अपनी चूतड़ को अब उठाने लगी. उनकी साँस तेज हो गयी. पर मैं रुका नही. अपने होंठों को उसी तरह से दाने को प्यार से चट रहा था, उसके चारो तरफ जीभ घुमाता रहा, एक अच्छे रफ़्तार से. भाभी की चूत इस तरह मेरे मुँह में रगड़ रही थी कि मैं उसके हर भाग को एक हद तक रगड़ रहा था. उनकी चूतड़ अब कुच्छ घूमने लगी थी, पर मेरा मुँह उन की चूत से बिल्कुल सटा हुआ, उसका दाना मेरे होंठों के बीच, मेरे जीभ के नोक पर सटा हुआ. भाभी अब ज़ोर्से सिसकारी लेते हुए बोली, " हाई दैयाआआ, …………..म्म्म्मह ………….ऊऊहह ……कितना मज़ा दे रहे हो……. ऊऊहह!" मुझे लग गया कि अब भाभी कुच्छ देर में झड़ने लगेगी. उनका पूरा बदन सिहरने लगा था, जांघें और भी खुलकर मुझको ज़ोर्से जाकड़ ली थी, और हू अपने कमर को इस तरह घुमाने लगी जैसे
मेरे मुँह को चोद रही हो. मैं ने चूसना जड़ी रखा, उसी तरह, जिस से की रफ़्तार ना टूटे, और कुच्छ ही देर में उनकी साँस, उनके जाँघ और कमर सॉफ बता रहे थे कि वो काबू से बाहर हो रही है. अब वो ठहड़ने वाली नही. मैं ने एक उपाय सोचा.
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