RE: अन्तर्वासना सेक्स कहानियाँ नीतू भाभी का कामशास्त्र
भाभी रुक कर कुच्छ शुस्ता रही थी. कमरे में टेबल क्लॉक की चलने की `टिक टिक' आवाज़ आ रही थी. मैं ने उसी `टिक टिक' पर अपना ध्यान लगाया. उनकी साँसों की आवाज़ मेरे कान में बहुत ही मीठे गीत की तरह लग रही थी, बीच बीच में भाभी
"अहह" कहते हुए अपनी बुर से मेरे लौदे को जाकड़ लेती थी. कोई चारा नही था. जैसे ही बुर को भाभी स्क्वीज़ करती थी, मेरा लौदा थिरक जाता था! कुच्छ देर बाद नीतू भाभी ने अपने जांघों को मेरे उपर थोरा घिसकाया. अब उनके बुर का दाना
मेरे लॉडा के जड़ से घिस रहा था. उनके मुँह से एक मज़े की "ह्म्म्म" निकली और उन्होने धीरे से दो तीन बार अपने दाने को मेरे लंड के जड़ में घिसने लगी. मेरे कान में धीरे से बोली, "यह बहुत मज़ा दे रहा है…..अहह" अब उनकी चूतड़
पहले की तरह बिल्कुल बैठी नही रही. वो अपनी चूतड़ को आहिस्ते से, बहुत ख़ास अंदाज़ में घुमाने लगी. लौदा चूत की पूरी गहराई में, और उनके चूत का दाना मेरे लौदा के जड़ पर उगी झांतों से रगड़ रहा था.
अब नीतू भाभी कुच्छ मस्ती में आ रही थी. उन्होने मुझसे मुस्कुरकर पूचछा, "अब कुच्छ ज़्यादा मज़ा आ रहा है? कुच्छ चुदाई का मज़ा? आहह …..हाआंणन्न्?"
"जी!………. हाआन्न!!!"
"मुझे भी!"
अब उन्होने अपने चूतर को थोरा उठाया, और मुझसे कहा, " तुम मत हिलना….इसी तरह रहो… इसी तरह ……मेरे चूत के अंदर …"
वो अपनी चूत को आगे कर के घिसने लगी, उनकी बुर का दाना मेरे झाँत में रगड़ रहा था. कुच्छ देर तक वो इसी तरह, कुच्छ सावधानी बरतते हुए रगड़ती रही, पर बीच बीच में, लगता था कि उनको भी मस्ती बढ़ने लगती थी, और वो ज़ोर्से
रगड़ना चाहती हैं, पर फिर अपने आपको रोक कर वो अपनी चूतड़ मेरी झंघों पर बैठा देती.
वो बोली,"अब ज़रा," और उन्होनें अपने गले को सॉफ किया और गहरी साँस ली," अब ज़रा अपने आप को काबू में रखना!" और उन्होने अपने दाने को फिर रगड़ना शुरू किया, अपनी चूतड़ को चक्की की तरह घुमाते हुए, और मेरे चेहरे पर मेरी हालत देखकर मेरी कान में धीरे से बोली, " झरना नही….. अपने आप को काबू में रखो …….देखो कितना मज़ा आएगा अभी!" मैने उनसे हामी भर दी, और वो बोलती रही , "देखो, मैं कितनी गीली हो रही हूँ ….किस तरह मेरी बुर बिल्कुल रसिया गयी है….. ओहो…..ह्म्म्म्मम… मेरे खातिर…. हान्न्न…… रुके रहो… मैं एक बार झार जाउन्गि….. आअहह ….. मेरे राजा … इसी तरह ……अब झरनेवाली हूँ" और उनकी आवाज़ बिल्कुल धीमी होती गयी, पर उनकी चूतड़ मस्ती में चकई की तारह ज़ोर्से
चलने लगी. चार तरफ घूम रही थी, फिर रुक कर एक बार अच्छी तरह से आगे, फिर उसी तरह से पीछे की तरफ, फिर गोल चक्कर. उनके बर से कुच्छ रस निकलकर हमारी झांतों में बह गया था, पर बुर और लंड के इस मिलन में हम दोनो बिल्कुल मगन थे. वो और ज़ोर्से साँस लेने लगी, और जैसे उनका मस्ती में हाँफना उसी तरह से उनके कमर का नाचना: उनकी चूतड़ ज़ोर्से, और जल्दी जल्दी चक्कर लगाती रही और बर का मुँह मेरे लौदे के जड़ पर रगड़ती रही. मुझे लग गया कि नीतू भाभी अब झरने वाली हैं, और मैं किसी तरह से अपने आप को रोके रहा, पूरी कोशिश कर के सिर्फ़ टेबल क्लॉक के "टिक-टिक'" पर ध्यान लगाए रखा. फिर उन्होने अपना चेहरा मेरे गाल पर रख दिया, उनकी साँस रुकी हुई थी, उनके हाथ मेरे कंधों पर ज़ोर्से पकड़े हुए थे, और उनकी चूत लगा जैसे मेरे लौदे को हाथ में लेकर मुथि में मसल रही हो, उनकी चूत बार बार कभी मेरे सूपदे को, कभी बीच लौदे को दबा रही थी. और लौदे को उपर से नीचे तक चूत का रस बिल्कुल भिगो दिया था. उनका दाना मेरे लौदे को और ज़ोर्से रगड़ने लगा, और मैं ने अपने लौदे को उचका दिया. मेरा लंड उचकाना भाभी को शायद अच्छा लगा, और वो और सिसकारी भरने लगी, "आआहह……..है दैया…… हाआंणन्न् ….. है …रे ………..दैयय्याअ ……….हमम्म्मम… ………हाआंन्नणणन्"; और मुझे लगा कि वो कुच्छ देर तक इसी तरह से झरती रही. मेरे हाथ उनके चूतड़ को सहला रहे थे.
वो ज़ोर्से साँस लेते हुए, "ऊऊहह….हमम्म्म …. आअहहानं" करते हुए रुक गयी. आँखें मूंदी हुई थी, पर चेहरे पर खुशी झलक रही थी. मैं ने उनके कंधों को चूमा, चूमता रहा, और उनके चुचियों को आहिस्ते से दबाता रहा, घुंडीयों को मसलता रहा. नीतू भाभी इसितरह से मेरे उपर लेटी रही. मेरा सख़्त लौदा अभी उनके रसभरी बुर में लथपथ होकर आराम कर रहा था.
फिर उन्होने कहा, "दैयय्याअ…. रे …दैयय्ाआ …… ह्म्म्म्ममम… …..वाह, मेरे राजा…… आहह…. …..कितने दिन बाद मैं इस तरह से झारी हूँ ….बहुत मज़ा दिया है तुमने……. बहुत खुशियाँ देते हो तुम औरतों को इस तरह से…. काश हर
मर्द तुम्हारे तरह होता!" वो अपना सर उठाकर मेरे तरफ अब देखी और बोली, " अब आओ, …..तुमको मज़ा करती हूँ."
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