RE: Sex Hindi Kahani रोंये वाली मखमली चूत
मैं काव्या के मुँह में अपना लंड डाल कर लंड चुसाई का मजा ले ही रहा था कि तभी दरवाजा खोलते ही भावना कमरे में अन्दर आ गई।
भावना ने पहले दरवाजा अच्छे से बंद किया और सामने आकर खड़ी हो गई। तब तक काव्या ने लंड छोड़ कर अपने दोनों हाथों से खुद को ढकने की नाकाम कोशिश की।
भावना कुछ कहती.. उससे पहले ही काव्या के मुख से निकला- वो.. ओह.. वो.. भावना संदीप दवाई लगा रहे थे।
भावना ने कहा- ओह दवाई..? भला मैं भी तो देखूं कौन सी दवाई है जो लंड को मुँह में लेकर लगवाई जाती है?
उसने मेरे लंड को पकड़ कर अपने मुँह में डाल लिया, मेरे लंड को एक-दो बार आगे-पीछे किया।
कुछ देर तक काव्या को खरी-खोटी सुनाने के बाद भावना ने मेरे प्लान के अनुसार अपनी बात पेश कर दी, काव्या से कहा- ठीक है.. अगर तुम दवाई लगवाना चाहती हो.. तो मेरी एक शर्त है।
काव्या ने जल्दी से कहा- क्या शर्त?
भावना ने कहा- मैं जब चाहूँ यहाँ आके संदीप से चुद सकती हूँ।
काव्या ने थोड़ा सोचा और कहा- ठीक है पर जब निशा ना हो तो तुम ऐसा कर सकती हो।
फिर भावना ने काव्या को ‘ओह.. मेरी प्यारी..’ सहेली बोल कर गले लगा लिया।
अब भावना ने मुझे पास बुला कर मेरा लंड अपने हाथों से काव्या के मुँह में डाल दिया और खुद अपने कपड़े उतारने लगी। काव्या के ऊपर भी वासना हावी होने लगी थी, मेरा लंड भी आग उगलने को बेचैन था।
भावना ने नंगे शरीर के पास आकर मेरी बनियान निकाल दी और मुझसे सट कर मुझे बेतहाशा चूमने लगी। वो अपने उरोजों को मेरे शरीर से रगड़ने लगी।
अचानक ही मेरे हाथों की पकड़ काव्या के सर पर मजबूत हो गई और तीन-चार जबरदस्त धक्कों के साथ ही मैं काव्या के मुँह में ही स्खलित हो गया।
काव्या ने मेरा वीर्य थूक दिया तो भावना ने वीर्य को हाथों से उठाया और काव्या के शरीर में मल दिया।
अब मुझे इन दोनों शेरनियों की प्यास बुझानी थी इसलिए मैं पलंग पर लेट गया और सब कुछ उन्हें ही करने दिया, दोनों सहेलियां एक दूसररी को चूमने लगीं।
फिर दोनों एक साथ मेरा लंड चाटने और चूसने लगीं।
काव्या काफी देर से मेरे लंड के साथ खेल रही थी.. इसलिए वो बहुत उत्तेजित होकर अपनी चूत को मारने लगी। वो मेरे लंड को खींचने और चूसने लगी।
मैं समझ गया कि अब इसे लंड चाहिए, मैंने भावना को इशारा किया और उसने काव्या को लेटा कर उसके चेहरे के दोनों ओर अपनी टांगें रख कर अपनी चूत चटवाने लगी।
काव्या ‘ऊंह.. उन्ह..गूं गूं.. उम्म्ह… अहह… हय… याह… हिस्स्स…’ करने लगी। मैंने काव्या की टांगें फैलाईं और ना चाहकर भी मैं चूत को चाटने झुक गया। उसकी कोमल मखमली चूत देखकर किसी का भी मन चाटने को करता। मैंने पहले ऊपर के दाने को जीभ से सहलाया और फिर चूत के अन्दर तक जीभ घुसाने की चेष्टा की।
काव्या की हड़बड़ाहट उसकी चुदाई की इच्छा बयान कर रही थी, उसकी सील नहीं टूटी थी.. इसलिए चूत का मुँह बंद नजर आ रहा था। उसकी दोनों फांकों के बीच महज एक दरार नजर आ रही थी।
मैंने अपनी उंगलियों से एक बार दोनों फांकों को फैला कर देखा और अपने हाथों में थूक लेकर उसकी गीली चूत को और ज्यादा चिपचिपा कर दिया, फिर उसकी नाजुक सी मुलायम गोरी चूत में अपना लम्बा लंड एक झटके में डाल दिया।
‘उउईईई.. माँ.. मैं मर गईईई.. कोई बचाओ.. कोई तो बचाओ रे..आह्ह.. फट गई..’ वो चीखने लगी।
जबकि काव्या की चूत में अभी मेरा पूरा लौड़ा नहीं गया था।
मैंने भावना को उसे चुप कराने को कहा, उसने अपनी पेंटी को काव्या के मुँह में ठूंस दिया और पलंग से उतर कर काव्या के सर की तरफ खड़े होकर उसके हाथों को कसके पकड़ लिया।
काव्या की आंखें दर्द के मारे बड़ी हो गई थीं, आंखों से आंसू निरंतर गालों से होकर बह रहे थे।
मैंने एक जोर का धक्का दिया और अपना हब्शी लौड़ा उसकी चूत में जड़ तक घुसा दिया।
काव्या तो अब चिल्ला भी नहीं सकती थी उसका शरीर ढीला पड़ गया, उसने आंखें बंद करके चेहरे को एक ओर झुका लिया।
मैं डर गया.. पर भावना ने कहा- निकालना नहीं.. वरना ये जिंदगी में कभी चुदवा नहीं पाएगी।
भावना ने काव्या के गालों में थपकी देकर उसे पुकारा तो काव्या ने आंखें खोल दीं।
उसने मरी सी आवाज में ‘हाँ’ करके एक बार जवाब दिया, तब मेरी जान में जान आई।
अब मैं बिना कुछ किए काव्या के सामान्य होने का इंतजार करने लगा। भावना ने अपनी पेंटी उसके मुँह से निकाल दी और मुँह में दो-चार छींटे पानी के डालते हुए उसे चूमने लगी, उसके शरीर को सहलाते हुए उसे बहलाने लगी।
काव्या का रोना धीरे-धीरे बंद हो गया। मैंने भी मौके की नजाकत समझते हुए लंड को थोड़ा आगे-पीछे करना शुरू कर दिया। काव्या को अब भी तकलीफ थी.. पर अब शायद मजा भी आने लगा था।
काव्या भावना को चूमने लगी और थोड़ी ही देर बाद चुदाई में भी साथ देने लगी ‘आह चोद मेरे राजा.. फाड़ डाल साली चूत को.. बहुत परेशान करती है ये.. उउउह.. हहह.. इइई.. ईईई.. इआइ आहहहह..’
वो आवाज करने लगी।
मैंने उसके छोटे उरोजों को मसलते हुए अपनी गति तेज कर दी। भावना हम लोगों को देख कर अपनी चूत में उंगली डाल कर अन्दर बाहर करने लगी।
अब काव्या मदहोशी में बड़बड़ाने लगी ‘उउउहह ऊऊ ईईईई.. आहहह.. संदीप..प..प औररर.. जोररर से.. औररर.. जोरर से..’
इसी के साथ ही वो अकड़ने लगी और मेरी जांघों को जोर से पकड़ कर अपनी चूत में लौड़ा अन्दर तक ले जाकर रुक गई, उसका स्खलन हो गया था।
अब उसका शरीर एकदम ढीला पड़ गया था लेकिन मेरा पानी एक बार काव्या के मुँह में निकल चुका था और दूसरी बार की चुदाई में मेरा जल्दी नहीं निकलता सो मैंने काव्या की चूत से लंड निकाल लिया।
अब तक भावना मंजे हुए खिलाड़ी की तरह पहले ही जमीन पर आकर घोड़ी बन गई थी, भावना ने भी बहुत दिनों से चुदाई नहीं की थी.. इसलिए वो भी बहुत ज्यादा गर्म हो चुकी थी। मैंने एक ही झटके में लौड़ा उसकी चूत की जड़ में बिठा दिया। भावना ने मजे से ‘ऊह..उन्ह..’ की आवाज निकाली और चूत को टाइट करते हुए लंड को अन्दर खींच लिया।
काव्या अब पलंग से उठ कर हमारे पास आ गई और हम दोनों को सहलाने लगी। हमारी चुदाई सीधे पहले गेयर से छठे गेयर में चली गई थी, भावना ‘ऊऊहहह.. आआहह.. मजा आ गया जान.. और तेज उउहह ईईईईउउ हिस्स्स्.. और तेज..’ की आवाज निकालने लगी।
मैंने भावना की कमर को थाम कर चुदाई की गति बढ़ा दी।
मेरे धक्कों से भावना थकने लगी। भावना का सर झुकते-झुकते जमीन तक झुक गया, जिससे उसकी चूत और ऊपर आ गई, अब मैं लौड़ा पूरा बाहर खींचता और फिर एक ही साथ जड़ तक पेल देता था।
कुछ धक्कों के बाद भावना की आवाज में थकान सी आ गई। मैं समझ गया कि अब इसका काम भी होने वाला है.. और ऐसा ही हुआ। भावना एकदम से अकड़ गई और जमीन पर लुढ़क गई।
पर मेरा अभी भी निकलना बाकी था, मैं अपना लंड खड़े होकर हाथ से हिला रहा था, वे दोनों लड़कियां मेरे सामने बैठकर मेरे लंड के अमृत की बूंद का इंतजार करने लगीं।
जल्द ही मेरी आंखें बंद हो गईं.. हाथ कांपने लगे.. मांशपेसियां अकड़ने लगीं और मैंने दोनों ही लड़कियों के चेहरों पर फुहार छोड़ दी।
जितना माल उनके मुँह में आया.. वे चाट गईं और जो शरीर में गिरा था.. उसे शरीर में ही मल लिया।
उस दिन हमने कुल तीन राउंड चुदाई की और निशा के आते तक रोज चुदाई चलती रही। कभी थ्री-सम चुदाई होती.. तो कभी सिर्फ काव्या के साथ मेरी चुदाई चलती रहती, और हाँ.. अब तो काव्या के उरोज और कूल्हे भी मेरी मालिश की वजह से निकल आए हैं।
इस तरह हम तीनों की चुदाई खूब मस्ती से चलने लगी।
एक दिन काव्या के घर से फोन आया कि उसकी नानी मर गई हैं और उसे जाना है। काव्या लगभग एक महीने के लिए अपने घर चली गई और अभी हम लोग काव्या की रूम मेट निशा को पटा नहीं पाए थे इसलिए अब हमारे पास फिर से चुदाई के लिए कोई जगह नहीं थी।
हम लोगों ने कुछ दिन तो ऐसे ही पार्क में बैठ कर बिता लिए.. पर अब चुदाई का कीड़ा कुलबुलाने लगा था।
एक दिन भावना ने कहा- संदीप तुम्हारे पास और कोई उपाय नहीं है कि हम चुदाई कर सकें।
मैंने तुरंत कहा- हाँ है ना.. और उपाय भी ऐसा कि तुमको चुदाई का पहले से ज्यादा मजा आएगा।
उसने कहा- तो फिर देर किस बात की है?
मैंने उससे वैभव की कही हुई बात बात बताई कि अब जब भी भावना रूम में आएगी मैं भी चोदूँगा।
भावना ने ‘छी:..’ कहते हुए तुरंत मना कर दिया।
फिर मैंने समझाते हुए कहा- इसमें हर्ज ही क्या है? और फिर मैं भी तुम्हारे सामने काव्या को चोदता हूँ।
उसने कहा- वैभव मुझे क्या समझेगा यार? और तुम बर्दाश्त कैसे करोगे?
मैंने फिर पहले वाला दांव फेंका- मैं तुमसे प्यार करता हूँ और तुम्हारे साथ चुदाई के लिए कुछ भी कर सकता हूँ।
लेकिन उसने कहा- मैं इतनी बेशर्म नहीं हूँ कि जाकर उसके लौड़े पर बैठ जाऊँ।
मैंने कहा- तुम्हें कौन ऐसा करने को कह रहा है? मेरे पास एक तरीका है.. सुनो जब वो घर पर नहीं रहेगा.. तब हम चुदाई कर लेंगे..
अगर वो हमारी चुदाई करते तक नहीं आया.. तो तुम्हें उससे चुदाई नहीं करानी पड़ेगी। पर अगर वो आ गया और जबरदस्ती की.. तो करवा लेना। ऐसे में वो तुम्हें गलत भी नहीं समझेगा और खुद को दोषी समझेगा।
भावना की आँखों में आंसू थे। उसने मुझसे कहा- ठीक है.. पर सिर्फ तुम्हारी खातिर मैं ये सब कर रही हूँ।
प्लान के मुताबिक जब वैभव घर पर नहीं था.. तब मैंने भावना को बुलाया।
भावना के आते ही हम एक-दूसरे पर टूट पड़े, बहुत कम समय में हमारे शरीर से कपड़े अलग हो गए थे। भावना मजे लेकर लौड़े को चूस रही थी। मैं उसके उरोजों को दबा रहा था।
तभी दरवाजे से आवाज आई, भावना ने अपने आपको अपने हाथों से ढकने की नाकाम कोशिश की पर वैभव की आँखें फटी की फटी रह गईं।
मैंने कहा- अबे, दरवाजा तो बंद कर!
तो उसने जल्दी से दरवाजा बंद किया।
वैभव के हाथ में सामान था, उसने सामान रखा और भावना के पास आकर सीधे भावना के उरोज को दबाते हुए बोला- मतलब तुम मुझसे चुदवाने के लिए राजी हो ना?
भावना ने अनजान बनते हुए कहा- ये क्या बोल रहे हो..? चलो हटो मुझे जाने दो।
वैभव थोड़ा चौंका.. लेकिन उसने भावना को जकड़ लिया और चूमते हुए कहा- एक बार चुदवा कर तो देख मेरी जान.. तेरी चूत मेरे लंड की दीवानी हो जाएगी।
भावना मुझे देख रही थी, मैंने आंख मारी और इशारे से ही मजे लेने को कहा, फिर भी भावना ने नौटंकी चालू रखी।
वैभव ने कहा- इतना क्यों भाव खा रही है.. तुझे क्या लगता है मेरे लौड़े में कांटे लगे हैं?
यह कहते हुए अपना लौड़ा निकाल लिया।
भावना उसके लम्बे और तने हुए लौड़े को देखती रह गई। वैभव का लंड सुंदर.. गोरा चिकना सा लौड़ा साइज में भी मेरे लंड के जैसा ही मस्त था.. पर उसका लंड मुझसे मोटा कुछ ज्यादा लगा।
भावना ने कहा तो कुछ नहीं.. पर मैं उसकी खुशी उसके चेहरे में पढ़ सकता था।
‘चल आ कुतिया.. चूस मेरा लौड़ा..’ यह कहते हुए वैभव ने लौड़ा हाथ में पकड़ कर भावना के मुँह के सामने लहराया।
भावना ने भी किसी गुलाम की तरह जाकर उसके पैरों के नीचे बैठ कर उसके लंड मुँह में भर लिया।
वैभव का लंड कुछ मोटा था.. इसलिए भावना सिर्फ ऊपर-ऊपर से चाट पा रही थी, पर वैभव तो बेचैन था ‘साली कब से तुझे चोदने के सपने देख रहा हूँ.. ले अन्दर ले कर चूस ना..’
यह कहते हुए अपना लंड उसने भावना के गले तक ठेल दिया।
भावना ‘गूं गूं.. ऊऊं..’ करने लगी।
मेरा लंड भी अकड़ रहा था, मैंने पास जाकर अपना लौड़ा भावना के हाथ में पकड़ा दिया। भावना मेरे लंड को आगे-पीछे कर रही थी और वैभव भावना के मुँह को ही चोदे जा रहा था।
वासना में डूबी भावना दो-दो लंड के मजे एक साथ ले रही थी।
तभी वैभव ने भावना का सिर पकड़ा और लौड़ा जोर-जोर से ठेलने लगा। भावना को सांस लेने में भी तकलीफ होने लगी। लौड़ा मुँह में पूरा घुस जाने की वजह से भावना की आँखें जीभ सब बाहर आ गए थे। वो तो अच्छा हुआ कि वैभव का इसी समय स्खलन हो गया.. नहीं तो शायद भावना लस्त ही हो जाती।
वैभव ने स्खलन के बाद भी भावना का सर नहीं छोड़ा.. वो उसके गले तक लौड़ा ठेल कर आराम से आँखें बंद करके झड़ता रहा।
जब झड़ने के बाद लौड़ा सिकुड़ने लगा.. तब जाकर वैभव ने उसे छोड़ा। लेकिन इधर मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने भावना को इशारों में ही उसकी हालत पूछी.. उसने आंसू पोंछते हुए सिर हिला कर ठीक होने के संकेत दिए।
फिर मैंने उसे एक प्यार भरा चुम्बन दिया और बिस्तर पर लेटा दिया।
अबकी बार मैंने उसके मुँह में अपना लौड़ा दे दिया। भावना मेरे लंड की आदी थी.. इसलिए उसने बड़े मजे से मेरा लंड चूस लिया।
उधर वैभव भावना की टाँगों के बीच बैठ गया और बड़े प्यार से भावना के गीली हो चुकी मखमली चूत को सहलाते हुए तारीफें करने लगा।
‘कसम से यार.. क्या चूत है तुम्हारी.. इतनी इतनी कोमल, चिकनी गद्देदार और कितनी सुन्दर गुलाबी फांकें हैं। आज तो तुम्हें जी भरके चोदूँगा रानी।’
ये कहते हुए वैभव चूत पर जीभ फिराने लगा। वैभव को चूत चाटने की आदत नहीं थी.. इसलिए वो झिझकते हुए धीरे-धीरे चूत चाट रहा था।
जिन लड़कियों ने अपनी चूत चटवाई है.. उन्हें पता होगा कि धीरे चटवाने से उत्तेजना और बढ़ जाती है।
ऐसा ही हुआ, भावना और उत्तेजित होकर मेरा लंड चूसने लगी।
हम सबकी आवाज और आँखों में वासना हावी हो चुकी थी।
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