RE: Chudai Kahani गाँव का राजा
साड़ी को और खींचती थोड़ा सा जाँघो के उपर उठाती शीला देवी ने अपने पैर पसारे "साड़ी भी खराब हो….यहा रात में तो कोई आएगा नही…"
"नही मा यहा…रात में कौन…"
"पता नही कही कोई आ जाए….किसी को बुलाया तो नही" मुन्ना ने मन ही मन सोचा जिसको बुलाया था उसको तो भगा दिया, पर बोला "नही..नही…किसी को नही बुलाया"
"तो मैं भी साड़ी उतार देती हू…" कहती हुई उठ गई और साड़ी खोलने लगी. मुन्ना भी गर्दन हिलाता हुआ बोला "हा मा..फिर पेटिकोट और ब्लाउस…सोने में भी हल्का…"
"हा सही है….पर तू यहा सोने के लिए आता है…सो जाएगा तो फिर रखवाली कौन करेगा…"
"मैं अपने सोने की बात कहा कर रहा हू…तुम सो जाओ…मैं रखवाली करूँगा…"
"मैं भी तेरे साथ रखवाली करूँगी…"
"तब तो हो गया काम…तुम तो सब के पिछे डंडा ले कर दौरोगी…"
"क्यों तू नही दौड़ता डंडा ले कर….मैने तो सुना है गाओं की सारी छ्होरियों को अपने डंडे से धमकाया हुआ है तूने.."
मुन्ना एकदम से झेंप गया "धात मा…क्या बात कर रही हो…"
"इसमे शरमाने की क्या बात है…ठीक तो करता है अपना आम तुझे खुद खाना है….सब चूत्मरानियो को ऐसे ही धमका दिया कर…." मुन्ना की रीढ़ की हद्ढियों में सिहरन दौड़ गई. शीला देवी के मुँह से निकले इस चूत सब्द ने उसे पागल कर दिया. उत्तेजना में अपने लंड को जाँघो के बीच ज़ोर से दबा दिया. चौधरायण ने साड़ी खोल एक ओर फेंक दिया और फिर पेटिकोट को फिर से घुटने के थोड़ा उपर तक खींच कर बैठ गई और खिड़की के तरफ मुँह घुमा कर बोली "लगता है आज बारिश होगी". मुन्ना कुच्छ नही बोला उसकी नज़रे तो शीला देवी की गोरी गथिलि पिंदलियों का मुआएना कर रही थी. घूमती नज़रे जाँघो तक पहुच गई और वो उसी में खोया रहता अगर अचानक शीला देवी ना बोल पड़ती "बेटे आम खाएगा…" मुन्ना ने चौंक कर नज़र उठा कर देखा तो उसे ब्लाउस के अंदर कसे हुए दो आम नज़र आए, इतने पास की दिल में आया मुँह आगेआ कर चुचियाँ को मुँह में भर ले दूसरे किसी आम के बारे में तो उसका दिमाग़ सोच भी नही पा रहा था हॅडबड़ाते हुए बोला "आम…कहा है आम….अभी कहा से…" शीला देवी उसके और पास आ अपने सांसो की गर्मी उसके चेहरे पर फेंकती हुई बोली "आम के बगीचे मैं बैठ कर…आम ढूँढ रहा है…" कह कर मुस्कुरई…".
"पर रात में…आम.." बोलते हुए मुन्ना के मन में आया की गड्ढे वाले गालो को अपने मुँह भर कर चूस लू.
धीरे से बोली "रात में ही खाने में मज़ा आता है…चल बाहर चलते है…" कहती हुई मुन्ना को एक तरफ धकेलते बिस्तर से उतारने लगी. इतने पास से बिस्तर से उतार रही थी की उसकी नुकीली चुचियों ने अपने चोंच से मुन्ना की बाहों को छु लिया. मुन्ना का बदन गन्गना गया. उठ ते हुए बोला "के मा…तुम भी क्या..क्या सोचती रहती हो…इतनी रात में आम कहा दिखेंगे"
"ये टॉर्च है ना…बारिश आने वाली है…जीतने भी पके हुए आम है गिर कर खराब हो जाएगे…." और टॉर्च उठा बाहर की ओर चल दी. आज उसकी चाल में एक खास बात थी, मुन्ना का ध्यान बरबस उसकी मटकती गुदाज कमर और मांसल हिलते चूतरों की ओर चला गया. गाओं की अनचुदी जवान लौंदीयों को छोड़ने के बाद भी उसको वो मज़ा नही आया था जो उसे उसकी मामी उर्मिला देवी ने दिया था. इतनी कम उम्र में ही मुन्ना को ये बात समझ में आ गई थी की बड़ी उम्र की मांसल गदराई हुई औरतो को चोदने में जो मज़ा है वो मज़ा दुबली पतली अछूती चूतो को चोदने में नही. खेली खाई औरते कुतेव करते हुए लंड डलवाती है और उस समय जब उनकी चूत से फॅक फॅक…गछ गछ आवाज़ निकलती है तो फिर घंटो चोद्ते रहो…उनके मांसल गदराए जिस्म को जितनी मर्ज़ी उतना रागडो. एक दम गदराए गथीले चूतर, पेटिकोट के उपर से देखने से लग रहा था कि हाथ लगा कर अगर पकड़े तो मोटी मांसल चुटटरों को रगड़ने का मज़ा आ जाएगा. ऐसे चूतर की उसके दोनो भागो को अलग करने के लिए भी मेहनत करनी पड़ेगी. फिर उसके बीच गांद का छोटा सा भूरे रंग का छेद बस मज़ा आ जाए. लूँगी के अंदर लंड फनफना रहा था. अगर शीला देवी उसकी मा नही होती तो अब तक तो वो उसे दबोच चुका होता. इतने पास से केवल पेटिकोट-ब्लाउस में पहली बार देखने का मौका मिला था. एक दम मस्त गदराई गथिलि जवानी थी. हर अंग फेडॅफाडा रहा था. कसकती हुई जवानी थी जिसको रगड़ते हुए बदन के हर हिस्से को चूमते हुए दन्तो से काट ते हुए रस चूसने लायक था. रात में सो जाने पर साड़ी उठा के चूत देखने की कोशिश की जा सकती थी, ज़्यादा परेशानी शायद ना हो क्योंकि उसे पता था कि गाओं की औरते पॅंटी नही पहनती. इसी उधेरबुन में फसा हुआ अपनी मा की हिलती गांद और उसमे फासे हुए पेटिकोट के कपड़े को देखता हुआ पिछे चलते हुए आम के पेड़ो के बीच पहुच गया. वाहा शीला देवी फ्लश लाइट (टॉर्च) जला कर उपर की ओर देखते हुए बारी-बारी से सभी पेड़ो पर रोशनी डाल रही थी.
"इस पेड़ पर तो सारे कच्चे आम है…इस पर एक आध ही पके हुए दिख रहे…"
"इस तरफ टॉर्च दिखाओ तो मा…इस पेड़ पर …पके हुए आम दिख…."
"कहा है…इस पेड़ पर भी नही है पके हुए…तू क्या करता था यहा पर….तुझे तो ये भी नही पता किस पेड़ पर पके हुए आम है…" मुन्ना ने शीला देवी की ओर देखते हुए कहा "पता तो है मगर उस पेड़ से तुम तोड़ने नही दोगि…".
"क्यों नही तोड़ने दूँगी…तू बता तो सही मैं खुद तोड़ कर ख़िलाउंगी...." फिर एक पेड़ के पास रुक गई "हा….देख ये पेड़ तो एकदम लदा हुआ है पके आमो से….चल ले टॉर्च पकड़ के दिखा मैं ज़रा आम तोड़ती हू…." कहते हुए शीला देवी ने मुन्ना को टॉर्च पकड़ा दी. मुन्ना ने उसे रोकते हुए कहा "क्या करती हो…कही गिर गई तो …..तुम रहने दो मैं तोड़ देता हू…."
"चल बड़ा आया…आम तोड़ने वाला…बेटा मैं गाओं में ही बड़ी हुई हू…जब मैं छ्होटी थी तो अपने सहेलियों में मुझ से ज़यादा तेज कोई नही था पेर पर चढ़ने में…देख मैं कैसे चढ़ती हू…"
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