RE: Chudai Kahani मैं और मौसा मौसी
"आपही ने तो भेजा उसको बजार. अभी होता तो आपके मुंह में लंड पेल देता बाबूजी, आप का मुंह ऐसे खाली नहीं रहता." राधा बोली.
"भैयाजी, वैसे तो रज्जू बहूरानी को घूर रहा था दोपहर को, बहूरानी ने रिझा लिया है उसको" रघू बोला.
"हां लीना भाभी की चूंचियां देखीं होंगी ना उसने! तुमने नहीं देखा जी, क्या मस्त दिख रही थीं ब्लाउज़ के ऊपर से. मेरा तो मन मुंह मारने को हो रहा था" राधा पड़ी पड़ी गांड मरवाते हुए बोली.
"अरी ओ रधिया, मौसी से पूछे बिना कुछ लीना भाभी के साथ नहीं करना. मुंह मारना है तो मौसी के बदन में मार जैसे रोज करती है" रघू बोला, वो अब घचाघच दीपक मौसाजी को चोद रहा था.
"बाबूजी, आप चुप चुप क्यों हो, बहूरानी अच्छी नहीं लगी क्या" राधा बोली.
"अरे जरूर लगी होगी. पर अनिल भैया ज्यादा पसंद आये होंगे भैयाजी को, है ना भैयाजी?" रघू बोला.
मौसाजी कुछ कहते इसके पहले मैं वहां से चल दिया. मेरी इच्छा तो थी कि रुक कर सब कुछ देखूं पर मेरा लंड ऐसे सनसना रहा था कि रुकता तो जरूर मुठ्ठ मार लेता या अंदर जा कर उनमें शामिल हो जाता जो बिना लीना की अनुमति के मैं नहीं करना चाहता था. और रज्जू आ रहा था, दूर से खेत में दिख रहा था, उसकी नीली शर्ट से मैंने पहचान लिया. वो देख लेता तो फ़ालतू पचड़ा हो जाता. इसलिये बेमन से मैंने धीरे से खिड़की बंद की और चल दिया.
रज्जू पास आया तो मुझे देखकर रुक गया और नमस्ते की.
मैंने पूछा "कैसे हो रज्जू? घर जा रहे हो लगता है?"
"हां भैयाजी. आप अकेले ही आये घूमने, भाभीजी को नहीं लाये?" उसने पूछा.
"वो मौसी के साथ है, मैं अकेला ही घूम आया. लगता है मौसाजी तुम्हारे घर पर ही हैं, रघू और राधा के साथ बातें कर रहे थे" मैंने कहा.
रज्जू कुछ नहीं बोला. नीचे देखने लगा.
"वैसे मैं अंदर नहीं गया, बस खिड़की से उनकी बातें सुनीं. तुम्हारा जिक्र कर रहे थे मौसाजी, बोले तुम भी होते तो अच्छा होता" मैंने मुस्करा कर कहा.
रज्जू मेरी ओर कनखियों से देख कर मुस्करा कर बोला "हां अनिल भैया, मौसाजी को बड़ी फ़िकर रहती है हम सब की. हम तीनों मिलकर उनकी सेवा करते हैं जैसी हो सकती है, आज मैं नहीं था तो नाराज हो गये होंगे. मैं जा कर देखता हूं"
"रज्जू, भई तुम्हारी लीना भाभी को खेत में घूमना है, पहली बार गांव आई है, उसको घुमा लाना कभी. गांव को हमेशा याद करे ऐसी खुश होनी चाहिये तेरी लीना भाभी" मैंने कहा.
"हां अनिल भैया, भाभी को तो ठीक से पूरा घुमा दूंगा. आप नहीं चलोगे घूमने? हम तो आप को भी घुमा देंगे आप का मन हो तो" रज्जू ने पूछा.
"हां, देखूंगा. मौसी से जरा पूछ लूं कि क्या प्रोग्राम है. पहले लीना को तो घुमा, ठीक से घुमाया तो मैं भी घूम लूंगा" मैंने उसकी ओर देखा और बोला.
रज्जू मुस्कराकर अच्छा बोला और अपने घर की ओर चल दिया.
मैं गांव में घूमने निकल गया. सोचा घर पर लीना और मौसी का तो अभी चल रहा होगा, क्यों फ़ालतू डिस्टर्ब करूं. दो घंटे बाद वापस आया तो राधा खाना बना रही थी. मौसी और लीना बैठक में सोफ़े पर पास पास बैठी थीं. लगता है काफ़ी चूमा चाटी चल रही थी, क्योंकि जब मैं एक दो बार खांस कर बैठक में दाखिल हुआ तो दोनों एक दूसरे से सटी बैठी थीं और मुस्कराती हुई देख रही थीं. लीना का आंचल ढला हुआ था. ब्लाउज़ के दो बटन खुले थे. मुझे देख कर मौसी संभल कर बैठ गयीं. लीना बोली "अनिल, मौसी तो मुझे काम ही नहीं करने देतीं. यहीं बिठा कर रखा है. बड़ा प्यार करती हैं मुझे" फ़िर अपना आंचल बड़ी शोखी से ठीक करने लगी.
मौसी बोली "अरे शाम को कितना काम करवाया तुझसे, इतनी सेवा की तूने मेरी. अनिल, तेरी ये बहू सच में बड़ी अच्छी है. कुछ घंटे में ही दिल जीत लिया मेरा. तू कहां हो आया?"
"मौसी खेत वाले घर पर गया था. मौसाजी काम में थे, रघू और राधा के साथ. इसलिये रुका नहीं, चला आया."
"अरे तू भी उनकी मदद कर देता. रज्जू नहीं था क्या" मौसीने पूछा.
"वैसे उन तीनों का काम ठीक ठाक चल रहा था इसलिये बस बाहर से देखकर चला आया मौसी. बाद में घर को जाते वक्त दिखा था रज्जू. बोल रहा था कि मौसाजी राह देख रहे होंगे"
"मुझे लगा कि तू भी उनसे गपशप में भिड़ गाया होगा" मौसी शैतानी से मुस्कराकर कर बोलीं. मुझे यकीन हो गया कि उनको पता था कि वहां क्या चलता है और मुझे जान बूझ कर देखने को भेजा था.
"करने वाला था मौसी, फ़िर सोचा कि वे काम में हैं, मैं भी अभी यहां बिलकुल नया हूं, इसलिये थोड़ी देर बगीचा देखा और चला आया" मैंने बात बना दी.
"हां, ये राधा भी देरी से आयी आज. खाने में इसलिये देर हो गयी, खैर अब खाना खाकर सो जाना, तुम लोग थके होगे लंबे सफ़र से"
मौसाजी वापस आये तो मौसी उनके कमरे में चली गयीं. मैंने मौका देख कर लीना को सब बता दिया जो जो देखा था. सुनकर लीना अपनी टांगें आपस में घिसने लगी. "अब आयेगा मजा अनिल. ये सब महा चोदू लोग हैं. मौसी के साथ मैंने क्या मस्ती की आज शाम को मालूम है? बड़ी चालू हैं वो, तुम्हारे जाने के बाद एक मिनिट वेस्ट नहीं किया, सीधा मुझे ले लिया"
"कैसी हैं मौसी? मजा आया" मैंने पूछा.
"अरे माल है माल, खालिस गांव का माल. पर मुझे ज्यादा चखने का मौका ही नहीं दिया मौसीने, बस एक बार मुंह मारने दिया, फ़िर मेरी चखने के पीछे पड गयीं. कहती थीं कि क्या गरम जवानी है तेरी लीना, पहले मुझे मन भर के चख लेने दे"
|